अल्पसंख्यक. अंग्रेजी में Minority. यह शब्द सुनते ही दिमाग जो सबसे पहला चेहरा आता है वो है मुस्लिम समुदाय के लोगों का. इस समुदाय के अलावा अल्पसंख्यकों का कोई दूसरा चेहरा है ही नहीं भारत देश में. हर पल ये इतने बेचारे बने रहते है कि कुछ राजनैतिक दल तो कुछ तथाकथित पत्रकार हमेशा इनकी रक्षा के लिए खड़े रहते है. अगर इस समुदाय का कोई आतंकवादी भी निकल जाये, दुर्भाग्यवश 99% आतंकवादी इसी समुदाय से होते है, तो ये राजनैतिक दल या तो तथाकथित पत्रकार हमेशा उन्हें बचाने
और उन्हें बेचारा बना कर सामने प्रस्तुत करते है. जैसे की भटका हुआ नौजवान, हेडमास्टर का लड़का इत्यादि.
(Image: OpIndia) |
यह सब तो झेल ही रहे थे कि अब इस समुदाय के लोग भी कुछ भी होने पर धर्म विशेष का हूँ इसीलिए मुझे परेशान किया जा रहा है, इसी वजह से मुझे निशाना बनाया जा रहा है कह कर खुद को बेचारा साबित करने लगते है. खुद को इस तरह बेचारा साबित करने की कोशिश को विक्टिम कार्ड खेलना कहते है. इस समुदाय के लोग इस कार्ड को किसी भी समय और कभी भी खेल सकते है. किसी की जान लेने के बाद, जान लेने की षड्यंत्र रचने के बाद भी.
अभी हाल ही में दिल्ली दंगो के मुख्या आरोपों ताहिर हुसैन को जब हिरासत में लिया गया तब ताहिर हुसैन और उसके समर्थकों का यही कहना था. उसके अलावा CAA के खिलाफ हुए देश व्यापी आंदोलन में भी लगभग यही बात निकल कर सामने आया था. यह प्रशासन से 15 मिनट के लिए पुलिस हटाने को कहें, पुलिस को मारे, डॉक्टर जिन्हे भगवान कहते है उन्हें मारे, नर्स से बदतमीज़ी करे इनके लिए सब माफ होना चाहिए. अगर कुछ पूछो तो विक्टिम कार्ड इनके जेब में ही होता है, तुरंत खेल देंगे. इस से कुछ ज्यादा कहो तो संविधान का हवाला दे देते है. आइए देखते हैं कि संविधान क्या कहता है अल्पसंख्यक के बारे में.
संविधान में अल्पसंख्यक की परिभाषा
भारत के संविधान में आर्टिकल 29 से 30 और 350 A से 350 B के बीच में 'अल्पसंख्यक' या इसके बहुवचन रूप का उल्लेख तो मिलता है, लेकिन यह कहीं भी इसे परिभाषित नहीं किया गया है.
- अनुच्छेद 29 में Marginal Heading में 'अल्पसंख्यक' शब्द है. यह "नागरिकों के किसी भी वर्ग की एक विशिष्ट भाषा लिपि और संस्कृति" की बात करता है, जो या तो एक हो सकता है पूरे समुदाय या समूह को बहुसंख्यक समुदाय के भीतर अल्पसंख्यक माना जाता है.
- अनुच्छेद 30 विशेष रूप से अल्पसंख्यकों की दो श्रेणियों की बात करता है - धर्म के आधार पर और भाषा के आधार पर.
- अनुच्छेद 350 ए और 350 बी केवल अल्पसंख्यकों की भाषा से संबंधित हैं.
Ninong Ering |
यह शब्द अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय (Ministery of Minority Affairs) के मंत्री निनोंग एरिंग ने राज्य सभा में 2013 में कहा था और ये कांग्रेस पार्टी के है.
वास्तव में संविधान वास्तव में विभिन्न धार्मिक, भाषा और सांस्कृतिक रूप से विशिष्ट समूहों के हितों की रक्षा के लिए एक खुली श्रेणी के रूप में 'अल्पसंख्यक' की कल्पना करता है. इसलिए, संवैधानिक इकाई में मुसलमानों को एक स्थायी अल्पसंख्यक के रूप में सोचने की कोई संभावना नहीं है. अर्थात मुसलमान जो आज अल्पसंख्यक का प्रतिक बन चूका है वो संवैधानिक रूप से कभी अल्पसंख्यक था ही नहीं. तो अब सवाल ये उठता है कि मुसलमानों को अल्पसंख्यक किसने बनाया?
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम (1992)
1992 में बाबरी मस्जिद का ढाँचा गिराए जाने के बाद मुसलमान वोट बैंक को लुभाने के लिए कांग्रेस ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम (1992) अमल में लाया. इस अधिनियम ने धार्मिक समुदायों के सापेक्ष हाशिए के कारणों का मूल्यांकन करने की आवश्यकता को स्वीकार किया. इस कानून के कारण मई 1993 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) की स्थापना हुई. लेकिन 1992 के कानून में भी 'धार्मिक अल्पसंख्यक' शब्द की परिभाषा नहीं दी गई है. बल्कि केंद्र सरकार को यह विशेष अधिकार दिया है जो इस अधिनियम के आधार पर कुछ समुदायों को "अल्पसंख्यक" के रूप में अधिसूचित कर सकती है. राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 की Section 2 के Clause (C) के अनुसार, 23 अक्टूबर, 1993 की कल्याणकारी अधिसूचना के पांच समुदायों को अल्पसंख्यक समुदाय अर्थात मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी घोषित किया गया है. 2014 में इस सूची में संशोधन किया गया जब जैन को भी राष्ट्रीय अल्पसंख्यक के रूप में अधिसूचित किया गया. हालाँकि, इस सरल प्रशासनिक कदम ने संवैधानिक सिद्धांतों के लिए एक गंभीर चुनौती पेश की, जो जानबूझकर किसी भी धार्मिक या सांस्कृतिक समूह को 'राष्ट्रीय अल्पसंख्यक' के रूप में नहीं पहचानता है।
एक राष्ट्रीय स्तर के अल्पसंख्यक को पूरे देश में अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त होगा, चाहे उसकी स्थानीय आबादी कितनी भी हो. यह किसी राज्य, क्षेत्र या जिले में भी होगा जहां इस तरह के अल्पसंख्यक तथ्यात्मक रूप से संख्यात्मक दृष्टि से अल्पसंख्यक नहीं हैं. एक विशेष राज्य में एक धार्मिक समुदाय जो राष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिनियम (जैसे यहूदी और बहाई) द्वारा मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय अल्पसंख्यक नहीं है, को क्षेत्रीय अल्पसंख्यक के रूप में मान्यता दी जा सकती है. (cf. ताहिर महमूद, 2016: अल्पसंख्यक आयोग 1978-2015)
BJP का पक्ष
लाल कृष्णा अडवाणी ने 1992 में इसे बिल कर जोरदार विरोध करते हुए कहा था कि इस बिल के आधार पर सिक्ख, ईसाई, बौद्ध धर्म के लोगो को अल्पसंख्यक कहना चाहिए. परन्तु इस से एक धर्म विशेष को अल्पसंख्यक कहने से एक शक्तिशाली प्रतिक्रिया पैदा हो सकता है. बिल के विरोध में आडवाणी का स्पष्ट विरोध मुस्लिम तुष्टिकरण के खिलाफ था. आडवाणी के बात का समर्थन करते हुए 'सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता' हासिल करने के लिए पार्टी ने NCM का विरोध जारी रखा. 1990 के दशक (विशेष रूप से 1996 और 1998) के भाजपा के घोषणापत्र में यह बात बलपूर्वक बताई गई कि पार्टी अल्पसंख्यक आयोग को समाप्त करने और राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग को अपनी जिम्मेदारियाँ सौंपने के लिए प्रतिबद्ध है.
हालाँकि, जब 1998 में भाजपा ने सरकार बनाई, तो उसे मुसलमानों को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक के रूप में मान्यता देने में कोई समस्या नहीं आई. और तो और NCM, जो कांग्रेस द्वारा गठित किया गया था, को भी समाप्त नहीं किया. वास्तव में, अब गृह मंत्री के रूप में आडवाणी ने जनवरी 2000 में एक नए एनसीएम के पुनर्गठन में एक प्रमुख भूमिका निभाई!
अल्पसंख्यकों की जनसँख्या (प्रतिशत में)
भारत के जो सही मायने में अल्पसंख्यक है उनकी जनसँख्या को देखे. (यह आंकड़े 2011 में हुए जनगणना के अनुसार दिया गया है.)
- ईसाई: 2.30
- सिक्ख: 1.72
- बौद्ध: 0.70
- जैन: 0.37
- अन्य: 0.90
अब जिस धर्म विशेष को हम अल्पसंख्यकों का प्रतिक मानते है वह असल में अल्पसंख्यक है ही नहीं. बल्कि वह तो दूसरा बहुसंखयक है. हिन्दू के बाद सबसे ज्यादा मुसलमान 19 करोड़ (2011 का सरकारी आंकड़ा है. का के खिलाफ के विरोध में खुद इन्ही लोगो में से कुछ ने 35 करोड़ तो किसी ने 40 करोड़ कहा. इस आंकड़े के सच होने की संभावना ज्यादा है.) इतनी संख्या में रहने वाला समुदाय कभी अल्पसंख्यक नहीं हो सकता. बल्कि कई स्थानों पर तो ये बहुसंख्यक बन चुके हैं और वहाँ से वहाँ के मूल अल्पसंख्यकों को भगा चुके है. जैसे कश्मीर, उत्तर प्रदेश का कैराना, हरियाणा का मेवात इत्यादि इसके उदाहरण है.
(Note: यहाँ मुसलमान शब्द पुरे धर्म के लोगों का प्रतिक नहीं है. जो परिस्थिति बतलाई गई है वो जिन पर लागु होती है, सिर्फ उन्ही के लिए है.)
मुसलमानों को भी इस बात को समझना होगा कि उनके नाम पर राजनीती कर, उन्हें सिर्फ वोट बैंक के लिए इतेमाल किया जा रहा है. वरना आजादी के समय से ही मुसलमानों के उत्थान के लिए कई पार्टियाँ कार्यरत है, परंतु इस समुदाय में गरीबी और असाक्षरता सबसे ज्यादा है. वही इनके नाम पर राजनीति करने वाले नेता अमीर होते गए, परंतु इनके जमीनी हकीकत पर कोई खास फर्क नहीं पड़ा. NCM और कुछ नहीं बस राजनैतिक दलों द्वारा वोट बैंक के लिए शुरू किया गया एक नंगा नाच है. जिसे भले शुरू कांग्रेस ने किया हो पर इसका तमाशा बीजेपी की सरकार भी देख रही है. फिर चाहे वह पहली वाली वाजपई जी की सरकार हो या अभी मोदी जी की. सिर्फ चेहरा ही बदला है, बाकि वोट बैंक की राजनीती वही है, जिसे बदलने की जरुरत है. वरना हमारा देश कभी भी जाति धर्म के झगड़े से बहार नहीं आ पाएगा.
जय हिन्द
वंदेमातरम
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