भारत और चीन के बीच प्रथम युद्ध 1967 में हुआ था. उस से पहले "1962: नेहरू चीन युद्ध" था. यह युद्ध पूरी तरह से नेहरू और चीन के बीच लड़ा गया था और भारतीय सीमा युद्ध मैदान बनी. इस युद्ध में भारतीय सेना को बेवजह अपना बलिदान देना पड़ा था. 1962 में भारतीय सेना के बलिदान को याद करते और उनके महान बलिदान को नमन कर के बढ़ते है अपने आज के मुद्दे की तरफ जो है, "1967: भारत चीन प्रथम युद्ध."
भारत के सिक्किम में "नाथू ला" और "चो ला" नाम के दर्रे है वहाँ ये लड़ाई लड़ी गई थी. हिमालय के दुर्गम पहाड़ियों में हर जगह से जाना मुमकिन नहीं होता. वहाँ ऐसे ही दर्रे होते है जो आवागमन के काम में आते है. नाथू
ला ज्यादा महत्वपूर्ण था. नाथू ला प्राचीन व्यापारिक रास्ता भी था जो सिल्क रोड की जाता था और तिब्बत के लाशा से भारत आने के लिए इसी रास्ते से आ सकते है. नाथू ला, चो ला, डो ला (डोकलाम विवाद) और चुमबी घाटी में जिसकी सेना भी ऊंचाई पर होगी उसे हमेशा युद्ध पर फायदा होगा और दूसरी सेना पर वो भारी पड़ेगा. चुमबी घाटी में वर्चस्व को लेकर आज भी टकराव जारी है.
Vantage Point |
भारत और चीन के बीच हिमालय एक प्राकृतिक अवरोध है. इसी वजह से इन दोनों देशो के बीच सीमा को निर्धारित नहीं किया गया था. सीमा निर्धारण का काम ब्रिटिश भारत में 1914 में शिमला में हुआ था और हिमालय के उच्चतम चोटी (Crest) को सीमा मान लिया गया जो मैक मोहन लाइन कहलाया. चीन भी इसी को कामो बेश सीमा मानता है पर कभी आधिकारिक तौर पर इसे स्वीकार नहीं किया. मैप में क्रेस्ट पहचानना आसान है, वाकई में बहुत मुश्किल. उसी में कई ऐसी जगह भी होती है, जिसे Vantage Point कहते है (ऐसी जगह जहाँ से नज़र राखी जा सके) उसके लिए अक्सर दोनों सेनाओ में बहस झड़प होती रहती है.
अब उदहारण के लिए समझे तो इस तस्वीर में लाल रंग वाले भारत अपनी सीमा मानता और पैट्रोलिंग के लिए वहाँ तक जाता हो तो चीनी सैनिक उन्हें रोक देंगे क्योकि चीन हरे रंग को सीमा मानता हो या इसके उलट भी संभव है. इसी को लेकर अक्सर दोनों देश के सैनिको की आपस में झड़प होती रहती थी. इसी को रोकने के लिए भारत ने नाथू ला और चो ला जैसे संवेदलशील और महत्वपूर्ण भू भाग में तार से घेरना (फेंसिंग) का सोचा और यही दोनों देशो के बीच प्रथम युद्ध का कारण बना. युद्ध की शुरुआत और परिणाम पर बात करने से पहले उसकी पृष्भूमि देख लेते है.
पृष्टभूमि
1962 में नेहरू चीन युद्ध हुआ था, जिसमे भारतीय सेना को अपना बलिदान देना पड़ा था. हालाँकि ये युद्ध नेहरू चीन के बीच ही हुआ था पर इसका मानसिक असर पुरे देश पर हुआ था.
तीन वर्षो के बाद 1965 में भारत पाकिस्तान युद्ध हुआ था जिसमें भारत विजयी हुआ था
भारतीय सेना खुद को शक्तिशाली बनाने में लगी थी परंतु चीन को हरा सकती थी या नहीं इस प्रश्न के उत्तर शायद शब्द में था.
चीन ने ह्यड्रोजन बम का परिक्षण कर के पुरे विश्व को अपनी ताक़त का परिचय देने की कोशिश किया गया था.
उस समय चीन में उथल पुथल मचा हुआ था. माओ के नेतृत्व में सांस्कृतिक क्रांति चल रहा था. इसे थोड़ा बहुत भारत के 1975 के आपातकाल के जैसा ही समझे.
यहाँ एक बात को ध्यान में रखे जब भी चीन के आतंरिक भाग में उथल पुथल या अशांति फैली हो चीन अपने देश जनता को एक करने के लिए अपने पड़ोशी देशो पर आक्रमक हो जाता है.
सैन्य नेतृत्व
मेजर जनरल सगत सिंह राठौर, जनरल ऑफिसर कमांडिंग (GOC) थे सिक्किम के.
लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह (GOC) 33 कोर
सैम मानेकशाँ पूर्वी सैन्य कमांडर
इन तीनों को बारे एक छोटी से जानकारी दे दूँ कि ये तीनों 1971 युद्ध के नायक थे.
जगजीत सिंह ए के नियाज़ी के साथ और सगत सिंह पीछे खड़े है |
मेजर जनरल सगत सिंह राठौर ने ढाका पर कब्ज़ा किया था.
जगजीत सिंह वही थे जिन्होंने 1971 में पाकिस्तानी जनरल से ए के नियाज़ी से आत्मसमर्पन के लिए हस्ताक्षर करवाया था.
मेजर जनरल सगत सिंह राठौर के बारे में ये भी जानना जरुरी है कि नाथू ला पर आज मेजर जनरल सगत सिंह राठौर के एक इंकार की वजह से ही भारत के अधिकार में है. 1965 में जब भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हो रहा था तब भारत पर दबाव बनाने के लिए चीन ने भारत को चेतावनी दिया कि जेलेप ला और नाथू ला को खाली कर के भारतीय सेना पीछे हटे वरना चीन आक्रमण कर देगा. इन दोनों पोस्ट पर भारतीय सेना की कोई स्थायी चौकी नहीं थी, सिर्फ निगरानी चौकी थी. मतलब वहाँ कोई भारी हथियार नहीं था. डिविशनल कमांडर ने कहा कि अगर ऐसी कोई भी स्थिति हो तो पोस्ट खली कर के पीछे हट जाये.
जेलेप ला कोर HQ 27 माउंटेन डिविज़न के पास था. उसने जेलेप ला को खाली कर दिया और चीन ने तुरंत उस पर कब्ज़ा कर लिया. जेलेप ला पर आज भी चीन का कब्ज़ा है.
नाथू ला मेजर जनरल सगत सिंह राठौर के पास था. उन्होंने पीछे हटने से मना कर दिया और अगले 2 वर्षो तक वही डंटे रहे.
युद्ध की शुरुआत
युद्ध की शुरुआत भी सीमा विवाद से ही शुरू हुआ.
नाथू ला में जब भारतीय सेना ने 20 अगस्त को तार (Fencing) लगाने का काम कर रही थी तब चीनी सेना आकर के उन्हें अपना काम करने से रोक देते थे या फिर आकर खड़े हो जाते थे और भारतीय सेना पर मानसिक दबाव बनाने की कोशिश कर रही थी. अगले 20 दिनों तक दोनों सेना में झड़प होती रही परन्तु 10 सितम्बर तक गोली नहीं चली थी. पर 11 सितम्बर को जब भारतीय सेना तार लगाने का का काम कर रही थी तब चीनी सेना ने आकर उन्हें अपना काम करने से रोक दिया और दोनों सेना में झड़प होने लगी. इसी झड़प में चीनी कॉमिसार, एक राजनैतिक पद जो सेना का नेतृत्व और प्रेरित करने का काम करता है, का चश्मा टूट गया. इस पर कॉमिसार अत्यंत क्रोधित हो गया और उसने गोली चलाने का आदेश दे दिया और यही से युद्ध की शुरुआत हो गई जो अगले 3 दिनों तक चली.
अचानक से हुए इस हमले में भारतीय सेना के 60 जवान वीरगति को प्राप्त हो गए. भारतीय सेना ने 1962 की नेहरू चीन युद्ध के बाद सीमा पर भारी मात्रा में आर्टिलरी खच्चरों की मदद से सीमा पर पहुँचा दिया था. यहाँ उसका फायदा भारतीय सेना को मिला. भारतीय सेना ने पूरी ताकत से जवाबी कार्यवाही किया और चीन को भारी नुकसान हुआ. चीनी सेना को हुए नुकसान की वजह से चीनी सेना को पीछे हटाना पड़ा. हालाँकि आज भी चीनी सेना की पोस्ट वही पर है. नाथू ला में भारतीय और चीनी सेना के पोस्ट के बीच केवल कुछ मीटर की ही दुरी है.
14 सितम्बर को यह युद्ध समाप्त हो गया जिसमे भारत विजयी रहा. 15 सितम्बर को दोनों देशो के बीच मृतको का लेन देन हुआ.
चो ला
यही बात दुबारा को ला पर कुछ दिन बाद दोहराई गई.
जब भारतीय सेना तार लगाने का का काम कर रही थी तब चीनी सेना ने आकर उन्हें अपना काम करने से रोक दिया और इसी तरह 1 अक्टूबर को चो ला में युद्ध शुरू हुआ जो केवल एक ही दिन चला. चो ला में तो चीन को इतना नुकसान हुआ कि चीन को 3 KM पीछे हटाना पड़ा. यहाँ भी भारत विजयी रहा.
परिणाम
- युद्ध में भारत से 88 जवानो ने अपने प्राणों की आहुति दे दिया और 163 जवान घायल हो गए. जबकि 340 चीनी सैनिक मारे गए थे और 450 सैनिक घायल हुए थे.(भारतीय सेना ने ऐसा दावा किया. क्योकि चीन को जब भी ज्यादा नुकसान हुआ है वो आँकड़े नहीं बताता जिस से उसकी जनता विद्रोह ना करे. इसी वजह से गलवान घाटी में दोनो देश के सैनिको मे हुए झड़प में कितने चीनी सैनिको की मौत हुई उसका का आंकड़ा नहीं बताया).
- नेहरू चीन युद्ध के बाद पुरे विश्व में भारत की जो कमजोर छवि बनी थी वह दूर हो गई.
- चीन को एक सबक मिल गया कि भारतीय सेना को हराना आसान नहीं. इसी वजह से 1971 के युद्ध में चीन ने दखल नहीं दिया था. अगर ऐसा होता तो भारत को 2 जगह पर युद्ध करना पड़ता.
यहाँ अटल से जुड़ा एक मजेदार किस्सा भी है चीनी सैनिकों ने आरोप लगाया था कि भारतीय सैनिकों ने उनकी कुछ भेड़ें जबर्दस्ती अपने कब्जे में ले ली। इस आरोप के विरोध में अटल बिहारी वाजपेयी ने नई दिल्ली के शांतिपथ स्थित चीनी दूतावास के आगे भेड़ों का एक झुंड उतार दिया था। वाजपेयी तब 43 वर्ष के थे और संसद सदस्य थे।
1967 में हुए भारत चीन प्रथम युद्ध के बारे में कोई ज्यादा बात नहीं करता. चीन ने भी इसे दबा दिया. न ही भारत देश के महान इतिहासकार इसके बारे में लिखते या बताते. वो सिर्फ 1962 नेहरू चीन युद्ध में बारे में याद करवा कर हम भारतीय "तुम कमजोर हो" इस बात का को एहसास करवाते रहते है.
जय हिन्द
वन्देमातरम
यह भी पढ़ें
Comments
Post a Comment