राजा पुरु और सिकंदर का युद्ध Skip to main content

राजा पुरु और सिकंदर का युद्ध

भारत प्राचीन काल से ही अति समृद्ध देश रहा है. इसके साक्ष्य इतिहास में मिलते है. इसी वजह से भारत को सोने की चिड़ियाँ कहा जाता था. यह भारत की समृद्धि ही थी, जिसके वजह से विदेशी हमेशा से ही भारत की तरफ आकर्षित हुए है और भारत पर आक्रमण कर भारत को विजयी करने की कोशिश करते आए है. भारत पर आक्रमण करने वालों में सिकंदर (Alexander), हूण, तुर्क, मंगोल, मुगल, डच, पुर्तगाली, फ्रांसिसी और ब्रिटिश प्रमुख है. आज से हम भारत पर हुए सभी विदेशी आक्रमणों की चर्चा करेंगे. साथ ही साथ हम ऐसे महान राजा, महाराजा और वीरांगनाओं पर भी चर्चा करेंगे, जिन्होंने इन विदेशी आक्रांताओ के विरुद्ध या तो बहादुरी से युद्ध किया या फिर उन्हें पराजित कर वापस लौटने पर मजबूर कर दिया. यह केवल एक इसी लेख में लिख पाना संभव नहीं है. वजह से इसके मैं कई भागों में लिखूँगा.

इस कड़ी के पहले भाग में हम बात करेंगे सिकंदर की, जिसे यूरोपीय और कुछ हमारे इतिहासकार महान की उपाधि देते है. हम इस बात पर भी चर्चा करेंगे कि क्या सिकंदर वास्तव में इतना महान था या फिर यूरोपीय इतिहासकारों ने सिकंदर के बारे में कुछ ज्यादा ही बढ़ा चढ़ा कर लिखा है? इसमें हम बहुत ही संक्षिप्त में सिकंदर के जन्म, उसके माता पिता, उसके प्रारंभिक जीवन, उसके गुरु और उसके राजा बनने के बाद उसके विश्व विजयी बनने के अभियान पर निकलने और राजा पुरु (Porus) के साथ उसके ऐतिहासिक युद्ध के बारे में चर्चा करेंगे.

सिकंदर (Alexander) का जन्म और प्रारंभिक जीवन
सिकंदर का जन्म प्राचीन ग्रीक के मैसेडोन (Macedon) के पल्ला (Pella) नमक नगर में 20 (21) जुलाई 356 ईसा (BCE- Before Common Era) पूर्व हुआ था. उसके पिता का नाम फिलिप द्वितीय (Philip II) और माता का नाम ओलिम्पियस (Olympias) था, जो फिलिप ll की चौथी पत्नी थी. उसके पिता की 7 से 8 रानियाँ थी. किन्तु सिकंदर को जन्म देने के कारण ओल्य्म्पियस कुछ समय तक उसके पिता की प्रमुख रानी थी. सिकंदर की माँ का उसके जीवन पर बहुत ही गहरा प्रभाव था. जब उसके पिता सम्पूर्ण ग्रीक को अपने साम्राज्य में मिलाने के लिए विजय यात्रा पर निकले थे, तब सिकंदर की माता ने ही उसका पालन पोषण किया था. ओलिम्पियस के बारे में यह भी कहा जाता है कि वो एक जादूगरनी थी, जो कला जादू करने में निपुण थी और देवताओं से बात कर सकती थी. इसी वजह से सिकंदर को ग्रीक सभ्यता के भगवान ज़ीउस (Zeus) का भी बेटा माना जाने लगा.
सिकंदर की आयु जब 13 वर्ष की थी, तब उसके गुरु अरस्तु (Aristotle) बने. इन्होंने ही सिकंदर को युद्ध के लगभग सभी कलाओं को सिखाया था, जिसमें तीर चलाना, तलवार चलाना, भला चलाना और शिकार करना प्रमुख था. अरस्तु ने ही सिकंदर को लेकर भविष्यवाणी किया था कि "सिकंदर कोई साधारण इंसान नहीं है. उसका जन्म विश्व विजय करने के लिए हुआ है."

फिलिप द्वितीय की हत्या
फिलिप अपने पुत्र सिकंदर से बहुत प्यार करता था और उसने सिकंदर को अपना उत्तराधिकारी भी बनाया था. दोनों के बीच बहुत ही गहरा रिश्ता था. किन्तु 338 ईसा पूर्व में क्लियोपैट्रा ईरीडिइस (Cleopatra Eurydice) से विवाह करने की वजह से दोनों के रिश्तों में दरार आ गया. क्योंकि क्लियोपैट्रा ईरीडिइस की आयु केवल 20 वर्ष की थी. फिलिप ने अपने से आधी उम्र की लड़की से विवाह किया था. उसकी शादी के 2 वर्षों के पश्चात् ही उसी के अंगरक्षक पॉसानिअस (Pausanias) ने राजा फिलिप की हत्या कर दिया. इस हत्या के षड़यंत्र का आरोप सिकंदर और उसकी माता पर लगा. इसी अवसर का लाभ उठा कर सिकंदर ने अपने सभी सौतेले भाई बहनों की हत्या करवा दिया, जिसमें क्लियोपैट्रा ईरीडिइस का बेटा भी शामिल था. इस प्रकार सिकंदर ने अपने सौतेले चचेरे भाइयों का रक्त बहा कर इस गृह युद्ध पर विजय प्राप्त करने के बाद, वह विश्व विजयी बनाने की महत्वाकांक्षा लिए 336 ईसा पूर्व में मैसेडोन की राजगद्दी पर बैठा और अपने पिता के विजयाभियान के को आगे बढ़ाना शुरू किया.

विश्व विजय अभियान
सिकंदर एशिया की तरफ कूंच करने से पहले अपने देश की उत्तरी सीमाओं को सुरक्षित करना चाहता था. इसी वजह से उसने 335 ईसा पूर्व में अपने विरुद्ध होने सभी विद्रोहों को दबाने लगा, जिसका प्रारंभ उसने एम्फीपोलिस (Amphipolis) से किया. उसके बाद वह थ्रासिअंस (Thracians) और माउंट हेमस (Mount Haemus) की तरफ बढ़ा और दोनों को क्रमशः हराया. फिर त्रिबली (Triballi) पर आक्रमण कर के उसे भी हरा दिया. सिकंदर के इस युद्ध के दौरान ही क्लेटस (Cleitus) और ग्लाउकियस (Glaukias) के द्वारा किए गए. विद्रोह को कुचलते हुए आगे बढ़ा. तभी थेबांस (Thebans) और अथेनियंस (Athenians) ने फिर विद्रोह कर दिया. ऐसे में सिकंदर ने उस विद्रोह को कुचल कर एशिया की तरफ कूंच करने से पहले एंटीपटेर (Antipater) को राज-प्रतिनिधि बना दिया.
पर्शिया के छोटे छोटे देशों को हारने के बाद सिकंदर ने पहला बड़ा युद्ध ग्रानिक्स (Granicus) में लड़ा और उस पर विजय प्राप्त कर आगे बढ़ा. सिकंदर किसी भी देश पर आक्रमण करने से पहले अपने एक प्रतिनिधि के द्वारा संदेश भिजवाता था कि "उसकी अधीनता स्वीकार कर लो और उसके अधीन रह कर राज्य करो. ऐसी स्थिति में सिकंदर उस राज्य पर आक्रमण नहीं करेगा. अन्यथा उस से युद्ध करना होगा." कई देश के राजा सिकंदर के इस शर्त को स्वीकार कर लेते थे और जो नहीं करते थे, सिकंदर उस से युद्ध करता था. इस प्रकार मिलेटस (Miletus) और हालिकारणासुस (Halicarnassus) से अपनी अधीनता स्वीकार करवाने के बाद सिकंदर का भीषण युद्ध दारियस तृतीय के साथ हुआ था, जिसे इस्सुस का युद्ध (Battle of Issus) के नाम से जानते है. इस युद्ध का नेतृत्व दारियस स्वयं कर रहा था. इस युद्ध के पहले चरण में तो दारियस ने सिकंदर को परास्त कर दिया था, किन्तु दूसरे चरण में सिकंदर ने भयानक आक्रमण किया और दारियस परास्त हो गया. सिकंदर दारियस को जीवित बंदी बना कर उसे उसका राज्य वापस कर देना चाहता था. ताकि वो सिकंदर के अधीन रह कर राज्य कर सके. किन्तु दारियस हत्या के डर से भाग गया. उसके बाद सिकंदर ने टायर (Tyre) और गाजा (Gaza) पर अपना अधिपत्य स्थापित किया. गौगामेला (Battle of Gaugamela) के युद्ध में सिकंदर का सामना पुनः दारियस तृतीय से हुआ. दारियस इस्सुस के युद्ध से भागने के बाद अपने सैन्य को एकत्रित कर रहा था. किन्तु पुनः दारियस पराजित हुआ और पुनः भाग गया. थोड़े दिनों के बाद जब दारियस पकड़ा गया, तब उसकी स्थिति अत्यंत दयनीय थी और यही दारियस की मृत्यु भी हो गई. दारियस की मृत्यु के बाद सिकंदर ने उसे एक राजा का ही सम्मान दिया.
इसके बाद के युद्ध सिकंदर के लिए सरल ही थे, जिसमें वह आसानी से विजयी हुआ. इन विजयों के पश्चात उसका आत्म विश्वास हद से ज्यादा बढ़ चूका था और अंततः उसके भारत की तरफ अपना रुख किया.

सिकंदर पुरु का युद्ध (Battle of  Hydaspes)
सिकंदर पुरु के राज्य पर आक्रमण करने से पहले तक्षशिला के राजा आम्भी (Omphis) के पास अपने प्रतिनिधि को भेजा. आम्भी एक डरपोक राजा था. उसने तुरंत ही सिकंदर की अधीनता को स्वीकार कर लिया और सिकंदर को राजा पुरु के राज्य पर आक्रमण करने के लिए उकसाया. आम्भी राजा पुरु से ईर्ष्या करता था. सिकंदर की स्वाधीनता स्वीकार करने का यह भी एक कारण था. सिकंदर ने पुरु के पास आम्भी को अपना प्रतिनिधि बना कर भेजा और अपनी अधीनता स्वीकार करने को कहा. आम्भी को देख कर राजा पुरु अत्यधित क्रोधित हो गए और आम्भी को मारने के लिए दौड़ पड़े. आम्भी बड़ी कठिनाई से अपने प्राणों की रक्षा करने में सफल हुआ. राजा पुरु के सिकंदर की अधीनता स्वीकार न करने की वजह से दोनों के बीच युद्ध निश्चित था. किन्तु सिकंदर की सेना के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी झेलम नदी को पार करना, वो भी उस समय जब उसमें बाढ़ आया हुआ था. जब राजा पुरु को यह ज्ञात हुआ कि सिकंदर अपनी सेना को लेकर झेलम पार करने की कोशिश कर रहा है, तभी राजा पुरु ने झेलम नदी के इस तरफ अपनी पूरी सेना को खड़ा कर दिया. पुरु की सेना को देख कर विश्व विजय का सपना देखने वाला सिकंदर भी भयभीत हो गया था और उसे पुरु के राज्य पर विजय प्राप्त करना असंभव सा लगने लगा. इतिहासकार बताते है कि सिकंदर के पास 50,000 की सेना थी. वही छोटे से राज्य के राजा पुरु के पास 20,000 की ही सेना थी. किन्तु राजा पुरु ने अपने सेना में विशालकाय हाथियों को भी रखा था. सिकंदर यह देख कर चौक गया था. सिकंदर इस बात को समझ चूका था कि राजा पुरु पर सीधे आक्रमण का अर्थ है पराजय. इसी वजह से सिकंदर सेना की एक टुकड़ी लेकर दूसरी तरफ से झेलम नदी को पार करने चला गया और वहाँ से नदी पार करने में भी उसका सामना नदियों द्वारा निर्मित द्वीप पर रहने वाले आदिवासियों से हुआ. उन आदिवासियों ने सिकंदर पर तीरों की वर्षा कर दिया. सिकंदर बड़ी मुश्किल से उन आदिवासियों को पराजित कर झेलम नदी पार कर इस तरफ पहुँचा.
राजा पुरु को जैसे ही ज्ञात हुआ कि सिकंदर झेलम नदी पर कर चूका है, उसने अपनी सेना के एक टुकड़ी को सिकंदर की तरफ भेजा, जिसका नेतृत्व राजा पुरु का बेटा कर रहा था. सिकंदर ने उस टुकड़ी को पराजित कर दिया और आगे बढ़ा. तभी सिकंदर का संकेत मिलने पर सिकंदर की सेना ने भी झेलम नदी पार कर लिया और दोनों सेनाओं के बीच भीषण युद्ध आरंभ हो गया. यह युद्ध अत्यंत भीषण था और सिकंदर के जीवन काल के लड़े गए सभी युद्धों में सबसे कठिन भी. राजा पुरु विशालकाय ऐरावत सामान गज पर सवार हो सिकंदर की सेना पर प्रलय बरसा रहे थे. सिकंदर की सेना त्राहि त्राहि कर चुकी थी. सिकंदर की सेना लगभग पराजित हो चुकी थी.
इस युद्ध के परिणाम के विषय में इतिहासकारों का अलग अलग मत है. कुछ का कहना है कि इस युद्ध में सिकंदर को भारी नुकसान उठाना पड़ा था, किन्तु वह अंततः विजयी रहा और राजा पुरु जीतते जीतते हार गए और जब राजा पुरु सिकंदर से मिले और सिकंदर ने पूछा कि "आपके साथ कैसा व्यव्हार किया जाए?" तो इसके जवाब में राजा ने पुरु ने कहा कि "जैसा एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है." यह सुन कर सिकंदर राजा पुरु से बहुत प्रसन्न हुआ और राजा पुरु का राज्य उसे लौटा दिया.

किन्तु यह अतिश्योक्ति और तर्क संगत नहीं लगता. सिकंदर प्रत्येक राजा से केवल अपनी अधीनता ही स्वीकार करवाना चाहता था. दारियस तृतीय ने भी सिकंदर से सामने झुकने से मना कर दिया था और दूसरी बार सेना एकत्रित कर के उस से युद्ध करने गया. उस समय भी दारियस की मृत्यु के समय सिकंदर ने दारियस का सम्मान एक राजा की तरह ही किया था. ऐसे में यह तर्क संगत नहीं लगता कि विश्व विजय पर निकले हुए सिकंदर का राजा पुरु से युद्ध करने के बाद ह्रदय परिवर्तित हो गया और उसने राजा पुरु का राज्य वापस कर दिया! यही वही सिकंदर है, जिसने सत्ता प्राप्त करने के लिए अपने सभी भाईयों का कत्ल करवा दिया था और संभवतः अपने पिता का भी. ऐसे यूरोपीय इतिहास में लिखे सिकंदर की यह महानता ज्यादा तर्क संगत नहीं लगता.
यहाँ पर कुछ इतिहासकर ऐसे भी है जिनका मानना है कि सिकंदर और राजा पुरु के बीच में कभी युद्ध हुआ ही नहीं. सिकंदर का आक्रमण पाकिस्तान तक ही सिमित रह गया. वह कभी सिंधु नदी पार करने की हिम्मत ही नहीं कर सका. वहीं कुछ लोगों का यह भी मानना है कि इस युद्ध में राजा पुरु विजयी हुए थे. इसी वजह से सिकंदर वापस लौटने को विवश हुआ और सिकंदर के इस शर्मनाक पराजय को छुपाने के लिए उसके इतिहासकारों ने ह्रदय परिवर्तन, सेना में विद्रोह और लौटते समय एक छोटे से राज्य के राजा से युद्ध करते समय घायल हो गया और इसी वजह से उसकी मृत्यु हो गई, इस कहानी को जन्म दिया.
अगर हम उस इतिहासकारों की मान भी ले कि युद्ध में सिकंदर ही विजयी हुआ था, तो यह कोई इतनी बड़ी बात नहीं होनी चाहिए. राजा पुरु निशंदेह एक पराक्रमी राजा थे, जिन्होंने कम सैन्य बल होते हुए भी सिकंदर को पराजय कर अर्थ समझा दिया था किन्तु दुनिया का चलन है कि "बड़े को मारने वाला और भी बड़ा हो जाता है." ऐसे में सिकंदर अगर 16 महाजनपदों (भारत उस समय 16 महाजनपदों में विभाजित था) में से किसी एक, या उन महाजनपदों में उस समय के सबसे शक्तिशाली मगध साम्राज्य, जिसपर नंद वंश के धनानंद का शासन था, को पराजित करता, तब सिकंदर वास्तव में महान कहलाता. फिर भी इतनी कम आयु में इतना बड़ा साम्राज्य खड़ा करना भी कोई आसान काम नहीं था. किन्तु जितना बढ़ा चढ़ा कर उसका गुणगान किया जा रहा है, वह उतना भी महान नहीं था. उस से भी बड़ी विडंबना यह है कि उसी सिकंदर को कांटे की टक्कर देने वाले राजा पुरु के विषय में केवल एक पंक्ति लिखा जाता है कि सिकंदर ने उसे पराजित किया था!!

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जय हिन्द
वंदे मातरम


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