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Showing posts with the label राजनैतिक मुद्दे

जैन: भारत के असली अल्पसंख्यकों में से एक

भारत की सभ्यता प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है. यहाँ सनातन धर्म के साथ साथ जैन धर्म बौद्ध धर्म को मानाने वाले लोग शांति और समभाव से सदियों से रहते आ रहे है. भारत के कोने कोने में सनातन धर्म के मंदिरो के साथ साथ बौद्ध मठों और जैन तीर्थ स्थानों का भी अपना इतिहास रहा है. किन्तु तलवार के दम पर एक धर्म का फैलाव इस तरह हुआ कि आज अपने ही देश में यह प्राचीन धर्म एक अल्पसंख्यक बन कर रह गए है. ज्यादा संख्या न होने की वजह से किसी के वोट बैंक को ज्यादा फायदा नहीं पंहुचा सकते, इसी वजह से यह अल्पसंख्यक हमेशा से ही उपेक्षित रहा है. हद तो तब हो गई, जब राज्य सरकारों के द्वारा इन देरासरों की उचित सुरक्षा और रख रखाव का आभाव देखा गया. आज की चर्चा हम इसी उपेक्षित जैन समाज पर करेंगें. जैन धर्म का इतिहास इस धर्म का इतिहास सनातन धर्म के समानांतर चला आ रहा है. जैन धर्म में मानाने वाले अपनी भगवान को तीर्थकर कहते है. इस प्रकार जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव है, जो इस धर्म के संस्थापक माने जाते है. ऋषभदेव को "आदिदेव" या "आदिश्वरा" भी कह कर संबोधित किया जाता है, जिसका अर्थ होता है प्रथम ईश्वर...

बलात्कार के लिए केवल फाँसी

यत्र नारी पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता। सनातन धर्म के उपासक इस श्लोक से बहुत ही अच्छे से परिचित होंगे ही और जो इस से परिचित नहीं है, उनके लिए इसका अनुवाद कर देता हूँ. इस श्लोक का अर्थ है, "जहाँ नारी को पूजा जाता है, वहाँ देवता रहते है." परन्तु आज के भारत में क्या वाकई ऐसा हो रहा है? क्या यहाँ नारियों को पूजा जा रहा है? क्या यहाँ नारियों का सम्मान किया जा रहा है? आज दुष्कर्म, उसे लेकर समाज की सोच, नेताओं की निष्क्रियता और एक विशेष समूह के दोहरे चरित्र के बारे में चर्चा करेंगे, को काफी चिंता जनक है. दुष्कर्म के आंकड़े 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत वर्ष में हर 16 मिनट में एक लड़की की अस्मिता को रौंधा जाता है. मैं इसे एक दिन के हिसाब से गिनती करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा हूँ. यह आँकड़ा भारत वर्ष के संस्कृति के मुँह पर तमाचा है. परन्तु पीड़िता और उसके परिवार के अलावा इस से आज किसी को कुछ ज्यादा फर्क पड़ता हो ऐसा लगता नहीं है. आज ही मौजूदा स्थिति यह है कि छोटी बच्ची से लेकर उम्र दराज महिला तक कोई सुरक्षित नहीं है. रोजाना कही न कही दुष्कर्म के केस सामने आते हैं. ऐसे बहुत मामले भी ह...

किसान आंदोलन: राजनैतिक दलों के लिए एक अवसर?

इस से पहले के एक लेख में हमने नए कृषि कानून के बारे में चर्चा किया था, जिसमें हमने केवल उस कानून, उस कानून के प्रावधान और उस कानून के प्रावधान से संबंधित समस्याओं और उनके उचित समाधान के बारे में बात किया था. आज हम थोड़ा सा बात करेंगें, इस किसान आंदोलन के नेताओं की मांगों के बारे में और साथ ही साथ इसी किसान आंदोलन में खुद के एक और मौका ढूँढने वाले राजनैतिक दलों के बारे में. साथ में यह भी समझने की कोशिश करेंगें कि "क्या यह आंदोलन किसानो का ही आंदोलन है या किसी राजनैतिक दल के इशारे पर किया जा रहा है, ताकि वह इस से अपना कोई स्वार्थ सिद्ध कर सके." किसान आंदोलन के नेताओं की मांग किसान आंदोलन के नेता बस इन तीनों कानून को रद्द करने की मांग कर रहे हैं. वो इन कानून में किसी भी तरह के सुधार कर के लागु करने के पक्ष में नहीं हैं. वो सभी जिद्द पर अड़े हुए हैं कि बस यह कानून रद्द करो और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP:- Minimum Support Price) पर कानून बनाओ. कही न कही इस आंदोलन का मुख्या मुद्दा भी MSP ही है. MSP अर्थात किसी भी फसल को खरीदने का न्यूनतम मूल्य, जो किसान को APMC में मिलता है. नए कृषि क...

रिहाना प्रोपेगंडा मोदी विरोधी या भारत विरोधी?

कृषि कानून 2021 के विरोध में चल रहा किसानों के आंदोलन का मुद्दा थमने का नाम नहीं ले रहा है. 26 जनवरी के दिन दिल्ली में ट्रेक्टर परेड के दौरान हुए हिंसा ने इसे किसानों और सरकार के बीच बातचीत को रास्ते को थोड़ा मुश्किल बना दिया है. जहाँ किसान दिल्ली की सीमा पर बैठे हुए है, वहीं प्रशासन ने दिल्ली की सीमा पर किल्ले बंदी कर दिया है. किसान आंदोलन के नाम पर सभी राजनीति दलों के नेता अपने अपने डूबते हुए राजनीति के नैया को किसानों के सहारे पार लगाना चाहते है. किसानों के आंदोलन का शोर भारत देश से बहार अमेरिका और कनाडा तक पहुंचने लगा है. इन देशों में रह रहे सिक्ख, जिनमें से ज्यादातर खालिस्तान के समर्थक है, इस मुद्दे को लेकर वहाँ पर भी प्रदर्शन कर रहे है. यह सब अभी चल ही रहा था की अमेरिकन पॉप स्टार रिहाना ने किसानों के समर्थन में ट्वीट कर के इसे और भी हवा दे दिया. उसके बाद तो ग्रेटा और मिया खलीफा ने किसान आंदोलन का समर्थन कर के ट्वीटर पर जैसे तूफान ही ला दिया. उसके बाद इस आंदोलन के समर्थकों ने इन सभी का धन्यवाद किया, तो वहीं 26 जनवरी की घटना के बाद किसान आंदोलन का विरोध कर रहे लोगों ने इसे केवल प्रो...

किसान कृषि बिल और उस से जुड़े तथ्य

हम भारतीय बहुत ही ज्यादा भावुक होते है और यह भावना तब और भी बढ़ जाता है जब बात देश, तिरंगा, देश के क्रांतिकारी, देश के जवान और देश के किसान के बारे में हो रहा हो. इन सब में से किसी भी विषय पर चर्चा हो रहा हो, हम भारतीय पहले से ही इस पक्ष से खुद को ऐसे जोड़ लेते है, जैसे वो हमारे अपने हो और सबसे बढ़कर हो. ऐसा हर भारतीय को करना भी चाहिए, क्योंकि ये हमारे अपने है और सबसे बढ़कर है. कुछ ऐसा ही हुआ किसान आंदोलन के समय. पूरा देश खुद को किसानों के साथ मानता रहा और उनके संघर्ष में उसके साथ खड़ा रहने को भी तैयार था. हालाँकि कुछ लोगो के मन में कुछ सवाल थे, परन्तु उनकी भी सहानुभूति किसानों के साथ ही थी. परन्तु किसानों के साथ की यह सहानुभूति तब भंग हो गई, जब किसान 26 जनवरी के दिन ट्रेक्टर परेड के दौरान लाल किले पर चढ़ गए और वहाँ से "निशान साहिब" का झंडा लाल किले से लहरा दिया. कुछ तस्वीरें और विडिओ ऐसे भी सामने आए, जब कुछ किसान तिरंगे का अपमान करते देखे गए. तब लगभग पुरे देश ने इसका विरोध किया और अपना आक्रोश इन किसानों पर जाताना शुरू कर दिया. ऐसे में कुछ इन्हे नकली किसान, खालिस्तानी कह कर पुकारने...

भारत के अल्पसंख्यक

अल्पसंख्यक. अंग्रेजी में Minority. यह शब्द सुनते ही दिमाग जो सबसे पहला चेहरा आता है वो है मुस्लिम समुदाय के लोगों का. इस समुदाय के अलावा अल्पसंख्यकों का कोई दूसरा चेहरा है ही नहीं भारत देश में. हर पल ये इतने बेचारे बने रहते है कि कुछ राजनैतिक दल तो कुछ तथाकथित पत्रकार हमेशा इनकी रक्षा के लिए खड़े रहते है. अगर इस समुदाय का कोई आतंकवादी भी निकल जाये, दुर्भाग्यवश 99% आतंकवादी इसी समुदाय से होते है, तो ये राजनैतिक दल या तो तथाकथित पत्रकार हमेशा उन्हें बचाने

कारगिल विजय दिवस: अपनी गलतियों से कितना सीखें है हम?

26 मई, कारगिल विजय दिवस है. इसी दिन भारत कारगिल में विजयी हुआ था. पाकिस्तान को तमाम षडयंत्रो के बाद भी पीछे हटना पड़ा था. भारतीय सेना के जवानों ने अदम्य साहस का परिचय दिया और यह सिद्ध कर दिया कि भारत के जवान बिना किसी खास उपकरण के भी खुद के हिम्मत और साहस के बल पर माँ भारती के लिए कुछ भी कर सकते है. परंतु हमने अपनी पुरानी गलतियों से क्या सीखा है? हमने 1962: नेहरू चीन युद्ध से क्या सीखा? 1967: भारत चीन प्रथम युद्ध से क्या सीखा? हमने कारगिल से क्या सीखा? इतिहास इसी वजह से लिखा जाता है. हम उसे पढ़े अपनी भूल को जाने समझे और भविष्य में कोशिश करें कि भूतकाल की गई भूल को वापस से न दोहराएं. परंतु भारत देश का सिद्धांत रहा है अगर जीत गए सफल हुए तो सब माफ. भूल के बारे में बात करने से पहले हम कारगिल युद्ध को बहुत संक्षिप्त में देखेंगे. भारत देश के जवानों की वीरता के बारे में जानना बहुत जरुरी है. वो हमेशा और हर परिस्थिति में सम्मान के योग्य है. कारगिल युद्ध 1999 में हुए इस युद्ध की रूप रखा 1971 में हुए भारत पकिस्तान युद्ध में पाकिस्तान के पराजय और उसके प्रत्यर्पण संधि ने ही खिंच दिया था. इस समय स्पेश...

उत्तरप्रदेश: अपराधियों का गढ़

अगर याद हो तो एक फिल्म आई थी, उत्तर प्रदेश की पृष्टभूमि पर आधारित "बुलेट राजा". जिसमें उत्तर प्रदेश के एक क्षेत्रीय नेता अपना निहित स्वार्थ सिद्ध करने के लिए दो गुंडे पालते है. जिन्हे राजनैतिक रक्षक का नाम दिया गया. यही उत्तर प्रदेश की कहानी है. आज विकास दुबे ने 8 पुलिस वालों को मार दिया और यह बात मीडिया में आ गई. इसी वजह से आज विकास दुबे के पीछे पुरे उप्र की पुलिस पड़ गई है. वरना विकास दुबे पर पहले से भी हत्या के अपराधिक मामले दर्ज है और सिर्फ विकास दुबे ही एक मात्र अपराधी नहीं है, जो खुला घूम रहा हो. ऐसे कई और है, जिन्हे या तो राजनैतिक संरक्षण प्राप्त है या फिर खुद किसी पार्टी से जुड़े हुए है. कुछ ऐसे भी है, जिसने पूरा उत्तर प्रदेश कांपता था. देखते है ऐसे ही कुछ दबंग बाहुबलियों के बारे में. मुख़्तार अंसारी भारत देश के उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी   का भतीजा,  6 फुट 2 इंच का लम्बा कद, गहरी लम्बी मूंछे. यह पहचान है दबंग बाहुबली मुख्तार अंसारी की. बहुजन समाजवादी पार्टी की मुखिया मायावती ने जिसे गरीबों का मसीहा बताया अपनी पार्टी का टिकट दिया था. इस तरह से एक जुर्म की दुनिया ...

एनकाउंटर

एनकाउंटर. यह शब्द सामने आते ही दिमाग में अलग अलग तस्वीरें उभर कर सामने आ जाती है. पर शायद आज एनकाउंटर का नाम ले तो विकास दुबे का चित्र ही सामने आ जाता है. कुछ इस एनकाउंटर इस खुश हैं, तो कुछ इसे फर्जी बता कर उत्तर प्रदेश की पुलिस को कटघरे में खड़ा कर रहे है. वहीं कुछ लोग इसे हैदराबाद एनकाउंटर से भी जोड़ कर देख रहे है. उनका ऐसा कहना है कि दोनों ही केस में जनता की भावनाएं हावी थी. इसी वजह से एनकाउंटर को वो गलत ठहरा कर इसे बदले की कार्यवाही बता रहे हैं. वह यह दलील दे रहे है कि पुलिस का काम सिर्फ आरोपी को गिरफ्तार कर अदालत तक ले जाना है. सजा देने का काम अदालत का है. वो अदालत की लेट लतीफी का भी बचाव करते हुए पुलिस को थोड़ा संयम रखने की नसीहत भी दे रहे है. आइए एनकाउंटर से जुड़े कुछ सवालों के जवाब ढूँढने की कोशिश करते है. एनकाउंटर और उसका इतिहास एनकाउंटर का एक सीधा सदा अर्थ है, "पुलिस के द्वारा किसी अपराधी को मार गिराना". समय समय पर हर एक राज्य की पुलिस एनकाउंटर करती ही रही है और वह हर एक पार्टी की सरकार के समय होता ही रहा है और आगे भी होता ही रहेगा. इसे रोका नहीं जा सकता. परंतु विपक्ष म...

सुनो पाटलिपुत्रा क्या बोले है बिहार?

बिहार अपने प्राचीन समय में बहुत समृद्ध हुआ करता था. बिहार से ही भारत के सबसे शक्तिशाली मगध साम्राज्य का उदय हुआ था और काफी समय तक पाटलिपुत्र उसकी राजधानी रहा था. सिक्खों के दसवें गुरु गुरुगोविंद सिंह जी का जन्म भी पाटलिपुत्र में हुआ था. मोटा मोती बात यह है कि आज का पिछड़ा और शायद सबसे बदनाम राज्य एक समय सबसे ज्यादा समृद्ध हुआ करता था. परंतु कुछ नेताओं के  कुछ न करने  से और  जनता के जाति  के नाम पर वोट देने से RJD के शासन काल के दौरान बिहार 15 वर्ष पीछे चला गया. सड़क नहीं, बिजली नहीं, रोजगार नहीं, अपराध अपने चरम पर. इसी वजह से बिहारियों ने अपने राज्य के बाहर जाकर रोजगार ढूँढना शुरू किया. रोजगार तो मिला, परंतु वो इज्जत नहीं मिली. हर बार बेइज्जती का सामना करना पड़ता, कभी कभी मारपीट का भी. 2000 में असम जैसे राज्यों में तो बिहारियों