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भारत चीन विवाद के कारण

भारत और चीन के बीच का तनाव बढ़ते ही जा रहा है. 5 मई को धक्के मुक्की से शुरू हुआ यह सिलसिला 15 जून को खुनी झड़प तक पहुँच गया. चीन ने कायरता से भारतीय सैनिकों पर हमला कर दिया, जिसमें हमारे 20 वीर सिपाही वीरगति को प्राप्त हुए. उसके बाद जब भारतीय सैनिकों ने कार्यवाही किया तो उसमें चीन के कम से कम 40 से ज्यादा सैनिक मारे गए. हालाँकि चीन ने कभी इस बात को स्वीकार नहीं किया. उसके बाद अब स्थिति यहाँ तक पहुँच चुका है कि सीमा पर गोलीबारी भी शुरू हो चुका है. यह गोलीबारी 45 वर्षों के बाद हुआ है. आज हम यहाँ यह समझने की कोशिश करेंगे कि चीन आखिर बॉर्डर पर ऐसे अटका हुआ क्यों है? चीन भारत से चाहता क्या है? चीन के डर की वजह क्या है? भारत के साथ चीन का सीमा विवाद पुराना है, फिर यह अभी इतना आक्रामक क्यों हो गया है? इन सभी के पीछे कई कारण है. जिसमें से कुछ मुख्य कारण है और आज हम उसी पर चर्चा करेंगे. चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) One Road, One Belt. जिसमें पिले रंग से चिंहित मार्ग चीन का वर्तमान समुद्री मार्ग है . चीन का यह महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट 62 बिलियन डॉलर की लागत से बन रहा है. यह प्रोजेक्ट चीन के...

गल्वान घाटी गतिरोध : भारत-चीन विवाद

  भारत और चीन के बीच में बहुत गहरे व्यापारिक रिश्ते होने के बावजूद भी इन दोनो देशों के बीच टकराव होते रहे है. 1962 और 1967 में हम चीन के साथ युद्ध भी कर चुके है. भारत चीन के साथ 3400 KM लम्बे सीमा को साँझा करता है. चीन कभी सिक्किम कभी अरुणाचल प्रदेश को विवादित बताता रहा है और अभी गल्वान घाटी और पैंगॉन्ग त्सो झील में विवाद बढ़ा है. पर फ़िलहाल चीन गल्वान घाटी को लेकर ज्यादा चिंतित है और उसकी चिंता भी बेकार नहीं है. दोनों सेना के उच्च अधिकारियो के बीच हुए, बातचीत में दोनों सेना पहले पीछे लौटने को तो तैयार हो गई. पर बाद में चीन ने गल्वान घाटी में भारत द्वारा किये जा रहे Strategic Road का निर्माण काम का विरोध किया और जब तक इसका निर्माण काम बंद न हो जाये तब तक पीछे हटने से मना कर दिया. भारत सरकार ने भी कड़ा निर्णय लेते हुए पुरे LAC (Line of Actual Control) पर Reserve Formation से अतिरिक्त सैनिको को तैनात कर दिया है. एक आंकड़े की माने तो भारत ने LAC पर 2,25,000 सैनिको को तैनात कर दिया है, जिसमे 

जसवंत सिंह रावत : वीरता की एक अद्भुत कहानी

  1962 के भारत-चीन युद्ध में अकेले सीमा पर चीन की विशाल सेना से लोहा लेने वाले जांबाज भारतीय सैनिक राइफलमैन जसतंव सिंह रावत. देशप्रेम और वीरता की अद्भुत कहानी. एक ऐसी कहानी जो कल्पना के भी परे हो. एक अकेले भारतीय सैनिक ने 72 घंटे भूखा-प्यासा रहकर, सिर्फ अपने साहस, सूझबूझ और देशप्रेम के सहारे, न केवल चीनी सैनिकों को रोके रखा, बल्कि दुश्मन के 300 चीनी सैनिकों को अकेले मार गिराया था. एक ऐसा सैनिक जो इस दुनिया में नहीं है पर उसकी आत्मा आज भी देश सेवा करती है. एक ऐसा सैनिक जिसके लिए सेना ने बदले अपने नियम. एक ऐसा सैनिक जिसके सम्मान में दुश्मन भी अपना सर झुकाता है. आइए जानते हैं. राइफलमैन के पद पर गढ़वाल राइफल्स की चौथी बटालियन में सेवारत जसवंत सिंह रावत की कहानी के बारे में.

1962: रेजांग ला का युद्ध

  1962 रेजांग ला का युद्ध भारतीय सेना के 13वी कुमाऊँ रेजिमेंट के चार्ली कंपनी के शौर्य, वीरता और बलिदान की गाथा है. एक मेजर शैतान सिंह भाटी और उनके साथ 120 जवान, 3000 (कही कही 5000 से 6000 भी बताया है. चीन कभी भी सही आंकड़े नहीं बताता) से ज्यादा चीनियों से सामने लड़े और ऐसे लड़े कि ना सिर्फ चीनियों को रोके रखा, बल्कि रेज़ांग ला में चीनियों को हरा कर वापस लौटने पर मजबूर कर दिया और इसके बाद चीन ने एक तरफ़ा युद्धविराम की घोषणा कर दिया.

1962: नेहरू चीन युद्ध

  भारत और चीन की सेना गलवान घाटी में आमने सामने खड़ी है. स्थिति तनावपूर्ण है और गलवान घाटी के दोनों देश की सेनाओ के बीच में हुए झड़प के बाद यहाँ की स्थिति अत्यंत संवेदलशील हो चुकी है. हालाँकि की बातचीत से इस मुद्दे को सुलझाने का प्रयत्न किया जा रहा है, पर इसका कोई प्रभाव अभी दिखाई नहीं दे रहा. इसी बीच समाचार पर चल रहे बहस में अक्सर ये सुनने को मिल जाता है कि यह 1962 वाला भारत नहीं है. 1962 में भारत और चीन के बीच पहला युद्ध हुआ था, जिसमे चीन ने एक तरफ़ा युद्ध शुरू किया और एक तरफ़ा ही युद्ध विराम भी. तो क्या वाकई में भारत 1962 का युद्ध हार गया था? 1962 युद्ध के क्या कारण थे? जन्म और प्रारंभिक संबंध   भारत 1947 में स्वतंत्रत हुआ था और चीन अपने देश में चल रहे गृहयुद्ध से 1949 में बाहर निकला था. चीन ने कम्युनिस्ट सरकार को मान्यता दिया था इसी वजह से विश्व के अधिकतर देश चीन के खिलाफ थे. ऐसे में जब चीन अलग थलग पड़ चूका था तब अकेले भारत ने ही चीन का साथ दिया था.

1967: भारत चीन प्रथम युद्ध

भारत और चीन के बीच प्रथम युद्ध 1967 में हुआ था. उस से पहले   " 1962: नेहरू चीन युद्ध "   था. यह युद्ध पूरी तरह से नेहरू और चीन के बीच लड़ा गया था और भारतीय सीमा युद्ध मैदान बनी. इस युद्ध में भारतीय सेना को बेवजह अपना बलिदान देना पड़ा था. 1962 में भारतीय सेना के बलिदान को याद करते और उनके महान बलिदान को नमन कर के बढ़ते है अपने आज के मुद्दे की तरफ जो है,   "1967: भारत चीन प्रथम युद्ध." भारत के सिक्किम में "नाथू ला" और "चो ला" नाम के दर्रे है वहाँ ये लड़ाई लड़ी गई थी. हिमालय के दुर्गम पहाड़ियों में हर जगह से जाना मुमकिन नहीं होता. वहाँ ऐसे ही दर्रे होते है जो आवागमन के काम में आते है. नाथू

अगर भारत चीन में युद्ध हुआ तो..?

 आज सुबह की शुरुआत इसी खबर के साथ हुई है कि भारतीय सेना को LAC पर पूरी स्वतंत्रता दे दी गई है. मतलब जरूरत पड़ने पर सेना को गोली चलना है या तोप यह सेना को तय करना है. इसके लिए सेना को नई दिल्ली से आदेश लेना का या आदेश की प्रतीक्षा करने की जरुरत नहीं है. यह सबसे अच्छी खबर है. अगर सेना सीमा पर खड़ी है तो उसे जरुरत के हिसाब से कार्यवाही करने की पूरी स्वतंत्रता होनी ही चाहिए. साथ ही साथ सेना के जवानो की छुटियाँ रद्द कर दी गई है और सेना को वापस बुला लिया गया है. LAC पर सेना और वायुसेना की गतिविधियों में तेजी आई है. ऐसे में मन में प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या दोनों देशो के बीच युद्ध तय है?

क्या चीन का बॉयकॉट संभव है?

गलवान घाटी में भारतीय सेना और चीनी सेना के बीच में 15 16 जून की रात में झड़प हुई थी. इस अचानक हुए हमले के बाद भी बिहार रेजिमेंट के जवानों ने अद्भुत वीरता का प्रदर्शन किया और चीनी सैनिको पर क्रोध के साथ आक्रमण किया कि लगभग 18 चीनी सैनिकों की गर्दन को तोड़ दिया. इस झड़प में भारत के 20 जवान वीरगति को प्राप्त हुए और 40 से ज्यादा चीनी सैनिकों के मरने की खबर है. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने सेना को भी गोली चलाने की छूट दे दिया है. अब सेना को तय करना है कि वो गोली या तोप कब चलाएगी? सेना इतनी सक्षम है कि वो चीन को अच्छे से जवाब दे सकती है. सीमा पर चीन के साथ बिगड़े संबंध के बाद से ही भारत में बॉयकॉट चीन का लहर चल रहा है और 20 जवानों के वीरगति को प्राप्त होने के बाद यह लहर अब सुनामी की तरह पुरे देश में फैल रही है, जिसमे सभी चीनी उत्पादों का विरोध कर रहे है. कुछ लोग चीनी सामानों को तोड़ कर और जला कर चीनी उत्पादों का विरोध कर रहे हैं और साथ ही साथ भारत देश के लोगों से भी चीनी उत्पादों का विरोध करने के लिए कह रहे हैं. चीन अपने व्यापर के दम पर आज ना सिर्फ भारत को बल्कि विश्व के लगभग हर एक देश...

चीन किन कारणों की वजह से पीछे हटने को हुआ मजबूर?

  15 जून की रात में गलवान घाटी में हुए चीन के कायराना हमले, जिसमे भारत देश के 20 जवान वीरगति को प्राप्त हुए थे, के बाद से भारत ने चीन के लिए अपना रुख कड़ा और स्पष्ट कर दिया था. भारत ने सबसे पहले तो गलवान घाटी में सेना की अतिरिक्त टुकड़ी को भेजने से लेकर, वायुसेना के लड़ाकू विमानों को भेजने, रक्षा के थल, जल और वायु तीनो विभागों को किसी से स्थिति का सामना करने के लिए तैयार रहने और LAC पर पुराने समझौते को तोड़ कर जरुरत पड़ने पर गोली और तोप चलने तक की इजाजत देने जैसे कदम उठाये है. इस से चीन को सीधा और साफ़ सन्देश देना था कि भारत अपने जमीन का एक इंच हिस्सा भी नहीं देगा और गलवान जैसी घटना को अब बर्दास्त नहीं करेगा. हालाँकि बिहार रेजिमेंट के जवानों ने चीन के कायराना हमले का मुँह तोड़ नहीं गला तोड़ (बिहार रेजिमेंट के जवानो ने काम से काम 18 चीनी सैनिको का गला तोड़ दिया था) कर चीनी सैनिकों को जवाब तो दे दिया था, परन्तु ऐसी घटना भविष्य में न हो इसके लिए कड़ी चेतावनी भी दे दिया है. भारत ने सीमा पर हर एक तरह की स्थिति से निपटने की पूरी तयारी करने के बाद भी शांति बहाल करने का मार्ग नहीं छोड़ा. 22 जून को

DSDBO रोड और S 400 का भारत के लिए महत्त्व

चीन एक तरफ बात करने को तैयार होता है बात करता है और पीछे हटने पर अपनी सहमति जताता है वही दूसरी तरफ पीछे हटने की जगह पुरे गलवान घाटी पर अपना अधिकार बता कर नया विवाद पैदा कर देता है. इतने वर्षो से चीन के साथ बात और झड़प करते करते भारतीय सेना इतना तो समझ ही गई है कि चीन के कथनी और करनी में बहुत अंतर है. चीन की बात का भरोषा नहीं किया जा सकता. इसी वजह से भारतीय सेना न सिर्फ सीमा पर डँटी हुई है बल्कि सेना के अतिरिक्त बलों की तैनाती भी कर चुकी है. उधर चीन ने भी LAC पर अपने सेना के जवानो की तैनाती बढ़ा रहा है. मतलब चीन ने वापस से धोखा देने वाला काम किया है. चीन के इस धोखे से भारतीय सेना कैसे निपटना है वो अच्छे से जानती है. आज हम जिस मुद्दे पर बात करेंगे वो है DSDBO रोड है क्या? यह भारत के लिए इतना क्यों जरुरी है? चीन को इस से क्या परेशानी है? भारत रूस से S-400 जल्द से जल्द क्यों चाहता है?

चीन: एक पड़ोसी जिस से दुनिया परेशान है.

चीन भारत का एक ऐसा पड़ोसी देश है जिसकी सीमा 1950 तक भारत से नहीं लगती थी. परंतु 1950 में जब चीन ने तिब्बत पर कब्ज़ा किया, तब नेहरू चुप रहे और इस तरह से चीन भारत के सीमा पर आ गया और 1962 में नेहरू चीन युद्ध के समय में अक्साई चीन पर कब्ज़ा कर लिया. उसके बाद भी चीन की विस्तारवादी नीति यही नहीं रुकी. कभी सिक्किम, तो कभी अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा करता रहा और आज भारत के लद्दाख में स्थित गलवान घाटी, पैंगॉन्ग झील के तरफ भी अपना दावा कर रहा है. हालाँकि भारत की सेना उसे मुँह तोड़ जवाब दे रही है, परंतु चीन अपनी आदतों से बाज नहीं आ रहा है.  चीन भारत का ही नहीं बल्कि उसके लगभग सभी पड़ोसी देश जैसे कि अफगानिस्तान, पाकिस्तान, रूस, जापान, ताइवान, मंगोलिया, भूटान, म्यांमार इत्यादि के साथ सीम विवाद है. इसके साथ ही चीन ने अमेरिका के साथ भी दक्षिणी चीन सागर में विवाद खड़ा कर लिया है और सबसे बड़े आश्चर्य की बात यह है कि उसने सभी बड़े देशों के साथ विवाद एक साथ  खड़ा  किया है और चीन पर Covid-19 वायरस को फैलाने का आरोप लगने के बाद इस विवाद को बढ़ा दिया है. जापान चीन विवाद जापान और चीन का विवाद इनके इतिहा...

चीन विश्व के लिए एक खतरा

भारत और चीन की सेना गलवान घाटी और पैंगोंग त्सो लेक पर मई महीने से ही आमने सामने खड़ी है. 15-16 की रात इन दोनों सेनाओं के बीच में खूनी झड़प भी हुई, जिसमें भारत देश के 20 वीर जवान वीरगति को प्राप्त हुए और चीन की सेना के तरफ से 40 से 100 सैनिकों के मारे जाने की खबर है. हालाँकि चीन ने आधिकारिक तौर पर इस बात को स्वीकार नहीं किया है. चीन के लिए गलवान घाटी और DSDBO रोड बहुत महत्वपूर्ण है. इसी वजह से चीन यहाँ से पीछे नहीं हटाना चाहता. पर भारत के प्रयासों और कूटनीतिक दबाव की वजह से चीन फिंगर 8 तक पीछे हटाने की तैयार तो हो गया, परंतु वह फिंगर 4 से 5 के बीच में आ गया और अब इस से पीछे हटाने से इंकार कर रहा है. डोकलाम की ही तरह यह मामला भी इतनी आसानी से सुलझाता नहीं दिख रहा. चीन के आतंरिक स्थिति जब जब असंतुलित हुई है चीन अपने पड़ोसी देशों पर आक्रामक हुआ है, चाहे आप 1962: नेहरू चीन युद्ध का उदाहरण ले ले या अभी के गलवान घाटी का. हालाँकि की नेहरू चीन युद्ध में नेहरू की खराब नीतियों की कीमत भारत देश को चुकाना पड़ा और इस एक तरफा युद्ध में रेजॉन्ग ला का युद्ध और जसवंत सिंह रावत को छोड़ दे तो चीन...

गल्वान घाटी गतिरोध: भारतीय चीनी सेना के बीच झड़प

गल्वान घाटी से एक अत्यंत दुःखद खबर आ रही है. Line Of Actual Control (LAC) पर तनाव के बीच ये तय हो गया था कि 15 जून को सरहद पर चीन सेना का जमावड़ा कम होगा. चीन की सेना गल्वान क्षेत्र में अपने इलाके में वापस लौटेगी. दोनों पक्षों के बीच पहले से सहमति थी कि 16 जून को भारतीय सेना के बड़े अधिकारियों की बैठक से पहले चीन की सेना पीछे हटेगी. लेकिन इस सहमति के बावजूद जब चीन की सेना में कोई हरकत नहीं दिखी, तो 16 बिहार रेजिमेंट के कर्नल संतोष बाबू