चीन: एक पड़ोसी जिस से दुनिया परेशान है. Skip to main content

चीन: एक पड़ोसी जिस से दुनिया परेशान है.

चीन भारत का एक ऐसा पड़ोसी देश है जिसकी सीमा 1950 तक भारत से नहीं लगती थी. परंतु 1950 में जब चीन ने तिब्बत पर कब्ज़ा किया, तब नेहरू चुप रहे और इस तरह से चीन भारत के सीमा पर आ गया और 1962 में नेहरू चीन युद्ध के समय में अक्साई चीन पर कब्ज़ा कर लिया. उसके बाद भी चीन की विस्तारवादी नीति यही नहीं रुकी. कभी सिक्किम, तो कभी अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा करता रहा और आज भारत के लद्दाख में स्थित गलवान घाटी, पैंगॉन्ग झील के तरफ भी अपना दावा कर रहा है. हालाँकि भारत की सेना उसे मुँह तोड़ जवाब दे रही है, परंतु चीन अपनी आदतों से बाज नहीं आ रहा है. 
चीन भारत का ही नहीं बल्कि उसके लगभग सभी पड़ोसी देश जैसे कि अफगानिस्तान, पाकिस्तान, रूस, जापान, ताइवान, मंगोलिया, भूटान, म्यांमार इत्यादि के साथ सीम विवाद है. इसके साथ ही चीन ने अमेरिका के साथ भी दक्षिणी चीन सागर में विवाद खड़ा कर लिया है और सबसे बड़े आश्चर्य की बात यह है कि उसने सभी बड़े देशों के साथ विवाद एक साथ खड़ा किया है और चीन पर Covid-19 वायरस को फैलाने का आरोप लगने के बाद इस विवाद को बढ़ा दिया है.

जापान चीन विवाद
जापान और चीन का विवाद इनके इतिहास के जितना ही पुराना है. द्वितीय विश्व युद्ध के समय जापान का एक यूनिट 731 था जो चीन के लोगों पर अलग अलग तरह से अत्याचार करते थे. यूनिट 731, जो स्वस्थ्य से संबंधित शोध के नाम पर चीन के लोगों पर अलग अलग तरह से अत्याचार करते थे. ये अत्याचार द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की हार के साथ ही बंद हुआ. पर जापान और चीन के बीच विवाद का कारन फ़िलहाल यह नहीं है. इसका कारण है सेनकाकू द्वीप 1971 में जापान ने इस द्वीप पर अपना झंडा लगा दिया. उस समय ऐसा ही होता था कि इसने पहले अपना झंडा लगा दिया वो द्वीप उसका. चीन की उस मानवरहित द्वीप में दिलचस्पी तब बढ़ गई जब शोध से पता चला कि सेनकाकु द्वीप के आसपास कच्चे तेल और प्रकृति गैस का भंडार है. इसी वजह चीन अपने पुराने इतिहास का हवाला देकर इस द्वीप को अपना बता रहा है. जापान ने गलवान घाटी में चीन और भारत के बीच बढ़ते तनाव को ध्यान में रखते हुए कुछ ऐसे बदलाव किये जिस से सेनकाकू द्वीप पर जापान का दावा और मजबूत हो जाए.

रूस चीन विवाद
चीन ने रूस के व्लादिवोस्टोक द्वीप पर अपना दावा करना शुर कर दिया था और दोनों देशो के बीच में 1969 में युद्ध भी हुआ था. जिसमे चीन की हार हुई थी. उसके बाद चीन ने रूस के साथ अच्छे संबंध बना लिए था. चीन इतना समझ गया था कि अगर उसे एशिया और अपने आसपास के देशो पर कब्जा करना है, तो उसे अपने दक्षिणी सीमा को शांत रखना पड़ेगा. पर फ़िलहाल में भारत और चीन के बीच हुए गलवान घाटी के सीमा विवाद में रूस का झुकाव भारत कि तरफ देखने को मिला और वह भारत का समर्थन करते दिखा. इसके बाद ही चीन ने रूस के शहर व्लादिवोस्तोक पर अपना दावा कर दिया है चीन ने दावा करते हुए कहा है कि 1860 से पहले व्लादिवोस्तोक शहर चीन का ही था. प्रशांत महासागर में स्थित नौसेना के बड़े में व्लादिवोस्तोक रूस का प्रमुख नौसेना का अड्डा है. रूस ने कुछ दिन पहले ही चीन के खुफिया एजेंसी के ऊपर पनडुब्बी से जुड़ी टॉप सीक्रेट फाइल चुराने का आरोप लगाया था.

भूटान चीन विवाद
भूटान में राजशाही है. भूटान और चीन के बीच कोई भी राजनयिक संबंध नहीं है, परन्तु 1984 से 2016 के बीच दोनों देशों के बीच सीमा विवाद की वजह से 24 बार बात किया है. चीन भूटान के डारचेन, लाब्रांग मठ, गरतोक और छोटे छोटे मठो पर अपन हक़ जताता ही रहा है. पर इस पर उसने कुछ ऐस कर दिया है जिस से भारत की चिंता बढ़ गई है. चीन ने भूटान के सकटेंग वाइल्डलाइफ सेंचुरी पर अपना दावा कर दिया है. चीन ने इससे पहले यह दावा कभी नहीं किया था. साथ ही चीन ने यह भी कहा है कि यह चीन और भूटान के बीच का मामला है, इसमें किसी और देश को दखल नहीं देना चाहिए. यह सीधा इशारा भारत की तरफ है.

अमेरिका चीन विवाद 
अमेरिका चीन की कोई भी सीमा एक दूसरे से लगती तो नहीं है, परन्तु चीन की विस्तारवादी नीति की वजह से अमेरिका और चीन के बीच में विवाद अपने चरम पर है. यह विवाद हुआ है दक्षिणी चीन सागर को लेकर. चीन ने अपना दावा पूरी दक्षिणी चीन सागर पर कर दिया है. सोलोमन द्वीप पर अपना सैन्य अड्डा बना कर चीन ने अमेरिका और उसके सभी साथी देशों की चिंता बढ़ा दिया है. अमेरिकी राष्ट्रपति कोरोना फ़ैलाने के लिए खुल कर के चीन को जिम्मेदार ठहराते रहे है. इसी के साथ चीनी सागर में चीन की बढती दखल और जापान के साथ सेनकाकू द्वीप को लेकर तनाव की वजह से अमेरिका ने अपने 3 विमानवाहक पोत दक्षिणी चीन सागर में उतार दिया है.

इन देशों के साथ चीन के सीमा विवाद चल रहे है. हांगकांग और मकाऊ पर भी वह अपना कब्ज़ा कर लेना चाहता है. परन्तु कुछ ऐसी भी देश है जिस पर चीन अपना कब्जा कर चूका है जैसे :
  • मंगोलिया
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ही चीन ने अपने उत्तर में स्थित मंगोलिया पर कब्जा कर लिया, जिसे इनर मंगोलिया कहते है. इसका क्षेत्रफल लगभाग 11.83 लाख वर्ग किलोमीटर है. इसके बाद से चीन ने मंगोलिया के साथ अपने रिश्ते सुधारने पर ध्यान दिया और सुधार भी लिया था. आज चीन मंगोलिया के बीच व्यापारिक संबंध बहुत अच्छे है. परन्तु मंगोलिया चीन के प्रति हमेशा शंकास्पद रहता है.
  • पूर्वी तुर्किस्तान
चीन ने पूर्वी तुर्किस्तान पर 1949 में ही कब्जा कर लिया था. चीन इसे शिनजियांग प्रांत बताता है. यहाँ की कुल आबादी में 45% उइगर मुस्लिम हैं, जबकि 40% हान चीनी है.
  • तिब्बत
1949 में चीन में हुए सिविल वॉर में कम्युनिस्ट पार्टी की जीत के साथ ही चीन अपनी विस्तार वादी नीति पर चलता रहा है. 1950 में चीन ने तिब्बत पर आक्रमण कर तिब्बत पर कब्जा कर लिया है. तिब्बत पर इसी कब्ज़े की वजह से चीन भारत की सीमा पर आ बैठा, वरना इस से पहले भारत और चीन की सीमा कही मिलती ही नहीं थी.
  • ताइवान
1949 में हुए सिविल वॉर के बाद चीन बना पीपल रिपब्लिक ऑफ़ चीन और ताइवान बना रिपब्लिक ऑफ़ चीन. परन्तु चीन अब ताइवान को भी अपना ही हिस्सा मानता और बताता रहता है. 
इन सब के अलावा चीन के वियतनाम, म्यांमार इंडोनेशिया जैसे देशों के साथ भी सीमा को लेकर विवाद चल ही रहा है. चीन और इंडोनेशिया के बीच किसी ज़मीनी सीमा को लेकर विवाद नहीं है, बल्कि ये विवाद समुंद्री सीमा को लेकर है चीन ने इंडोनेशिया के नटुना द्वीप को लेकर.

चीनी राष्ट्रपति जिंगपिंग ने 2050 तक चीन की सेना को विश्व की सबसे ताकतवर सेना बनाने का उद्देश्य बनाया है. उसी वजह से वह सेना पर लगातार खर्च बढ़ता ही रहता है. यह विश्व के सभी देशों के लिए खतरे की घंटी है. जब चीन इतना ताकतवर नहीं होने के बाद भी लगभग सभी बड़े देशों के साथ उलझ रहा है और छोटे देशों की तो वह परवाह करता ही नहीं है, तो सोचने वाली बात यह है कि अगर वह चीन की सेना को विश्व की सबसे बड़ी ताकतवर सेना बनाने में कामयाब हो गया तब क्या होगा?

जय हिन्द 
वंदेमातरम

यह भी पढ़ें

Comments

Popular posts from this blog

राजा पुरु और सिकंदर का युद्ध

भारत प्राचीन काल से ही अति समृद्ध देश रहा है. इसके साक्ष्य इतिहास में मिलते है. इसी वजह से भारत को सोने की चिड़ियाँ कहा जाता था. यह भारत की समृद्धि ही थी, जिसके वजह से विदेशी हमेशा से ही भारत की तरफ आकर्षित हुए है और भारत पर आक्रमण कर भारत को विजयी करने की कोशिश करते आए है. भारत पर आक्रमण करने वालों में सिकंदर (Alexander), हूण, तुर्क, मंगोल, मुगल, डच, पुर्तगाली, फ्रांसिसी और ब्रिटिश प्रमुख है. आज से हम भारत पर हुए सभी विदेशी आक्रमणों की चर्चा करेंगे. साथ ही साथ हम ऐसे महान राजा, महाराजा और वीरांगनाओं पर भी चर्चा करेंगे, जिन्होंने इन विदेशी आक्रांताओ के विरुद्ध या तो बहादुरी से युद्ध किया या फिर उन्हें पराजित कर वापस लौटने पर मजबूर कर दिया. यह केवल एक इसी लेख में लिख पाना संभव नहीं है. वजह से इसके मैं कई भागों में लिखूँगा. इस कड़ी के पहले भाग में हम बात करेंगे सिकंदर की, जिसे यूरोपीय और कुछ हमारे इतिहासकार महान की उपाधि देते है. हम इस बात पर भी चर्चा करेंगे कि क्या सिकंदर वास्तव में इतना महान था या फिर यूरोपीय इतिहासकारों ने सिकंदर के बारे में कुछ ज्यादा ही बढ़ा चढ़ा कर लिखा है? इसमें हम बह

वरदराजन मुदालियर: मुंबई अंडरवर्ल्ड का पहला हिन्दू डॉन

मुंबई अंडरवर्ल्ड के पिछले भाग में हमने पढ़ा था,  करीम लाला  के बारे में, जिसने मुंबई अंडरवर्ल्ड को बनाया. आज हम बात करेंगे मुंबई अंडरवर्ल्ड के उस डॉन के बारे में, जिसे शायद सबसे काम आंका गया और इसी वजह से उसके बारे में ज्यादा बात नहीं होता. इसका शायद एक बड़ा कारण यही रहा है कि इस डॉन का दाऊद इब्राहिम से कोई खास लेना देना नहीं था. अंडरवर्ल्ड के उन्ही डॉन के बारे ज्यादा पढ़ा और लिखा जाता है, जिनका दाऊद इब्राहिम से कोई रिश्ता रहा हो. जैसे करीम लाला, जिसके पठान गैंग के साथ दाऊद इब्राहिम की दुश्मनी थी और हाजी मस्तान, जिसके गैंग में रह कर दाऊद ने सभी काम सीखा था. शायद यही कारण रहा है इस डॉन के उपेक्षित रहने का. हम बात कर रहे है मुंबई अंडरवर्ल्ड के पहले हिन्दू डॉन के बारे में, जिसका नाम है वरदराजन मुनिस्वामी मुदालियर. आइए देखते है  इसके बारे में. प्रारंभिक जीवन वरदराजन मुदालियर का जन्म मद्रास प्रेसिडेंसी के तूतीकोरन (आज का थूटुकुडी, तमिलनाडु) में 1 मार्च 1926 में हुआ था. उसका परिवार आर्थिक रूप से संपन्न नहीं था. तूतीकोरन में ही उसकी प्रारम्भिक शिक्षा हुआ. उसके बाद मुदालियर वही पर नौकरी करने लगा

भारत चीन विवाद के कारण

भारत और चीन के बीच का तनाव बढ़ते ही जा रहा है. 5 मई को धक्के मुक्की से शुरू हुआ यह सिलसिला 15 जून को खुनी झड़प तक पहुँच गया. चीन ने कायरता से भारतीय सैनिकों पर हमला कर दिया, जिसमें हमारे 20 वीर सिपाही वीरगति को प्राप्त हुए. उसके बाद जब भारतीय सैनिकों ने कार्यवाही किया तो उसमें चीन के कम से कम 40 से ज्यादा सैनिक मारे गए. हालाँकि चीन ने कभी इस बात को स्वीकार नहीं किया. उसके बाद अब स्थिति यहाँ तक पहुँच चुका है कि सीमा पर गोलीबारी भी शुरू हो चुका है. यह गोलीबारी 45 वर्षों के बाद हुआ है. आज हम यहाँ यह समझने की कोशिश करेंगे कि चीन आखिर बॉर्डर पर ऐसे अटका हुआ क्यों है? चीन भारत से चाहता क्या है? चीन के डर की वजह क्या है? भारत के साथ चीन का सीमा विवाद पुराना है, फिर यह अभी इतना आक्रामक क्यों हो गया है? इन सभी के पीछे कई कारण है. जिसमें से कुछ मुख्य कारण है और आज हम उसी पर चर्चा करेंगे. चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) One Road, One Belt. जिसमें पिले रंग से चिंहित मार्ग चीन का वर्तमान समुद्री मार्ग है . चीन का यह महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट 62 बिलियन डॉलर की लागत से बन रहा है. यह प्रोजेक्ट चीन के

गल्वान घाटी गतिरोध : भारत-चीन विवाद

  भारत और चीन के बीच में बहुत गहरे व्यापारिक रिश्ते होने के बावजूद भी इन दोनो देशों के बीच टकराव होते रहे है. 1962 और 1967 में हम चीन के साथ युद्ध भी कर चुके है. भारत चीन के साथ 3400 KM लम्बे सीमा को साँझा करता है. चीन कभी सिक्किम कभी अरुणाचल प्रदेश को विवादित बताता रहा है और अभी गल्वान घाटी और पैंगॉन्ग त्सो झील में विवाद बढ़ा है. पर फ़िलहाल चीन गल्वान घाटी को लेकर ज्यादा चिंतित है और उसकी चिंता भी बेकार नहीं है. दोनों सेना के उच्च अधिकारियो के बीच हुए, बातचीत में दोनों सेना पहले पीछे लौटने को तो तैयार हो गई. पर बाद में चीन ने गल्वान घाटी में भारत द्वारा किये जा रहे Strategic Road का निर्माण काम का विरोध किया और जब तक इसका निर्माण काम बंद न हो जाये तब तक पीछे हटने से मना कर दिया. भारत सरकार ने भी कड़ा निर्णय लेते हुए पुरे LAC (Line of Actual Control) पर Reserve Formation से अतिरिक्त सैनिको को तैनात कर दिया है. एक आंकड़े की माने तो भारत ने LAC पर 2,25,000 सैनिको को तैनात कर दिया है, जिसमे 

भारत और वैदिक धर्म के रक्षक पुष्यमित्र शुंग

विदेशी आक्रांताओं के प्रथम कड़ी में हमने सिकंदर के भारत पर आक्रमण और राजा पुरु के साथ युद्ध के विषय में चर्चा किया था. विदेशी आक्रांताओं की द्वितीय कड़ी में हम ऐसे एक महान राजा के विषय में चर्चा करेंगे, जिसे एक षड़यंत्र कर इतिहास के पन्नों से मिटाने के लिए हर संभव प्रयत्न किया गया. कभी उसे बौद्ध धर्म का कट्टर विरोधी और बौद्ध भिक्षुकों का संहारक कहा गया, कभी उसे कट्टर वैदिक शासन को पुनः स्थापित करने वाला कहा गया. किन्तु वामपंथी इतिहासकारों ने कभी उस महान राजा को उचित का श्रेय दिया ही नहीं. क्योंकि वह एक ब्राम्हण राजा था. यही कारण है कि आज वह राजा, जिसे "भारत का रक्षक" का उपनाम दिया जाना चाहिए था, भारत के इतिहास के पन्नों से विलुप्त कर दिया गया है. हम बात कर रहे है पुष्यमित्र शुंग की, जिन्होंने भारत की रक्षा यवन (Indo Greek) आक्रमण से किया. सिकंदर (Alexander) के आक्रमण के बाद का भारत (मगध साम्राज्य) सिकंदर के भारत पर आक्रमण और राजा पुरु के साथ युद्ध के बाद आचार्य चाणक्य ने नंदवंश के अंतिम राजा धनानंद को राजगद्दी से पद्चुस्त कर चन्द्रगुप्त को मगध का राजा बनाया. यहीं से मगध में मौर्