एक जैन वीरांगना: रानी अब्बक्का चौटा Skip to main content

एक जैन वीरांगना: रानी अब्बक्का चौटा

भारतीय तटरक्षक बल ने 2012 में अपने खेमे में एक गश्ती पोत को शामिल किया. भारत में निर्मित इस पोत का निर्माण हिंदुस्तान शिप यार्ड में विशाखापटनम में हुआ था.

50 मीटर  लंबे इस गश्ती पोत में 5 अधिकारियों के साथ 34 नाविक इसमें रह सकते है. इसमें 1x 30mm CRN Naval Gun और 2x12.7mm HMG (High Machine Gan)  लगा हुआ है. इस गश्ती पोत का नाम है रानी अब्बक्का Class Patrol Vessel. अब मन में यह सवाल आया होगा कि कौन है ये रानी अब्बक्का, जिनके नाम पर इस गश्ती पोत का नाम रखा गया है? आइए  देखते है.
रानी शब्द सुनते ही अनाय्यास ही झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई का नाम याद आ जाता है. उस से ज्यादा दिमाग पर जोर दे तो रानी अवन्तिबाई और रानी दुर्गावती भी शायद याद आ जाये. परन्तु रानी अब्बक्का, जिसके नाम पर एक गश्ती पोत का नाम रखा गया, वो नाम शायद ही याद आएगा. पूरा नाम रानी अब्बक्का चौटा जैन धर्म पालन करने वाली रानी थी, जिन्हें अभया रानी भी कहते है. पर हमे हमारे गुलामी के इतिहास को ही पढ़ाने में रूचि रखने वाली सरकार और इतिहासकार इस वीरांगना के बारे में नहीं बताएँगे. खैर. हम आगे बढ़ते है.

चौटा वंश और रानी का प्रारंभिक जीवन
इस वंश का मूलतः संबंध गुजरात से है, जो 12 वी शताब्दी में गुजरात से तुलु नाडू (वर्तमान में कर्नाटक के दक्षिणी कन्नड़ जिले) आये थे. तिरुमला राय, विजयनगर साम्राज्य के सामंत और चौटा वंश के जैन राजा थे और उल्लाल उनके राज्य की राजधानी थी. रानी अब्बक्का का जन्म भी उल्लाल नगर में ही हुआ था. बचपन से ही चतुर और तेज थी.
रानी अब्बक्का को बचपन से ही तलवारबजी, घुड़सवारी, तीरंदाजी, युद्ध कला और राजनीती कूटनीति को सीखा और उसमे कुशल बनी. मतलब एक राज्य चलने के सभी गुण मौजूद थे उनमे. चौटा वंश मातृ प्रधान वंश था. इसका मतलब यह है कि इस वंश के मुख्य और प्रधान पदों पर स्त्री विराजमान होती थी. इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए तिरुमला राय ने अब्बक्का को रानी बनाया. 
जैन होते हुए भी उन्होंने ऐसे राज्य पर राज किया जिसमे हिन्दू और मुस्लिम प्रजा बहुसंखयक थी. रानी अब्बक्का बहुत ही न्यायप्रिय थी और हर एक धर्म के लोगो को एक ही नजर से देखती देखती थी. प्रजा भी अपनी रानी को बहुत पसंद करती थी. रानी को सेना में भी हर एक धर्म के सैनिक थे. उनके राज्य के मोगावेरा मुस्लिम मछुआरे उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण थे. समाज के इस वर्ग के पुरुष बहुत कुशल नाविक थे. आगे चलकर यही पुर्तगालियों के साथ नौसेना की लड़ाई में मददगार सिद्ध हुए.
रानी अब्बक्का की शादी मैंगलुरु की बंगा साम्राज्य के राजा लक्षमप्पा अरसा के साथ हुई। लेकिन शादी के कुछ ही समय बाद रानी अब्बक्का अपने पति से अलग हो गईं और वापिस उल्लाल आ गईं। उन्हें शायद अंदाज़ा भी नहीं था कि आने वाले समय में उनके पति लक्षमप्पा इस बात का बदला लेने के लिए उनके खिलाफ लड़ाई लड़ने में पुर्तगालियों का साथ देंगे।

पुर्तगालियों का भारत आगमन
कोंस्टनटिनोपल, जो भारत और यूरोप के बीच आने जाने का एक मात्रा समुद्री मार्ग था उस पर आक्रमण कर के मुग़लो ने जीत लिया, के पतन के बाद भारत आने का मार्ग यूरोप के देशो के लिए बंद हो गया. यूरोप के देशो में भारतीय माल सामान और मशाले की भरी मांग थी. इसी वजह से भारत के आने के लिए नया जलमार्ग ढूँढ़ने के लिए वास्को डी गामा निकल पड़े और 1498 में कालीकट आया और वास्को डी गामा के पीछे पीछे पुर्तगाली भी भारत आ गए. और अगले 20 वर्षो में पुर्तगालियों का हिन्द महासागर पर एकाधिकार हो गया. पुर्तगाली विभिन्न स्थानों पर किले की स्थापना किया. गोवा पर कब्ज़ा करने के बाद पुर्तगालियो की नज़र रानी अब्बक्का के राज्य पर पड़ी.
उल्लाल एक उपजाऊ क्षेत्र था. मसालों और वस्त्रों के निर्यात के लिहाज से एक महत्वपूर्ण बंदरगाह था, जो अब रानी अब्बक्का चौटा के नेतृत्व में और फल फूल रहा था. रानी अब्बक्का भी पुर्तगालियों को लेकर सचेत थी.

रानी अब्बक्का और पुर्तगालियों के बीच युद्ध 
ई सन् 1525 में पुर्तगालियों ने दक्षिण कन्नड़ के तट पर हमला किया. इस हमले में मैंगलुरु के बंदरगाह को तबाह कर दिया.
परन्तु वे उल्लाल पर कब्ज़ा नहीं कर पा रहे थे. क्योकि रानी अब्बक्का उसके लिए पहले से तैयार थी. रानी अब्बक्का की रणनीतियों से परेशान होकर पुर्तगालियों ने  रानी अब्बक्का पर व्यापर कर ( टैक्स ) लगाया. लेकिन रानी अब्बक्का ने कर देने और किसी भी तरह का समझौता करने से साफ़ इंकार कर दिया.
ई सन् 1555 में पुर्तगालियों ने रानी के खिलाफ मोर्चा खिला और पुर्तगालियों ने एडमिरल डॉन अल्वारो डी सिल्विरा के नेतृत्व में रानी अब्बक्का पर हमला किया, लेकिन रानी अब्बक्का ने पुर्तगालियों के हमले को सफलतापूर्वक निष्फल कर दिया. 
ई सन् 1557 में पुर्तगालियों ने मैंगलुरु को लूटकर बर्बाद कर दिया। साल 1568 में वे उल्लाल पर हमला करने के लिए आए लेकिन रानी अब्बक्का ने फिर से ज़ोरदार विरोध किया. वाइसराय Antonio Noronha ने पुर्तगाली जनरल Joao Peixoto, के नेतृत्व में अपनी सेना को उल्लाल पर आक्रमण करने भेजा. परन्तु इस बार पुर्तगाली सेना उल्लाल पर कब्ज़ा करने में सफल रही और राज दरबार में घुस आई. रानी अब्बक्का वहाँ से बचकर निकलीं और उन्होंने एक मस्जिद में शरण ली. उसी रात करीब 200 सैनिकों को इकट्ठा करके रानी अब्बक्का ने पुर्तगालियों पर पलट कर हमला कर दिया. उनके बीच भयंकर लड़ाई हुई. उस लड़ाई में पुर्तगाली सेना का जनरल Joao Peixoto मारा गया. कई पुर्तगाली सैनिक बंदी बना लिए गए और बाकि पुर्तगाली सैनिक लड़ाई से पीछे हट गए. उसके बाद रानी अब्बक्का ने अपने साथियों के साथ मिलकर मैंगलुरु पर आक्रामन कर दिया. इस आक्रमण में एडमिरल Mascarenhas मारा गया और पुर्तगालियों को मैंगलुरु का किला छोड़ने पर मजबूर कर दिया. लेकिन साल 1569 में पुर्तगालियों ने वापस से हमला कर ना सिर्फ मैंगलुरु का किला दोबारा हासिल कर लिया, बल्कि कुन्दपुरा (कर्नाटक के एक नगर) पर भी कब्ज़ा कर लिया. परन्तु इतना सब करने के बाद भी रानी अब्बक्का पुर्तगालियों के लिए एक बड़ा खतरा बनी हुई थीं.
रानी अब्बक्का के पति लक्षमप्पा ने उनसे बदला लेने के लिए पुर्तगालियों की मदद की और पुर्तगाली सेना उल्लाल पर फिर हमला करने लगी. लेकिन रानी अब्बक्का अब भी मोर्चे पर डटी रहीं. उन्होंने साल 1570 में पुर्तगालियों का विरोध कर रहे अहमदनगर के सुल्तान और कालीकट के राजा (Zomarine) के साथ गठबंधन कर लिया. कालीकट के राजा के जनरल कुट्टी पोकर मरकर ने रानी अब्बक्का की ओर से लड़ाई लड़ी और मैंगलुरु में पुर्तगालियों का किला तबाह कर दिया. लेकिन वहाँ से लौटते वक्त जनरल कुट्टी पोकर मरकर पुर्तगालियों के हाथों मारे गए. इन सब नुकसानों और अपने पति लक्षमप्पा के धोखे के चलते रानी अब्बक्का लड़ाई हार गईं और उन्हें कैदी बना लिया गया. लेकिन ऐसा कहा जाता है कि कैद में भी रानी अब्बक्का विद्रोह करतीं रहीं और लड़ते-लड़ते ही उन्होंने आखिरी सांस ली.

विरासत
रानी अब्बक्का अपने अंतिम समय तक पुर्तगालियों से डरी नहीं और पुर्तगालियों से लड़ती रही. रानी अब्बक्का के इसी निर्भीक स्वाभाव के कारण उन्हें अभया रानी भी कहते है.
‘यक्षगान’, जो कि कर्नाटक की एक पारंपरिक नाट्य शैली है, के द्वारा भी रानी अब्बक्का की बहादुरी के किस्सों को बताया जाता रहा है। इसके अलावा, ‘भूतकोला’, जो कि एक स्थानीय पारंपरिक नृत्य शैली है, में भी रानी अब्बक्का को अपनी प्रजा का ध्यान रखने वाली और इंसाफ करने वाली रानी के रूप में दिखाया जाता है। आज भी रानी अब्बक्का चौटा की याद में उनके नगर उल्लाल में उत्सव मनाया जाता है और इस ‘वीर रानी अब्बक्का उत्सव’ में प्रतिष्ठित महिलाओं को ‘वीर रानी अब्बक्का प्रशस्ति’ पुरस्कार से पुरस्कृत किया जाता है। रानी अब्बक्का और उनकी जैसी महिला शासकों और वीरांगनाओं की गाथाएं अब शायद सिमित होकर रह गई है, पर इन्हे ज्यादा से लोगो तक पहुँचाने की जरुरत है. जिससे ‘रानी’ शब्द सुनते ही सिर्फ रानी लक्ष्मीबाई, रानी अवंतिबाई और रानी दुर्गावती ही नहीं बल्कि रानी अब्बक्का चौटा और उन रानियों के नाम भी हमारे ख्याल में आएं, जिनकी गाथाएं शायद इतिहास के पन्नों में कही खोती जा रही हैं. हमे हमारे ग़ुलामी के इतिहास को बताने में सरकार और इतिहासकार इतने व्यस्त है कि रानी अब्बक्का और उन जैसी वीरांगनाओ की तरफ उनका ध्यान ही नहीं जाता. ऐसे में अगर भारत देश की वीरांगना बेटी को भुला दिया तो, यह भारत देश के लोगों का दुर्भाग्य ही होगा.

जय हिन्द
वन्देमातरम


Comments

  1. तथ्यों के साथ भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करी गई है इस लेखनी के माध्यम से। विस्तार से जानकारी देना महत्वपूर्ण है। समाज इन सच्ची घटनाओं से अनभिज्ञ है। जैन धर्म एवम् परम्परा का अनादि अनन्त काल से भारतवर्ष से सम्बन्ध है। एक दूसरे के पूरक हैं। परंतु ज्ञान के अभाव में समाज की विचारधारा श्रमण निर्ग्रन्थ संस्कृति अथवा जैनत्व को समझने में नासमझियां कर रही है। जो देश की अखंडता के लिए उपयुक्त नहीं है। आपका निष्पक्ष लेख आशा की किरण होगी।

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    1. धन्यवाद. मेरी हमेशा से यही कोशिश रही है कि भारत वर्ष के उन महान व्यक्तियों पर, विशेषतः स्त्रियों पर, तथ्यों के साथ लिखुँ, जिनके बारे में हमे अत्यंत कम जानकारी है. निर्भया रानी उन्ही में से एक है. पंरतु मुझे खेद है कि इस रानी के बारे में न ही जैन समाज में पास ज्यादा जानकारी है और भारत के इतिहासकारों से उम्मीद करना ही बेकार है. हमें अपने इतिहास को सहेज कर रखना होगा. इसी दिशा में मेरी यह एक छोटी पहल है. जैन समाज भारत का एक अभिन्न अंग है और एक भारत के अलसी अल्पसंख्यकों में से एक है, जो हमेशा से ही उपेक्षित रहा है.

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  2. कई लोगों को अब तक रानी अब्बक्का का असली नाम नहीं पता, उनका असली नाम था “अब्बेरसु”, तुलु भाषा में ‘अप्पे’ अर्थात् माँ और “अरसु” यानी रानी है, तुलुनाडु(Tulu Nadu-Mangalore, Udupi and Kasargod) में और पूरे दक्षिण भारत में किसी महिला को बुलाते समय उनके नाम के बाद ‘अक्का’ कहा जाता है इसी कारण उनको अब्बक्का(अब्बेरसु अक्का) बुलाते थे।
    उनका पूरा नाम “अब्बेरसु चौटा” है।

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