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Showing posts with the label इतिहास

भारत वर्ष को शक विहीन करने वाले राजाधिराजमहाराज "विक्रमादित्य"

विदेशी आक्रांताओं के द्वितीय कड़ी में हमने पुष्यमित्र शुंग के विषय में चर्चा किया, जिन्होंने भारत को यवनों (Indo Greek) के आक्रमण से बचाया. आज हम एक ऐसे सम्राट के विषय में चर्चा करेंगे, जिसने भारत वर्ष में से शकों (Indo-Scythians) के साम्राज्य को उखाड़ फेंका और भारत वर्ष पर 100 वर्ष तक राज्य किया. एक ऐसे सम्राट की, जिन्होंने विक्रम संवत का आरंभ किया. एक ऐसे सम्राट की, जिसे हमारे इतिहासकारों ने अत्यंत परिश्रम से ऐतिहासिक से काल्पनिक पात्र बना दिया है. एक ऐसे राजा की, जिनकी कहानियाँ आज भी विक्रम बैताल और सिंहासन बत्तीसी में सुनाये जाते है. हम चर्चा करेंगे भारत वर्ष के चक्रवर्ती सम्राट विक्रमसेन की, जिन्हे आगे चल कर "विक्रमादित्य" कहा जाने लगा. विक्रमसेन की महानताऔर श्रेष्ठता समझने के लिए केवल इतना कहना ही पर्याप्त है कि "अगर किसी राजा को महान बतलाना हो, उसे नाम में विक्रमादित्य जोड़ दिया जाता था." इस प्रकार विक्रमादित्य नाम महानता का प्रतिक एक उपाधि बन गया और विक्रमादित्य एक काल्पनिक पात्र. आज विदेशी आक्रांताओं के तृतीय भाग में हम उन्ही विक्रमादित्य की चर्चा करेंगे. शकों...

भारत और वैदिक धर्म के रक्षक पुष्यमित्र शुंग

विदेशी आक्रांताओं के प्रथम कड़ी में हमने सिकंदर के भारत पर आक्रमण और राजा पुरु के साथ युद्ध के विषय में चर्चा किया था. विदेशी आक्रांताओं की द्वितीय कड़ी में हम ऐसे एक महान राजा के विषय में चर्चा करेंगे, जिसे एक षड़यंत्र कर इतिहास के पन्नों से मिटाने के लिए हर संभव प्रयत्न किया गया. कभी उसे बौद्ध धर्म का कट्टर विरोधी और बौद्ध भिक्षुकों का संहारक कहा गया, कभी उसे कट्टर वैदिक शासन को पुनः स्थापित करने वाला कहा गया. किन्तु वामपंथी इतिहासकारों ने कभी उस महान राजा को उचित का श्रेय दिया ही नहीं. क्योंकि वह एक ब्राम्हण राजा था. यही कारण है कि आज वह राजा, जिसे "भारत का रक्षक" का उपनाम दिया जाना चाहिए था, भारत के इतिहास के पन्नों से विलुप्त कर दिया गया है. हम बात कर रहे है पुष्यमित्र शुंग की, जिन्होंने भारत की रक्षा यवन (Indo Greek) आक्रमण से किया. सिकंदर (Alexander) के आक्रमण के बाद का भारत (मगध साम्राज्य) सिकंदर के भारत पर आक्रमण और राजा पुरु के साथ युद्ध के बाद आचार्य चाणक्य ने नंदवंश के अंतिम राजा धनानंद को राजगद्दी से पद्चुस्त कर चन्द्रगुप्त को मगध का राजा बनाया. यहीं से मगध में मौर्...

राजा पुरु और सिकंदर का युद्ध

भारत प्राचीन काल से ही अति समृद्ध देश रहा है. इसके साक्ष्य इतिहास में मिलते है. इसी वजह से भारत को सोने की चिड़ियाँ कहा जाता था. यह भारत की समृद्धि ही थी, जिसके वजह से विदेशी हमेशा से ही भारत की तरफ आकर्षित हुए है और भारत पर आक्रमण कर भारत को विजयी करने की कोशिश करते आए है. भारत पर आक्रमण करने वालों में सिकंदर (Alexander), हूण, तुर्क, मंगोल, मुगल, डच, पुर्तगाली, फ्रांसिसी और ब्रिटिश प्रमुख है. आज से हम भारत पर हुए सभी विदेशी आक्रमणों की चर्चा करेंगे. साथ ही साथ हम ऐसे महान राजा, महाराजा और वीरांगनाओं पर भी चर्चा करेंगे, जिन्होंने इन विदेशी आक्रांताओ के विरुद्ध या तो बहादुरी से युद्ध किया या फिर उन्हें पराजित कर वापस लौटने पर मजबूर कर दिया. यह केवल एक इसी लेख में लिख पाना संभव नहीं है. वजह से इसके मैं कई भागों में लिखूँगा. इस कड़ी के पहले भाग में हम बात करेंगे सिकंदर की, जिसे यूरोपीय और कुछ हमारे इतिहासकार महान की उपाधि देते है. हम इस बात पर भी चर्चा करेंगे कि क्या सिकंदर वास्तव में इतना महान था या फिर यूरोपीय इतिहासकारों ने सिकंदर के बारे में कुछ ज्यादा ही बढ़ा चढ़ा कर लिखा है? इसमें हम बह...

9 अगस्त 1925: काकोरी काण्ड

भारत देश की स्वतंत्र की लड़ाई में कई लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दे दिया, परंतु ऐसे लोगों के बारे में बहुत ही कम पढ़ाया जाता है. क्रांतिकारियों के बलिदान को तो जैसे हम और यह देश भुला ही बैठा है. अगर गलती से किसी पाठ्यपुस्तक में पढ़ने को मिल भी गया, तो बस चंद पंक्तियों में उसे खत्म कर दिया जाता है. वहीं कांग्रेस के नेताओं के बारे में बड़े बड़े लेख लिखे जाते है. भले ही उन नेताओं का हर एक आंदोलन निष्फल क्यों न हुआ हो? कई ऐसे भी क्रन्तिकारी है, जिनके बारे में आज भी देश नहीं जनता. क्रांतिकारियों ने देश के लिए अपना सर्वस्व बलिदान  कर दिया, परंतु उन्हें आज भी आतंकवादी कह कर ही बुलाया जाता है. देश की स्वतंत्रता के बाद उन्हें जो सम्मान मिलना चाहिए था, वह सम्मान तक उन्हें नहीं मिला और उनके द्वारा किये कार्यों को खास महत्व नहीं दिया गया. ऐसे ही कई घटनाओं में से एक है, रेल में जा रहे सरकारी खजाने को लूटने का, जिसे हम काकोरी कांड के नाम से जानते है. काकोरी कांड के बाद पूरी अंग्रेज सल्तनत हिल गई थी, क्योंकि यह सीधा अंग्रेजों के साथ टक्कर था. परंतु इसे उतना महत्व नहीं दिया गया जितना देना चाहिए...

1942: भारत छोड़ो आंदोलन

द्वितीय विश्वयुद्ध, जो 1 सितम्बर 1939 से 2 सितम्बर 1945 तक लड़ा गया था, का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर बहुत ही गहरा असर पड़ा था. अगर हम यह कहे कि भारत के स्वतंत्र होने के पीछे का मुख्य कारण द्वितीय विश्व युद्ध ही था, तो यह बात शायद पूरी तरह से गलत भी नहीं होगा. इसी द्वितीय विश्व युद्ध के समय गाँधी ने ब्रिटिश हुकूमत को बिना किसी शर्त सहयोग दिया था. तब जाकर भारतीय सैनिकों ने विश्व युद्ध में भाग लिया था. कांग्रेस के दूसरे नेता बिना किसी शर्त के ब्रिटिश हुकूमत का समर्थन करने के पक्ष में नहीं थे, परंतु गाँधी का किसी ने खास विरोध नहीं किया. इस विश्वयुद्ध में भारतीय सैनिकों ने न सिर्फ भाग लिया, बल्कि अपनी अद्भुत वीरता का भी प्रदर्शन किया. परंतु आज बात भारत में गाँधी द्वारा शुरू किए गए भारत छोड़ो आंदोलन के बारे में करेंगे, जो 1942 में हुआ था. पृष्ठभूमि द्वितीय विश्व युद्ध के समय गाँधी ने ब्रिटिश हुकूमत को बिना किसी शर्त के समर्थन दे दिया था, इसी वजह से भारतीय सैनिक द्वितीय विश्व युद्ध में अंग्रेजों की तरफ से युद्ध किया. यही कारण था कि द्वितीय विश्व युद्ध शुरू होने के ढाई वर्षों के बाद भी भारत मे...

क्या ताजमहल तेजोमहालय है?

उत्तरप्रदेश के आगरा में स्थित है ताजमहल, खूबसूरती का अद्भुत नमूना है. ताजमहल की ये खुबसूरति की चाँद की चांदनी में और भी ज्यादा निखर कर सामने आती है. ताजमहल की खूबसूरती को देखने के लिए हर वर्ष यहाँ लाखो की संख्या में लोग आते है और उत्तरप्रदेश सरकार को ताजमहल से ही सालाना लगभग 61 करोड़ का राजस्व प्राप्त होता है. हमारे इतिहास में हमे यह पढ़ाया जाता रहा है कि ताजमहल शाहजहाँ ने अपनी पत्नी मुमताज की याद में बनवाया था. परन्तु पुरुषोत्तम नागेश ओक नाम के एक प्रो ने एक किताब लिखा ताज महल एक मंदिर है, जिसमे यह दावा किया गया की ताज महल एक हिन्दू मंदिर है और शाहजहाँ के पहले से मौजूद है. शाहजहाँ ने अपनी पत्नी मुमताज को दफ़नाने के लिए उस पर कब्ज़ा कर लिया और मुमताज को यहाँ दफनाया. फिर ताजमहल को लेकर विवाद खड़ा हुआ कि क्या वाकई ताजमहल एक हिन्दू मंदिर है? हालाँकि प्रो P N OAK ने