15 अगस्त: हमें स्वतंत्रता की कितनी कद्र है? Skip to main content

15 अगस्त: हमें स्वतंत्रता की कितनी कद्र है?

15 अगस्त अर्थात स्वतंत्रता दिवस 2020 में हम अपना 74वां स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहे है. वैसे तो हमें यह स्वतंत्रता मिली है, जिसके बारे में मैं अपने इस से पहले के पोस्ट लिख चुका हूँ. आप चाहे तो पढ़ सकते है. अब मुद्दा यह नहीं है कि हमें स्वतंत्रता मिली है या हमने लिया है, अब मुद्दा यह है कि जब हम स्वतंत्र है तो हमें इस स्वतंत्रता की कितनी कद्र है? हम अपने इतने लम्बे समय की गुलामी से क्या सीखे है? क्योंकि स्वतंत्रता के कारण जो भी रहे हो, इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि इस स्वतंत्रता के लिए न जाने कितने लोगों ने अपने प्राणों को भारत माता के चरणों में हँसते हँसते समर्पित कर दिया था. कई तो ऐसी गुमनाम क्रांतिवीर है, जिनके बारे में हम जानते तक नहीं है. भगत सिंह, चंद्रशेखर 'आजाद' 'पंडित जी', सुखदेव, राजगुरु, भगवतीचन्द्र वोहरा, बटुकेश्वर दत्त, खुदीराम बोस, प्रफुल्ल चाकी और ऐसे न जाने कितने क्रांतिवीर थे, जो बहुत ही कम आयु में भारत के स्वतंत्रता संग्राम में न सिर्फ जुड़ गए, बल्कि ऐसे अकल्पनीय काम भी कर के गए कि इस उम्र में आज शायद ही कोई सोच सकता है. खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी को जब फाँसी पर लटकाया गया था, तब उनकी उम्र केवल 18-19 वर्ष की थी. गाँधी के द्वारा चलाये गए असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाले कई क्रांतिवीर केवल 13-14 वर्ष के बच्चे थे. ऐसे में उनकी त्याग को याद करना और उन्हें प्रणाम करना हमारा कर्त्तव्य है. उन सभी क्रांतिवीरों को प्रणाम करते हुए, हम आज के इस मुद्दे पर बात करते है कि "हमें अपनी स्वतंत्रता की कितनी कद्र है?"

हमें अपनी स्वतंत्रता की कितनी कद्र है?
अगर सीधे सीधे बात करें, तो कुछ लोगों को छोड़ कर के किसी को भी इस स्वतंत्रता की कोई कद्र नहीं है. क्योंकि हमें सिखाया ही नहीं गया है और न ही हम कभी अपने बच्चों सिखाते है और न ही बताते है. 'ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार और जोँनि जोँनि यस पापा बड़े शान से अपने बच्चों को पढ़ने और सीखाने वाले अभिभावक, कभी मेरा रंग दे बसंती चोला, झाँसी की रानी, वीर कुँवर सिंह पर लिखी कविता नहीं सुनाते. ऐसे में उस बच्चे को हमारे इस स्वतंत्रता दिवस की कोई कद्र कहाँ से और कैसे रहेगा? तो मोटा मोटी बात यह है कि आज के समय में यह स्वतंत्रता दिवस सिर्फ एक छुट्टी का दिन बन कर रह गया है, इस से ज्यादा कुछ नहीं. हो सकता है शायद यह बात किसी कोई बुरी लगे, पर सच यही है. छुट्टी मनाईये, यह भी जरुरी है, परन्तु इस देश के लिए भी आपका कुछ कर्त्तव्य है. उसे भी पूरा करें. एक दिन उन क्रांतिवीरों के नाम पर दें, जो आज भी  गुमनाम है. वो हर किसी से ज्यादा याद किए जाने के लायक है. "ऐसी क्या बात थी उस समय में कि देश का 13 वर्ष का बच्चा भी देश के नाम पर मरने मारने को तैयार हो गया था," यह जानने की कोशिश तो करें. कोशिश तो करें यह समझने कि जिन लोगों ने वाकई में देश के लिए अपना खून बहाया, उन लोगों ने कैसे भारत देश का सपना देखा था और आज हमने उनके सपने को कहाँ तक साकार कर पाए है? क्या हम उन से आंख मिलाने के लायक भी है या नहीं? कोई भी क्रान्तिवीर हो, सभी जातिवाद और धर्म के नाम पर बंटवारे के सख्त खिलाफ थे, परन्तु हम आज भी जाति और धर्म के नाम पर बँटे हुए है.
भगत सिंह ने जिस भारत का सपना देखा और अपने दूसरे क्रांतिवीर साथियों को दिखाया था, जिसके बाद उन्होंने अपनी पार्टी का नाम हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से बदल कर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन रख लिया था, कभी उनके सपने के भारत के बारे में भी बात कर लें. क्योंकि उन्होंने सिर्फ अपने देश की जनता को जगाने और उन तक अपनी बात को पहुंचाने के लिए हँसते हँसते फाँसी पर चढ़ गए थे. भगत सिंह ने उसी वक्त यही कह दिया था कि कांग्रेस जिस तरीके से आजादी को पाना चाहती है, साधारण जनता पर उसका कोई असर नहीं पड़ेगा. गोरे साहब चले जायेंगे और उनकी जगह कुछ भूरे साहब आकर बैठ जायेंगे. सत्ता कुछ लोगों के हाथ कि कठपुतली बन कर रह जाएगी. आने वाले समय में जात पात और धर्म के नाम पर वो आग लगेगी कि उसे बुझाते बुझाते हमारे आने वाली पीढ़ियों की कमर टूटू जाएगी. अमीर और अमीर हो जायेगा, गरीब और गरीब. परन्तु हमें वह भारत बनाना है, जहाँ इंसान इंसान पर जुल्म बर्दास्त न करें. सभी के बीच भाईचारा हो, समाज के गरीब और दबे कुचले वर्ग को अनदेखा न किया जाए.
परन्तु ऐसा कुछ भी नहीं हुआ .दिल्ली में बैंगलोर में हुए दंगे इस बात के उदहारण है. देश सेवा करने के लिए सेना में जाना ही एक तरीका नहीं है और भी कई तरीके है जिस से आप देश सेवा कर सकते है समाज आप से बना है आप इस समाज को बेहतर बनाए आप जातिवाद और छुआछूत को बढ़ावा न दे धर्म के नाम पर न बँटे अपने आसपास गंदगी न फैलाए कोई मनचला अगर किसी लड़की को छेड़ है तो उसका विरोध करें सिर्फ तमाशा न देखे भ्रष्टाचार को बढ़ावा न दें सड़क के नियमों का पालन करें देश की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा ऐसे सड़क हादसों के इलाज पर खर्च होता है राष्टीय प्रतीकों का सम्मान करें देश की सेना का सम्मान करें और जरूर पड़ने पर उनकी और उनके घर वालों की मदद करें अफवाह न फैलाए और न फैलने दें सिर्फ इतना ही करने से एक बहुत बड़ा बदलाव आप खुद महसूस करने लगेंगे थोड़ा समय जरूर लग सकता है.

मैंने एक और प्रश्न किया था कि हम अपने इतने लम्बे समय की गुलामी से क्या सीखे है? इसका एक शब्द में उत्तर है "कुछ नहीं!" इस पर ज्यादा बात नहीं करते. क्योंकि आप भी इसी भारत देश में रह रहे है. आप भी सब कुछ देख रहे है. आप से कुछ भी छुपा हुआ नहीं है. परन्तु यह सही नहीं है. इसे बदलने की जरुरत है और यह बदलाव सिर्फ हम और आप साथ मिलकर ला सकते है. अकेले तो कुछ नहीं हो पायेगा. साथ आना पड़ेगा, हाथ मिलाना पड़ेगा, जोर लगाना पड़ेगा. तभी इस देश की सूरत बदलेगी. अंत में बस आप सभी से निवेदन है कि कृपया स्वतंत्रता दिवस को सिर्फ छुट्टी का दिन न बनाए. थोड़ा खुद जाने, थोड़ा दूसरों को भी बताएं.

जय हिन्द
वन्देमातरम

#15August1947IndependenceDay
#SwatantrataDivas

Comments

Popular posts from this blog

राजा पुरु और सिकंदर का युद्ध

भारत प्राचीन काल से ही अति समृद्ध देश रहा है. इसके साक्ष्य इतिहास में मिलते है. इसी वजह से भारत को सोने की चिड़ियाँ कहा जाता था. यह भारत की समृद्धि ही थी, जिसके वजह से विदेशी हमेशा से ही भारत की तरफ आकर्षित हुए है और भारत पर आक्रमण कर भारत को विजयी करने की कोशिश करते आए है. भारत पर आक्रमण करने वालों में सिकंदर (Alexander), हूण, तुर्क, मंगोल, मुगल, डच, पुर्तगाली, फ्रांसिसी और ब्रिटिश प्रमुख है. आज से हम भारत पर हुए सभी विदेशी आक्रमणों की चर्चा करेंगे. साथ ही साथ हम ऐसे महान राजा, महाराजा और वीरांगनाओं पर भी चर्चा करेंगे, जिन्होंने इन विदेशी आक्रांताओ के विरुद्ध या तो बहादुरी से युद्ध किया या फिर उन्हें पराजित कर वापस लौटने पर मजबूर कर दिया. यह केवल एक इसी लेख में लिख पाना संभव नहीं है. वजह से इसके मैं कई भागों में लिखूँगा. इस कड़ी के पहले भाग में हम बात करेंगे सिकंदर की, जिसे यूरोपीय और कुछ हमारे इतिहासकार महान की उपाधि देते है. हम इस बात पर भी चर्चा करेंगे कि क्या सिकंदर वास्तव में इतना महान था या फिर यूरोपीय इतिहासकारों ने सिकंदर के बारे में कुछ ज्यादा ही बढ़ा चढ़ा कर लिखा है? इसमें हम बह

वरदराजन मुदालियर: मुंबई अंडरवर्ल्ड का पहला हिन्दू डॉन

मुंबई अंडरवर्ल्ड के पिछले भाग में हमने पढ़ा था,  करीम लाला  के बारे में, जिसने मुंबई अंडरवर्ल्ड को बनाया. आज हम बात करेंगे मुंबई अंडरवर्ल्ड के उस डॉन के बारे में, जिसे शायद सबसे काम आंका गया और इसी वजह से उसके बारे में ज्यादा बात नहीं होता. इसका शायद एक बड़ा कारण यही रहा है कि इस डॉन का दाऊद इब्राहिम से कोई खास लेना देना नहीं था. अंडरवर्ल्ड के उन्ही डॉन के बारे ज्यादा पढ़ा और लिखा जाता है, जिनका दाऊद इब्राहिम से कोई रिश्ता रहा हो. जैसे करीम लाला, जिसके पठान गैंग के साथ दाऊद इब्राहिम की दुश्मनी थी और हाजी मस्तान, जिसके गैंग में रह कर दाऊद ने सभी काम सीखा था. शायद यही कारण रहा है इस डॉन के उपेक्षित रहने का. हम बात कर रहे है मुंबई अंडरवर्ल्ड के पहले हिन्दू डॉन के बारे में, जिसका नाम है वरदराजन मुनिस्वामी मुदालियर. आइए देखते है  इसके बारे में. प्रारंभिक जीवन वरदराजन मुदालियर का जन्म मद्रास प्रेसिडेंसी के तूतीकोरन (आज का थूटुकुडी, तमिलनाडु) में 1 मार्च 1926 में हुआ था. उसका परिवार आर्थिक रूप से संपन्न नहीं था. तूतीकोरन में ही उसकी प्रारम्भिक शिक्षा हुआ. उसके बाद मुदालियर वही पर नौकरी करने लगा

भारत चीन विवाद के कारण

भारत और चीन के बीच का तनाव बढ़ते ही जा रहा है. 5 मई को धक्के मुक्की से शुरू हुआ यह सिलसिला 15 जून को खुनी झड़प तक पहुँच गया. चीन ने कायरता से भारतीय सैनिकों पर हमला कर दिया, जिसमें हमारे 20 वीर सिपाही वीरगति को प्राप्त हुए. उसके बाद जब भारतीय सैनिकों ने कार्यवाही किया तो उसमें चीन के कम से कम 40 से ज्यादा सैनिक मारे गए. हालाँकि चीन ने कभी इस बात को स्वीकार नहीं किया. उसके बाद अब स्थिति यहाँ तक पहुँच चुका है कि सीमा पर गोलीबारी भी शुरू हो चुका है. यह गोलीबारी 45 वर्षों के बाद हुआ है. आज हम यहाँ यह समझने की कोशिश करेंगे कि चीन आखिर बॉर्डर पर ऐसे अटका हुआ क्यों है? चीन भारत से चाहता क्या है? चीन के डर की वजह क्या है? भारत के साथ चीन का सीमा विवाद पुराना है, फिर यह अभी इतना आक्रामक क्यों हो गया है? इन सभी के पीछे कई कारण है. जिसमें से कुछ मुख्य कारण है और आज हम उसी पर चर्चा करेंगे. चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) One Road, One Belt. जिसमें पिले रंग से चिंहित मार्ग चीन का वर्तमान समुद्री मार्ग है . चीन का यह महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट 62 बिलियन डॉलर की लागत से बन रहा है. यह प्रोजेक्ट चीन के

गल्वान घाटी गतिरोध : भारत-चीन विवाद

  भारत और चीन के बीच में बहुत गहरे व्यापारिक रिश्ते होने के बावजूद भी इन दोनो देशों के बीच टकराव होते रहे है. 1962 और 1967 में हम चीन के साथ युद्ध भी कर चुके है. भारत चीन के साथ 3400 KM लम्बे सीमा को साँझा करता है. चीन कभी सिक्किम कभी अरुणाचल प्रदेश को विवादित बताता रहा है और अभी गल्वान घाटी और पैंगॉन्ग त्सो झील में विवाद बढ़ा है. पर फ़िलहाल चीन गल्वान घाटी को लेकर ज्यादा चिंतित है और उसकी चिंता भी बेकार नहीं है. दोनों सेना के उच्च अधिकारियो के बीच हुए, बातचीत में दोनों सेना पहले पीछे लौटने को तो तैयार हो गई. पर बाद में चीन ने गल्वान घाटी में भारत द्वारा किये जा रहे Strategic Road का निर्माण काम का विरोध किया और जब तक इसका निर्माण काम बंद न हो जाये तब तक पीछे हटने से मना कर दिया. भारत सरकार ने भी कड़ा निर्णय लेते हुए पुरे LAC (Line of Actual Control) पर Reserve Formation से अतिरिक्त सैनिको को तैनात कर दिया है. एक आंकड़े की माने तो भारत ने LAC पर 2,25,000 सैनिको को तैनात कर दिया है, जिसमे 

भारत और वैदिक धर्म के रक्षक पुष्यमित्र शुंग

विदेशी आक्रांताओं के प्रथम कड़ी में हमने सिकंदर के भारत पर आक्रमण और राजा पुरु के साथ युद्ध के विषय में चर्चा किया था. विदेशी आक्रांताओं की द्वितीय कड़ी में हम ऐसे एक महान राजा के विषय में चर्चा करेंगे, जिसे एक षड़यंत्र कर इतिहास के पन्नों से मिटाने के लिए हर संभव प्रयत्न किया गया. कभी उसे बौद्ध धर्म का कट्टर विरोधी और बौद्ध भिक्षुकों का संहारक कहा गया, कभी उसे कट्टर वैदिक शासन को पुनः स्थापित करने वाला कहा गया. किन्तु वामपंथी इतिहासकारों ने कभी उस महान राजा को उचित का श्रेय दिया ही नहीं. क्योंकि वह एक ब्राम्हण राजा था. यही कारण है कि आज वह राजा, जिसे "भारत का रक्षक" का उपनाम दिया जाना चाहिए था, भारत के इतिहास के पन्नों से विलुप्त कर दिया गया है. हम बात कर रहे है पुष्यमित्र शुंग की, जिन्होंने भारत की रक्षा यवन (Indo Greek) आक्रमण से किया. सिकंदर (Alexander) के आक्रमण के बाद का भारत (मगध साम्राज्य) सिकंदर के भारत पर आक्रमण और राजा पुरु के साथ युद्ध के बाद आचार्य चाणक्य ने नंदवंश के अंतिम राजा धनानंद को राजगद्दी से पद्चुस्त कर चन्द्रगुप्त को मगध का राजा बनाया. यहीं से मगध में मौर्