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"Puratchi" एक तमिल शब्द है, जिसका अर्थ होता है "क्रांति". ये शब्द सुनते ही मन में शायद यह प्रश्न आए कि क्रांति की क्या जरूरत है और किसके खिलाफ क्रांति करना है? इन सबका जवाब देने से पहले ये समझना जरुरी है कि 

क्रांति क्या है? 
किसी भी प्रकार की व्यवस्था के परिवर्तन करने या करने की कोशिश करना क्रांति कहलाता है, फिर चाहे वह सामाजिक व्यवस्था हो, आर्थिक व्यवस्था हो धार्मिक व्यवस्था की क्यों ना हो.

जरूरत क्या है?
समाज में देश में समस्या असामाजिक तत्वों या गद्दारो की  वजह से नहीं है समस्या अचे और देशभक्तो के चुप रहने की वजह से है. आप का चुप रहना एक तरह से उनका मौन समर्थन करना है. अगर आप कुछ गलत देख कर चुप रहते है तो आप भी उतने ही दोषी है जितना गलत करने वाला.

किसके खिलाफ करे क्रांति?
आज़ादी मांगने वाले डफली गैंग के खिलाफ, हर घर से अफजल निकलने वालो के खिलाफ, भारत देश का खाते है भारत देश के ही टुकड़े टुकड़े करने की बात करते है उनके खिलाफ, जो भारत में रह कर 'पाकिस्तान  ज़िंदाबाद कहते है' उनके खिलाफ, भारत माता की जय से, भारत माता से, जन गण मन से, वंदे मातरम से, तिरंगे से दिक्कत है, उनके खिलाफ, जिसके लिए उनका मजहब देश से बड़ा है उनके खिलाफ, जो भारतीय सेना को कातिल बलात्कारी कहते है और सेना का अपमान करते है उनके खिलाफ, जो सिर्फ अपनी राजनीती या अपना एजेंडा प्रोपोगेंडा चलने के लिए सेना की नियत पर सवाल उठाते है उनके खिलाफ, जो ऐतिहासिक तथ्यों को अपने सामने नहीं आने देते, जो नकली महात्माओ की पूजा करवाते है, जो किसी के मौत पर उसकी जाति और धर्म देख कर ही बोलते है, ऐसे मौकापरस्तो के खिलाफ, जो हर बार आपको नीचा दिखाने की कोशिश करते है ऐसे इतिहासकारो और बुद्धिजीवियो के खिलाफ, किसी इंसान और किसी नारी पर हो रहे अन्याय पर चुप रहने और किसी नारी की के लाज की रक्षा के लिए आवाज़ नहीं उठाने वाले कायरो के खिलाफ क्रांति की जरुरत है.
साथ साथ खुद के खिलाफ भी क्रांति की जरुरत है सिर्फ कन्धा उठा कर "इस देश का कुछ नहीं हो सकता" कह कर चुप बैठने से नहीं होगा. हमारा प्रयास रहेगा कि कुछ अधूरे ऐतिहासिक तथ्यों को आपके सामने रखे, भुला दिए गए देश के क्रान्तिकारियो के बारे में, भारतीय सेना की वीरता के बारे में जानकारी देंगे, साथ में सामाजिक मुद्दों पर और हाल फ़िलहाल में घटित घटना पर भी अपनी राय रखेंगे. आप सब के समक्ष मेरी एक लिखी कविता प्रस्तुत करना चाहूंगा यह मेरी सिर्फ कविता ही नहीं है बल्कि मेरा दर्द और गुस्सा भी है.

वो टुकड़े टुकड़े में तोड़ेंगे, वो हर एक सच को मोड़ेंगे.
वो दिन कभी नहीं आएगा, जब वो गद्दारी को छोड़ोगे.
भारत माँ है तो लाचार है, पर तुम भी उसके बेटे हो.
अगर आस्तीन के सांप है वो, फिर तुम क्यों चुप बैठे हो?

क्यों उखाड़ फेकते तुम नहीं, इस गद्दारी के पौधे को?
क्यों मिटा देते हो तुम नहीं, जो उजाड़े है इस घरौंधे को?
रौंध दो या चुप हो जाओ, देश के दुश्मन इन शैतानो को?
या जन्म लेना पड़ेगा फिर से, देश पर मर मिटे जवानो को?

अर्जुन था कर्तव्यविमूढ़ हुआ, धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र के मैदान में.
याद करो क्या कहा था कृष्ण ने, तब अपने गीता ज्ञान में.
है क्षमा का मूल्य तभी तक, जब कोई भूल करे अज्ञान में.
उसे मिटाना धर्म ही है, जो हर बार भूल करे अभिमान में.

धमनी का लहू पानी हुआ, या कमी आ गई बलिदान मे?
या कायर पैदा होने लगे है, अब वीरो के भी संतान में?
वरना क्यों चुप हो तुम बोलो, भारत देश के अपमान में?
क्या जरूरत है गद्दारो का, इस भारत देश महान में?

🇮🇳🇮🇳 जय हिन्द 🇮🇳🇮🇳
🇮🇳🇮🇳 वंदे मातरम 🇮🇳🇮🇳





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