कश्मीर की चुड़ैल और लंगड़ी रानी "दिद्दा" Skip to main content

कश्मीर की चुड़ैल और लंगड़ी रानी "दिद्दा"

भारत वर्ष का इतिहास विश्व के प्राचीनतम इतिहासों में से एक है. कल तक जो भारत के इतिहास को केवल 3000 वर्ष प्राचीन ही मानते थे, वो हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की संस्कृति के अवशेष मिलने के बाद अब इसे प्राचीनतम मानाने लगे है. पुरातत्व विभाग को अब उत्तर प्रदेश के सिनौली में मिले नए अवशेषों से यह सिद्ध होता है कि मोहनजोदड़ो के समान्तर में एक और सभ्यता भी उस समय अस्तित्व में था. यह सभ्यता योद्धाओं का था क्योंकि अवशेषों में ऐसे अवशेष मिले है, जो योद्धाओं के द्वारा ही उपयोग किया जाता था, जैसे तलवार रथ. इस खोज की एक विशेषता यह भी है कि यहाँ पर ऐसे भी अवशेष मिले है, जो नारी योद्धाओं के है. इस से यह अनुमान लगाया जा रहा है कि इस संस्कृति में नारी योद्धा भी रही होंगी.
भारतीय संस्कृति और इतिहास में नारियों का विशेष स्थान रहा है. परन्तु हम आज झाँसी की रानी, रानी दुर्गावती और रानी अवन्तिबाई तक ही सिमित रह गए है. इनके अलावा और भी कई और महान योद्धा स्त्रियाँ हुई है भारत के इतिहास में. जैसे रानी अब्बक्का चौटा और कश्मीर की चुड़ैल रानी और लंगड़ी रानी के नाम से विख्यात रानी दिद्दा. आज हम कश्मीर की रानी दिद्दा के बारे में बार करेंगें.

दिद्दा से रानी दिद्दा
रानी दिद्दा का जन्म लोहार (पूँछ) साम्राज्य के राजा सम्हराजा के यहाँ 930 ई में हुआ था. रानी जन्म से ही दिव्यांग थी. इसी वजह से उनके पिता ने उनका त्याग कर दिया था. किन्तु दिद्दा ने अपनी इस कमजोरी को कभी स्वीकार नहीं किया और तलवार चलाने में, तीर चलाने में, घुड़सवारी में और राज्य चलाने में सिद्धि प्राप्त किया. सीधे और सरल शब्दों में कहें, तो वो राज्य चलाने के हर एक गुण में निपुण थी. रानी दिद्दा दिव्यांग थी, परन्तु उनकी सुंदरता अद्भुत थी. उनकी इसी सुंदरता पर पार्थगुप्त साम्राज्य के राजा क्षेमगुप्त मोहित हो गए और दिद्दा के दिव्यांग होने के बाद भी क्षेमगुप्त ने दिद्दा से विवाह किया. क्षेमगुप्त ने अपनने जीवनकाल में केवल यही एक काम किया, जिस वजह से उन्हें याद रखा जायेगा.
क्षेमगुप्त के अस्वस्थ रहने पर दिद्दा ही राज्य चलाया करती थी. कुछ इतिहासकर क्षेमगुप्त को अयोग्य और भोग विलासी राजा मानते थे. रानी दिद्दा राज्य चलाने के हर एक गुण में निपुण थी. उनके सूझबूझ के सभी प्रशंसक थे. यही कारण था कि क्षेमगुप्त ने अपने नाम में अपनी रानी का नाम जोड़ लिया और अपना नाम "दीद खेम" रख लिया. उसी समय रानी दिद्दा के नाम से सिक्के भी चलवाए. हालाँकि उस समय सत्ता की बागडोर अप्रत्यक्ष रूप से रानी दिद्दा के ही हाथों में थी, इसी वजह से इतिहासकारों का मानना है कि ऐसा रानी दिद्दा ने स्वयं किया था.

रानी दिद्दा के विरुद्ध षड़यंत्र
क्षेमगुप्त की मृत्यु 958 में होते ही उनके राज्य में षड़यंत्र की गंध आने लगी. रानी दिद्दा जो व्यक्ति के काम को महत्व दिया करती थी, वो सभी की आँखों में चुभ रही थी. ऊपर से एक स्त्री को राजा के रूप में स्वीकार करना भी कई लोगों को पसंद नहीं था. इसी वजह से क्षेमगुप्त के मृत्यु के बाद सभी ने उन्हें सतीप्रथा का हवाला देते हुए सती होने को कहा. परन्तु रानी दिद्दा ने बड़ी चालाकी से क्षेमगुप्त की प्रथम पत्नी को सती करवा दिया और अपने विरुद्ध हो रहे षड़यंत्र को राजनीति और कूटनीति के सभी उपायों का प्रयोग कर उसे बड़ी निर्ममता से दबा दिया. किसी को धन का लालच दे कर खरीद लिया और जो धन से नहीं माना उसे मरवा दिया. इस प्रकार से रानी दिद्दा सिंहासन पर किसी भी तरह से बनी रही.
किन्तु रानी दिद्दा स्वयं रानी नहीं थी, बल्कि वो अपने पुत्र अभिमन्यु के कम आयु की वजह से रानी बन कर शासन करती थी. बाद में उनके दोनों पोतों की मृत्यु के बाद रानी 980 में स्वयं राजगद्दी पर बैठी. उस समय भी उनके खिलाफ विद्रोह हुआ. परन्तु रानी ने बड़ी ही कुशलता से उस विद्रोह को पहले की ही भांति दबा दिया.

महमूद गजनी से युद्ध
रानी दिद्दा ने लगभग 150 युद्ध लड़े और सभी युद्धों में विजयी हुई. रानी दिद्दा गोरिल्ला युद्ध में पारंगत थी. ऐसा भी कहा जाता है कि रानी दिद्दा ने ही इस गोरिल्ला युद्ध को प्रारंभ किया था. 965 ई में खोरासान, बगदाद, गजनी जैसे राज्य के राजाओं ने मिल कर कश्मीर पर आक्रमण कर दिया. उनके पास लगभग 35,000 सैनिकों की सेना थी. रानी दिद्दा ने केवल 500 सैनिकों के साथ इस आक्रमण का जवाब दिया और 45 मिनट में ही इस युद्ध पर विजय प्राप्त कर लिया. साथ ही साथ इस सेना के सेनापति आबु महमूद गुलानी को बंदी बना लिया. बाद में रानी दिद्दा ने गुलानी को हाथी के पैरों से कुचलवा कर मरवा दिया.
यह भी कहा जाता है कि एक ऐसे ही युद्ध को रानी दिद्दा ने सर्प व्यूह बना कर केवल 30 मिनट में जीत लिया था. महमूद गजनी ने कश्मीर पर दो बार आक्रमण किया, परन्तु रानी दिद्दा ने उसे दोनों बार हरा दिया. उसके बाद से गजनी ने भारत पर कश्मीर के रास्ते आक्रमण नहीं किया. रानी दिद्दा के बारे में यह भी कहा जाता है कि उन्होंने ने 972 में रूस के राजा यरोपोल्क (Yaropolk I) को भी पराजित किया था और रूस के एक चौथाई हिस्से पर रानी दिद्दा का ही शासन था. इसका वर्णन यरोपोल्क I ने अपनी पुस्तक विमेंस ऑफ़ साउथ एशिया में भी किया है.

मृत्यु और साम्राज्य का स्थानांतर
रानी दिद्दा की मृत्यु ई सन 1003 में हुई. उन्होंने ने अपनी मृत्यु से पूर्व अपने भाई उदयराज के बेटे संग्राम राजा को अपना राज्य सौंप दिया. रानी दिद्दा ने अपने शासन काल में स्त्रियों की पढाई पर विशिष्ठ जोर दिया था. इस प्रकार इस महान रानी का निधन हुआ और उनके निधन के बाद उनके बारे में न ज्यादा पढ़ा गया और न ही ज्यादा लिखा गया.

विवाद
रानी के स्त्री होने के कारण या उनके ऐसे ही व्यक्तित्व के कारण विवादों से गहरा नाता रहा है. इसी वजह से रानी दिद्दा को कश्मीर की विवादित रानी के नाम से भी जाना जाता है. रानी को अक्सर क्रूर रानी भी कहा जाता है कश्मीरी इतिहासकार कल्हण ने राजतरंगिणी रानी दिद्दा के बारे में वर्णन किया है, जिसमें कल्हण ने रानी को "क्रूर एवं अपनी उच्च अधिकारियों से शारीरिक संबंध रखने वाली रानी" कहा है. रानी का तुंगा नाम के व्यक्ति से संबंध होने के कारण रानी ने तुंगा को प्रधानमंत्री बनाया, जिसका विरोध हुआ. परन्तु रानी ने इस विरोध को क्रूरता से दबा दिया. साथ ही साथ रानी पर सत्ता का लालच होने का आरोप लगता रहा है. कल्हण की माने तो रानी दिद्दा ने अपने ही प्रपोत्रों त्रिभुवन और भीमगुप्त को मरवा कर खुद रानी बनी थी. इतने युद्ध को लड़ने और उनमें 30 मिनट में ही विजयी होने के कारण रानी दिद्दा को चुड़ैल माना जाने लगा. इसी वजह से रानी दिद्दा को "चुड़ैल रानी" और उनके दिव्यांग होने के कारण उन्हें "लंगड़ी रानी" भी कहा जाने लगा.
इतिहासकार कल्हण या दूसरे जो भी इतिहासकार रहे हैं, सभी रानी दिद्दा को विवादित रानी का दर्जा दिया है. किन्तु सभी का यह मानना जरूर था कि रानी दिद्दा राज्य चलाने में निपुण थी.

भारतीय सिनेमा की विवादित अभिनेत्री कंगना रनौत मणिकर्णिका रिटर्न्स के नाम से रानी दिद्दा पर ही के फिल्म बनाने जा रही है. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि ज्यादातर लोगों को रानी दिद्दा के बारे में एक फिल्म के द्वारा जानने को मिलेगा. किन्तु इनमें उनकी भी कोई गलती नहीं है. आज हमारे पाठ्य पुस्तकों में से हमारे अलसी इतिहास को हटा कर आक्रांता मुगलों का इतिहास पढ़ाया जा रहा है और उन आक्रांताओं, लूटेरों और हत्यारों का महिमा मंडन किया जा रहा है. अगर हमें हमारा ही इतिहास नहीं ज्ञात होगा, तो ऐसे में भारत और भारतीय संस्कृति का पतन निकट भविष्य में सुनिश्चित है. इसे रोकने के लिए हमें हमारे इतिहास के बारे में जानकारी होनी ही चाहिए. जिस से हम इतिहास में किए भूलों से सीखें और उसे भविष्य में कभी भी न दोहरा कर भारत को विश्व गुरु बनाएं.

जय हिन्द
वन्देमातरम



Comments

Popular posts from this blog

राजा पुरु और सिकंदर का युद्ध

भारत प्राचीन काल से ही अति समृद्ध देश रहा है. इसके साक्ष्य इतिहास में मिलते है. इसी वजह से भारत को सोने की चिड़ियाँ कहा जाता था. यह भारत की समृद्धि ही थी, जिसके वजह से विदेशी हमेशा से ही भारत की तरफ आकर्षित हुए है और भारत पर आक्रमण कर भारत को विजयी करने की कोशिश करते आए है. भारत पर आक्रमण करने वालों में सिकंदर (Alexander), हूण, तुर्क, मंगोल, मुगल, डच, पुर्तगाली, फ्रांसिसी और ब्रिटिश प्रमुख है. आज से हम भारत पर हुए सभी विदेशी आक्रमणों की चर्चा करेंगे. साथ ही साथ हम ऐसे महान राजा, महाराजा और वीरांगनाओं पर भी चर्चा करेंगे, जिन्होंने इन विदेशी आक्रांताओ के विरुद्ध या तो बहादुरी से युद्ध किया या फिर उन्हें पराजित कर वापस लौटने पर मजबूर कर दिया. यह केवल एक इसी लेख में लिख पाना संभव नहीं है. वजह से इसके मैं कई भागों में लिखूँगा. इस कड़ी के पहले भाग में हम बात करेंगे सिकंदर की, जिसे यूरोपीय और कुछ हमारे इतिहासकार महान की उपाधि देते है. हम इस बात पर भी चर्चा करेंगे कि क्या सिकंदर वास्तव में इतना महान था या फिर यूरोपीय इतिहासकारों ने सिकंदर के बारे में कुछ ज्यादा ही बढ़ा चढ़ा कर लिखा है? इसमें हम बह

भारत और वैदिक धर्म के रक्षक पुष्यमित्र शुंग

विदेशी आक्रांताओं के प्रथम कड़ी में हमने सिकंदर के भारत पर आक्रमण और राजा पुरु के साथ युद्ध के विषय में चर्चा किया था. विदेशी आक्रांताओं की द्वितीय कड़ी में हम ऐसे एक महान राजा के विषय में चर्चा करेंगे, जिसे एक षड़यंत्र कर इतिहास के पन्नों से मिटाने के लिए हर संभव प्रयत्न किया गया. कभी उसे बौद्ध धर्म का कट्टर विरोधी और बौद्ध भिक्षुकों का संहारक कहा गया, कभी उसे कट्टर वैदिक शासन को पुनः स्थापित करने वाला कहा गया. किन्तु वामपंथी इतिहासकारों ने कभी उस महान राजा को उचित का श्रेय दिया ही नहीं. क्योंकि वह एक ब्राम्हण राजा था. यही कारण है कि आज वह राजा, जिसे "भारत का रक्षक" का उपनाम दिया जाना चाहिए था, भारत के इतिहास के पन्नों से विलुप्त कर दिया गया है. हम बात कर रहे है पुष्यमित्र शुंग की, जिन्होंने भारत की रक्षा यवन (Indo Greek) आक्रमण से किया. सिकंदर (Alexander) के आक्रमण के बाद का भारत (मगध साम्राज्य) सिकंदर के भारत पर आक्रमण और राजा पुरु के साथ युद्ध के बाद आचार्य चाणक्य ने नंदवंश के अंतिम राजा धनानंद को राजगद्दी से पद्चुस्त कर चन्द्रगुप्त को मगध का राजा बनाया. यहीं से मगध में मौर्

1946: नओखलि नरसंहार

पिछले लेख में हमने डायरेक्ट एक्शन डे के बारे में देखा. डायरेक्ट एक्शन डे के दिन हुए नरसंहार की आग पुरे देश में फैल चुकी थी. सभी जगह से दंगों की और मारे काटे जाने की खबरें आ रही थी. इस डायरेक्ट एक्शन डे का परिणाम सामने चल कर बंगाल के नओखलि (आज बांग्लादेश में ) में देखने को मिला. यहाँ डायरेक्ट एक्शन डे के बाद से ही तनाव अत्याधिक बढ़ चूका था. 29 अगस्त, ईद-उल-फितर के दिन तनाव हिंसा में बदल गया. एक अफवाह फैल गई कि हिंदुओं ने हथियार जमा कर लिए हैं और वो आक्रमण करने वाले है. इसके बाद फेनी नदी में मछली पकड़ने गए हिंदू मछुआरों पर मुसलमानों ने घातक हथियारों से हमला कर दिया, जिसमें से एक की मौत हो गई और दो गंभीर रूप से घायल हो गए. चारुरिया के नौ हिंदू मछुआरों के एक दूसरे समूह पर घातक हथियारों से हमला किया गया. उनमें से सात को अस्पताल में भर्ती कराया गया. रामगंज थाने के अंतर्गत आने वाले बाबूपुर गाँव के एक कांग्रेसी के पुत्र देवी प्रसन्न गुहा की हत्या कर दी गई और उनके भाई और नौकर को बड़ी निर्दयता से मारा. उनके घर के सामने के कांग्रेस कार्यालय में आग लगा दिया. जमालपुर के पास मोनपुरा के चंद्र कुमार कर

1962: रेजांग ला का युद्ध

  1962 रेजांग ला का युद्ध भारतीय सेना के 13वी कुमाऊँ रेजिमेंट के चार्ली कंपनी के शौर्य, वीरता और बलिदान की गाथा है. एक मेजर शैतान सिंह भाटी और उनके साथ 120 जवान, 3000 (कही कही 5000 से 6000 भी बताया है. चीन कभी भी सही आंकड़े नहीं बताता) से ज्यादा चीनियों से सामने लड़े और ऐसे लड़े कि ना सिर्फ चीनियों को रोके रखा, बल्कि रेज़ांग ला में चीनियों को हरा कर वापस लौटने पर मजबूर कर दिया और इसके बाद चीन ने एक तरफ़ा युद्धविराम की घोषणा कर दिया.