16 अगस्त 1946: डायरेक्ट एक्शन डे Skip to main content

16 अगस्त 1946: डायरेक्ट एक्शन डे

भारत देश की स्वतंत्रता कुछ अंतर्राष्टीय घटनाओं की देन है. अन्यथा यह बात तो तय था कि अगर द्वितीय विश्व युद्ध नहीं हुआ होता और द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटेन को आर्थिक और सैन्य क्षति नहीं पहुँचा होता, तो कम से कम भारत 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र नहीं हुआ होता. इसी वजह से मैंने अपने पिछले लेख "15 अगस्त: देश का 74वां स्वतंत्रता दिवस" में लिखा था कि भारत देश को स्वतंत्रता मिला है, हमने छीन कर नहीं लिया. जब ब्रिटेन द्वितीय विश्व युद्ध में व्यस्त था तभी अगर हम भारत देश में भी विद्रोह कर देते तो स्वतंत्रता की तारीख जरूर बदल जाता. परंतु 1942 में हुए भारत छोड़ो आंदोलन के बाद ऐसा कोई भी आंदोलन नहीं हुआ. बल्कि 1942 से 1947 तक भारत से अलग देश पाकिस्तान बनाने के लिए मुस्लिम लीग ने हिंसा की ऐसी आग भड़काई, जो देश के बँटवारे के समय तक चलती रही. देश के बँटवारे से पहले ऐसे ही दो मुख्य नरसंहार हुए थे जिसमें हजारों लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था. बंगाल में हुए इन दोनों नरसंहार में मृत लोगों के मृत शरीर बंगाल की गलियों में ऐसे ही पड़े थे और गिद्ध उन्हें नोंच नोंच कर खा रहे थे. 1946 में हुए नरसंहार को डायरेक्ट एक्शन डे के नाम से जाना जाता है और उसी के बाद एक और नरसंहार हुआ था जिसमें केवल हिन्दुओं का ही नरसंहार हुआ था, जिसे नओखलि नरसंहार के नाम से जानते है. आज हम "डायरेक्ट एक्शन डे" के बारे में बात करेंगे.

पृष्ठभूमि
विभाजन का बीज तो मुस्लिम लीग के जन्म से ही पड़ गया था. कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच 1916 में हुए समझौते ने उस पर मोहर लगा दिया. पहले तो मुस्लिम लीग ने मुस्लमानों के लिए रचनात्मक कार्य करने की बात कहा था. परंतु 1935 में गवर्नमेंट ऑफ इंडिया पैक्ट के आने के बाद जब चुनाव हुए, तब बंगाल को छोड़ मुस्लिम लीग कही भी बहुमत नहीं जुटा सकी. यही से जिन्ना ने पाकिस्तान से कम कुछ भी स्वीकार नहीं का राग अलापना शुरू कर दिया. 1942 में जब क्रिप्स मिशन भारत आया था, तब भी जिन्ना ने पाकिस्तान की माँग को रखा. लॉर्ड वॉवेल ने भी जब कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया, तब भी जिन्ना ने यह कह कर विरोध किया कि आप मुसलमानों को दबा रहे है. उसके बाद जिन्ना ने जुलाई 1946 में मुंबई (उस समय बॉम्बे) के अपने घर से प्रेस कांफ्रेंस किया और 16 अगस्त 1946 के दिन कलकत्ता में अपनी शक्ति प्रदर्शन करने और पाकिस्तान के लिए कुछ भी करने की बात कही. पाकिस्तान के लिए सीधा कार्यवाही करने की बात को कहा. यही "डायरेक्ट एक्शन डे" के नाम से जाना गया.
बंगाल में सुहरावर्दी प्रधानमंत्री थे. 24 पुलिस चौकी में से 22 पुलिस चौकी पर सुहरावर्दी ने मुस्लिम को थानाध्यक्ष बना दिया और 16 अगस्त के दिन उन सभी को एक दिन की छुट्टी दे दिया, जबकि एक महीने पहले से ही डायरेक्ट एक्शन डे का दिन तय हो चूका था. स्टार ऑफ इंडिया नमक अखबार ने डायरेक्ट एक्शन डे का पूरा कार्यक्रम छापा था.

 डायरेक्ट एक्शन डे

बंगाल में कलकत्ता को भी चुनने का एक प्रमुख कारण यह था कि मुस्लिम बाहुल्य वाले बंगाल में, कलकत्ता में हिन्दुओं की संख्या ज्यादा थी, जिनमें राजाबाजार, केलाबगान,  कॉलेज स्ट्रीट, हैरिसन रोड और  बुर्राबाजार शामिल थे. यही इलाके सबसे ज्यादा प्रभावित भी हुए थे. तय कार्यक्रम के अनुसार मुस्लिम अलग अलग इलाके जैसे हावड़ा, हुगली, मेटिआबुर्ज़ और 24 परगनास में सुबह से ही इकठ्ठा होने लगे थे और करीब 12 बजे वह सभी ओचटरलोनी मोन्यूमेंट (शहीद मीनार) पर पहुँचे. वहाँ पर इतनी संख्या में भीड़ जमा हो गई कि वह बंगाल की सबसे बड़ी रैलियों में से एक है. अंदाजन वहाँ एक लाख लोग जमा हुए थे. मुस्लिम लीग ने सभी मस्जिदों पर अपने 3 से 4 आदमी तैनात कर रखे थे, जिन्होंने भड़काऊ भाषण देना शुरू किया था मुसलमानों को हिन्दुओं के खिलाफ भड़काया गया. ख्वाजा निजामुद्दीन और सुहरावर्दी ने भी मुसलमानों को खूब भड़काया. उसके बाद ट्रक भर भर कर उस भीड़ को हथियार दिया गया. जिसमें तलवार, लाठी, लोहे के रोड बंदूक इत्यादि शामिल थे. सुबह से ही झगड़ों की छिटपुट घटनाएँ हो रही थी. सभी दुकानों को जबरदस्ती बंद करवा दिया गया था. उसके बाद वहाँ से मुसलमानों को छोड़ दिया गया हिन्दुओं का नरसंहार करने के लिए. सुहरावर्दी खुद पुलिस मुख्यालय में थे और सभी पुलिसवालों को कोई भी कार्यवाही करने से रोक रहे थे, जिस से एक बात साफ हो गया था कि अब उस हथियार के साथ खड़ी भीड़ को कोई भी रोकने वाला नहीं था. मुसलमान जो भी हिन्दू सामने मिलता, उसका निर्दयता से हत्या कर देते. इसे एक छोटे से उदहारण से समझे. केशोराम कॉटन मिल में करीब 500 उड़िया मजदुर थे, इन सभी को एक ही दिन में मौत के घाट उतार दिया गया. हिन्दुओं का नरसंहार अगले पाँच दिनों तक चलता रहा. उसके बाद 24 अगस्त 1946 को वाइसराय रूल लगा दिया गया. परन्तु तब तक बहुत देर हो चूका था. कलकत्ता की हर गली क्षत विक्षत लाशों से भरी पड़ी थी, जिन्हें गिद्ध नोच नोच कर खा रहे थे. सरकारी आँकड़ो की माने तो करीब 3000 लोग इस नरसंहार में मारे गए थे. परंतु इसके लिए गठित जाँचदल, जिसे जाँच करने नहीं दिया गया, ने माना की यह आँकड़ा सरकारी आँकड़ो से कही ज्यादा है. इस नरसंहार की आग यही तक नहीं रुका, बल्कि धीरे धीरे पुरे देश में फैलने लगा. इसी का परिणाम था नओखलि नरसंहार और बँटवारे के समय हुआ मार काट.

इस नरसंहार ने कांग्रेस के नेताओं को एक अलग मुस्लिम देश की जरुरत को समझा दिया था. वह समझ गए थे कि अब पाकिस्तान बनाने के अलावा और कोई दूसरा रास्ता नहीं है. भगत सिंह ने पहले ही कहा था कि कांग्रेस जिन तरीकों से आजादी लेना चाहती है, उससे आने वाली पीढ़ी दंगे की आग में जलती रहेगी और वही हुआ भी. पाकिस्तान बनने से लेकर और बनने के बाद भी इसके आग में हजारों ज़िंदगियाँ जल कर खाक हो गई.

Note:
दोस्तों, मैंने यह ब्लॉग इतिहास के कुछ आधे अधूरे सच और कुछ भूले बिसरे ऐतिहासिक प्रसंगों के बारे में बताने के लिए लिखना शुरू किया है. मुझे आपके साथ की जरुरत है. आप सभी मेरे साथ जुड़े और अपने दोस्तों को भी जुड़ने को कहें. इस ब्लॉग को पढ़े और अपने दोस्तों के साथ शेयर करे. कॉपी पेस्ट कर के न भेजे. आज के इतिहासकारों ने हम सभी से वास्तविक इतिहास को छुपा कर रखा है. इतिहास के नाम पर वह सभी केवल अपना एजेंडा चला रहे. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि हमें परवाह नहीं है और हम पढ़ते नहीं है. दोस्तों यहाँ बदलाव की जरुरत है और वह बदलाव हम सब मिल कर ही ला सकते है. इसी वजह दे कह रहा हूँ संगठित रहे, एक रहे. 
जय हिन्द
वंदेमातरम

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