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Showing posts from July, 2020

संजू संजय दत्त की बायोपिक नहीं है.

29 जुलाई अर्थात आज का दिन बॉलीवुड के अभिनेता संजय दत्त का जन्मदिवस है. 1959 में जन्मे इस अभिनेता की ज़िंदगी मे बहुत उतार चढाव आए है. संजू, संजय दत्त की बायोपिक कही जाती है. जिसमें संजय दत्त का किरदार रणबीर कपूर ने निभाया था. परन्तु यह फिल्म संजय दत्त की बायोपिक नहीं कही जा सकती है. क्योंकि इस फिल्म में से संजय दत्त की जिंदगी से जुड़े कई महत्वपूर्ण किस्से और किरदार गायब है. कहते है कि संजय दत्त की कहानी 1500 पन्नों में लिखी गई है, उसमें से सिर्फ 500 पन्नों की कहानी में से ही संजू फिल्म बनी हुई है. बाकि 1000 पन्नों की कहानी को अनछुआ ही छोड़ दिया गया है. क्योंकि वो संजय दत्त के काले चरित्र के बारे में था. क्योंकि निर्देशक राजकुमार हिरानी ने खुद इस बात को स्वीकार किया था कि संजू फिल्म को उन्होंने संजय दत्त के जीवन के सकारात्मक पहलु को दिखाने और संजय दत्त के लिए भावनात्मक झुकाव बनाने का प्रयास किया है. आइए जानते है संजय दत्त के जीवन के कुछ अनदेखे पहलु के बारे में. अंडरवर्ल्ड से रिश्ता संजय दत्त का अंडरवर्ल्ड से काफी गहरा रिश्ता रहा है. परंतु इस फिल्म में केवल एक लोकल डॉन के बारे में ही दिखाया

कारगिल विजय दिवस: अपनी गलतियों से कितना सीखें है हम?

26 मई, कारगिल विजय दिवस है. इसी दिन भारत कारगिल में विजयी हुआ था. पाकिस्तान को तमाम षडयंत्रो के बाद भी पीछे हटना पड़ा था. भारतीय सेना के जवानों ने अदम्य साहस का परिचय दिया और यह सिद्ध कर दिया कि भारत के जवान बिना किसी खास उपकरण के भी खुद के हिम्मत और साहस के बल पर माँ भारती के लिए कुछ भी कर सकते है. परंतु हमने अपनी पुरानी गलतियों से क्या सीखा है? हमने 1962: नेहरू चीन युद्ध से क्या सीखा? 1967: भारत चीन प्रथम युद्ध से क्या सीखा? हमने कारगिल से क्या सीखा? इतिहास इसी वजह से लिखा जाता है. हम उसे पढ़े अपनी भूल को जाने समझे और भविष्य में कोशिश करें कि भूतकाल की गई भूल को वापस से न दोहराएं. परंतु भारत देश का सिद्धांत रहा है अगर जीत गए सफल हुए तो सब माफ. भूल के बारे में बात करने से पहले हम कारगिल युद्ध को बहुत संक्षिप्त में देखेंगे. भारत देश के जवानों की वीरता के बारे में जानना बहुत जरुरी है. वो हमेशा और हर परिस्थिति में सम्मान के योग्य है. कारगिल युद्ध 1999 में हुए इस युद्ध की रूप रखा 1971 में हुए भारत पकिस्तान युद्ध में पाकिस्तान के पराजय और उसके प्रत्यर्पण संधि ने ही खिंच दिया था. इस समय स्पेश

कारगिल विजय दिवस

आज 26 मई है अर्थात विजय दिवस. आज ही के दिन भारत ने पकिस्तान को कारगिल के युद्ध में पराजित कर दिया था. मई में शुरू हुआ युद्ध यह 26 जुलाई को पूर्णतः समाप्त हो गया था. उन्ही वीरो को प्रणाम करते हुए मैं अपनी लिखी हुई कुछ कविताएँ प्रस्तुत कर रहा हुँ. सबसे पहली कविता का शीर्षक है "पाँच रंग वाला तिरंगा". पाँच रंग वाला तिरंगा किसी को चिंता भगवे की, कोई हरे रंग के लिए रोता है. कोई सफेद को लपेटे रहता, कोई बसंती रंग ओढ़ सोता है. चारों रंग लड़ते रहते आपस में, यह देख पाँचवा रंग मुस्कुराता है. चार रंग ये पाँचवा अदृश्य मैं, है रंग पाँच पर तिरंगा कहलाता है. माँ भारती की सेवा के लिए जब, एक जवान घर से दूर जाता है. पाँचवा रंग उन जवानों का जो, भारत माँ के लिए लहू बहाता है. यूँ तो रहता है अदृश्य यह पर, जवानों से लिपट उभर आता है इस पाँचवे रंग के सामने आज, विजय दिवस पर शीश झुकता है. विजय दिवस हो हम गद्दारों के नाम नाम कोई संदेश न दें ऐसा कैसे हो सकता है? गद्दारों के नाम संदेश हम देश भक्तो को जो भी, यहाँ नादान समझते है. देश के गद्दारो का जो होगा, वो अंजाम समझते है. काट काट कर चढ़ा देंगे, शीश माँ भारती

गुमनाम क्रांतिवीर : भगवती चरण वोहरा

भारत वर्ष हमेशा से ही वीरों का देश रहा है. भारत की भूमि पर ऐसे भी महान वीर हुए है, जिन्होंने अपने प्राणों की परवाह ना करते हुए निस्वार्थ भाव से मातृभूमि की सेवा करते हुए अपने प्राण हँसते हँसते मातृभूमि पर ही नौछावर कर दिया है. जब जब बात क्रांतिकारियों की आती है तब सिर्फ भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, चंद्रशेखर आज़ाद उर्फ पंडित जी तक ही सिमट कर रह जाती है. आज मैं उस महान क्रांतिकारी के विषय में बताऊंगा, जो थे तो उन क्रांतिकारियों के साथी, पर शायद ही कोई उनके बारे में सही से जानता है. बात कर रहे है अपने साथियो में "भाई" ने नाम से मशहूर भगवती चरण वोहरा के बारे में.

चीन: एक पड़ोसी जिस से दुनिया परेशान है.

चीन भारत का एक ऐसा पड़ोसी देश है जिसकी सीमा 1950 तक भारत से नहीं लगती थी. परंतु 1950 में जब चीन ने तिब्बत पर कब्ज़ा किया, तब नेहरू चुप रहे और इस तरह से चीन भारत के सीमा पर आ गया और 1962 में नेहरू चीन युद्ध के समय में अक्साई चीन पर कब्ज़ा कर लिया. उसके बाद भी चीन की विस्तारवादी नीति यही नहीं रुकी. कभी सिक्किम, तो कभी अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा करता रहा और आज भारत के लद्दाख में स्थित गलवान घाटी, पैंगॉन्ग झील के तरफ भी अपना दावा कर रहा है. हालाँकि भारत की सेना उसे मुँह तोड़ जवाब दे रही है, परंतु चीन अपनी आदतों से बाज नहीं आ रहा है.  चीन भारत का ही नहीं बल्कि उसके लगभग सभी पड़ोसी देश जैसे कि अफगानिस्तान, पाकिस्तान, रूस, जापान, ताइवान, मंगोलिया, भूटान, म्यांमार इत्यादि के साथ सीम विवाद है. इसके साथ ही चीन ने अमेरिका के साथ भी दक्षिणी चीन सागर में विवाद खड़ा कर लिया है और सबसे बड़े आश्चर्य की बात यह है कि उसने सभी बड़े देशों के साथ विवाद एक साथ  खड़ा  किया है और चीन पर Covid-19 वायरस को फैलाने का आरोप लगने के बाद इस विवाद को बढ़ा दिया है. जापान चीन विवाद जापान और चीन का विवाद इनके इतिहास के जितना ही

क्या ताजमहल तेजोमहालय है?

उत्तरप्रदेश के आगरा में स्थित है ताजमहल, खूबसूरती का अद्भुत नमूना है. ताजमहल की ये खुबसूरति की चाँद की चांदनी में और भी ज्यादा निखर कर सामने आती है. ताजमहल की खूबसूरती को देखने के लिए हर वर्ष यहाँ लाखो की संख्या में लोग आते है और उत्तरप्रदेश सरकार को ताजमहल से ही सालाना लगभग 61 करोड़ का राजस्व प्राप्त होता है. हमारे इतिहास में हमे यह पढ़ाया जाता रहा है कि ताजमहल शाहजहाँ ने अपनी पत्नी मुमताज की याद में बनवाया था. परन्तु पुरुषोत्तम नागेश ओक नाम के एक प्रो ने एक किताब लिखा ताज महल एक मंदिर है, जिसमे यह दावा किया गया की ताज महल एक हिन्दू मंदिर है और शाहजहाँ के पहले से मौजूद है. शाहजहाँ ने अपनी पत्नी मुमताज को दफ़नाने के लिए उस पर कब्ज़ा कर लिया और मुमताज को यहाँ दफनाया. फिर ताजमहल को लेकर विवाद खड़ा हुआ कि क्या वाकई ताजमहल एक हिन्दू मंदिर है? हालाँकि प्रो P N OAK ने

सुशांत सिंह राजपूत के लिए न्याय

बॉलीवुड चकाचौंध की दुनिया. इसकी चकाचौंध से आकर्षित होकर हर एक कोई इसका हिस्सा बनाना चाहता है. इसके लिए वो कोई भी कीमत चुकाने को तैयार रहते है. उस कीमत की शुरुआत होती है अपना घर छोड़ने से. उसके बाद वो आँखों में सपने सजाये सपनों के शहर मुंबई में चले जाते है. मुंबई में काम नहीं मिलने तक उन्हें तरह तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. निर्माता निर्देशकों से  मिलने के लिए उनके ऑफिस के चक्कर काटना, घंटो घंटो उनके ऑफिस के बाहर खड़े रहना और इसके बाद भी इन्हे वहाँ से धक्के मार कर भगा देते है. इन्हे काफी जिल्लत का सामना करना पड़ता है. तब जाकर कही इन्हे कोई मौका मिलता है. मौका मिलने के बाद भी इनकी राह आसन नहीं होती. परन्तु सफल हो गए तो इन्हे सभी अपने सर आँखों पर बैठा लेते है और वो चकाचौंध की दुनिया में खो जाते है. इस चकाचौंध की दुनिया का एक दूसरा पहलु भी है. वह बहुत भयानक और खतरनाक होता है. कई बार इस दुनिया में खो कर अपनों से दूर हो जाते है. क्योंकि इस इंडस्ट्री में दोस्त सिर्फ मतलब के लिए बनाये जाते है. यहाँ कुछ भी हमेशा के लिए नहीं होते. अंडरवर्ल्ड के दबदबा वाले इस बॉलीवुड में सभी टिक नहीं पाते

उत्तरप्रदेश: अपराधियों का गढ़

अगर याद हो तो एक फिल्म आई थी, उत्तर प्रदेश की पृष्टभूमि पर आधारित "बुलेट राजा". जिसमें उत्तर प्रदेश के एक क्षेत्रीय नेता अपना निहित स्वार्थ सिद्ध करने के लिए दो गुंडे पालते है. जिन्हे राजनैतिक रक्षक का नाम दिया गया. यही उत्तर प्रदेश की कहानी है. आज विकास दुबे ने 8 पुलिस वालों को मार दिया और यह बात मीडिया में आ गई. इसी वजह से आज विकास दुबे के पीछे पुरे उप्र की पुलिस पड़ गई है. वरना विकास दुबे पर पहले से भी हत्या के अपराधिक मामले दर्ज है और सिर्फ विकास दुबे ही एक मात्र अपराधी नहीं है, जो खुला घूम रहा हो. ऐसे कई और है, जिन्हे या तो राजनैतिक संरक्षण प्राप्त है या फिर खुद किसी पार्टी से जुड़े हुए है. कुछ ऐसे भी है, जिसने पूरा उत्तर प्रदेश कांपता था. देखते है ऐसे ही कुछ दबंग बाहुबलियों के बारे में. मुख़्तार अंसारी भारत देश के उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी   का भतीजा,  6 फुट 2 इंच का लम्बा कद, गहरी लम्बी मूंछे. यह पहचान है दबंग बाहुबली मुख्तार अंसारी की. बहुजन समाजवादी पार्टी की मुखिया मायावती ने जिसे गरीबों का मसीहा बताया अपनी पार्टी का टिकट दिया था. इस तरह से एक जुर्म की दुनिया का डॉन रा

गुमनाम क्रन्तिवीर: कोमरम भीम

कोमरम भीम, ये नाम किसी परिचय का मौहताज नहीं होता, अगर हमें मुगल और अंग्रेजों के इतिहास की स्थान पर हमारे इतिहास से जुड़े लोगों के बारे में पढ़ाया जाता. फिर चाहे वो नायक, हो खलनायक हो या गद्दार हो. हमारे लिए हमारे अतीत को जानना ज्यादा जरुरी है. खैर. ये है तेलंगाना के आदिवासी नेता कोमरम भीम, जिन्होंने जल, जंगल और जमीन का नारा दिया था. बाहुबली से ज्यादा      चर्चित हुए SS राजामौली की आगामी फिल्म RRR, जिन दो क्रांतिकारियों पर आधारित है उनमे से एक कोमरम भीम है, जिसके किरदार में Jr NTR नज़र आने वाले है.  बिरसा मुंडा, सिद्दू कान्हू जैसे अन्य आदिवासी नायको की तरह कोमरम भीम का नाम भी प्रचलित होना चाहिए था. परन्तु वो सिर्फ एक स्थानीय नायक बन कर रह गए. यह हमारे शिक्षा प्रणाली का दोष है और कुछ नहीं.

बाबा हरभजन सिंह: एक अनोखा सैनिक

भारतीय सैनिक वीरता, साहस, पराक्रम, जोश, देशप्रेम और बलिदान के प्रतिक माने जाते है. भारत देश के सैनिक युद्ध के मैदान में दुश्मनों के लिए काल बन जाते है, वही सैनिक जब भारत देश में कोई प्राकृतिक आपदा आई हो तो देशवासियों के लिए संजीवनी बूटी लाने वाले हनुमान बन जाते हैं. भारतीय सेना के जवानों के किस्से बड़े ही रोचक होते हैं और हमेशा हम सबको आश्चर्यचकित कर देते हैं, फिर चाहे वह युद्ध के मैदान की बात हो या फिर बचाव कार्यों की. ऐसे ही भारतीय सेना में और शायद विश्व के किसी भी देश के सेना में ऐसा शायद ही हुआ होगा, जब कोई सैनिक अपनी मृत्यु के बाद भी सीमा पर अपना कर्त्तव्य निभा रहा हो और इस बात को दुश्मन देश की सेना भी मानती हो और उनका सम्मान करती हो. भारतीय सेना के इतिहास में ऐसे दो अकल्पनीय सैनिकों के किस्से मशहूर हैं: पहला जसवंत सिंह रावत और दूसरे हैं बाबा हरभजन सिंह. आज हम बाबा हरभजन सिंह के बारे में ही बात करेंगे. प्रारंभिक जीवन हरभजन सिंह का जन्म 30 अगस्त 1946 को पाकिस्तान के गुजरांवाला के सदराना गाँव में हुआ था. जब भारत पाकिस्तान का बँटवारा हुआ था तब उनका परिवार भारत वापस आ गया. हरभजन सिंह म

एनकाउंटर

एनकाउंटर. यह शब्द सामने आते ही दिमाग में अलग अलग तस्वीरें उभर कर सामने आ जाती है. पर शायद आज एनकाउंटर का नाम ले तो विकास दुबे का चित्र ही सामने आ जाता है. कुछ इस एनकाउंटर इस खुश हैं, तो कुछ इसे फर्जी बता कर उत्तर प्रदेश की पुलिस को कटघरे में खड़ा कर रहे है. वहीं कुछ लोग इसे हैदराबाद एनकाउंटर से भी जोड़ कर देख रहे है. उनका ऐसा कहना है कि दोनों ही केस में जनता की भावनाएं हावी थी. इसी वजह से एनकाउंटर को वो गलत ठहरा कर इसे बदले की कार्यवाही बता रहे हैं. वह यह दलील दे रहे है कि पुलिस का काम सिर्फ आरोपी को गिरफ्तार कर अदालत तक ले जाना है. सजा देने का काम अदालत का है. वो अदालत की लेट लतीफी का भी बचाव करते हुए पुलिस को थोड़ा संयम रखने की नसीहत भी दे रहे है. आइए एनकाउंटर से जुड़े कुछ सवालों के जवाब ढूँढने की कोशिश करते है. एनकाउंटर और उसका इतिहास एनकाउंटर का एक सीधा सदा अर्थ है, "पुलिस के द्वारा किसी अपराधी को मार गिराना". समय समय पर हर एक राज्य की पुलिस एनकाउंटर करती ही रही है और वह हर एक पार्टी की सरकार के समय होता ही रहा है और आगे भी होता ही रहेगा. इसे रोका नहीं जा सकता. परंतु विपक्ष म

सुनो पाटलिपुत्रा क्या बोले है बिहार?

बिहार अपने प्राचीन समय में बहुत समृद्ध हुआ करता था. बिहार से ही भारत के सबसे शक्तिशाली मगध साम्राज्य का उदय हुआ था और काफी समय तक पाटलिपुत्र उसकी राजधानी रहा था. सिक्खों के दसवें गुरु गुरुगोविंद सिंह जी का जन्म भी पाटलिपुत्र में हुआ था. मोटा मोती बात यह है कि आज का पिछड़ा और शायद सबसे बदनाम राज्य एक समय सबसे ज्यादा समृद्ध हुआ करता था. परंतु कुछ नेताओं के  कुछ न करने  से और  जनता के जाति  के नाम पर वोट देने से RJD के शासन काल के दौरान बिहार 15 वर्ष पीछे चला गया. सड़क नहीं, बिजली नहीं, रोजगार नहीं, अपराध अपने चरम पर. इसी वजह से बिहारियों ने अपने राज्य के बाहर जाकर रोजगार ढूँढना शुरू किया. रोजगार तो मिला, परंतु वो इज्जत नहीं मिली. हर बार बेइज्जती का सामना करना पड़ता, कभी कभी मारपीट का भी. 2000 में असम जैसे राज्यों में तो बिहारियों

चीन विश्व के लिए एक खतरा

भारत और चीन की सेना गलवान घाटी और पैंगोंग त्सो लेक पर मई महीने से ही आमने सामने खड़ी है. 15-16 की रात इन दोनों सेनाओं के बीच में खूनी झड़प भी हुई, जिसमें भारत देश के 20 वीर जवान वीरगति को प्राप्त हुए और चीन की सेना के तरफ से 40 से 100 सैनिकों के मारे जाने की खबर है. हालाँकि चीन ने आधिकारिक तौर पर इस बात को स्वीकार नहीं किया है. चीन के लिए गलवान घाटी और DSDBO रोड बहुत महत्वपूर्ण है. इसी वजह से चीन यहाँ से पीछे नहीं हटाना चाहता. पर भारत के प्रयासों और कूटनीतिक दबाव की वजह से चीन फिंगर 8 तक पीछे हटाने की तैयार तो हो गया, परंतु वह फिंगर 4 से 5 के बीच में आ गया और अब इस से पीछे हटाने से इंकार कर रहा है. डोकलाम की ही तरह यह मामला भी इतनी आसानी से सुलझाता नहीं दिख रहा. चीन के आतंरिक स्थिति जब जब असंतुलित हुई है चीन अपने पड़ोसी देशों पर आक्रामक हुआ है, चाहे आप 1962: नेहरू चीन युद्ध का उदाहरण ले ले या अभी के गलवान घाटी का. हालाँकि की नेहरू चीन युद्ध में नेहरू की खराब नीतियों की कीमत भारत देश को चुकाना पड़ा और इस एक तरफा युद्ध में रेजॉन्ग ला का युद्ध और जसवंत सिंह रावत को छोड़ दे तो चीन भारत पर हावी

1921: मोपला नरसंहार

भारतीय इतिहास में कई ऐसी घटनाएँ हुई है, जिसे या तो गलत तरीके से हमारे सामने रखा गया है या फिर आधा ही पहलु सामने रखा गया है. ऐसी एक दो घटनाएँ नहीं हुई है भारतीय इतिहास में, बल्कि भारतीय इतिहास ऐसी घटनाओं से भरा पड़ा है. उन्ही में से एक है मोपला दंगे. वैसे इसके लिए सही शब्द होगा मोपला नरसंहार. परंतु हमारे इतिहास में इसे मोपला विद्रोह के नाम से प्रसिद्ध है. केरला के मुस्लिम बहुल्य इलाके में हुए इस नरसंहार में हिन्दुओं को मोपला मुसलमानों के द्वारा निशाना बनाया गया था. मोपला मुसलमानों ने हजारों की संख्या में हिन्दुओं, जिसमें बच्चे, बूढ़े और औरतें भी थे, को निर्दयता से मौत के घाट उतार दिया था. हिन्दू औरतों का बलात्कार किया गया, हिन्दुओं की सम्पति को लुटा गया. इस तरह से यह नरसंहार हुआ था. आइए जानते है इसके बारे में.

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक

बाल गंगाधर तिलक, जिन्हे लोकमान्य तिलक के नाम से भी जाना जाता है. लोकमान्य अर्थात लोगों द्वारा माना गया या स्वीकृत किया गया. तिलक, जिनके मृत्य पर गाँधी ने कहा था, "आज हमने आधुनिक भारत के निर्माता को खो दिया है." लोकमान्य तिलक, जिन्होंने सर्वप्रथम पश्चात् शिक्षा का विरोध किया था. बाल गंगाधर, जो शायद भविष्य भी देख सकते थे. उनके कई निर्णय इस बात को सिद्ध भी करते है. बाल गंगाधर तिलक, जिन्होंने पराधीन भारत में ही स्वदेशी और राष्ट्रिय शिक्षा का नारा दिया था. ऐसे महान क्रांतिकारी, विद्वान शिक्षक बाल गंगाधर लोकमान्य तिलक के बारे में थोड़ा देखेंगे. जन्म और बाकि जानकारी तो आपको आसानी से इंटरनेट पर मिल जाएगी, परन्तु उनके जीवन के उसी पहलु को एक अलग नजरिए से देखने का प्रयत्न करेंगे. प्रारंभिक जीवन 23 जुलाई 1856 के दिन महाराष्ट्र के कोंकण प्रदेश (रत्नागिरी) के चिखली गांव में पंडित गंगाधर रामचंद्र तिलक के घर एक पुत्र का जन्म हुआ था. नाम रखा गया बाल गंगाधर तिलक. तिलक संस्कृत और गणित के प्रखंड विद्वान थे. साथ ही साथ वो एक राष्ट्रवादी, शिक्षक, पत्रकार, समाज सुधारक, वकील और स्वतंत्रता सेनानी थे.