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Showing posts with the label सामाजिक मुद्दे

बलात्कार के लिए केवल फाँसी

यत्र नारी पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता। सनातन धर्म के उपासक इस श्लोक से बहुत ही अच्छे से परिचित होंगे ही और जो इस से परिचित नहीं है, उनके लिए इसका अनुवाद कर देता हूँ. इस श्लोक का अर्थ है, "जहाँ नारी को पूजा जाता है, वहाँ देवता रहते है." परन्तु आज के भारत में क्या वाकई ऐसा हो रहा है? क्या यहाँ नारियों को पूजा जा रहा है? क्या यहाँ नारियों का सम्मान किया जा रहा है? आज दुष्कर्म, उसे लेकर समाज की सोच, नेताओं की निष्क्रियता और एक विशेष समूह के दोहरे चरित्र के बारे में चर्चा करेंगे, को काफी चिंता जनक है. दुष्कर्म के आंकड़े 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत वर्ष में हर 16 मिनट में एक लड़की की अस्मिता को रौंधा जाता है. मैं इसे एक दिन के हिसाब से गिनती करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा हूँ. यह आँकड़ा भारत वर्ष के संस्कृति के मुँह पर तमाचा है. परन्तु पीड़िता और उसके परिवार के अलावा इस से आज किसी को कुछ ज्यादा फर्क पड़ता हो ऐसा लगता नहीं है. आज ही मौजूदा स्थिति यह है कि छोटी बच्ची से लेकर उम्र दराज महिला तक कोई सुरक्षित नहीं है. रोजाना कही न कही दुष्कर्म के केस सामने आते हैं. ऐसे बहुत मामले भी ह...

छत्रपति शिवजी महाराज राजे

आज छत्रपति शिवाजी महाराज जयंती है. आज ही के दिन उनका जन्म 1630 में हुआ था. शिवाजी महाराज एक कुशल शासक, योग्य सेनापति, राजनीति और कूटनीति में निपुण, गोरिल्ला लड़ाई में धुरंधर थे. शिवाजी महाराज भारतीय शासक और मराठा साम्राज्य के संस्थापक थे. शिवाजी महाराज ने मुगल आक्रान्ताओं से लोहा लिया और उनके विरुद्ध जाकर, युद्ध कर और उन्हें हरा कर अपना एक अलग साम्राज्य बनाया. शिवाजी महाराज ने स्वराज का सपना देखा और हिन्दू साम्राज्य का प्रतिक भगवे को अपना कर सम्पूर्ण भारत वर्ष की भूमि को भगवामय करने का सपना देखा, जिसे उन्होंने काफी हद तक पूरा भी किया. किन्तु शिवाजी राजे का केवल इतना ही परिचय है? क्या युद्ध, कूटनीति, भगवा, स्वराज से अलग शिवाजी राजे का कोई और व्यक्तित्व नहीं है? हम आज की चर्चा शिवाजी राजे के कुछ ऐसी बातों पर करेंगे, जिससे शायद बहुत ही कम लोग परिचित है. अगर परिचित भी है, तो वो उस पर बात नहीं करते. मातृभक्त शिवाजी राजे की माता का नाम जीजाबाई था. राजे का पालन पोषण उनकी माता श्री ने अकेले ही किया था. साथ ही साथ राजे की पहली गुरु भी वही बनी. जिजाऊ साहेब राजे को बचपन से ही भगवान राम, कृष्णा महा...

भारत के बुद्धिजीवियों और सेक्युलरों का दोहरा चरित्र

शुतुरमुर्ग एक ऐसा पक्षी है, जो मिट्टी में अपने सर को धँसा कर शायद यह अपने आसपास की परेशानी से या आसपास के खतरे से या आसपास के परिस्थितियों से खुद को अलग करने की कोशिश करता है. शुतुरमुर्ग की हरकत शायद आपको विचित्र लग सकता है. परंतु इस से भी ज्यादा यह तब विचित्र लगता है, जब शुतुरमुर्ग की तरह ही इंसान भी मिट्टी में अपने सर को धँसा कर बैठ जाते है. यह किसी खतरे से नहीं परंतु अपने दोहरे चरित्र की वजह से ऐसा करते है. जब किसी इंसान की हत्या या किसी बहन बेटी के साथ दुष्कृत्य कुछ असामाजिक तत्त्वों के द्वारा कर दिया जाता है, तब यह लोग सबसे पहले उन इंसान/बहन बेटी का धर्म या जाति के बारे में जानने के बाद अपने प्रोपेगंडा के लिए लाभ होने पर ही कुछ बोलते है और अगर उनके प्रोपेगंडा को लाभ न होने पर, वो शुतुरमुर्ग की तरह मिट्टी में अपने सर को धँसा देते है और चुप रहते है. आज हम कुछ ऐसे ही लोगों की मानसिकता के बारे में बात करेंगे. एक भीड़ द्वारा किसी एक इंसान की पिट पिट का हत्या कर देने को लिंचिंग कहते है. यह कई कारणों से हो सकता है. आपसी दुश्मनी की वजह से, कोई निजी स्वार्थ सिद्ध करने की वजह से या फिर क...

15 अगस्त: हमें स्वतंत्रता की कितनी कद्र है?

15 अगस्त अर्थात स्वतंत्रता दिवस 2020 में हम अपना 74वां स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहे है. वैसे तो हमें यह स्वतंत्रता मिली है, जिसके बारे में मैं अपने इस से पहले के पोस्ट लिख चुका हूँ. आप चाहे तो पढ़ सकते है. अब मुद्दा यह नहीं है कि हमें स्वतंत्रता मिली है या हमने लिया है, अब मुद्दा यह है कि जब हम स्वतंत्र है तो हमें इस स्वतंत्रता की कितनी कद्र है? हम अपने इतने लम्बे समय की गुलामी से क्या सीखे है? क्योंकि स्वतंत्रता के कारण जो भी रहे हो, इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि इस स्वतंत्रता के लिए न जाने कितने लोगों ने अपने प्राणों को भारत माता के चरणों में हँसते हँसते समर्पित कर दिया था. कई तो ऐसी गुमनाम क्रांतिवीर है, जिनके बारे में हम जानते तक नहीं है. भगत सिंह, चंद्रशेखर 'आजाद' 'पंडित जी', सुखदेव, राजगुरु, भगवतीचन्द्र वोहरा, बटुकेश्वर दत्त, खुदीराम बोस, प्रफुल्ल चाकी और ऐसे न जाने कितने क्रांतिवीर थे, जो बहुत ही कम आयु में भारत के स्वतंत्रता संग्राम में न सिर्फ जुड़ गए, बल्कि ऐसे अकल्पनीय काम भी कर के गए कि इस उम्र में आज शायद ही कोई सोच सकता है. खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चा...

15 अगस्त: देश का 74वां स्वतंत्रता दिवस

15 अगस्त 2020, यह भारत देश का 74वां स्वतंत्रता दिवस है. आज ही के दिन 1947 में भारत देश को स्वतंत्रता मिला था. शायद ही किसी का ध्यान " मिला" शब्द अपनी तरफ आकर्षित करने में सफल हो पाए. परन्तु ज्यादातर लोग इसे पढ़ने के बाद आगे बढ़ जाएँगे. कोई भी स्वतंत्रता मिला था और स्वतंत्रता लिया था में रहे अंतर को महसूस करने या समझने की कोशिश नहीं करेगा. स्वतंत्रता मिला अर्थात हमें यह भाग्यवश मिल गया है, इसमें हमारा योगदान शुन्य या नहीवत है. स्वतंत्रता लिया अर्थात अपने बाहुबल और बलिदान के दम पर लड़ कर छीन कर लिया. दुर्भाग्यवश हमें स्वतंत्रता मिला ही है, इसी वजह से आज तक जब भी भारत के स्वतंत्रता संग्राम की बात होती है, तो  संग्राम में अपने प्राणों की आहुति देने वाले क्रांतिवीरो की ही बात होती है. परन्तु कभी कोई सही कारण बता कर नहीं लिखा जाता कि इस कारण से हमारे भारत देश के लोगो ने स्वतंत्रता को ले लिया. जैसे अमेरिका के स्वतंत्र होने का, जर्मनी और इटली के एकीकरण का, रूस की क्रांति का चीन की क्रांति इत्यादि का सही कारण और क्रमबद्ध जानकारी मिल जायेगा, किन्तु ऐसा भारत के स्वतंत्रता के बारे में ...

बलात्कार: एक अभिशाप

  हमारा प्यारा देश भारतवर्ष. इस भारत वर्ष की भूमि पर अलग अलग समय में अलग अलग रूप में भगवान अवतार लेते रहे है. इसी वजह से भारत वर्ष को देवभूमि भी कहते है. देवभूमि जो एक समय में सभी संस्कृतियों का केंद्र था. संस्कृति जो हमे जीवन जीने का तरीका सिखाती है और जीवन मूल्यों से हमारा परिचय करवाया. भारत वर्ष की उसी संस्कृति ने हमे सिखाया, "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:". अर्थात:- "जिस स्थान पर नारी की पूजा होती है नारी का सम्मान होता है उसी स्थान पर देवताओं का वास होता है." यह भारत वर्ष की संस्कृति है. बाहुबली का एक दृश्य इसी वजह से बाहुबली फिल्म में बाहुबली ने अपनी पत्नी देवसेना और दूसरे औरतो को सिर्फ हाथ लगाने वाले सेनापति का यह कह कर गाला काट दिया था कि "औरत की इज्जत पर हाथ डालने वालो की उँगलियाँ नहीं काटते, काटते है उनका गला." बड़ी सीटियाँ और तालियाँ बजी थी इस पर. कमाल का दृश्य था वो. वास्वत में हमारी संस्कृति हमे यही सिखाती है. त्रेतायुग में राम और रावण का युद्ध हो या द्वापरयुग में महाभारत का युद्ध सब एक नारी के सम्मान के लिए लड़ा गया था.

संजू संजय दत्त की बायोपिक नहीं है.

29 जुलाई अर्थात आज का दिन बॉलीवुड के अभिनेता संजय दत्त का जन्मदिवस है. 1959 में जन्मे इस अभिनेता की ज़िंदगी मे बहुत उतार चढाव आए है. संजू, संजय दत्त की बायोपिक कही जाती है. जिसमें संजय दत्त का किरदार रणबीर कपूर ने निभाया था. परन्तु यह फिल्म संजय दत्त की बायोपिक नहीं कही जा सकती है. क्योंकि इस फिल्म में से संजय दत्त की जिंदगी से जुड़े कई महत्वपूर्ण किस्से और किरदार गायब है. कहते है कि संजय दत्त की कहानी 1500 पन्नों में लिखी गई है, उसमें से सिर्फ 500 पन्नों की कहानी में से ही संजू फिल्म बनी हुई है. बाकि 1000 पन्नों की कहानी को अनछुआ ही छोड़ दिया गया है. क्योंकि वो संजय दत्त के काले चरित्र के बारे में था. क्योंकि निर्देशक राजकुमार हिरानी ने खुद इस बात को स्वीकार किया था कि संजू फिल्म को उन्होंने संजय दत्त के जीवन के सकारात्मक पहलु को दिखाने और संजय दत्त के लिए भावनात्मक झुकाव बनाने का प्रयास किया है. आइए जानते है संजय दत्त के जीवन के कुछ अनदेखे पहलु के बारे में. अंडरवर्ल्ड से रिश्ता संजय दत्त का अंडरवर्ल्ड से काफी गहरा रिश्ता रहा है. परंतु इस फिल्म में केवल एक लोकल डॉन के बारे में ही दिखाया ...