रिहाना प्रोपेगंडा मोदी विरोधी या भारत विरोधी? Skip to main content

रिहाना प्रोपेगंडा मोदी विरोधी या भारत विरोधी?

कृषि कानून 2021 के विरोध में चल रहा किसानों के आंदोलन का मुद्दा थमने का नाम नहीं ले रहा है. 26 जनवरी के दिन दिल्ली में ट्रेक्टर परेड के दौरान हुए हिंसा ने इसे किसानों और सरकार के बीच बातचीत को रास्ते को थोड़ा मुश्किल बना दिया है. जहाँ किसान दिल्ली की सीमा पर बैठे हुए है, वहीं प्रशासन ने दिल्ली की सीमा पर किल्ले बंदी कर दिया है. किसान आंदोलन के नाम पर सभी राजनीति दलों के नेता अपने अपने डूबते हुए राजनीति के नैया को किसानों के सहारे पार लगाना चाहते है. किसानों के आंदोलन का शोर भारत देश से बहार अमेरिका और कनाडा तक पहुंचने लगा है. इन देशों में रह रहे सिक्ख, जिनमें से ज्यादातर खालिस्तान के समर्थक है, इस मुद्दे को लेकर वहाँ पर भी प्रदर्शन कर रहे है.

यह सब अभी चल ही रहा था की अमेरिकन पॉप स्टार रिहाना ने किसानों के समर्थन में ट्वीट कर के इसे और भी हवा दे दिया. उसके बाद तो ग्रेटा और मिया खलीफा ने किसान आंदोलन का समर्थन कर के ट्वीटर पर जैसे तूफान ही ला दिया. उसके बाद इस आंदोलन के समर्थकों ने इन सभी का धन्यवाद किया, तो वहीं 26 जनवरी की घटना के बाद किसान आंदोलन का विरोध कर रहे लोगों ने इसे केवल प्रोपेगंडा बताया. इस बात को ध्यान में रखते हुए बॉलीवुड के कुछ बड़े सितारे जैसे अजय देवगन, अक्षय कुमार, सुनील शेट्टी, करण जौहर, भारतीय क्रिकेटर रोहित शर्मा और भारत की स्वर कोकिला लता मंगेशकर जी भी ट्वीट कर किसी प्रोपेगंडा का हिस्सा न बनाने के लिए कहा. ऐसे में सवाल यह उठता है कि इस किसान आंदोलन के बारे में छोड़ो भारत के बारे में ही शायद जानने वाले इन सभी बड़े बड़े नामों ने आखिर किसान आंदोलन के बारे में बिना जाने उसका समर्थन क्यों कर दिया? क्या वाकई यह किसी षड़यंत्र का हिस्सा है? अगर यह षड़यंत्र का हिस्सा है तो षड़यंत्र किसके खिलाफ है, भारत के खिलाफ या मोदी के खिलाफ? आज हम इसी मुद्दे पर चर्चा करेंगे.

क्या यह किसी प्रोपेगंडा का हिस्सा है?
निसंदेह. क्योंकि सोचने वाली बात यह है कि जो रिहाना कभी भारत आई ही नहीं और जिन्हे शायद ही भारत के बारे में ज्यादा कुछ पता होगा, उन्हें भारत के नए कृषि कानून के बारे में कुछ भी पता होगा, यह बात अपने आप में ही हास्यास्पद और असंभव सा लगता है. वही हाल ग्रेटा का भी है. इसमें सबसे बड़े आश्चर्य की बात है कि जिस मिया खलीफा ने यह कहा था कि "मैं कभी भारत देश में कदम तक नहीं रखूँगी", वह अचानक से आज भारत के किसानों की हितैषी बन गई और उन्हें सभी धन्यवाद भी कह रहे है! यह हास्यास्पद नहीं तो और क्या है? राजनेताओं की बात जाने दें, तो आज भी भारत के बारे में UK, USA के लोगों को बहुत ही कम जानकारी है. वहाँ के लोगों के दिमाग में तो कुछ मीडिया के समाचार ही घूमते रहते है, जहाँ भारत को रेप कैपिटल, लैंड ऑफ स्नेक चार्मर्स (सपेरों का देश), गरीबी और अल्पसंखयकों के लिए असुरक्षित देश बताया जाता है. ऐसे में ऐसे महानुभावों का भारत के किसानों की लिए अचानक जागने वाले प्रेम को प्रोपेगंडा नहीं तो क्या कहा जाए? वैसे भी यह भारत का आतंरिक मामला है. किसी बाहरी के कहने से कुछ फर्क नहीं पड़ता है. परन्तु इस आंदोलन का जिस तरह से अंतर्राष्टीयकरण करने की नाकाम चेष्टा की जा रही है, वह कई सवाल जरूर खड़े करती है.

अगर यह प्रोपेगंडा है, तो किसके खिलाफ है?
इस बात में तो कोई भी दो राय नहीं है कि कुछ खालिस्तानी समूह ने खुद को इस आंदोलन से जोड़ लिया है. उन समूहों ने इस आंदोलन का समर्थन करते हुए भारत देश के तिरंगे का हर संभव तरीके से अपमान करते हुए वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया है. वहीं पर कुछ ऐसे वीडियो भी सामने आए है जिसमें कुछ किसान भिंडरेवाला और खालिस्तान के समर्थन में नारे लगाते दिख रहे है. वीडियो देख कर संभवतः यह किसान ट्रेक्टर परेड का ही वीडियो लग रहा है. परन्तु यह जाँच का विषय है. ऐसे में यह प्रोपेगंडा निसंदेह भारत देश को बदनाम करने के लिए चलाया जा रहा है. इसके द्वारा वह पुरे विश्व के देशों में यह भ्रम फैलाना चाहते है कि भारत में किसानों के आवाज को दबाया जा रहा है. कुछ ऐसा ही वहाँ के अल्पसंख्यकों के साथ भी किया जाता है. जिस से वह अपने खालिस्तान के कभी पुरे न होने वाले सपने को अपने दिलों में जिन्दा रख सके. इन लोगों की जाने अनजाने में मदद कर देते है भारत में प्रोपेगंडा फैलाने वाले और खुद को पत्रकार कहलाने वाले कुछ मीडिया के लोग और उसके बाद अपने डूबता राजनीति की नैया को पर लगाने की कोशिश करते राजनेता.

दोहरी चरित्र वाले राजनेता
राजनीति भी बड़ी ही अजीब चीज है. अगर कोई विपक्ष में है तो हर बात का विरोध करना जैसा उसका परम कर्त्तव्य बन जाता है. इस बात की बिना चिंता किए कि यह विरोध किसी नेता का हो रहा है या पुरे भारत देश का. भारत की राजनीति में यह पहले भी देखा गया है कि केवल एक व्यक्ति विशेष से नफरत में इतने अंधे हो चुके है कि उस व्यक्ति को सत्ता से हटाने के लिए हमारे दुश्मन देश तक से मदद मांग बैठते है. विरोध ऐसा कि जब खुद सरकार में थे, तब लगभग इसी कृषि कानून 2021 जैसा कानून अपने राज्य में लागु कर दिया. तब किसानों की चिंता नहीं हुई इन्हे. परन्तु जब यही कानून केंद्र सरकार ने लागु किया, तो अचानक इनके अंदर किसान प्रेम जागृत हो उठा. महाराष्ट्र में जब कांग्रेस सत्ता थी तब विलास राव देशमुख ने अपने शासनकल के दौरान महाराष्ट्र में APMC के अलावा प्राइवेट मंडियों का लाइसेंस भी बांटा और जो किसी भी मंडी में नहीं जाना चाहते उन्हें सीधा किसान से उनकी फसल खरीदने के लिए डायरेक्ट मार्केट लाइसेंस भी बाँटे. आज महाराष्ट्र में 18 प्राइवेट मंडी है, वहीं 1100 डायरेक्ट मार्केट लाइसेंस बाँटे जा चुके है. इसके बाद भी APMC के हिस्से 48000 करोड़ आया, जबकि बाकि दोनों को मिलाकर उनके हिस्से 11000 आया. बिहार से APMC को खत्म किया जा चूका है. दिल्ली में ही सब्जियों को APMC Act से अलग कर दिया गया है. आज दिल्ली में किसान मंडी लगता है. ऐसा ही प्रयोग कर्नाटक में किया गया है. वहाँ पर रायतू नाम का एक बाजार लगता है. अगर यह नेताओं का दोहरा चरित्र नहीं है तो और क्या है? राजनीति करें और जरूर करें परन्तु कम से कम जवानों और किसानों के नाम पर नहीं.

मोदी के अंधविरोधी
कहते है कि प्यार इंसान को अँधा बना देता है. परन्तु नफरत का भी यही हाल है. बस फर्क सिर्फ इतना है कि प्यार में अँधा होने के बाद हर बात में सिर्फ अच्छाई दिखती है और नफरत में अँधा होने बाद केवल बुराई. फिर भले ही वो बात अच्छी हो या बुरी. इसका उदाहरण हमें 26 जनवरी के दिन ही देखने को मिला, जब एक किसान की ट्रैक्टर के पलट जाने से मृत्यु हो जाने के बाद एक पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने ट्वीट के साथ साथ कैमरे पर यह कहा कि "दिल्ली पुलिस के द्वारा उस किसान के सर में गोली मारी गई है." हालाँकि बाद में उन्होंने अपना वह ट्वीट हटा दिया था. परन्तु तब तक बहुत देर हो चूका था. ऐसे कई पत्रकार है, कई बुद्धिजीवी है, कई सेक्युलर है और कई किसी धर्म विशेष के लोग है. मोदी ने अगर कुछ किया है, तो उसका विरोध करेंगे ही. भले विरोध करने का सही कारण पता हो या न पता हो. परन्तु ये विरोध जरूर करेंगे. इस अंध विरोध का कोई फायदा नहीं होने वाला है. क्योंकि ऐसे मोदी का तो पता नहीं, परन्तु आप खुद का बहुत कुछ बिगाड़ रहे है. यह बात ध्यान में जरूर रखें.

अंततः मैं सिर्फ इतना ही कहना चाहूँगा कि रिहाना, ग्रेटा या मिया खलीफा के इस प्रोपेगंडा से कुछ खाश फर्क तो नहीं पड़ेगा. क्योंकि आज कोई भी देश भारत की नाराजगी नहीं चाहेगा (भारत पुरे विश्व में सबसे ज्यादा हथियार खरीदता है). ऐसे में आप ऐसे प्रोपेगंडा से खुद भी दूर रहे और अपने करीबियों को भी दूर रखें. कृषि कानून 2021 में कुछ सुधार की जरुरत है, तो उसके लिए सरकार से बात करें. न की खुद का और देश का नुकसान करें. क्योंकि देश है, तभी हम है. वरना कुछ नहीं है.

जय हिन्द
जय भारत

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