1946: नओखलि नरसंहार Skip to main content

1946: नओखलि नरसंहार

पिछले लेख में हमने डायरेक्ट एक्शन डे के बारे में देखा. डायरेक्ट एक्शन डे के दिन हुए नरसंहार की आग पुरे देश में फैल चुकी थी. सभी जगह से दंगों की और मारे काटे जाने की खबरें आ रही थी. इस डायरेक्ट एक्शन डे का परिणाम सामने चल कर बंगाल के नओखलि (आज बांग्लादेश में ) में देखने को मिला. यहाँ डायरेक्ट एक्शन डे के बाद से ही तनाव अत्याधिक बढ़ चूका था. 29 अगस्त, ईद-उल-फितर के दिन तनाव हिंसा में बदल गया.
एक अफवाह फैल गई कि हिंदुओं ने हथियार जमा कर लिए हैं और वो आक्रमण करने वाले है. इसके बाद फेनी नदी में मछली पकड़ने गए हिंदू मछुआरों पर मुसलमानों ने घातक हथियारों से हमला कर दिया, जिसमें से एक की मौत हो गई और दो गंभीर रूप से घायल हो गए. चारुरिया के नौ हिंदू मछुआरों के एक दूसरे समूह पर घातक हथियारों से हमला किया गया. उनमें से सात को अस्पताल में भर्ती कराया गया. रामगंज थाने के अंतर्गत आने वाले बाबूपुर गाँव के एक कांग्रेसी के पुत्र देवी प्रसन्न गुहा की हत्या कर दी गई और उनके भाई और नौकर को बड़ी निर्दयता से मारा. उनके घर के सामने के कांग्रेस कार्यालय में आग लगा दिया. जमालपुर के पास मोनपुरा के चंद्र कुमार कर्माकर की हत्या कर दी गई. जामिनी डे, जो एक होटल में काम करती थी, उसे घोषबाग के पास मौत के घाट उतार दिया गया. आशु सेन को ताजमहिरहाट में बुरी तरह से पीटा गया. बांसपारा के राजकुमार चौधरी जब अपने घर जा रहे थे, तब उन पर रास्ते में बहुत गंभीर हमला किया गया था.
कनूर चार के छह या सात हिंदू परिवारों की सारी संपत्ति लूट ली गई. करपारा में, घातक हथियारधारी मुसलमानों ने जादव मजूमदार के घर में घुस गए और उनकी सम्पति को लूट लिया. तातारखिल के प्रसन्न मोहन चक्रवर्ती, मिरालीपुर के नबीन चंद्र नाथ और लतीपुर के राधा चरण नाथ के घरों को लूट लिया गया. राधा चरण नाथ के परिवार के पांच सदस्य घायल हो गए.
रायपुर के हरेंद्र घोष के परिवार के कुल देवता के मंदिर को उजाड़ दिया गया और एक बछड़े को काट कर मंदिर के अंदर फेंक दिया गया. चांदीपुर के डॉ जदुनाथ मजुमदार के शिव मंदिर को इसी तरह से तोड़ दिया गया. नगेंद्र मजुमदार और दादपुर के राजकुमार चौधरी के घर के मंदिरों को उजाड़ दिया गया और मूर्तियों को चुरा लिया गया. केथुरी के ईश्वर चंद्र पाठक, मरकच्चार के केदारेश्वर चक्रवर्ती, अंगारपारा के अनंत कुमार डे और तातारखिल के प्रसन्न मोहन चक्रवर्ती के यहाँ की माँ दुर्गा की प्रतिमाएं तोड़ी गईं.

गुलाम सरवर हुस्सैनी और नरसंहार
यहाँ तक तो फिर भी ज्यादा कुछ खास घटनाएँ नहीं हो रही थी क्योंकि बाद में जो हुआ, उसके सामने तो यह कुछ भी नहीं है परंतु, गुलाम सरवर हुस्सैनी के भड़काऊ भाषणों के बाद स्थित बद से बदतर हो गई गुलाम सरवर हुस्सैनी कट्टर नहीं, बल्कि अत्याधिक से भी अत्याधिक कट्टर मुस्लमान था अगर ऐसा कहे की नओखलि नरसंहार का जिम्मेदार यही गुलाम सरवर है, तो कुछ गलत नहीं होगा इसी के भड़काने पर पहले से ही हिन्दुओं की दुकानों का बहिष्कार चल रहा रहा कुछ जगहों पर मुसलमान नाविकों ने हिन्दुओं को अपनी नाव में बैठाने से मना कर दिया ऐसे ही लगभग हर एक जगह की स्थिती तनाव और छिटपुट घटनाएँ चल रही थी.

दंगों की शुरुआत 10 अक्टूबर को हुआ दिन था. कोजागरी लक्ष्मी पूजा का इस दिन बंगाली हिंदू पूजा की गतिविधियों में शामिल थे. गुलाम सरवर ने मुस्लिम जनता को सहार बाजार की तरफ मार्च करने का निर्देश दिया. मुस्लिम लीग के एक और नेता कासिम भी अपनी निजी सेना के साथ साहपुर बाजार में पहुंचे गए, जिसे तब कसमेर फौज के नाम से जाना जाता था. उसके बाद कासिम की सेना ने नारायणपुर से सुरेंद्रनाथ बसु के जमीनदारी कार्यालय तक मार्च किया. कल्याणनगर से अन्य मुस्लिम भीड़ भी उनके साथ जुड़ गए. वहाँ कुछ किराए के मुस्लिम दंगाई भी भीड़ में शामिल हो गए और जमीनदारी कार्यालय पर हमला कर दिया.
11 अक्टूबर के दिन गुलाम सरवर की निजी सेना, जिसे मियार फौज के नाम से जाना जाता था, ने राजेंद्रलाल रॉयचौधरी के निवास पर हमला कर दिया. राजेंद्रलाल नोआखली बार एसोसिएशन और नोआखली जिला हिंदू महासभा के अध्यक्ष थे. उनके घर पर उस समय भारत सेवाश्रम संघ के स्वामी त्र्यंबकानंद एक अतिथि के रूप में रह रहे थे. मुसलमानों की भीड़ को रॉयचौधरी ने दिन भर अपनी राइफल से भीड़ को रोके रखा. रात में जब वह भीड़ पीछे हट गई, तो उन्होंने स्वामी और उनके परिवार के सदस्यों को उसकी सुरक्षा के लिए वहाँ से भेज दिया. अगले दिन मुसलमानों की भीड़ ने फिर से हमला किया और राजेंद्रलाल रॉयचौधरी के सर को काट कर गुलाम सरवर के सामने एक थाल में पेश किया गया और उनकी दो बेटियों को उनके दो विश्वस्त जनरलों को बलात्कार करने के लिए दे दिया गया. उसके बाद रॉयचौधरी की लाश को अजीमपुर के दलदल में फिकवा दिया.
मैंने ऊपर जो कुछ बताया वो इस नरसंहार का एक हिस्सा भर था. नओखलि में हिन्दुओं को वीभत्य रूप से मारना, उनकी औरतों का बलात्कार और हिन्दुओं का बलपूर्वक धर्मांतरण देश की आजादी के समय तक चलता रहा था. गुलाम सरवर का मूल उद्देश्य था, "नओखलि में से हिन्दुओं का सफाया करना" और वह उसमे कामयाब भी रहा. नओखलि में से हिन्दुओं का सफाया कर दिया गया. यहाँ एक बात बताना जरुरी समझता हूँ कि कुछ ऐसे मुसलमान थे, जो हिन्दुओं की मदद कर रहे थे. परंतु मुसलमानों की भीड़ द्वारा उन मुसलमानों की भी हत्या कर दी गई. जिसका उद्देश्य एक साफ संदेश देना था कि हिन्दू मर रहे है, तो मरने दो और चुप चाप देखो. अगर मदद करने की कोशिश करोगे, तो तुम भी मारे जाओगे.

गाँधी ने नओखलि जाकर इस नरसंहार को रोकने का प्रयास किया था. पैदल कई गाँवों में यात्रा भी किया. परंतु मुसलमान, गाँधी के रास्ते में काँटे और हड्डियाँ फेक देते थे. मुसलमानों ने गाँधी का अपमान करने में कोई कसर नहीं छोड़ा था. जिस गाँधी ने हिन्दू मुस्लिम एकता के लिए मोपला नरसंहार में हिन्दुओं का कट जाना बर्दास्त कर लिया और उल्टा हिन्दुओं को ही आत्मचिंतन करने को कह दिया था, आज उसी गाँधी को वही मुसलमान अपमानित कर रहे थे. परंतु गाँधी वहाँ से नहीं गए. उसके बाद मुस्लिम लीग के नेताओं के बार बार कहने की वजह से गाँधी वहाँ से जाने को तैयार हुए. परन्तु नोआखली के लोगों से यह वादा किया था कि वह वापस जरूर आएँगे. गाँधी अपना यह वादा पूरा नहीं कर पाए. गाँधी जहाँ जाते, वहाँ ऐसे नरसंहारो के बारे में ही सुनने को मिलता. पुरे देश में हो रहे हिन्दुओं के ऐसे नरसंहार के लिए नाथूराम गोडसे ने गाँधी को जिम्मेदार माना. क्योंकि गाँधी की अहिंसा का शिक्षा केवल हिन्दुओं के लिए ही था. इसी वजह से नाथूराम गोडसे ने गाँधी की हत्या कर दिया. आधिकारिक आँकड़ो की माने तो 5000 हिन्दुओं को मार दिया गया था. परंतु यह संख्या बहुत ही ज्यादा थी.
डायरेक्ट एक्शन डे से शुरू हुआ यह नरसंहार देश के विभाजन तक चलता रहा. जिसमे हजारों लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया. हजारों औरतों का बलात्कार हुआ. इसमें दोनों तरफ के लोग थे. हिन्दुओं के ऐसे हो रहे नरसंहार की वजह से बाद में हिन्दू भी मुसलमानों को मारने काटने लगे थे. इस नरसंहार में सबसे बड़े आश्चर्य की बात यह है कि जिन मुसलमानों ने इतनी निर्दयता से हिन्दुओं का संहार किया था, वो 50 वर्ष पहले ही धर्मांतरण करके के मुसलमान बने थे! उस से पहले वो सभी हिन्दू ही थे. केवल 50 वर्षों में ही उन में इतनी ज्यादा कट्टरता आ गया था.
कहते है कि आदमी जो करता है उसे यही भुगतना पड़ता है. यही बात देश पर भी लागु होती है. क्योंकि देश भी लोगों से ही मिल कर बना होता है. 1946 में बंगाल में मुसलमानों ने जिस निर्दयता से हिन्दुओं का संहार किया था, उन लोगों का संहार उस से भी ज्यादा निर्दयता से पाकिस्तान की सेना ने 1971 में किया था और पूर्वी पाकिस्तान को पाकिस्तान के आतंक से बचाने वाला भारत ही था. भारत की मदद से ही पूर्वी पाकिस्तान 1971 में बांग्लादेश बन पाया था. इसी वजह से दोस्तों इंसान को अपने कर्म बहुत सोच समझ कर करना चाहिए.

जय हिन्द
वंदेमातरम

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