विदेशी आक्रांताओं के प्रथम कड़ी में हमने सिकंदर के भारत पर आक्रमण और राजा पुरु के साथ युद्ध के विषय में चर्चा किया था. विदेशी आक्रांताओं की द्वितीय कड़ी में हम ऐसे एक महान राजा के विषय में चर्चा करेंगे, जिसे एक षड़यंत्र कर इतिहास के पन्नों से मिटाने के लिए हर संभव प्रयत्न किया गया. कभी उसे बौद्ध धर्म का कट्टर विरोधी और बौद्ध भिक्षुकों का संहारक कहा गया, कभी उसे कट्टर वैदिक शासन को पुनः स्थापित करने वाला कहा गया. किन्तु वामपंथी इतिहासकारों ने कभी उस महान राजा को उचित का श्रेय दिया ही नहीं. क्योंकि वह एक ब्राम्हण राजा था. यही कारण है कि आज वह राजा, जिसे "भारत का रक्षक" का उपनाम दिया जाना चाहिए था, भारत के इतिहास के पन्नों से विलुप्त कर दिया गया है. हम बात कर रहे है पुष्यमित्र शुंग की, जिन्होंने भारत की रक्षा यवन (Indo Greek) आक्रमण से किया.
सिकंदर (Alexander) के आक्रमण के बाद का भारत (मगध साम्राज्य)
सिकंदर के भारत पर आक्रमण और राजा पुरु के साथ युद्ध के बाद आचार्य चाणक्य ने नंदवंश के अंतिम राजा धनानंद को राजगद्दी से पद्चुस्त कर चन्द्रगुप्त को मगध का राजा बनाया. यहीं से मगध में मौर्य वंश का शासनकाल प्रारंभ हुआ. चन्द्रगुप्त ने अपने राज्य का विस्तार करना प्रारंभ किया, जिसे लगभग संपूर्ण भारत को ही मगध साम्राज्य में अधीन ला दिया जो उस समय अलग अलग महाजनपदों में विभाजित था. चन्द्रगुप्त के पश्चात् उनके पौत्र सम्राट अशोक ने इसे और आगे बढ़ाते हुए मगध साम्राज्य की सीमाओं को अफगानिस्तान तक पहुँचा दिया था. अशोक के शासनकाल में मगध साम्राज्य अत्यंत विशाल और शक्तिशाली था. किन्तु कलिंग युद्ध में हुए रक्तपात को देख कर सम्राट अशोक का ह्रदय द्रवित हो उठा. तत्पश्चात उन्होंने हिंसा के मार्ग को त्याग कर अहिंसा के मार्ग पर चलने का निश्चय किया और बौद्ध धर्म को स्वीकार कर लिया. बौद्ध धर्म को स्वीकार करने के बाद सम्राट अशोक ने किसी भी अन्य देश पर कभी आक्रमण नहीं किया. मौर्य वंश के अन्य राजाओं ने भी सम्राट अशोक का अनुसरण करते हुए बौद्ध धर्म को ही स्वीकार किया और बौद्ध धर्म के ही प्रचार प्रसार में अपना ध्यान केंद्रित किया.
मगध साम्राज्य के अंतिम शासक बृहदरथ अत्यंत निर्बल और अकुशल शासक थे. बृहदरथ का ध्यान केवल और केवल बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार पर ही केंद्रित था. वह इसके लिए अत्यधिक धन बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार में व्यय करते थे और वही अन्य धर्म की उपेक्षा कर देते थे. एक कुशल राजा न होने की स्थिति में धीरे धीरे बिखरने लगा. धीरे धीरे मौर्य साम्राज्य से पृथक राज्यों का निर्माण होने लगा. बृहदरथ केवल अपनी विरासत में मिली सत्ता का उपयोग कर बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार में ही व्यस्त थे.
बृहदरथ का वध और सत्ता परिवर्तन
मौर्य शासक के निर्बल और अकुशल होने की बात अब यवन के शासक धर्ममिता (Demetrius) तक पहुँचने लगा था. अतः धर्ममिता ने मगध साम्राज्य पर आक्रमण करने की रणनीति बनाने लगे. इसी रणनीति के अनुसार कुछ यवन के सैनिक बौद्ध भिक्षुकों से मिले और उन्हें यह प्रलोभन दिया कि "अगर वे यवनों की सहायता करेंगे, तो उनके राजा बौद्ध धर्म को स्वीकार कर लेंगे." बौद्ध भिक्षुकों ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और उन्होंने यवन के सैनिकों को अपने मठों में आश्रय दिया. यूनान के सैनिकों ने बौद्ध भिक्षुकों का वेश धारण तो कर लिया, किन्तु वे साथ में अस्त्र शस्त्र भी धारण किए हुए थे. इसकी सुचना मगध साम्राज्य के सेनापति पुष्यमित्र शुंग को उनके गुप्तचरों ने दिया. सेनापति पुष्यमित्र ने इसकी सूचना बृहदरथ को दिया और उनसे बौद्ध मठों में जाकर इसकी जानकारी की पुष्टि करने की आज्ञा माँगा. किन्तु बृहदरथ ने सब कुछ भाग्य के हाथों में छोड़ देने को कह आज्ञा देने से माना कर दिया. सेनापति पुष्यमित्र बिना आज्ञा के ही बौद्ध मठों में पहुँच गए, जहाँ उन्होंने यह पाया कि उन्हें जो सुचना मिली थी, वह अक्षरतः सत्य थी. पुष्यमित्र ने यवन के सैनिकों का वध कर दिया और बौद्ध भिक्षुकों को बंदी बना लिया. जब बृहदरथ को इसकी जानकारी हुई तो उसने पुष्यमित्र को बुलवाया और इसके बारे में पूछा. दोनों के बीच इस विषय पर विवाद इतना बढ़ गया कि बृहदरथ ने पुष्यमित्र पर अपनी तलवार से आक्रमण कर दिया. इसी समय पुष्यमित्र ने बृहदरथ का वध कर दिया और स्वयं राजा बन गए. इसी के साथ मौर्य साम्राज्य का अंत हुआ और शुंग वंश के साम्राज्य का उदय हुआ.
राजा पुष्यमित्र शुंग
राजा बनते ही पुष्यमित्र ने अपने सैन्य व्यवस्था को दुरुस्त किया और सैन्य को पुनः शक्तिशाली बनाया. तत्पश्चात पुष्यमित्र ने यवनों पर आक्रमण कर उन्हें परास्त किया. साथ ही साथ विदिशा पर भी आक्रमण कर उस पर अपना अधिपत्य स्थापित किया. पुष्यमित्र ने वैदिक साम्राज्य को स्थापित किया एवं जो भी राजा बौद्ध धर्म को स्वीकार कर अपने राज्य को निर्बल कर रहे थे, ऐसे राजाओं का पुष्यमित्र ने वध कर दिया. पुष्यमित्र ने उन बौद्ध साधुओं का भी वध कर दिया, जो राजद्रोह कर रहे थे अर्थात शत्रुओं की सहायता. पुष्यमित्र ने अपनी अंतिम श्वास ले रहे वैदिक साम्राज्य को पुनः जीवित कर दिया. पुष्यमित्र, जो आचार्य भी थे, ने दो बार अश्वमेध यज्ञ किया. इसकी जानकारी हमें अयोध्या के शिलालेख से मिलता है. पुष्यमित्र के बाद उनके पुत्र अग्निमित्र शुंग ने इस वंश के साम्राज्य को आगे बढ़ाया.
ऐतिहासिक साक्ष्य
पुष्यमित्र के बारे में जानकारी हमें बाणभट्ट द्वारा रचित हर्षचरित्र, महर्षि पाणिनि द्वारा रचित अत्यंत दुर्लभ अष्टध्यायी और कालिदास द्वारा रचित और अत्यंत सुन्दर मालविकाग्निमित्र से मिलता है. महर्षि पणिनि रचित अष्टध्यायी व्याकरण पर लिखी सबसे सुन्दर और अत्यंत जटिल पुस्तक है, जिसका सरल भाषा में अनुवाद उन्ही के शिष्य पतंजलि ने महाभाष्य में किया. इसके उपरांत वायुपुराण में भी इनका उल्लेख मिलता है. बौद्ध साहित्य दिव्य अवदान और अशोक अवदान में भी इनका उल्लेख मिलता है. इनके शिलालेख अयोध्या, पंजाब और काबुल तक मिलते है. पुष्यमित्र शुंग ने मगध पर 36 वर्षों, 185 ईसा पूर्व से 149 ईसा पूर्व तक शासन किया.
विवाद
बौद्ध साहित्य दिव्य अवदान और अशोक अवदान में पुष्यमित्र शुंग को बौद्ध भिक्षु संहारक बताया गया है. उसमें यह भी लिखा है कि पुष्यमित्र शुंग ने एक बौद्ध भिक्षु के सिर के बदले स्वर्ण मुद्रा देने की घोषणा किया था. एक बौद्ध भिक्षुक ने माया से बौद्ध भिक्षु के कटे सिर बना कर साधारण जनता के दे देते, जिसे देकर जनता स्वर्ण मुद्रा ले लेती. यह अतिश्योक्ति जैसा लगता है. वैसे इन्ही पुस्तकों में एक और घटना का जिक्र है एक बार किसी जैन ने एक चित्र बनाया, जिसमें गौतम बुद्ध एक जैन मुनि के सामने अपना सर झुकाते दिखाई देते है. इस चित्र के बाद सम्राट अशोक ने एक जैन मुनि के सर के बदले एक स्वर्ण मुद्रा देने की घोषणा किया था. इस समय में कई निर्दोष जैन मुनियों की हत्याएँ की गई. ऐसा ही एक चित्र एक जैन परिवार के द्वारा बनाया गया था. उस जैन परिवार को जीवित ही जला दिया गया था. एक व्यक्ति ऐसे ही एक जैन मुनि का सिर लेकर अपना स्वर्ण मुद्रा लेने के लिए अशोक के समक्ष उपस्थित हुआ. उस कटे सिर को देख कर सम्राट अशोक को बहुत दुःख हुआ. वह सिर किसी और का नहीं बल्कि उनके अपने भाई का ही था. इस घटना के बाद सम्राट अशोक को पश्चाताप हुआ. तब जाकर उन्होंने अपना यह आदेश वापस ले लिया. इसके साक्ष्य कही नहीं मिलते कि पुष्यमित्र बौद्ध धर्म के विरुद्ध थे, किन्तु इसके साक्ष्य जरूर है कि पुष्यमित्र ने कई बौद्ध मठों और स्तूपों को बनवाने के लिए या तो अनुदान दिया था या स्वयं उन्हें बनवाया था.
वामपंथी इतिहासकारों ने इस प्रकार से एक ऐसे राजा को षड्यंत्र कर उसे इतिहास से मिटाने का प्रयास किया, जिसे भारत का रक्षक का श्रेय मिलना चाहिए था और इसके बारे में पढ़ा और पढ़ाया जाना चाहिए था.
जय हिन्द
वन्देमातरम
गहन तथ्यों के साथ एक निष्पक्ष कहानी। Insightful and appears an unbiased story.
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