1962 रेजांग ला का युद्ध भारतीय सेना के 13वी कुमाऊँ रेजिमेंट के चार्ली कंपनी के शौर्य, वीरता और बलिदान की गाथा है. एक मेजर शैतान सिंह भाटी और उनके साथ 120 जवान, 3000 (कही कही 5000 से 6000 भी बताया है. चीन कभी भी सही आंकड़े नहीं बताता) से ज्यादा चीनियों से सामने लड़े और ऐसे लड़े कि ना सिर्फ चीनियों को रोके रखा, बल्कि रेज़ांग ला में चीनियों को हरा कर वापस लौटने पर मजबूर कर दिया और इसके बाद चीन ने एक तरफ़ा युद्धविराम की घोषणा कर दिया.
तैनाती
13वी कुमाऊँ रेजिमेंट की चार्ली कंपनी को 24 अक्टूबर 1962 को चुशुल में तैनात किया गया था. उन सभी के लिए वहाँ का वातावरण नया था. किसी को इतनी ठंढ की आदत नहीं थी. वहाँ का तापमान लगभग -30 डिग्री था. 17000 फुट की ऊंचाई पर -30 डिग्री की कातिल ठंढ में सिर्फ सूती कपडे या पतले स्वेटर ही थे. पैर में कैनवास जुते (PT Shoe) में लड़ना छोडो इनके लिए वहाँ खड़े रहना भी मुश्किल था. सब्जियाँ जम जाती थी. चाय बनाने में भी एक घंटा लगता था.
चीनियों के आक्रमण से एक रात पहले 17 नवंबर को भयंकर बर्फीला तूफ़ान आया. तूफ़ान थम गया. पर उस तूफ़ान की वजह से सिर्फ 600 मिटर तक ही दिखाई देता था. भारत लगभग हर जगह हार चूका था. चुशुल में एक हवाई पट्टी थी जो उस वक़्त तक भारत के कब्जे में था. चीन उस पर कब्ज़ा करना चाहता तथा और भारत के लिए चुशुल अब नाक और लद्दाख दोनों बचाने का सवाल था. मेजर शैतान सिंह ने अपने जवानो को अलग अलग प्लाटूनों में बाँट दिया था.
18 नवंबर 1962
रामचंद्र यादव मेजर के करीबी और रेडियो ऑपरेटर थे. 03:30 प्लाटून 8 से नाइक गुलाब सिंह ने बताया कि उन पर हमला हुआ है और LMG (Light Machine गन) पर तैनात हुकुम चंद ने 4 को मौत के घाट उतार दिया था. ठीक 10 मिनट बाद प्लाटून 7 से भी सूरज राम का जवाब आया कि अंदाजन 400 चीनियों ने उन पर हमला कर दिया है. दरअसल चीनियों ने भारतीय सैनिको की गोली ख़त्म करवाने के लिए चाल चली थी. 18 याक के गले में लालटेन डालकर आगे भेज दिया था और 400 चीनी सैनिक उसके पीछे थे. पर सिर्फ 45 मिनट में ही चीन के पहले हमले को विफल कर दिया गया.
मेजर शैतान सिंह ने ऊपरी अधिकारियो को अपनी यथास्थिति के बारे में बताया. ऊपरी अधिकारियों ने पीछे हट जाने को कहा. शैतान सिंह ने अपने जवानो को पूरी बात बताया. हवलदार मेजर हरफूल सिंह ने शैतान सिंह से कहा, "पीछे हटाने की बात सोचना भी मत साहब. कोई अहीर पीछे नहीं हटेगा. आप अपने करीबी रामचंद्र से ही पूछ ले. क्या वो पीछे हटाने को तैयार है?" रामचंद्र बोल पड़े, "एक महीने में यह पोस्ट तैयार किया है साहब. मर जायेंगे पर पीछे नहीं हटेंगे." मेजर शैतान सिंह ने हुंकार भरी और 120 जवानो ने अपने कमांडर के हुंकार से साथ नारा लगाया "कालिका माता की जय", "राधा रानी की जय" और सिर्फ अपने जोश के दम पर लड़ने और मरने मारने को तैयार हो गए.
सिर्फ जोश के दम पर इस वजह से क्योकि भारतीय सेना के पास ठण्ड से निपटने के लिए कपड़ो, आर्मी के जूतों से साथ साथ हथियार और असला बारुधो की भी भरी कमी थी. सहायता मिलने की कोई उम्मीद भी नहीं था. चार्ली कंपनी के पास
120 जवान, 1000 राउंड गोलियाँ, 6 Light Machine Gun (LMG), 50mm Motar, 303 Single Fire Gun (जिसे द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बेकार घोषित कर दिया गया था और एक बार गोली चलने के बाद गोली का बचा टुकड़ा हाथ से निकल कर फेकना पड़ता था. )
China:- 3000 से ज्यादा चीनी, 7.62mm Self Loading riffle, Medium Machine Gun, Light Machine Gun, 20mm, 81mm, 60mm motar, 120mm Rocket Launcher, 75mm & 57mm Recoilless gun.
मतलब जवान से लेकर हथियार तक सब में बढ़ कर थे. इसी वजह से शैतान सिंह और उनके जवान सिर्फ जोश के दम पर ही लड़ रहे थे.
पहले हमले को नाकाम करने के बाद वापस से हमला हुआ. शैतान सिंह का आदेश साफ़ था, "गोली सीधा सर में मारो और जो चीनी मरे उसका हथियार ले लो. जितना हो सके Hand to Hand Combat करो."
चीनी समझ गए कि सामने से नहीं लड़ सकते. इसी वजह से प्लाटून 9 पोस्ट जो चीनियों के ठीक सामने था, उस पर आक्रमण ना कर के, पीछे से प्लाटून 7 और 8 पर आक्रमण कर दिया. चीनी सैनिक आकर LMG रख कर अपना पोजीशन लेने लगे. पहले भारतीय जवानो को लगा कि ये उनके लिए मदद आई है. पर जैसे ही समझ आया कि ये दुश्मन है, चार्ली कंपनी ने चीनियों पर हमला कर दिया. गोली ज्यादा थी नहीं तो बन्दुक के बट से चीनियों पर हमला कर दिया. पर चीनी सैनिको के जैकेट इतने मोटे थे कि उसका भी कुछ खाश असर नहीं हुआ. जमादार सिंह राम और उनके भाई पहलवान थे और उस दिन चीनियों पर काल बन कर टूटे. एक एक हाथ में चीनी सैनिको को गले से उठा कर उनका सर आपस में इतनी जोर से टकराया कि वर्किंग दोनों वही मर गए. उसके बाद बाकि चीनियों को उठा उठा कर वहाँ के चट्टानों पर पटकने लगे. दूसरा हमला भी चार्ली कंपनी ने नाकाम कर दिया.
तीसरी बार चीनियों ने पूरी ताक़त के साथ हमला कर दिया.
मेजर शैतान सिंह किसी कवर के बिना प्लाटून टू प्लाटून जाकर जवानो का हौसला बढ़ाते थे. इसी समय मशीन गन की एक गोली शैतान सिंह के हाथ को चीरती हुई निकल गई. रामचंद्र यादव ने कहा, साहब आपको तो चोट लग गई. शैतान सिंह ने कहा कि चोट तो लग गई रामचंद्र. पर ये चोट लगने की ही जगह है. ये सिनेमा हॉल नहीं है. रामचंद्र शैतान सिंह को नीचे ले जाना चाहते थे पर मेजर अपनी पोस्ट छोड़कर जाने को तैयार नहीं थे. पट्टी करवाने के बाद मेजर वापस से प्लाटून टू प्लाटून जाकर जवानो का हौसला बढ़ने लगे. पर बार फिर उन्हें गोली लगी और वो दर्द से चीख पड़े. रामचंद्र से कहा, रामचंद्र पेट में बहुत दर्द हो रहा है. मेरा बेल्ट खोल दो. रामचंद्र ने हाथ लगा कर देखा और बेल्ट खोलने से माना कर दिया. क्योकि गोली लगने से मेजर शैतान सिंह का पेट फट चूका था. अगर बेल्ट खोलते तो पेट की आंते बहार आ जाती. रामचंद्र ने फिर से नीचे जाने को कहा पर शैतान सिंह ने मना करते हुए LMG लाने का आदेश दिया और हाथ घायल होने के बाद भी LMG पैर में बांधने को कहा. उसके बाद रामचंद्र यादव् से कहा कि रामचंद्र तुम नीचे जाओ और वहाँ जाकर बताओ कि यहाँ क्या हुआ और हम कैसे लडे. वरना किसी को पता भी नहीं चलेगा कि यहाँ क्या हुआ था?
रामचंद्र जाने को हुए, पर मेजर ज्यादा खून बहने के कारन बार बार बेहोश हो रहे थे. हवलदार मेजर हरफूल सिंह ने रामचंद्र से कहा कि "मेजर साहब चीनियों के हाथ नहीं आने चाहिए और जरुरी कागज जला दो." रामचंद्र ने कहा, "कागज तो जला दिया है साहब और जब तक मैं ज़िंदा हु मेजर के पास किसी को नहीं आने दुँगा. अगर मैं मर गया उसके बाद का मैं कुछ नहीं कह सकता." इसके बाद रामचंद्र ने मेजर के कमर को खुद के कमर से बांध कर एक कर लिया और फिर धीरे धीरे लुढ़कने लगे. थोड़ी दूर जाने पर ही रामचंद्र थक गए. थोड़ी देर रुक कर रामचंद्र वापस से लुढ़कना शुरू किया और 400 फुट जाने के बाद देखा तो मेजर शैतान सिंह के हाथ की घडी में 8:15 बजे थे और घडी रुक गई थी. रामचंद्र समझ गए कि मेजर अब इस दुनिया को छोड़ चुके है. क्योकि मेजर की घडी उनके हाथ नब्ज पर चलती थी.
रामचंद्र मेजर को वही एक चट्टान के पास रख कर भारी मन से नीचे की तरफ चल पड़े. पर नीचे जाकर देखा तो वहाँ सेना भवन से धुआँ निकल रहा था. मतलब वहाँ कोई नहीं था. सभी वहाँ से जा चुके थे. रामचंद्र सोच ही रहे थे कि क्या करुँ तभी सामने से एक जीप आती दिखाई दिया. जीप भारतीय सेना की थी. रामचंद्र की पहचान करने के बाद वो रामचंद्र को वहाँ से लेकर चले गए. जब रामचंद्र ने रेजांग ला की पूरी कहानी बताया और कहा कि साहब पूरी कंपनी तो ख़त्म हो गई. किसी को भरोषा ही नहीं हुआ क्योकि कोई ये मानने के तैयार ही नहीं था कि चार्ली कंपनी ने इतने चीनी सैनिको को मार दिया. रामचंद्र से उनका कोर्टमार्शल करने की बात कहा गया. उस समय रामचंद्र की मनोस्थिति की कोई कल्पना भी नहीं कर सकता. एक ऐसा सैनिक जिसने अपने सामने अपनी साथियो को बहादुरी से लड़ते और मरते देखा उसकी बात पर किसी को भरोषा नहीं हो रहा था उल्टा उनका ही कोर्टमार्शल करने की बात कर रहे थे. उस वक़्त तक चार्ली कंपनी की कोई खबर ना मिलने की वजह से 120 जवानो को कायर और भगोड़ा मान लिया था. परन्तु अभी कोई और था जो इस महान गाथा का प्रमाण दे सकता था. वो थे निहाल सिंह.
निहाल सिंह मेजर शैतान सिंह के अंगरक्षक थे और लंग LMG पर थे. जब चीनियों जाते समय एक एक सैनिक को देख रहे थे कही वो ज़िंदा तो नहीं तब निहाल सिंह LMG चीनियों के हाथ में ना आ जाये इसी वजह से निहाल सिंह ने उसे दूर फेक दिया और चीनियों की नज़र निहाल सिंह पर पड़ी. निहाल सिंह से उनका नाम पूछा और उसके बाद निहाल सिंह का प्राथमिक उपचार कर उन्हें अपने साथ ले गए. निहाल सिंह के अलावा वहाँ 5 युद्ध बंदी थे. पर ये बात किसी को पता नहीं था. निहाल सिंह ने वहाँ का पूरा निरिक्षण किया और रात में चीनियों की कैद से भाग निकले. और 19 की दोपहर 1 बजे वो भी भारतीय फ़ौज के पास पहुंचे. और उन्होंने ने भी रामचंद्र वाली ही कहानी को बताया. उसके अगले दिन राम पाल भी चीनियों की कैद से भाग गए थे. और उधर चीन ने भी एक तरफ़ा युद्ध विराम कर दिया और इस बात को स्वीकार किया कि रेजांग ला पर उसे भरी नुकसान का सामना करना पड़ा.
तलाश
बर्फ पिघलने के बाद जब गड़ेरिये पहाड़ पर गए, तब उन्होंने चट्टान के पीछे वर्दी में कुछ लोगो देखा और उसके बाद सेना को खबर किया गया. सेना चार्ली कंपनी की खोज में निकली. जब ऊपरी अधिकारियो ने आकर देखा, तो वहाँ 114 जवानो के शव ऐसे जमे हुए पड़े थे जैसे युद्ध अभी भी चालू हो और वो दुश्मनो को ललकारते हुए मोर्चे पर डंटे हो. उन भारत के सपूतो के देशप्रेमी के ज़ज़्बे को इसी बात से समझिए कि
जब मृत्यु के पश्चात भी उनके हथियार को उनसे अलग करने के लिए उनकी उंगलियों को काट कर अलग करना पड़ा था.
नर्सिंग का काम करने वाले धर्मपाल सिंह अपने घायल साथियो की मरहम पट्टी करते वक़्त ही जम गए थे.
Major Shaitan Singh |
उस समय के ब्रिगेडियर TN Raina ये देखने के बाद रो पड़े थे. किसी भी जवान के पीठ पर गोली नही लगी थी. सभी ने गोली माथे पर या साइन सीने पर खाई थी और मेजर शैतान सिंह के पैरो में अभी भी मशीन गन बंधी हुई थी और हाथ में रस्सी वैसे ही था. वो सभी लड़ते लड़ते जम गए थे. शैतान सिंह और उनकी कंपनी मरते मर गए पर रेजांग ला में चीनियों को घुसने नहीं दिया था. बाकि जवानो का वही पर अंतिम संस्कार किया गया और मेजर शैतान सिंह के पार्थिव शव को वापस लाया गया. मेजर शैतान सिंह को उनके अद्भुत साहस के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से समान्नित किया गया. रेजांग ला में रेजांग ला वॉर मेमोरियल बनाया गया है, जिसे अहीर धाम कहते है.
रामचंद्र को कायर जानकर उनके गांव वाले ने बात करना बंद कर दिया था. उनके बच्चों को को स्कूल से निकल दिया था. वो गांव परंपरागत तरीके से सैनिको का था और देशभक्ती रगो में बहती थी. बाद में एक NGO को वहाँ जाकर लोगो को समझाने के लिए कार्यक्रम करना पड़ा था कि रामचंद्र कायर नहीं है.
कवि प्रदीप उन दिनों के अख़बार में उनके वीरता की गाथा पढ़ कर ये कविता लिखी जिसे लता जी ने अपने स्वर दिया
थी खून से लथ-पथ काया,
फिर भी बन्दूक उठाके.
दस-दस को एक ने मारा,
फिर गिर गये होश गँवा के.
जब अन्त-समय आया तो,
कह गये के अब मरते हैं.
खुश रहना देश के प्यारों,
अब हम तो सफ़र करते हैं
क्या लोग थे वो दीवाने,
क्या लोग थे वो अभिमानी.
जो शहीद हुए है उनकी,
जरा याद करो क़ुरबानी.
जय हिन्द
वन्देमातरम
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