भारत की सभ्यता प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है. यहाँ सनातन धर्म के साथ साथ जैन धर्म बौद्ध धर्म को मानाने वाले लोग शांति और समभाव से सदियों से रहते आ रहे है. भारत के कोने कोने में सनातन धर्म के मंदिरो के साथ साथ बौद्ध मठों और जैन तीर्थ स्थानों का भी अपना इतिहास रहा है. किन्तु तलवार के दम पर एक धर्म का फैलाव इस तरह हुआ कि आज अपने ही देश में यह प्राचीन धर्म एक अल्पसंख्यक बन कर रह गए है. ज्यादा संख्या न होने की वजह से किसी के वोट बैंक को ज्यादा फायदा नहीं पंहुचा सकते, इसी वजह से यह अल्पसंख्यक हमेशा से ही उपेक्षित रहा है. हद तो तब हो गई, जब राज्य सरकारों के द्वारा इन देरासरों की उचित सुरक्षा और रख रखाव का आभाव देखा गया. आज की चर्चा हम इसी उपेक्षित जैन समाज पर करेंगें.
जैन धर्म का इतिहास
इस धर्म का इतिहास सनातन धर्म के समानांतर चला आ रहा है. जैन धर्म में मानाने वाले अपनी भगवान को तीर्थकर कहते है. इस प्रकार जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव है, जो इस धर्म के संस्थापक माने जाते है. ऋषभदेव को "आदिदेव" या "आदिश्वरा" भी कह कर संबोधित किया जाता है, जिसका अर्थ होता है प्रथम ईश्वर. जैन धर्म की मान्यता के अनुसार ऋषभदेव का संबंध इक्षवाकु वंश से है. सनातन धर्म के भगवान श्री राम का संबंध भी इसी इक्षवाकु वंश से है. जैन धर्म की मान्यता के अनुसार ऋग्वेद के सूक्त 10.166 में भी ऋषभदेव का वर्णन मिलता है.
ऋषभं मा समानानां सपत्नानां विषासहिम्।
"हन्तारं" शत्रूणां कृधि विराजं गोपतिं गवाम्॥
अहमस्मि सपत्नहेन्द्र इवारिष्टो अक्षतः।
अधः सपत्ना मे पदोरिमे सर्वे अभिष्ठिताः॥
इसमें ऋषभं शब्द प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव के लिए प्रयोग किया है, जिनका प्रतिक बैल है. जैन धर्म के ऋषभदेव के उपरांत और 23 तीर्थकर हुए है, उनमें अंतिम और 24वें तीर्थकर महावीर स्वामी है. महावीर स्वामी ने जैन धर्म का प्रचार प्रसार किया. उन्ही के समय में जैन धर्म का बहुत प्रसार हुआ. जैन धर्म में दो पंथ (परंपरा) है, श्वेतांबर और दिगंबर. श्वेतांबर अर्थात श्वेत वस्त्र धारण करने वाले और दिगंबर अर्थात बिना वस्त्र के नग्न रहने वाले.
महावीर भगवान के पश्चात् जैन स्थविरों की पंरपरा से पता लगता है कि आचार्य भद्रबाहु के समय तक दिगंबर और श्वेतांबर परंपरा में विशेष मतभेद नहीं था. ईसवी सन् की प्रथम शताब्दी के आसपास ये दोनो परंपराएँ अलग अलग हो गई.
आचार्य भद्रबाहु मौर्य वंश के चन्द्रगुप्त मौर्य के समकालीन थे. मौर्य काल जैन धर्म के लिए स्वर्णिम युग था मौर्य काल में जैन धर्म का प्रचार प्रसार, साहित्य, कला और स्थापत्य कला अपनी चरम पर था. दिगंबर जैन की मान्यता के अनुसार आचार्य भद्रबाहु ने चन्द्रगुप्त के साम्राज्य विस्तार के लिए किए रक्तपात के कारण आगामी भविष्य में 12 वर्षों के भीषण अकाल की भविष्यवाणी किया था. इसके पश्चाताप के लिए चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने पुत्र बिन्दुसार को सत्ता सौप कर खुद जैन धर्म को अपना लिया. जिस पहाड़ी पर चंद्रगुप्त ने तपस्या किया था, उसे अब चंद्रगिरि पहाड़ी के नाम से जाना जाता है. दिगंबरों का मानना है कि चंद्रगुप्त मौर्य ने एक प्राचीन मंदिर बनवाया था, जो अब चंद्रगुप्त बसादी के नाम से जाना जाता है. चन्द्रगुप्त मौर्य के पौत्र सम्राट अशोक भी कलिंग युद्ध में हुए रक्तपात को देख कर द्रवित हो उठे थे और उन्होंने बाद में बौद्ध धर्म को अपना कर बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार किया था.
जैन धर्म और मुगल काल
मुगल आक्रांताओं के द्वारा सनातन धर्म के साथ साथ जैन धर्म के स्थापत्य कलाओं, साहित्यों इत्यादि को क्षति पहुँचाया गया कई जैन देरासरों को तोड़ कर वहाँ मस्जिद का निर्माण किया गया जिसकी शुरुआत 782 में वल्लभी शहर, जो जैन संस्कृति का केंद्र था, को तोड़ कर किया उसके बाद महमूद गजनी, मोहम्मद गोरी और अल्लाउद्दीन खिलजी ने इसे आगे बढ़ाते हुए जैन धर्म को दबाने के लिए कई देरासरों को तोड़ कर वहाँ मंदिरों का निर्माण करवाया जैन धर्म से संबंधित कई पुस्तकों को जला दिया और साथ ही साथ कई लोगों को मौत के घाट भी उतार दिया दिल्ली में क़ुतुब मीनार के निर्माण की कहानी भी कुछ ऐसी ही है कई जैन देरासरों, जैसे की गुजरात के खम्भात का जामी मस्जिद, को तोड़ा गया और उसके बाद उन देरासरों की जगह मस्जिदों का निर्माण करवाया गया औरंगजेब का समय हर एक धर्म के लिए काला समय था इस मुगल बादशाह ने है एक धर्म के मंदिरों, देरासरों को तोड़ा और उनकी जगह मस्जिदों का निर्माण करवाया इस प्रकार मुगल आक्रांताओं के समय में जैन धर्म को अत्यत नुकसान उठाना पड़ा.
भारतीय संविधान और जैन धर्म
मुगलकाल के बाद भी जैन धर्म के साथ एक तरह से सौतेला व्यव्हार होता रहा 1992 में बाबरी मस्जिद का ढाँचा गिराए जाने के बाद मुसलमान वोट बैंक को लुभाने के लिए कांग्रेस ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम (1992) अमल में लाया. इस अधिनियम ने धार्मिक समुदायों के सापेक्ष हाशिए के कारणों का मूल्यांकन करने की आवश्यकता को स्वीकार किया. इस कानून के कारण मई 1993 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) की स्थापना हुई. लेकिन 1992 के कानून में भी 'धार्मिक अल्पसंख्यक' शब्द की परिभाषा नहीं दी गई है. बल्कि केंद्र सरकार को यह विशेष अधिकार दिया है जो इस अधिनियम के आधार पर कुछ समुदायों को "अल्पसंख्यक" के रूप में अधिसूचित कर सकती है. राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 की Section 2 के Clause (C) के अनुसार, 23 अक्टूबर, 1993 की कल्याणकारी अधिसूचना के पांच समुदायों को अल्पसंख्यक समुदाय अर्थात मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी घोषित किया गया है. 2014 में इस सूची में संशोधन किया गया जब जैन को भी राष्ट्रीय अल्पसंख्यक के रूप में अधिसूचित किया गया. जहाँ अन्य धर्म 1993 में ही अल्पसंख्यक बन चुके थे. वहीं जैन धर्म को अल्पसंख्यक सूचि में शामिल होने के लिए अन्य 11 वर्षों तक प्रतीक्षा करना पड़ा.
अचानक से जैन धर्म पर बात क्यों?
जैन धर्म के लोग अहिंसा में मानने वाले और भारत देश पर मर मिटने वाले लोगों में से एक है, वो कभी भी भारत देश के खिलाफ या भारत देश को तोड़ने की बात नहीं करते है. वो हमेशा से भारत देश को मजबूत करने के भारत देश के साथ खड़े दिखते है. इसी वजह से जैन धर्म पर कभी बात करने की आवश्यकता महसूस ही नहीं हुआ. परन्तु कुछ समय से जैन धर्म के पवित्र तीर्थ स्थानों को बचाने के लिए सोशल मीडिया पर जैन धर्म का विरोध देखने को मिल रहा है.
इसका प्रारंभ गुजरात के अहमदाबाद में सी प्लेन के उद्घाटन से हुआ. क्योंकि इस सी प्लेन की सुविधा शेत्रुंजी नदी तक भी मिलने वाली थी. शेत्रुंजी नदी जैन धर्म के लिए बहुत ही पवित्र नदी है. परन्तु इस सी प्लेन की सुविधा को प्रारंभ करने से पहले जैन धर्म के लोगों के साथ बैठ कर इस पर वचार विमर्श नहीं किया गया.
शिखर जी. झारखंड के गिरिडीह जिले के पारसनाथ पहाड़ी पर स्थित शिखर जी जैन धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत ही पवित्र और महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है किन्तु झारखंड के मुख्यमंत्री ने शिखर जी को पर्यटन स्थल घोषित कर दिया गया. यहाँ पर जैन धर्म के लोगों से इस बारे में कोई भी चर्चा नहीं किया.
इसके विरोध के पीछे जैन धर्म के लोगों का तर्क था कि अगर इन तीर्थ स्थलों को पर्यटन स्थल घोषित कर दिया जायेगा, तो यहाँ पर लोगों कि संख्या बढ़ेगी और इन तीर्थ स्थलों पर गंदगी बढ़ेगी. इनका तर्क विचार योग्य तो है. किसी भी राज्य के मुख्यमंत्री का उद्देश्य राज्य के ऐसे किसी भी पर्यटन स्थल से राजस्व कमाना ही होता है. अगर जैन समाज के साथ विचार विमर्श कर, इन्हे पर्यटन स्थल के स्थान पर जैन तीर्थ स्थल की तरह विकसित किया जाता, तो शायद यह सभी के लिए ज्यादा अनुकूल रहता. इसके लिए आपको केवल जैन धर्म के लोगों इस बात का विश्वास दिलाना होता कि उनकी मान्यताओं और उनकी परम्पराओं का ख्याल रखा जायेगा. ऐसे में मुझे नहीं लगता कि शायद कोई इसका विरोध करता.
आज हमारे पाठ्य पुस्तकों में भी हमारे प्राचीन धर्मों के इतिहास के बारे में नहीवत पढ़ाया जा रहा है और मुगल इतिहास का केवल महिमा मंडान कर के पढ़ाया जा रहा है. मुगल आक्रांताओं ने जो रक्तपात मचाया था, उसके बारे में नहीं पढ़ाया जा रहा. भारत के इसी शिक्षा प्रणाली में सुधार की जरुरत है. भारत के जो प्राचीन धर्म है, उनके बारे में उचित पाठ्य सामग्री हमारे पुस्तकों में होना चाहिए और हमारे इतिहास को समकालीन लेखकों द्वारा लिखे गए साहित्यों से हमारे इतिहास को पुनः लिखे जाने की आवश्यकता है. जिसमें हमारे असली अल्पसख्यकों के इतिहास का समावेश भी होना चाहिए, क्योंकि यही हमारा असली इतिहास है. परन्तु हम अपने असली इतिहास से दूर होकर गुलामी के इतिहास को सीने से लगा कर घूम रहे हैं. ऐसे में भारत का विश्व गुरु बनाने का सपना कभी पूरा नहीं होगा. अगर भारत को विश्व गुरु बनाना है, तो हमें अपनी स्वर्णिम इतिहास को विश्व के समक्ष लाना होगा. तभी भारत विश्व गुरु बन पाएगा
जय हिन्द
वन्देमारतम
जैन धर्म के संदर्भ में प्रशंसनीय व्याख्या करी है आपने। जैन समाज के व्यवहार के बारे में भावनात्मक अवलोकन सहित उपयुक्त ऐतिहासिक और धार्मिक तथ्यों का संकलन, सकारात्मक दृष्टिकोण से किया है। श्रमण धर्म का विश्लेषण और न्याय करते समय तथ्यों का निष्पक्ष एवम् सत्य होना अत्यंत महत्वपूर्ण है। सार यह है, श्रमण धर्म अनादी अनंत काल से इस राष्ट्र की सभ्यता एवम् अस्तित्व के साथ चिरकाल से मिश्रित है, वर्तमान से लेकर भविष्य तक सदैव यही स्थिती रहेगी। भारतीय समाज का दायित्व है, वह अपने स्वर्णिम इतिहास को जैन दर्शन एवम् तथ्यों के आधार पर अवलोकन करें। नकारे नहीं। क्योंकि स्वतंत्रता से लेकर वर्तमान समय तक, जैन इतिहास के साक्ष्यों को निरंतर दबाया गया, समाज को ज्ञान और जानकारियों से वंचित रखा। आशा है सत्यता अब छिपी नहीं रहेगी। जैन धर्म के विभिन्न ऐतिहासिक नाम: निर्ग्रंथ, श्रमण, अर्हत, व्रात्य, समानार, अरुगर, जिना, जिन, जैना, जैन।
ReplyDeleteपितामह भीष्म ने कहा धृतराष्ट्र से कहा था कि "सत्य चाहे कितना भी कड़वा हो, सत्य फिर भी सत्य होता है. सत्य को सुनने, उस से सीखने और उसे से स्वीकार करने का साहस करना चाहिए और वैसे भी आज जो तथाकथित इतिहासकार है, वो सत्य को कभी बहार आने ही नहीं देना चाहते है. तो इनसे कोई उम्मीद करना ही बेकार है. भारत सरकार को चाहिए की सभी समकालीन ग्रंथो और साहित्यों की सहायता से भारत के स्वर्णिम इतिहास को पुनः लिखवाएं. जिस से भारत का स्वर्णिम इतिहास विश्व के समक्ष आए.
ReplyDelete