कारगिल विजय दिवस: अपनी गलतियों से कितना सीखें है हम? Skip to main content

कारगिल विजय दिवस: अपनी गलतियों से कितना सीखें है हम?

26 मई, कारगिल विजय दिवस है. इसी दिन भारत कारगिल में विजयी हुआ था. पाकिस्तान को तमाम षडयंत्रो के बाद भी पीछे हटना पड़ा था. भारतीय सेना के जवानों ने अदम्य साहस का परिचय दिया और यह सिद्ध कर दिया कि भारत के जवान बिना किसी खास उपकरण के भी खुद के हिम्मत और साहस के बल पर माँ भारती के लिए कुछ भी कर सकते है. परंतु हमने अपनी पुरानी गलतियों से क्या सीखा है? हमने 1962: नेहरू चीन युद्ध से क्या सीखा? 1967: भारत चीन प्रथम युद्ध से क्या सीखा? हमने कारगिल से क्या सीखा? इतिहास इसी वजह से लिखा जाता है. हम उसे पढ़े अपनी भूल को जाने समझे और भविष्य में कोशिश करें कि भूतकाल की गई भूल को वापस से न दोहराएं. परंतु भारत देश का सिद्धांत रहा है अगर जीत गए सफल हुए तो सब माफ. भूल के बारे में बात करने से पहले हम कारगिल युद्ध को बहुत संक्षिप्त में देखेंगे. भारत देश के जवानों की वीरता के बारे में जानना बहुत जरुरी है. वो हमेशा और हर परिस्थिति में सम्मान के योग्य है.

कारगिल युद्ध
1999 में हुए इस युद्ध की रूप रखा 1971 में हुए भारत पकिस्तान युद्ध में पाकिस्तान के पराजय और उसके प्रत्यर्पण संधि ने ही खिंच दिया था. इस समय स्पेशल सर्विसेज ग्रुप का एक कमांडो खूब रोया था. उसका नाम था परवेज मुशर्रफ यह वही परवेज मुशर्रफ है जो कारगिल युद्ध के समय पाकिस्तानी सेना का सर्वेसर्वा था. भारत और पाकिस्तान के सेनाओं के बीच एक अनकहा समझौता था कि दोनों देश की सेनाएँ ऊंचाई वाले क्षेत्र जहाँ ठंढ में बर्फ जम जाती है वहाँ से नवंबर दिसंबर के महीने में पीछे हट जाती है. वापस वहाँ जाती है मई महीने में. बर्फ के पिघलने के बाद. परंतु इस बार पाकिस्तानी सेना फरवरी मार्च में ही वहाँ पहुँच गई थी और अपने क्षेत्र के साथ साथ LOC, Line Of Control, को पार कर के भारतीय क्षेत्र में आकर बंकर बना कर ऊंचाई वाले ऐसे विस्तार में बैठ गए, जहाँ पहुँचना पाकिस्तानी सेना के हिसाब से असंभव था और उन्हें ऊंचाई से भारतीय सेना का हर एक चाल दिखाई दे रहा था. पाकिस्तान का मंसूबा भी यही था कि NH1D पर कब्जा करने के बाद भारत का लेह से संपर्क तोड़ दे, जिससे से भारत को मजबूरी में सियाचिन खाली करना पड़ेगा और भारत को पाकिस्तान के साथ समझौता करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा और इस तरह से कश्मीर का मुद्दा एक झटके में हल हो जायेगा, जो पाकिस्तान के पक्ष में होगा. अगर युद्ध लम्बा चला तो भी बड़े देश बीच बचाव के लिए आ जाएँगे क्योंकि दोनों देश परमाणु संपन्न देश थे. ऐसे में भी फैसला पाकिस्तान के पक्ष में ही जाता.
भारत को जब इसके बारे में पता चला तो भारत ने भी पलटवार किया. पाकिस्तान ने पहले तो इस हमले से खुद को अलग कर लिया, परंतु बाद में पाकिस्तान की ये घटिया साजिश पकड़ी गई. भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय चलाया, तो सेना के मदद माँगने पर भारतीय वायुसेना ने ऑपरेशन सफेद सागर चलाया. मई में शुरू हुआ यह युद्ध 26 जुलाई 1999 को आधिकारिक रूप से समाप्त हो गया. परंतु भारतीय सेना के कई बहादुरों को अपने प्राणों की आहुति देना पड़ा. भारत विजयी तो हुआ, परंतु उसे बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी. भारतीय सेना के सभी जवानों ने अदम्य सहस का परिचय दिया. उन जवानों में से दो नाम बहुत प्रसिद्ध हुए. विक्रम बत्रा और मनोज पांडेय. दोनों को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. जोगिन्दर यादव को भी परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.

अब बात करते है उन भूलों की जो भारतीय सेना और खास कर के भारतीय राजनेता करते आ रहे है. इसमें से भी सिर्फ थोड़ी बहुत गलती भारतीय सेना के कुछ ऊपरी अधिकारियों की है. बाकि इसके दोषी राजनेता है. आइए देखते है.

खुफिया विभाग की निष्फलता
कारगिल में पाकिस्तान अचानक से आक्रामक नहीं हुआ था. पाकिस्तान ने इसकी पूरी तैयारी 1997 से ही शुरू कर दिया था. 1997 में एक ड्रिल के दौरान भारतीय सेना के एक ब्रिगेडियर, जो उस ड्रिल में पाकिस्तानी बने थे उन्होंने कहा था कि वो कारगिल की तरफ से आक्रमण करेंगे और भारत के NH1D पर कब्जा कर लेंगे. तब यह कह कर उनके बात को अनसुना कर दिया गया कि इतनी ऊंचाई पर चढ़ना असंभव है. जब भारत में यह ड्रिल हो रहा था, तब पाकिस्तान बंकर बना रहा था. सेना का एक ख़ुफ़िया विभाग था, मि 1 वह भी बार बार सचेत कर रहा था, परंतु उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया गया. 1962 से हम कुछ नहीं सीखे. हम लापरवाह थे तभी चीन ने पूरी तैयारी से आक्रमण किया और हम अनजान बने रहे.

हथियार और असले की कमी
देश के सीमा की रक्षा के लिए या युद्ध लड़ने के लिए हथियार की जरुरत होती है और हथियार के असले की. यह जानकर आश्चर्य होगा की भारतीय सेना के पास उस समय सही एसल्ट राइफल तक नहीं था. सेना अपने ही देश में निर्मित इन्सास से लड़ रही थी, जो हर मोर्चे पर निष्फल हो रही थी. भारत मंगल तक पहुँच गया है परंतु आज भी वह सही एसल्ट राइफल खुद से नहीं बना पाया. वह विदेशी देशों से एसल्ट राइफल खरीद रहा है. अब रूस के साथ मिल कर भारत में ही नहीं AK203 बनाने वाला ही, जो AK47 का अग्रिम पीढ़ी का एसल्ट राइफल है. उसके अलावा उसके पास होवित्जर तोप की भी भारी कमी थी. 1986 में बोफोर्स तोप में हुए घोटाले के बाद कोई भी सरकार ऐसा कोई तोप लेने से डर रही थी. नतीजा यह हुआ था कि भारत के पास उस सिर्फ समय बोफोर्स तोप ही था.
हालाँकि भारत ने पाकिस्तान को ध्यान में रखकर इस कमी को तो पूरा कर लिया है परंतु चीन से तुलना करे और दो मोर्चे पर लड़ाई की दृष्टि से देखें तो भारत को अभी बहुत तैयारी करना बाकि है.
भारत की नौसेना के बड़े में जो चीन के 74 के मुकाबले में 16 पनडुब्बियाँ है, उन में से अधिकतर पुरानी है. भारत ने इसे कमी को देखते हुए अमेरिका से P8 विमान ले रखा है, जिसे सबमरीन किलर कहते है, परंतु भारत को इस बारे में सोचना होगा. 
भारतीय वायुसेना की हालत भी कुछ खास ठीक नहीं. परंतु भारत के 12 सुखोई और 22 मिग 29 लड़ाकू विमानों के 
लिए रूस से सौदा किया है. इस महीने के अंत तक रफेल भारत में आ जायेगा.  

भारत की विदेशनीति
भारत की विदेशनीति हमेशा से लचर रही है. लचर अर्थात अपने पड़ोसियों के प्रति बहुत ही ज्यादा उदार प्रवित्ति रखता है. यही कारण है कि पाकिस्तान और चीन की बात तो छोड़ो नेपाल और श्रीलंका जैसे देश भी भारत को आंख दिखाने लगे है. भारत को इस पर ध्यान देना होगा. भारत को अपने  विदेशनीति को बदलने कर इसे थोड़ा आक्रामक करने की जरुरत है. तभी भारत के उदंड पडोसी भारत के संप्रभुता का सम्मान करेंगे.

कारगिल में भारत को कुछ और मुश्किलों का सामना करना पड़ा था. जैसे दुशमनों के ठिकानों का सटीक पता लगाने में आफलता जिसे भारत ने अपना जीपीएस बना कर दूर कर लिया है. इजरायल भारत का पक्का मित्र बन कर सामने आया है. इजरायल ने भारत की कारगिल युद्ध में हर एक प्रकार से मदद किया था. परंतु आजतक कोई भी प्रधानमंत्री उस देश की यात्रा पर नहीं गया था. इजरायल यात्रा करने वाले नरेंद्र मोदी पहले प्रधानमंत्री बने.
इसके अलावा सेना ने सेना के तीनों विभाग जल, थल और वायु के बेहतर तालमेल के लिए CDS पद बनाने की मांग कई बार रख चूका है. इस मांग को 31 दिसंबर 2019 को जनरल बिपिन रावत को CDS नियुक्त कर के किया गया.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय सेना को हर तरह से सक्षम बनाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे है. हालाँकि यह भी अभी कम पड़ रहा.
आप भले चाहे किसी भी राजनैतिक पार्टी के समर्थक हो या आपको भले किसी राजनेता पर भरोषा न करते हो, परंतु सेना का आप हमेशा समर्थन करें और कभी भी सेना पर संदेह न करें. क्योंकि सेना ने हमेशा अपना सर्वस्व बलिदान कर के देश की रक्षा करती है. सेना देश की सीमा पर खड़ी है, तभी हम सब यहाँ निश्चिन्त बैठें है. बदले में वो आपसे कुछ नहीं चाहते. परंतु सेना को सम्मान देना और उनके परिवार वालों की हर संभव मदद करना आपका फर्ज है. ऐसा कर के आप उस सैनिक का वो कर्ज चुकाने की सिर्फ कोशिश करते हैं, जिसका कर्जदार भारत देश में रहने वाला हर एक नागरिक है. इसी लिए कभी भी जय जवान और जय किसान कहने मेंसंकोच न करें. 

जय हिन्द
वन्देमातरम
 
#KargilVijayDivas #1999Kargil #TigerHill #MajorVikramBatra #CaptainManojKumarPandey #IsraelTruefriendOfIndia #CDS 

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

राजा पुरु और सिकंदर का युद्ध

भारत प्राचीन काल से ही अति समृद्ध देश रहा है. इसके साक्ष्य इतिहास में मिलते है. इसी वजह से भारत को सोने की चिड़ियाँ कहा जाता था. यह भारत की समृद्धि ही थी, जिसके वजह से विदेशी हमेशा से ही भारत की तरफ आकर्षित हुए है और भारत पर आक्रमण कर भारत को विजयी करने की कोशिश करते आए है. भारत पर आक्रमण करने वालों में सिकंदर (Alexander), हूण, तुर्क, मंगोल, मुगल, डच, पुर्तगाली, फ्रांसिसी और ब्रिटिश प्रमुख है. आज से हम भारत पर हुए सभी विदेशी आक्रमणों की चर्चा करेंगे. साथ ही साथ हम ऐसे महान राजा, महाराजा और वीरांगनाओं पर भी चर्चा करेंगे, जिन्होंने इन विदेशी आक्रांताओ के विरुद्ध या तो बहादुरी से युद्ध किया या फिर उन्हें पराजित कर वापस लौटने पर मजबूर कर दिया. यह केवल एक इसी लेख में लिख पाना संभव नहीं है. वजह से इसके मैं कई भागों में लिखूँगा. इस कड़ी के पहले भाग में हम बात करेंगे सिकंदर की, जिसे यूरोपीय और कुछ हमारे इतिहासकार महान की उपाधि देते है. हम इस बात पर भी चर्चा करेंगे कि क्या सिकंदर वास्तव में इतना महान था या फिर यूरोपीय इतिहासकारों ने सिकंदर के बारे में कुछ ज्यादा ही बढ़ा चढ़ा कर लिखा है? इसमें हम बह

वरदराजन मुदालियर: मुंबई अंडरवर्ल्ड का पहला हिन्दू डॉन

मुंबई अंडरवर्ल्ड के पिछले भाग में हमने पढ़ा था,  करीम लाला  के बारे में, जिसने मुंबई अंडरवर्ल्ड को बनाया. आज हम बात करेंगे मुंबई अंडरवर्ल्ड के उस डॉन के बारे में, जिसे शायद सबसे काम आंका गया और इसी वजह से उसके बारे में ज्यादा बात नहीं होता. इसका शायद एक बड़ा कारण यही रहा है कि इस डॉन का दाऊद इब्राहिम से कोई खास लेना देना नहीं था. अंडरवर्ल्ड के उन्ही डॉन के बारे ज्यादा पढ़ा और लिखा जाता है, जिनका दाऊद इब्राहिम से कोई रिश्ता रहा हो. जैसे करीम लाला, जिसके पठान गैंग के साथ दाऊद इब्राहिम की दुश्मनी थी और हाजी मस्तान, जिसके गैंग में रह कर दाऊद ने सभी काम सीखा था. शायद यही कारण रहा है इस डॉन के उपेक्षित रहने का. हम बात कर रहे है मुंबई अंडरवर्ल्ड के पहले हिन्दू डॉन के बारे में, जिसका नाम है वरदराजन मुनिस्वामी मुदालियर. आइए देखते है  इसके बारे में. प्रारंभिक जीवन वरदराजन मुदालियर का जन्म मद्रास प्रेसिडेंसी के तूतीकोरन (आज का थूटुकुडी, तमिलनाडु) में 1 मार्च 1926 में हुआ था. उसका परिवार आर्थिक रूप से संपन्न नहीं था. तूतीकोरन में ही उसकी प्रारम्भिक शिक्षा हुआ. उसके बाद मुदालियर वही पर नौकरी करने लगा

भारत चीन विवाद के कारण

भारत और चीन के बीच का तनाव बढ़ते ही जा रहा है. 5 मई को धक्के मुक्की से शुरू हुआ यह सिलसिला 15 जून को खुनी झड़प तक पहुँच गया. चीन ने कायरता से भारतीय सैनिकों पर हमला कर दिया, जिसमें हमारे 20 वीर सिपाही वीरगति को प्राप्त हुए. उसके बाद जब भारतीय सैनिकों ने कार्यवाही किया तो उसमें चीन के कम से कम 40 से ज्यादा सैनिक मारे गए. हालाँकि चीन ने कभी इस बात को स्वीकार नहीं किया. उसके बाद अब स्थिति यहाँ तक पहुँच चुका है कि सीमा पर गोलीबारी भी शुरू हो चुका है. यह गोलीबारी 45 वर्षों के बाद हुआ है. आज हम यहाँ यह समझने की कोशिश करेंगे कि चीन आखिर बॉर्डर पर ऐसे अटका हुआ क्यों है? चीन भारत से चाहता क्या है? चीन के डर की वजह क्या है? भारत के साथ चीन का सीमा विवाद पुराना है, फिर यह अभी इतना आक्रामक क्यों हो गया है? इन सभी के पीछे कई कारण है. जिसमें से कुछ मुख्य कारण है और आज हम उसी पर चर्चा करेंगे. चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) One Road, One Belt. जिसमें पिले रंग से चिंहित मार्ग चीन का वर्तमान समुद्री मार्ग है . चीन का यह महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट 62 बिलियन डॉलर की लागत से बन रहा है. यह प्रोजेक्ट चीन के

गल्वान घाटी गतिरोध : भारत-चीन विवाद

  भारत और चीन के बीच में बहुत गहरे व्यापारिक रिश्ते होने के बावजूद भी इन दोनो देशों के बीच टकराव होते रहे है. 1962 और 1967 में हम चीन के साथ युद्ध भी कर चुके है. भारत चीन के साथ 3400 KM लम्बे सीमा को साँझा करता है. चीन कभी सिक्किम कभी अरुणाचल प्रदेश को विवादित बताता रहा है और अभी गल्वान घाटी और पैंगॉन्ग त्सो झील में विवाद बढ़ा है. पर फ़िलहाल चीन गल्वान घाटी को लेकर ज्यादा चिंतित है और उसकी चिंता भी बेकार नहीं है. दोनों सेना के उच्च अधिकारियो के बीच हुए, बातचीत में दोनों सेना पहले पीछे लौटने को तो तैयार हो गई. पर बाद में चीन ने गल्वान घाटी में भारत द्वारा किये जा रहे Strategic Road का निर्माण काम का विरोध किया और जब तक इसका निर्माण काम बंद न हो जाये तब तक पीछे हटने से मना कर दिया. भारत सरकार ने भी कड़ा निर्णय लेते हुए पुरे LAC (Line of Actual Control) पर Reserve Formation से अतिरिक्त सैनिको को तैनात कर दिया है. एक आंकड़े की माने तो भारत ने LAC पर 2,25,000 सैनिको को तैनात कर दिया है, जिसमे 

भारत और वैदिक धर्म के रक्षक पुष्यमित्र शुंग

विदेशी आक्रांताओं के प्रथम कड़ी में हमने सिकंदर के भारत पर आक्रमण और राजा पुरु के साथ युद्ध के विषय में चर्चा किया था. विदेशी आक्रांताओं की द्वितीय कड़ी में हम ऐसे एक महान राजा के विषय में चर्चा करेंगे, जिसे एक षड़यंत्र कर इतिहास के पन्नों से मिटाने के लिए हर संभव प्रयत्न किया गया. कभी उसे बौद्ध धर्म का कट्टर विरोधी और बौद्ध भिक्षुकों का संहारक कहा गया, कभी उसे कट्टर वैदिक शासन को पुनः स्थापित करने वाला कहा गया. किन्तु वामपंथी इतिहासकारों ने कभी उस महान राजा को उचित का श्रेय दिया ही नहीं. क्योंकि वह एक ब्राम्हण राजा था. यही कारण है कि आज वह राजा, जिसे "भारत का रक्षक" का उपनाम दिया जाना चाहिए था, भारत के इतिहास के पन्नों से विलुप्त कर दिया गया है. हम बात कर रहे है पुष्यमित्र शुंग की, जिन्होंने भारत की रक्षा यवन (Indo Greek) आक्रमण से किया. सिकंदर (Alexander) के आक्रमण के बाद का भारत (मगध साम्राज्य) सिकंदर के भारत पर आक्रमण और राजा पुरु के साथ युद्ध के बाद आचार्य चाणक्य ने नंदवंश के अंतिम राजा धनानंद को राजगद्दी से पद्चुस्त कर चन्द्रगुप्त को मगध का राजा बनाया. यहीं से मगध में मौर्