चीन एक तरफ बात करने को तैयार होता है बात करता है और पीछे हटने पर अपनी सहमति जताता है वही दूसरी तरफ पीछे हटने की जगह पुरे गलवान घाटी पर अपना अधिकार बता कर नया विवाद पैदा कर देता है. इतने वर्षो से चीन के साथ बात
और झड़प करते करते भारतीय सेना इतना तो समझ ही गई है कि चीन के कथनी और करनी में बहुत अंतर है. चीन की बात का भरोषा नहीं किया जा सकता. इसी वजह से भारतीय सेना न सिर्फ सीमा पर डँटी हुई है बल्कि सेना के अतिरिक्त बलों की तैनाती भी कर चुकी है. उधर चीन ने भी LAC पर अपने सेना के जवानो की तैनाती बढ़ा रहा है. मतलब चीन ने वापस से धोखा देने वाला काम किया है. चीन के इस धोखे से भारतीय सेना कैसे निपटना है वो अच्छे से जानती है.
आज हम जिस मुद्दे पर बात करेंगे वो है DSDBO रोड है क्या? यह भारत के लिए इतना क्यों जरुरी है? चीन को इस से क्या परेशानी है? भारत रूस से S-400 जल्द से जल्द क्यों चाहता है?
DSDBO रोड क्या है?
इसका पूरा नाम है, डरबुक श्योक दौलत बेग ओल्डी रोड. यह डरबुक को श्योक नदी होते हुए दौलत बेग ओल्डी से जोड़ता है.
इसकी पूरी लम्बाई 255 KM है. यह स्ट्रेटेजिक रोड मतलब हर मौसम तैयार रहने वाली सड़क है, जिस पर किसी भी मौसम का कोई असर नहीं होता है और इस पर सेना के भारी भड़कम ट्रक टैंक आसानी से आ जा सकते है. सड़क न होने की वजह से इस इलाको में सेना के ट्रक टैंक तो जाने दीजिए, खुद सेना का चलना भी मुश्किल होता है. सेना के लिए ऐसी सड़को की जरूरत को 90 के दशक में अटल बिहारी वाजपई के सरकार में रक्षामंत्री रहे जोर्ज फर्नॅंडीस ने सबसे पहले पहचाना और 61 स्ट्रेटेजिक सड़के बनाने को कहा. और लगभग इतने वर्षो के बाद अब सड़क 75 से 80% बन कर तैयार हुई है.
DSDBO रोड भारत के लिए इतना जरूरी क्यों है?
डरबुक श्योक दौलत बेग ओल्डी सड़क डरबुक से चलकर दौलत बेग ओल्डी तक पहुंचती है. दौलत बेग ओल्डी जो विश्व के सबसे ऊँचे हवाई पट्टियों में से एक है और यहाँ से LAC भी नजदीक है और काराकोरम दर्रा भी. जब यह सड़क पूरी तरह से बन कर तैयार हो जाएगी तो सियाचिन ग्लेशियर में स्थित आखरी पोस्ट तक भारतीय सेना की पहुँच बहुत आसान हो जाएगी और भारत इस गलवान घाटी में हमेशा चीन पर भारी पड़ेगा. चीन इस बात को अच्छे से समझता है. इस सड़क की एक और खासियत यह है कि ये सड़क LAC के सामानांतर चलती है. अभी बीआरओ ने इसी सड़क में से एक लिंक रोड रोड गलवान घाटी की तरफ खोल दिया है जो तत्कालीन LAC से सिर्फ 9KM की दुरी पर है. अब भारत की सेना कभी भी सिर्फ 35 मिनट में गलवान घाटी के LAC पर पहुँच सकती है और चीन के किसी भी दांव को उल्टा कर सकती है. यह सड़क दौलत बेग ओल्डी के हवाई पट्टी तक भी जाती है.
दौलत बेग ओल्डी हवाई पट्टी
इस हवाई पट्टी का निर्माण 1962 के युद्ध से पहले ही कर लिया गया था पर यह दुःखद था कि 1962: नेहरू चीन युद्ध में नेहरू ने वायुसेना का उपयोग नही किया, जबकि उस समय की भारतीय वायुसेना चीनी वायुसेना से काफी बेहतर थी. चीनी सेना ने इस पर कब्ज़ा भी करना चाहा था. पर मेजर शैतान सिंह ने अपने 124 जवानो के साथ रेजांग ला के युद्ध में चीनी सेना को रोके रखा था. इस युद्ध के बाद इस हवाई पट्टी को भुला दिया गया था. पर 2008 में एयर मार्शल प्रणब कुमार बारबोरा ने इसे वापस खोलने का सोचा. इस बारे में थोड़ी से जानकारी इकठ्ठा करने के बाद उन्हें समझ में आया कि इस से पहले भी इसे खोलने के लिए 5 बार फाइल बना कर अनुमति लेने की कोशिश की जा चुकी है. पर हर बार अनुमति न मिलने की वजह से वह बस एक फाइल बन कर रह जाती थी. ऐसे में एयर मार्शल एक और फाइल नहीं चाहते थे.
इस हवाई पट्टी को खोलना इस वजह से भी जरुरी था क्योंकि चीन ने LAC पर भरी संख्या में निर्माण कार्य पूरा कर चुका था और लगातार कर रहा था. एयर मार्शल ने बिना किसी लिखित अनुमति के आगे बढ़ने का सोचा. हवाई पट्टी का निरिक्षण किया गया, मौखिक रिपोर्ट आई और मौखिक रूप में ही इस पर काम आगे बढ़ा और 31 मई 2008 को यहाँ AN 32 को उतार कर इतिहास रचा गया. फिर 2013 में C-130 हरक्यूलस और 2019 में C-17 ग्लोबमास्टर को उतार कर न सिर्फ इतिहास रचा बल्कि चीन के होश उड़ा दिए. इसके अलावा भारतीय सेना ने सियाचिन में अपने ध्रुव, चीता और चेतक हेलीकाप्टर को उतार कर सियाचिन तक अपनी पहुँच बना चूका है और चीन के लिए यही सरदर्द बना हुआ है.
S-400 भारत के लिए महत्वपूर्ण क्यों है?
S 400 एक रूस का सतह से हवा में मार करने वाली रक्षा प्रणाली (Air Defense System) है. इसकी क्षमता 400KM की है. इसका मतलब यह है कि अगर इसे कही रख दिया जाये तो इसके 400KM तक के सीमा को हवा में उड़ने वाली किसी भी विमान को मार कर गिरा सकता है और यह एक साथ 36 निशाने को एक बार में मार कर गिरा सकता है. इसके जैसे रक्षा प्रणाली पुरे विश्व में किसी के भी पास नहीं है. भारत ने 2018 में रूस से 5, S 400 लेने का सौदा किया था जो 2021 के अंत तक भारत को मिलने वाला था. परन्तु भारत और चीन के साथ के मौजूद स्थिति को देखते हुए भारत इसे जल्द से जल्द चाहता है. क्योकि चीन ने रूस से 2014 में ही 2, S-400 का सौदा कर लिया था और 2018 में चीन को S-400 मिल चूका है. चीन ने नहीं सिर्फ S-400 के साथ अपना परिक्षण कर चूका है बल्कि 2019 में पाकिस्तान के साथ एक सैन्य अभ्यास शाहीन में पाकिस्तानी सेना को भी S-400 के बारे में बताया है. आज भारत से ज्यादा पाकिस्तान को S-400 के बारे में पता है. ऐसे में अगर चीन ने LAC पर S-400 को तैनात कर दिया तो भारत LAC तो दूर 300KM तक के अपने सीमा में भी कोई लड़ाकू विमान नही उड़ा पायेगा. कोई गलती नहीं किया है मैंने यहाँ 300KM लिख कर. चीन MTCR (Missile Technology Control Regime) समूह का सदस्य नहीं है. इसी वजह से रूस ने जो चीन को S-400 दिया है उसकी क्षमता 300KM ही है. पर 300KM भी कम नहीं है. भारत के पास खुद की रक्षा प्रणाली आकाश है जो एक साथ 64 लक्ष्य को मार कर गिरा सकता है. पर इसकी क्षमता एयर फाॅर्स के लिए निर्मित रक्षा प्रणाली में 60KM है. और आर्मी के लिए बने रक्षा प्रणाली 100KM तक की है जो एक साथ 40 लक्ष्य को मार कर गिरा सकता है.
भारत ने रूस से 21 मिग 29 और 12 Su-30Mki का भी सौदा हुआ है और S-400 के साथ साथ इन लड़ाकू विमानों को भी जल्द से जल्द भारत लाने के लिए रक्षामंत्री राजनाथ सिंह रूस के दौरे पर है. अच्छी बात यह है कि रूस ने भी S-400 जल्द देने के लिए सहमति जताई है. इसके साथ ही जुलाई महीने के अंत तक 36 में से 4 राफेल भी भारत में आ जाने की पूरी संभावना है. इन सभी लड़ाकू विमानों के भारत आ जाने से भारतीय वायुसेना के ताक़त में निश्चित रूप से बढ़ोतरी होगी. हालाँकि भारत और चीन की सीमा के बीच हिमालय की पहाड़ियाँ ही है जो काफी ऊँची है, तो वहाँ पर लड़ाकू विमान ज्यादा काम नहीं आएंगे, पर फिर भी ये लड़ाकू विमान भारत के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होंगे.
जय हिन्द
वन्देमातरम
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