किसान कृषि बिल और उस से जुड़े तथ्य Skip to main content

किसान कृषि बिल और उस से जुड़े तथ्य

हम भारतीय बहुत ही ज्यादा भावुक होते है और यह भावना तब और भी बढ़ जाता है जब बात देश, तिरंगा, देश के क्रांतिकारी, देश के जवान और देश के किसान के बारे में हो रहा हो. इन सब में से किसी भी विषय पर चर्चा हो रहा हो, हम भारतीय पहले से ही इस पक्ष से खुद को ऐसे जोड़ लेते है, जैसे वो हमारे अपने हो और सबसे बढ़कर हो. ऐसा हर भारतीय को करना भी चाहिए, क्योंकि ये हमारे अपने है और सबसे बढ़कर है. कुछ ऐसा ही हुआ किसान आंदोलन के समय. पूरा देश खुद को किसानों के साथ मानता रहा और उनके संघर्ष में उसके साथ खड़ा रहने को भी तैयार था. हालाँकि कुछ लोगो के मन में कुछ सवाल थे, परन्तु उनकी भी सहानुभूति किसानों के साथ ही थी.
परन्तु किसानों के साथ की यह सहानुभूति तब भंग हो गई, जब किसान 26 जनवरी के दिन ट्रेक्टर परेड के दौरान लाल किले पर चढ़ गए और वहाँ से "निशान साहिब" का झंडा लाल किले से लहरा दिया. कुछ तस्वीरें और विडिओ ऐसे भी सामने आए, जब कुछ किसान तिरंगे का अपमान करते देखे गए. तब लगभग पुरे देश ने इसका विरोध किया और अपना आक्रोश इन किसानों पर जाताना शुरू कर दिया. ऐसे में कुछ इन्हे नकली किसान, खालिस्तानी कह कर पुकारने लगे. हालाँकि कुछ ऐसे समूहों ने भी इस किसान आंदोलन का समर्थन किया है, जिन्हे खालिस्तानी समर्थक माना जाता है. ऐसे में इस पहलु को भी ध्यान में रखते हुए खुफिया विभाग ने अपना जाँच शुरू कर दिया है और जो कुछ सच्चाई होगा एक न एक दिन सबके सामने आ जायेगा. 26 जनवरी को कुछ हुआ वह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण था, परन्तु आज हम उस बात नहीं करेंगे. आज हम बात करेंगे उसी कानून की, जिसकी वजह से यह आंदोलन हो रहा है. कुछ लोग इसमें समर्थन में दिख रहे है, तो कुछ इसके विरोध में, तो कुछ तथस्ट रहने का दावा कर UPSC की तयारी कर रहे नौजवान किसान का वीडियो दिखा कर अपनी मूक सहमति भी दे रहे है. आज हम अपनी इस चर्चा को सभी विषयों पर केंद्रित करेंगे और जानने की कोशिश करेंगे कि सरकार ने इस कानून को इतनी जल्दबाजी में लागु क्यों कर दिया? क्या यह कानून असंवैधानिक है? क्या सरकार APMC को खत्म करने जा रही है? क्या सरकार MSP को भी खत्म करने जा रही है? क्या इस कानून की वजह से किसानों से उनके खेत छीन सकते है? क्या इस से महंगाई बढ़ सकती है? यह कानून किसानों के हित में है या कॉर्पोरेट जगह के हित है? मैंने अब तक इसके बारे में जितना पढ़ा और समझा है, उसी के आधार पर अपनी समझ से इन सभी प्रश्नों के उत्तर को ढूँढ़ने की कोशिश करेंगे.

क्या यह कानून असंवैधानिक है?
संसद में बना कोई भी कानून असंवैधानिक तब तक नहीं हो सकता, जब तक वो या तो संविधान के प्रावधान के खिलाफ हो या उस कानून को बनाने में उचित प्रक्रिया का पालन न किया गया हो. अब ऐसे में सबसे पहले देख लेते है कि क्या यह कानून संविधान के किसी बात का विरोध करती है या नहीं? यह कृषि कानून किसी भी तरह से मूल अधिकारों के खिलाफ नहीं है और न संविधान के मूलभूत ढांचे के ही खिलाफ है. क्योंकि खेती पर कानून बनाने का अधिकार राज्यों के पास है, परन्तु संविधान के समवर्ती सूचि के एंट्री नंबर 33 के तहत केंद्र को भी खेती से जुड़े सभी विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र के पास भी है. अब केंद्र और राज्य दोनों ने अगर किसी भी विषय पर कानून बनाया और और वो दोनों एक दूसरे का विरोध कर रहे हो, ऐसे में संविधान के अनुच्छेद 256 के अनुसार केंद्र का कानून ही श्रेष्ठ माना जायेगा. ऐसे में यह कानून असंवैधानिक नहीं कहा जा सकता है.
अब बात आती है कि क्या कानून को पारित करवाने के लिए सही प्रक्रिया का पालन किया गया था? तो सब पहले प्रक्रिया को देख लेते है. किसी भी बिल को सबसे पहले संसद के समक्ष रखा जाता है. अगर संसद में वो बिल पास हो जाये तो राज्य सभा के सामने प्रस्तुत किया जाता है. अगर बिल वहाँ पास हो जाये तो एक समिति इस पर विचार करती है और वहाँ से बिल पास हो जाये तो बिल को राष्ट्रपति के पास जाता है और राष्ट्रपति के हस्ताक्षर करते ही वह कानून बन जाता है. अब संसद में NDA को किसी भी बिल को पास करवाना बाएं हाथ का खेल है, क्योंकि संसद में NDA पूर्ण बहुमत में है. राज्य सभा में भी NDA के पास उस दिन लगभग पूर्ण बहुमत था, क्योंकि कोरोना महामारी की वजह से विपक्ष के ही कुछ सदस्य राज्य सभा में उपस्थित नहीं थे. ऐसे में यह प्रस्ताव ध्वनि मत से पारित हो गया. ऐसे में विपक्ष का कहना है कि सरकार के पास बहुमत नहीं था. ऐसी स्थिति में सभी राज्य सभा के सदस्य अपना मत देते है. परन्तु उसके लिए भी यह शर्त है कि राज्य सभा का हर एक सदस्य अपने दिए गए सीट पर ही बैठा होना चाहिए. कोरोना महामारी की वजह से दुरी 2 गज की दुरी बनाये रखने के लिए सभी सदस्य अलग अलग बैठे थे. ऐसे में राज्य सभा में मत नहीं लिया गया. अगर थोड़ी देर के लिए यह बात सच भी मान ले कि राज्य सभा में बिल पास नहीं हुआ, तो ऐसी स्थिति में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाई जाती है. ऐसे में मामूली बढ़त से बिल को पास किया जाता है. ऐसे में अगर दोनों सदनों की बैठक भी बुलाई जाती, तो विपक्ष इस बिल को पास होने में केवल 2 से 3 दिन की देरी कर सकता था, परन्तु उसे रोक नहीं सकता था. विपक्ष ने यह भी सुझाव दिया कि इसे समिति के पास भेज दें विचार करने के लिए. परन्तु वह भी आम सहमति से ही होता है और उसके लिए सरकार ने साफ साफ माना कर दिया.

सरकार इतनी जल्दीबाजी में क्यों है?
अब तक आप समझ चुके होंगे कि "यह कानून संविधान का किसी भी तरह से विरोध नहीं करता तो यह कम से कम असंवैधानिक तो नहीं है. यह जरूर कह सकते है कि इस बिल को पास करवाने के लिए सरकार काफी जल्दीबाजी में जरूर दिखी और उसने कोरोना के इस आपदा को अवसर में जरूर बदल लिया. इसी वजह से इसे अनैतिक जरूर कह सकते है. अब सवाल यह उठता है कि सरकार इतनी जल्दीबाजी में क्यों थी? सरकार यह बात अच्छे से जानती थी कि इस बिल के आने के बाद इसे बहुत बड़ा विरोध झेलना पड़ेगा. ऐसे में कोरोना के समय में ही सरकार अध्यादेश लेकर इस कानून को लागु करवा दिया, जो किसी आपत्ति के समय संसद की कार्यवाही न होने की परिस्थिति में किया जाता है. ऐसे में नियम यह कहता है कि "अध्यादेश लागु करने के बाद जब भी सदन की कार्यवाही होगी, उसी समय सरकार को इस बिल को दोनों सदनों में पास करवाना होगा. अन्यथा यह अध्यादेश अपने आप समाप्त हो जायेगा. यही कारण था कि सरकार कैसे भी इस बिल को पास करवाया.

कृषि कानून, 2020
अब यहाँ से हम कानून की चर्चा करेंगे क्या वाकई में कानून देश के किसानों के खिलाफ है? क्यों ज्यादातर पंजाब और हरियाणा के किसान ही इस आंदोलन में दिखाई दें रहे है तो सबसे पहले हम इस बात को समझ लें की पंजाब और हरियाणा के किसान पहली हरितक्रांति के समय से ही काफी समृद्ध रहे है और इन दोनों राज्यों के किसान ही समृद्ध है जिनके पास ज्यादा जमीनें है और और भी समृद्ध है केवल इन्ही राज्यों के किसान खुद का ट्रेक्टर लेकर आंदोलन करने आ सकते है अब हम बढ़ते है पहले कानून की तरफ

1) कृषक उपज व्यापर और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) अधिनियम, 2020
    (The Farmer's Produce Trade and Commerce Promotion & Facilitation Act, 2020)
इस कानून में APMC एक्ट को खत्म करने की बात की गई है. ध्यान देने वाली बात यह है कि APMC Act को खत्म करने की बात कही गई है, APMC को खत्म करने के बारे में कुछ नहीं कहा गया. APMC एक्ट पर बात करने से पहले यह समझ लेते है कि APMC क्या है और इसे क्यों बनाया गया था?
APMC का पूरा नाम है "Agriculture Produce Market Committee". इसका गठन किसानों को साहूकारों से बचाने के लिए किया गया था. किसान अक्सर साहूकारों से पैसे सुध पर लें लेता था और बदले में साहूकार किसान के पुरे फसल को ही औने पौने दाम पर खरीद लेते थे और बेचारे किसान के हाथ में कुछ नहीं आता था. इस स्थिति से किसानों को छुटकारा दिलवाने के लिए भारत सरकार ने सभी राज्यों को जरुरी कदम उठाने को कहा. उसके बाद यह APMC और APMC एक्ट अस्तित्व में आया. इस एक्ट के तहत किसानों को अपना पहला फसल APMC में ही बेचना होगा. हालाँकि यह एक्ट राज्य सरकार के अधीन है. राज्य का कोई भी कानून उस राज्य के बहार लागु नहीं होता. इसी वजह से किसानों को अपने नजदीकी APMC में ही अपना फसल बेचना होता था. इस कानून का चोरी छुपे उलंघन होता था, यह बात अलग है.
  • इस नए कानून के तहत किसानों को अपने फसल को अपने जिले में, अपने राज्य में या पुरे देश में कही भी बेचने का अधिकार होगा. साथ ही साथ निकट भविष्य में किसान ऑनलाइन ट्रेडिंग के माध्यम से भी अपना फसल कही भी बेच सकेगा, जहाँ पर वह सभी जगह के फसल के भाव को देख सकेगा. उसके बाद किसान का जहाँ मन होगा वहाँ उस फसल को बेच सकेगा. इस फसल को खरीदने या बेचते समय राज्य सरकार किसी भी तरह का टैक्स नहीं लें लगा सकती.
  • किसी भी तरह के विवाद की स्थिति में SDM और DM के पास अपने विवाद के समाधान के लिए जा सकते है और उन दोनों ही को इस विवाद को 30 30 दिन के अंदर सुलझा देना होगा. इस विवाद में न्यायलय के पास किसी भी तरह की कोई भी न्यायिक शक्ति नहीं रहेगा.
इस कानून को बनाने के पीछे सरकार का तर्क यह है कि किसान APMC में बिचौलियों के हाथों पीसने से बच जायेगा और वह जहाँ चाहे वहाँ अपने फसल को बेच कर अपने फसल की अच्छी कीमत प्राप्त कर सकेगा. इस से APMC जो राजनीति होती है उस से और वहाँ चल रहे अल्पतंत्र से बच जायेगा. SDM और DM के पास अपने विवाद को सुलझा कर किसान न्यायलय की खर्चीली और लम्बी चलने वाली व्यवस्था से बच जायेगा.

समस्या और समाधान
पढ़ने में यह कानून भले आकर्षक लगे, परन्तु इसके साथ भी कुछ समस्याएं भी है. सरकार भले ही मना करे परन्तु इस से APMC के खत्म होने का डर तो है ही. APMC के खत्म होने के साथ साथ APMC से जुड़े लोगो की आजीविका के खत्म होने का और APMC से किसानों को मिलने वाली सुरक्षा का अंत तो हो ही जायेगा. क्योंकि APMC में अलग अलग तरह के टैक्स लगते है और इस कानून के तहत नए प्राइवेट मंडी पर किसी भी तरह का टैक्स नहीं लगेगा. ऐसे में सरकार APMC पर से भी टैक्स खत्म कर या नई प्राइवेट मंडी पर टैक्स लगा कर दोनों को बराबरी का मौका दें सकती है और इस समस्या को खत्म कर सकती है.

न्यायिक सहायता
सरकार भले ही SDM या DM के जरिए कृषि से जुड़े विवादों का समाधान जल्द से जल्द करवाना चाहती हो, परन्तु इसमें किसान का शोषण होने की संभावना बढ़ जाती है. SDM या DM ये दोनों ही सरकारी नौकर है. ऐसे में इन पर राज्य सरकार अपना दबाव बना कर फैसला अपने हित में करवा सकती है. साथ ही साथ कॉर्पोरेट जगत के लोग भी फैसला अपने पक्ष (रिश्तवत देकर) में करवा सकते है, इसकी संभावना है. ऐसे में सरकार को आर्टिकल 323 के तहत राष्ट्रीय कृषि ट्रिब्यूनल बना सकती है, जिसमें पहले सुलह SDM के द्वारा करवाने की कोशिश की जाए. अगर वहाँ सुलह न हो तो यह विवाद ट्रिब्यूनल के सामने लाया जाए और ट्रिब्यूनल को फास्ट कोर्ट की तरह काम करने का और एक तय समय सीमा में इस मुद्दे को सुलझाने का निर्देश दिया जाए, जो मुमकिन है. अगर वहाँ पर भी समाधान न हो तो जिला न्यायलय में अपील करने की सुविधा दी जानी चाहिए.

उचित रेगुलेशन का अभाव
इस कानून में सबसे बड़ी खराबी यह है कि इस कानून के तहत सिर्फ PAN रखने वाला व्यक्ति, फिर चाहे वह व्यक्तिगत हो या किसी कंपनी के नाम से हो, भी किसानों से उनकी फसल को खरीद सकता है. ऐसे में किसानों के साथ धोखा होने पर उसे पकड़ा नहीं जा सकेगा. विशेषतः रातों रात देश को छोड़ कर भागने वालों को. ऐसे में सरकार को चाहिए कि वह किसान से उनकी फसल को खरीदने वालों के लिए एक सही नियम बनाए, जिसमें उसके ज्यादा से ज्यादा दस्तावेज लगाएं और साथ ही साथ उनसे कुछ पैसे सिक्योरिटी के रूप में भी जमा करवाएं. इस से किसानों के साथ छल होने की संभावना काफी हद तक कम हो जाएगी.

नया अल्पतंत्र
इस कानून के तहत एक नए अल्पतंत्र के विकसित होने का डर तो है ही. कही ऐसा न हो कि एक अल्पतंत्र से बचने के चक्कर में दूसरे अल्पतंत्र में किसान फंस जाएं. परन्तु बाजार के सभी फसलों के भाव को ऑनलाइन कर और और इ कॉमर्स की मदद से इस नए अल्पतंत्र की सम्भावना को कम किया जा सकता है. यह उतनी बड़ी समस्या फिलहाल तो नहीं है.

2) कृषक सशक्तीकरण व संरक्षण कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार अधिनियम, 2020
   (The Farmers (Empowerment and Protection) Agreement Price Assurance and Farm Services Act, 2020)
इस कानून के इतने बड़े नाम का संबंध है कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से. अगर किसान की बाध्यता है कि उसे अपनी पहली फसल APMC में ही बेचना है तो ऐसे में वह किसी से कॉन्ट्रैक्ट कर ही नहीं सकता. ऐसे में APMC एक्ट के खत्म होने से किसान अब कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग करने सकता है. अब इस कानून के प्रावधान के बारे में बात करते है.
  • समझौता (एग्रीमेंट) के तहत किसान किसी स्पोंसर के साथ फसल और फसल की कीमत पर पहले से ही समझौता कर के कीमत की चिंता किये बिना सिर्फ अपनी फसल पर ध्यान देगा. अब मान ले कि प्याज की फसल के लिए पहले से ही उसकी गुणवत्ता, मात्रा और कीमत तय हो गई है. परन्तु फसल के समय प्याज की कीमत बढ़ गई है  प्याज 100 के पर चला जाए. ऐसे में किसान को वो कीमत नहीं मिलेगा, जो उस समय उसे मिलाना चाहिए. ऐसे में इस कानून में प्रावधान है कि दोनों पक्ष या तो पहले से एक कीमत तय कर ले और उसी तय कीमत पर किसान से स्पोंसर प्याज खरीद ले या फिर शर्तों के साथ कीमत तय कर ले. कम से कम प्याज की तय कीमत तो मिलेगा ही. साथ ही साथ उस समय AMPC में चल रहे प्याज के भाव के अनुसार उस भाव का कुछ अनुपात किसान को दिया जायेगा. यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि प्याज को तय कीमत से कम पैसे देने का प्रावधान नहीं है यानि अगर फसल की कीमत बढ़ी तो उसके हिसाब से किसान को उसका लाभ मिलने का प्रावधान तो है. परन्तु तय कीमत से कम पैसे देने का प्रावधान नहीं है और इस कानून से भी यह साफ़ हो जाता है कि APMC को खत्म सरकार खत्म करने नहीं जा रही है.
  • फसल की गुणवत्ता को लेकर बाद में किसान को कोई समस्या न हो इसके लिए स्पोंसर बीच बीच में अपना एक्सपर्ट भेज कर उसकी गुणवत्ता जाँचता रहेगा.
  • इस कानून के तहत किसी भी परिस्थिति में किसान के जमीन को गिरवी नहीं रखा जाता सकता या फिर उसके जमीं को शर्त नहीं बनाया जा सकता है. अर्थात भले ही स्पोंसर का कितना भी नुकसान हो जाये वह किसान की जमीन पर किसी भी तरह का दावा नहीं कर सकता. साथ ही साथ किसान की जमीन पर कोई अभी स्थायी संरचना नहीं बना सकता है. अगर दोनों की सहमति से कोई स्थायी संरचना बनाया भी गया, तो कॉन्ट्रैक्ट खत्म होने के बाद स्पोंसर की जिम्मेदारी है कि वह अपने पैसो से उस संरचना को हटाए. ऐसा न करने पर उस संरचना पर किसान का ही अधिकार माना जायेगा.
  • किसान से फसल मिलने के साथ ही स्पोंसर को उसी दिन किसान का बकाया चूकाया जायेगा. किसी भी कीमत पर उसमे देरी करने का प्रावधान नहीं है. अगर उस दिन बैंक काम नहीं कर रहे और लेन देन न होने की वजह से पैसे चुकाना संभव न हो तो ऐसे में स्पोंसर को लिखित में किसान को यह देना होगा कि उसने किसान से कितना फसल लिया और उसे किसान को कितना पैसा चुकाना है और वह यह पैसे किसान को किस तारीख को देगा. यहाँ स्पोंसर केवल उतना ही समय ले सकता है, जब तक बैंक बंद है.
  • प्रत्येक राज्य सरकार को यह अधिकार है कि वह अपनी समझ के अनुसार एक प्राधिकारी बना सके, जिस से इन सभी कॉन्ट्रैक्ट की वैधता सुनिश्चित की जा सके. अगर ऐसा नहीं किया जाता तब भी यह कॉन्ट्रैक्ट वैध माना जायेगा.
  • Force Majeure हर एक कॉन्ट्रैक्ट में यह व्यवस्था होता है कि यदि कोई ऐसी घटना घाट जाए, जिस पर इंसान का वश न हो और उसकी वजह से एक पक्ष या दोनों ही पक्ष कॉन्ट्रैक्ट के शर्तों का पालन करने में असक्षम हो, तो ऐसी स्थिति में किसी भी पक्ष पर जुर्माना नहीं लगाया जा सकता. अगर किसी कॉन्ट्रैक्ट में यह लिखित न भी हो तो ओडिसा हाई कोर्ट के फैसले के अनुसार यह मान लिया जाएगा कि यह पहले से ही लिखित है. इस से किसान को बाढ़ आने की स्थिति में या अकाल पड़ने की स्थिति में किसान को कॉन्ट्रैक्ट की शर्तों को तोड़ने पर भी किसी भी तरह का जुर्माना नहीं देना होगा.
  • अगर कभी दोनों पक्षों के बीच में विवाद हुआ और उसमे स्पोंसर दोषी पाया गया, तो स्पोंसर पर बकाया राशि का डेढ़ गुना तक का जुर्माना लगाया जा सकता है. अगर स्पोंसर को एक लाख देना है, तो उसे दोषी सिद्ध होने के बाद डेढ़ लाख तक देना पड़ सकता है. वहीं अगर किसान जानबूझ कर इस कॉन्ट्रैक्ट को तोड़ता है, तो उसे केवल स्पोंसर की लागत को ही देने के लिए बाध्य किया जा सकता है.
  • अगर कभी विवाद हुआ तो विवाद को सुलझाने का वही तरीका है, जो हमने इस से पहले के कानून में देखा तो ऐसे में समस्या और समाधान वही रहेगा.
  • इसमें एक प्रावधान यह भी है कि सरकार एक मॉडल एग्रीमेँट जारी कर सकती है, जिसके तहत सभी एग्रीमेँट बनाएं जाएंगे. किसान का किसी भी तरह से एग्रीमेंट की जाल में फंसा कर उसका शोषण न हो उसके लिए सरकार को मॉडल एग्रीमेँट जारी करना चाहिए. जिसमें केवल किसान का नाम, स्पोंसर का नाम, फसल का नाम, फसल की मात्रा, फसल की कीमत और एडवांस पैसे लिखने की ही जगह खाली हो. केवल ऐसा ही एग्रीमेंट वैध माना जाएगा, इसके अलावा किसी अन्य एग्रीमेंट को वैध नहीं माना जाएगा.
  • किसान के साथ एग्रीमेँट करते समय कीमत को MSP Minimum Support Price न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ही तय किया जाएगा. MSP सरकार द्वारा निर्धारित किया जाता है और वह फसल के होने से पहले ही तय हो जाता है. अगर इस कानून में इस बात का उल्लेख नहीं है, तो सरकार को इस बात का उल्लेख कर देना चाहिए. यहाँ ध्यान रहे कि MSP गन्ना, चावल और गेहूँ के अलावा और 21 अनाजों पर ही मिलता है. फल फूल, दूध, दही, मछलीपालन मुर्गापालन सब्जियों पर लागु नहीं होता. परन्तु यह सभी कृषि कानून के अंतर्गत ही आते है.
3) आवश्यक वस्तुऍं (संशोधन) अधिनियम, 2020
    The Essential Commodities (Amendment) Act, 2020
यह 1955 में नेहरू द्वारा बनाया गया एक एक्ट है, जिसके तहत किसी भी अनिवार्य वस्तुओं का संग्रहण नहीं हो सकता है. यह नियम तब बनाया गया था, जब भारत में खुद के खाने भर का भी अनाज नहीं पैदा कर पाता था और हमें विदेशों से अनाज का आयात करवाना पड़ता था. ऐसे में बड़े बड़े व्यापारी अनाजों का संग्रह कर के कृतिम मांग जो पैदा कर देते थे और जब मांग की वजह से अनाजों के भाव आसमान छूने लगते थे, तब वो व्यापारी ऊँचे दामों पर उन अनाजों को बेच देते थे. इस कालाबाजारी को रोकने के लिए नेहरू ने 1955 में एक कानून बनाया था. मोदी सरकार ने इस एक्ट में संसोधन करते हुए व्यापारियों को अनाज संग्रह करने की छूट दे दिया है. क्योंकि अगर कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को बढ़ावा देना है तो कंपनियों को भण्डारण करने कि अनुमति को देना ही पड़ेगा. इसी वजह वजह से सरकार ने यह तर्क दिया है कि आज हम अपनी जरुरत से ज्यादा अनाज उगा रहे है, ऐसे में हम दबाव में क्यों रहे? अगर कोई उद्यमी कोई प्रयोग करना चाहता है, तो उसे क्यों छूट न दे?
  • इसमें यह भी लिखा है कि खाद्य वस्तुओं के भण्डारण को केवल युध्द, अकाल और किसी प्राकृतिक आपदा के समय में ही भण्डारण करने की अनुमति नहीं होगा.
  • परन्तु अगर अचानक से, किसी भी जरुरी खाद्य पदार्थ जो आसानी से खराब हो सकते है, उनके भाव में पिछले वर्षों के तुलना में 100% से ज्यादा भाव बढ़े है और जो खाद्य पदार्थ आसानी से खराब नहीं होते, उनका भाव पिछले वर्ष की तुलना में 50% की ज्यादा भाव बढ़ गया हो, तो ऐसे में भण्डारण करने की अनुमति नहीं होगा. इसमें भी फ़ूड प्रोसेसिंग के रोजाना की क्षमता के अनुसार भण्डारण करने की छूट रहेगी और ऐसे ही अगर किसी निर्यातक के पास अनाज भेजने का ऑर्डर है तो उसे उस ऑर्डर के हिसाब से भण्डारण करने की छूट है.
  • इसमें कृतिम रूप से भाव बढ़ने की समस्या उत्पन्न होने का खतरा है. हालाँकि यह इतना चिंता का विषय नहीं है क्योंकि आज हमारे अनाज उत्पादन की क्षमता हमारे जरुरत से ज्यादा है. परन्तु सरकार को बीच बीच में इसका मुल्यांकन करना चाहिए.
किसी भी बात का केवल विरोध करने के लिए ही विरोध करना ठीक नहीं है और किसी को केवल समर्थन देने के लिए समर्थन देना भी ठीक नहीं है. अगर इसमें कानून में समस्या है, तो उसे दूर कर के उसे बेहतर बना कर के लागु करना चाहिए. इस कानून में जो कुछ लिखा है वह उसमे से ज्यादातर बातों को महाराष्ट्र में कांग्रेस की सरकार ने विलास राव देशमुख के समय ही लागु कर चुकी है. ऐसे में आज केवल विपक्षी पार्टी होने के कारण ही विरोध करना ठीक नहीं है. अगर हमें दूसरे देशों से प्रतिस्पर्धा करना है, तो हमें थोड़ा प्रयोग तो करना ही पड़ेगा. साउथ कोरिया में अगर कोई सब्जी या अनाज 40 रुपये में बिकता है, तो किसान का उसका 32 रुपये मिलता है. परन्तु भारत में किसान को उसका केवल 6 से 7 रुपये ही मिलता है. अगर भारत के किसानों के जीवन स्तर को सुधारना है, तो ऐसे प्रयोग करने ही होंगे. यही मानना है ज्यादातर विशेषज्ञों का. इस कानून में कुछ सुधार की जरुरत है, सरकार उस सुधार को करे, परन्तु इस कानून को वापस न ले.

जय हिन्द
जय भारत

Comments

Popular posts from this blog

राजा पुरु और सिकंदर का युद्ध

भारत प्राचीन काल से ही अति समृद्ध देश रहा है. इसके साक्ष्य इतिहास में मिलते है. इसी वजह से भारत को सोने की चिड़ियाँ कहा जाता था. यह भारत की समृद्धि ही थी, जिसके वजह से विदेशी हमेशा से ही भारत की तरफ आकर्षित हुए है और भारत पर आक्रमण कर भारत को विजयी करने की कोशिश करते आए है. भारत पर आक्रमण करने वालों में सिकंदर (Alexander), हूण, तुर्क, मंगोल, मुगल, डच, पुर्तगाली, फ्रांसिसी और ब्रिटिश प्रमुख है. आज से हम भारत पर हुए सभी विदेशी आक्रमणों की चर्चा करेंगे. साथ ही साथ हम ऐसे महान राजा, महाराजा और वीरांगनाओं पर भी चर्चा करेंगे, जिन्होंने इन विदेशी आक्रांताओ के विरुद्ध या तो बहादुरी से युद्ध किया या फिर उन्हें पराजित कर वापस लौटने पर मजबूर कर दिया. यह केवल एक इसी लेख में लिख पाना संभव नहीं है. वजह से इसके मैं कई भागों में लिखूँगा. इस कड़ी के पहले भाग में हम बात करेंगे सिकंदर की, जिसे यूरोपीय और कुछ हमारे इतिहासकार महान की उपाधि देते है. हम इस बात पर भी चर्चा करेंगे कि क्या सिकंदर वास्तव में इतना महान था या फिर यूरोपीय इतिहासकारों ने सिकंदर के बारे में कुछ ज्यादा ही बढ़ा चढ़ा कर लिखा है? इसमें हम बह

भारत और वैदिक धर्म के रक्षक पुष्यमित्र शुंग

विदेशी आक्रांताओं के प्रथम कड़ी में हमने सिकंदर के भारत पर आक्रमण और राजा पुरु के साथ युद्ध के विषय में चर्चा किया था. विदेशी आक्रांताओं की द्वितीय कड़ी में हम ऐसे एक महान राजा के विषय में चर्चा करेंगे, जिसे एक षड़यंत्र कर इतिहास के पन्नों से मिटाने के लिए हर संभव प्रयत्न किया गया. कभी उसे बौद्ध धर्म का कट्टर विरोधी और बौद्ध भिक्षुकों का संहारक कहा गया, कभी उसे कट्टर वैदिक शासन को पुनः स्थापित करने वाला कहा गया. किन्तु वामपंथी इतिहासकारों ने कभी उस महान राजा को उचित का श्रेय दिया ही नहीं. क्योंकि वह एक ब्राम्हण राजा था. यही कारण है कि आज वह राजा, जिसे "भारत का रक्षक" का उपनाम दिया जाना चाहिए था, भारत के इतिहास के पन्नों से विलुप्त कर दिया गया है. हम बात कर रहे है पुष्यमित्र शुंग की, जिन्होंने भारत की रक्षा यवन (Indo Greek) आक्रमण से किया. सिकंदर (Alexander) के आक्रमण के बाद का भारत (मगध साम्राज्य) सिकंदर के भारत पर आक्रमण और राजा पुरु के साथ युद्ध के बाद आचार्य चाणक्य ने नंदवंश के अंतिम राजा धनानंद को राजगद्दी से पद्चुस्त कर चन्द्रगुप्त को मगध का राजा बनाया. यहीं से मगध में मौर्

1946: नओखलि नरसंहार

पिछले लेख में हमने डायरेक्ट एक्शन डे के बारे में देखा. डायरेक्ट एक्शन डे के दिन हुए नरसंहार की आग पुरे देश में फैल चुकी थी. सभी जगह से दंगों की और मारे काटे जाने की खबरें आ रही थी. इस डायरेक्ट एक्शन डे का परिणाम सामने चल कर बंगाल के नओखलि (आज बांग्लादेश में ) में देखने को मिला. यहाँ डायरेक्ट एक्शन डे के बाद से ही तनाव अत्याधिक बढ़ चूका था. 29 अगस्त, ईद-उल-फितर के दिन तनाव हिंसा में बदल गया. एक अफवाह फैल गई कि हिंदुओं ने हथियार जमा कर लिए हैं और वो आक्रमण करने वाले है. इसके बाद फेनी नदी में मछली पकड़ने गए हिंदू मछुआरों पर मुसलमानों ने घातक हथियारों से हमला कर दिया, जिसमें से एक की मौत हो गई और दो गंभीर रूप से घायल हो गए. चारुरिया के नौ हिंदू मछुआरों के एक दूसरे समूह पर घातक हथियारों से हमला किया गया. उनमें से सात को अस्पताल में भर्ती कराया गया. रामगंज थाने के अंतर्गत आने वाले बाबूपुर गाँव के एक कांग्रेसी के पुत्र देवी प्रसन्न गुहा की हत्या कर दी गई और उनके भाई और नौकर को बड़ी निर्दयता से मारा. उनके घर के सामने के कांग्रेस कार्यालय में आग लगा दिया. जमालपुर के पास मोनपुरा के चंद्र कुमार कर

1962: रेजांग ला का युद्ध

  1962 रेजांग ला का युद्ध भारतीय सेना के 13वी कुमाऊँ रेजिमेंट के चार्ली कंपनी के शौर्य, वीरता और बलिदान की गाथा है. एक मेजर शैतान सिंह भाटी और उनके साथ 120 जवान, 3000 (कही कही 5000 से 6000 भी बताया है. चीन कभी भी सही आंकड़े नहीं बताता) से ज्यादा चीनियों से सामने लड़े और ऐसे लड़े कि ना सिर्फ चीनियों को रोके रखा, बल्कि रेज़ांग ला में चीनियों को हरा कर वापस लौटने पर मजबूर कर दिया और इसके बाद चीन ने एक तरफ़ा युद्धविराम की घोषणा कर दिया.

कश्मीर की चुड़ैल और लंगड़ी रानी "दिद्दा"

भारत वर्ष का इतिहास विश्व के प्राचीनतम इतिहासों में से एक है. कल तक जो भारत के इतिहास को केवल 3000 वर्ष प्राचीन ही मानते थे, वो हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की संस्कृति के अवशेष मिलने के बाद अब इसे प्राचीनतम मानाने लगे है. पुरातत्व विभाग को अब उत्तर प्रदेश के सिनौली में मिले नए अवशेषों से यह सिद्ध होता है कि मोहनजोदड़ो के समान्तर में एक और सभ्यता भी उस समय अस्तित्व में था. यह सभ्यता योद्धाओं का था क्योंकि अवशेषों में ऐसे अवशेष मिले है, जो योद्धाओं के द्वारा ही उपयोग किया जाता था, जैसे तलवार रथ. इस खोज की एक विशेषता यह भी है कि यहाँ पर ऐसे भी अवशेष मिले है, जो नारी योद्धाओं के है. इस से यह अनुमान लगाया जा रहा है कि इस संस्कृति में नारी योद्धा भी रही होंगी. भारतीय संस्कृति और इतिहास में नारियों का विशेष स्थान रहा है. परन्तु हम आज झाँसी की रानी, रानी दुर्गावती और रानी अवन्तिबाई तक ही सिमित रह गए है. इनके अलावा और भी कई और महान योद्धा स्त्रियाँ हुई है भारत के इतिहास में. जैसे रानी अब्बक्का चौटा और कश्मीर की चुड़ैल रानी और लंगड़ी रानी के नाम से विख्यात रानी दिद्दा. आज हम कश्मीर की रानी दिद्दा के बारे म