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1921: मोपला नरसंहार

भारतीय इतिहास में कई ऐसी घटनाएँ हुई है, जिसे या तो गलत तरीके से हमारे सामने रखा गया है या फिर आधा ही पहलु सामने रखा गया है. ऐसी एक दो घटनाएँ नहीं हुई है भारतीय इतिहास में, बल्कि भारतीय इतिहास ऐसी घटनाओं से भरा पड़ा है. उन्ही में से एक है मोपला दंगे.
वैसे इसके लिए सही शब्द होगा मोपला नरसंहार. परंतु हमारे इतिहास में इसे मोपला विद्रोह के नाम से प्रसिद्ध है. केरला के मुस्लिम बहुल्य इलाके में हुए इस नरसंहार में हिन्दुओं को मोपला मुसलमानों के द्वारा निशाना बनाया गया था. मोपला मुसलमानों ने हजारों की संख्या में हिन्दुओं, जिसमें बच्चे, बूढ़े और औरतें भी थे, को निर्दयता से मौत के घाट उतार दिया था. हिन्दू औरतों का बलात्कार किया गया, हिन्दुओं की सम्पति को लुटा गया. इस तरह से यह नरसंहार हुआ था. आइए जानते है इसके बारे में.

पृष्टभूमि
1921 में हुए मोपला नरसंहार से पहले 1836 से 1921 के बीच कई छिटपुट घटनाएँ हुई थी. पर इसका इतिहास इस से थोड़ा सा और पुराना है. दरअसल टीपू सुल्तान ने जब मालाबार पर आक्रमण किया था, तब टीपू सुल्तान ने हिन्दुओं को इस्लाम काबुल करने के लिए मजबूर किया था. उसने साफ साफ कहा था कि या तो इस्लाम को अपना ले या उसकी तलवार को. ऐसे में जो भी इस्लाम को अपनाने से माना करता, टीपू सुल्तान उसका निर्दयता से हत्या करवा देता. उस समय टीपू सुल्तान के डर से हिन्दू वहाँ से भाग गए. उन हिन्दुओं में नायर और नम्बूदरी ब्राम्हण मुख्य थे. ये वही नम्बूदरी ब्राम्हण है जो मालाबार में जमींदार हुआ करते थे. उनके वहाँ से पलायन करने के बाद वहाँ के मोपला मुसलमानों ने उनके जमीन पर कब्जा कर लिया और उस पर अपना हक समझने लगे. परंतु जब टीपू सुल्तान को अंग्रेजो ने हराया, तब वहाँ पर हिन्दू भी आकर बसने लगे और अपने जमीनों को वापस लेने लगे. यह बात मोपला मुसलमानों को बिलकुल पसंद नहीं आई. इसी वजह से 1836 से 1921 के बीच दोनों समुदायों में कई बार झड़पें हो चुकी थी.

तत्कालीन कारण
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान तुर्की ने मित्र राष्ट्रों के विरुद्ध युद्ध किया था. प्रथम विश्व में हुए पराजय के बाद ब्रिटेन ने तुर्की का विभाजन कर दिया और तुर्की के राजा कमाल पाशा को पद्चुस्त कर दिया. पुरे विश्व के मुसलमान कमाल पाशा को अपना खलीफा मानते थे. इसी वजह से यह बात उन्हें अपनी धार्मिक आस्था पर हमला माना और अपने खलीफा एवम उसके राज्य को बचाना और तुर्की के विभाजन को रोकने को भारत में रहने वाले मुसलमानों ने अपना कर्त्तव्य माना. इसी के लिए उन सभी ने एक एक आंदोलन करने का सोचा और 17 अक्टूबर 1919 के खिलाफत दिवस माना कर अपने इस आंदोलन की शुरुआत की. इनकी मांगे थी,
  • मुसलमानों के पवित्र स्थानों पर तुर्की के सुल्तान कमाल पाशा का नियंत्रण रहे
  • कमाल पाशा के पास इतना भूभाग रहे जिस से वह इस्लाम की रक्षा कर सके 
  • जारीजात उल अरब अर्थात अरब, सीरिया, इराक तथा फिलिस्तीन मुसलमानों के ही अधीन रहे
इस प्रकार से यह आंदोलन पूरी तरह से धार्मिक था. जो मुसलमान अपने आस्था को बचाये रखने के लिए लड़ रहे थे.

गाँधी का इस आंदोलन से जुड़ना
23 नवंबर 1919 के दिन दिल्ली में अखिल भारतीय खिलाफत कॉन्फ्रेंस हुआ जिसके अध्यक्ष गाँधी थे. गाँधी ने खिलाफत आंदोलन का खूब प्रचार प्रसार किया था. इस तरह से गाँधी के जुड़ने से यह आंदोलन राष्ट्रव्यापी हो गया था. उसके बाद गाँधी ने इस आंदोलन से जुड़ने के लिए हिन्दुओं को भी प्रेरित करते हुए कहा कि खिलाफत आंदोलन मुसलमानों की गाय है. अर्थात गाय जिस प्रकार से हिन्दुओं के लिए पवित्र है, खिलाफत आंदोलन भी मुसलमानों के लिए उसी तरह से पवित्र है. गाँधी ने इसी आंदोलन के प्रचार प्रसार के समय मालाबार भी गए हुए थे. गाँधी ने हिन्दू मुसलमान एकता के लिए हिन्दुओं के लिए पाँच नियम बनाए,
  • हिन्दू गौ हत्या निषेध करने के लिए मुसलमानो पर दबाव नहीं डालेंगे.
  • हिन्दू हिंदी की जगह उर्दू या फ़ारसी भाषा सीखे
  • हिन्दु मस्जिद के सामने से जुलुस न निकाले
  • अगर मुसलमानो को आपत्ति हो तो हिन्दू पुजा पाठ या भजन ना करे
  • मुसलमानो के आक्रमण पर भी विरोध न करे और खुशी से खुद को उनके हवाले कर दे. प्रतिशोध की भावना मन में न लाए.
गाँधी हिन्दू मुस्लिम एकता के नाम पर अली बंधुओं को खुश करने के लिए बहुत कुछ कर रहे थे. जब कुछ राष्ट्रवादी कोंग्रेसियों ने इसका विरोध किया तो गाँधी ने यहाँ तक कह डाला, "जो खिलाफत का विरोधी है तो वह कोंग्रेस का भी शत्रु है।" अली बंधू खिलाफत आंदोलन के नेता था. आश्चर्य की बात तो यह थी कि गाँधी खिलाफत आंदोलन का प्रचार प्रसार जिस उत्साह से कर रहे थे, खुद उसी तुर्की की जनता वहाँ  के सुल्तान कमाल पाशा का विरोध कर रही थी.

मालाबार आंदोलन से मोपला नरसंहार तक
मालाबार में गाँधी एक बार आकर वहाँ के लोगों इस आंदोलन में शामिल होने का आग्रह कर के चले गए. परन्तु उनके होने के बाद मालाबार का नेतृत्व वहाँ के स्थानिक नेताओं के हाथ में आ गया, जिनमें मुख्य अली मुस्लीयर (जो धर्मगुरु भी थे), वरियमकुन्नथु कुंजाहम्मद हाजी और कुन्ही कादेर मुख्य थे. यहाँ से यह आंदोलन अब हिन्दुओं के नरसंहार की तरफ धीरे धीरे बढ़ने लगा. हिन्दुओं में पहले से ही टीपू सुल्तान के समय जो कुछ हुआ था वैसा कुछ होने का डर था, वही मोपला मुसलमान जमीन के मालिक की जगह वापस से मजदुर बन चुके थे. इसी बीच अंग्रेजों को तिरुरंगादि मस्जिद में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ कुछ शाजिश की सुचना मिला. उसी सुचना पर कार्यवाही करते हुए अंग्रेजों ने उस मस्जिद पर सैन्य कार्यवाही किया. उसके बाद वहाँ के नेता और धर्मगुरु अली मुस्लीयर को गिरफ्तार कर लिया. इस बात से वहाँ के मुसलमान क्रोधित हुए. साथ ही साथ वहाँ के मुसलमानों के बीच यह अफवाह भी फैल गई कि अंग्रेजों ने तिरुरंगादि मस्जिद को तोड़ दिया है. और यही से यह आंदोलन ने उग्र स्वरुप ले लिया. शुरुआत में तो यह जमींदारों हिन्दुओं तक सीमित था, पर जल्द ही यह नरसंहार आम हिन्दुओं को भी अपने जद में ले लिया.
उसके बाद जो हुआ उसके लिए शायद कोई भी नेता तैयार नहीं था और न ही इस बात की कल्पना किया था. मोपला मुसलमानों ने हिन्दुओं का भारी नरसंहार किया. यह नरसंहार काफी ही निर्दयता के साथ किया गया. बच्चों और बूढ़ों तक को मौत के घाट उतार दिया गया. हिन्दू औरतो के साथ बलात्कार हुए. हिन्दुओं की संपत्ति को लूट लिया गया. यह सब 6 महीनों तक चलता रहा. उसके बाद अंग्रेजों ने मोपला मुसलमानों के इस नरसहार जो बलपूर्वक दबाया. तब जाकर यह नरसंहार रुका.

परिणाम
मोपला नरसंहार में सरकारी आकड़ो के अनुसार 10,000 हिन्दू मारे गए. वही स्वतंत्रता सेनानी एनी बेसेंट ने कहा कि काम से 1,00,000 हिन्दू यह तो मारे गए है या विस्थापित हुए है. इसी नरसंहार के राष्टीय स्वयंसेवक संघ का गठन हुआ. वीर सावरकर ने पहली बार ट्व नेशन थियोरी के बार में कहा. इसके अलावा भी गाँधी पर सवाल उठे. क्योंकि गाँधी ने इस नरसंहार पर मौन धारण कर लिया. बाद जब बोले भी तो हिन्दुओं को आत्मा मंथन करने को कहा. हिन्दुओं को यह प्रश्न अपने आप से पूछना चाहिए कि यह नरसंहार क्यों हुआ? अन्य सभ लोगों के साथ साथ बाबा साहेब आंबेडकर ने इस नरसंहार को हिदुओ के खिलाफ जिहाद का संज्ञा दिया. खुद मुस्लिम नेता और गाँधी के मित्र मौलाना हसरत मोहनी ने भी माना कि यह जिहाद ही था. उन्होंने हिन्दुओं के इस नरसंहार को सही ठहराते हुए कहा कि, "यह इस्लामिक जिहाद था. और जिहाद के नियम के हिसाब से दुश्मनों का साथ देने वाला भी दुश्मन ही कहलाता है. इसी वजह से हिन्दुओं का नरसंहार किया गया."
परन्तु गाँधी ने यह सब सुनने के बाद भी मौलाना का विरोध नहीं किया. बल्कि मौलाना कि तारीफ करते हुए कहा कि, "मैं मौलाना को दोषी नहीं मानता हूँ. मौलाना ब्रिटिश सरकार को दुश्मन मानते है और वह ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लड़ते हुये कुछ भी करने को तैयार है. वह मोपला मुसलमानों के खिलाफ कहे बातों को सच नहीं मानते. इसी वजह से मौलाना को उनकी गलती दिख नहीं रही है. यह मौलाना की संकुचित विचारधारा है. मौलाना ने वही कहा जो कुछ उनके मन में था. मौलाना एक ईमानदार और हिम्मत वाले व्यक्ति है. उनके मन में हिन्दुओं के लिए कोई हीं विचार नहीं है." मौलाना के धर्म के प्रति कट्टर विचार को जानने के बाद भी गाँधी ने कहा कि, "मौलाना से बड़ा को देशभक्त और हिन्दू मुस्लिम एकता का हतैषी और कोई नहीं है. इस वजह से हिन्दुओं को इन नरसंहार कि वजह से अपना मन दूषित नहीं करना चाहिए."

बाबा साहेब के विचार
बाबा साहेब आंबेडकर ने 1940 में अपनी पुस्तक थॉट्स ऑन पाकिस्तान में लिखा कि, "असहयोग आंदोलन खिलाफत आंदोलन की वजह से शुरू किया गया था, स्वराज की वजह से नहीं. खिलाफतवादियों ने तुर्की की सहायता के लिए इसे शुरू किया और कांग्रेस ने उसे खिलाफतवादियों की सहायता के लिए अपनाया। उसका मूल उद्देश्य स्वराज्य नहीं, बल्कि खिलाफत था और स्वराज्य का गौण उद्देश्य बनाकर बाद में जोड़ दिया गया था, ताकि हिंदू भी उसमें भाग लें।’ सरकारी नौकरी छोड़ देना, सरकारी पढाई न करना, सरकारी कपड़ो की होली जलाना मतलब असहयोग आंदोलन से जुड़ी लगभग हर एक बात खिलाफत आंदोलन के लिए थी. 
गाँधी यही नहीं रुके. उन्होने आगे और कहा कि, "अगर कोई मुसलमान किसी हिन्दू को मारे, तो हिन्दू को उसका विरोध नहीं करना चाहिए, बल्कि हिन्दू को खुद को मुसलमान के आगे समर्पित कर देना चाहिए. अगर मुसलमान हिन्दुओं को मार कर अपना शासन स्थापित करते हैं, हिन्दू अपने जीवन का बलिदान देकर एक नई दुनिया में प्रवेश करेंगे." शायद यह बात सत्य भी हैं. तभी हजारों हिन्दुओं के नरसंहार के बाद भी खिलाफत और असहयोग आंदोलन चालू रखने वाले गाँधी ने उत्तर प्रदेश के चौरा चौरी में 22 पुलिस वालों के जिन्दा जला देने की खबर को सुनकर अपना आंदोलन वापस ले लिया.

केरला के मालाबार में हुए इस नरसंहार को मोपला वीरद्रोह के नाम से जाना जाता हैं और हमारे पद्य पुस्तकों में इसी ऐसे ही पढ़ाया जाता हैं कि "मालाबार में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह हुआ था, जो बाद में हिन्दू विरोधी बन गया." सबसे बड़े आश्चर्य की बात तो हैं कि हिन्दुओं का नरसंहार करने वाले उन सभी मोपला मुसलमानों को स्वतंत्र सेनानी कहा गया और भारत सरकार तथा राज्य सरकार कि तरफ से उन्हें पेंशन भी दिया जाने लगा. फिलहाल वरियमकुन्नथु कुंजाहम्मद हाजी को राष्ट्रवादी बता कर उन एक फिल्म बनाने की घोषणा की गई हैं. जिसके निर्देशक हैं आशिक अबू और मुख्य भूमिका में हैं अभिनेता पृथ्वीराज सुकुमारन. हमें हमारे इतिहास पर गहन शोध करने के बाद उसे फिर से लिखने की जरुरत हैं, जिस से हमारे देश के बच्चे और युवा हमारे इतिहास को जान सके और उस से कुछ सीख ले सके. वरना हमारे कुछ इतिहासकार इन तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर सामने रखते हैं. जाते जाते मैं आपको एक मेरी ही लिखी हुई कविता के साथ छोड़े जाता हूँ.

वो टुकड़े टुकड़े में तोड़ेंगे, वो हर एक सच को मोड़ेंगे.
वो दिन कभी नहीं आएगा, जब वो गद्दारी को छोड़ोगे.
भारत माँ है तो लाचार है, पर तुम भी उसके बेटे हो.
अगर आस्तीन के सांप है वो, फिर तुम क्यों चुप बैठे हो?

क्यों उखाड़ फेकते तुम नहीं, जड़ से इस गद्दारी के पौधे को?
क्यों मिटा देते हो तुम नहीं, जो उजाड़े है इस घरोंधे को?
या रौंध दो या चुप हो जाओ, देश के दुश्मन इन शैतानो को?
या जन्म लेना पड़ेगा फिर से, देश पर मर मिटे हुए जवानो को?

अर्जुन था कर्तव्यविमूढ़ हुआ, 
धर्म क्षेत्र कुरुक्षेत्र के मैदान में.
याद करो क्या कहा था कृष्ण ने, तब अपने गीता के ज्ञान में.
है क्षमा का मूल्य तभी तक, जब कोई भूल करे अज्ञान में.
पर उसे मिटाना धर्म ही है, जो भूल करे अभिमान में.

धमनी का लहू पानी हुआ, या कमी आ गई बलिदान मे?
या कायर पैदा होने लगे है, अब वीरो के भी संतान में?
वरना क्यों चुप हो तुम बोलो, भारत देश के अपमान में?
क्या जरूरत है गद्दारो का, इस भारत देश महान में?

जय हिन्द
वन्देमातरम


यह भी पढ़ें:- 1946: नओखलि नरसंहार16 अगस्त 1946: डायरेक्ट एक्शन डे1987: मेरठ दंगा जिसने अयोध्या विवाद के नीव को रखा

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