भारतीय सैनिक वीरता, साहस, पराक्रम, जोश, देशप्रेम और बलिदान के प्रतिक माने जाते है. भारत देश के सैनिक युद्ध के मैदान में दुश्मनों के लिए काल बन जाते है, वही सैनिक जब भारत देश में कोई प्राकृतिक आपदा आई हो तो देशवासियों के लिए संजीवनी बूटी लाने वाले हनुमान बन जाते हैं. भारतीय सेना के जवानों के किस्से बड़े ही रोचक होते हैं और हमेशा हम सबको आश्चर्यचकित कर देते हैं, फिर चाहे वह युद्ध के मैदान की बात हो या फिर बचाव कार्यों की. ऐसे ही भारतीय सेना में और शायद विश्व के किसी भी देश के सेना में ऐसा शायद ही हुआ होगा, जब कोई सैनिक अपनी मृत्यु के बाद भी सीमा पर अपना कर्त्तव्य निभा रहा हो और इस बात को दुश्मन देश की सेना भी मानती हो और उनका सम्मान करती हो. भारतीय सेना के इतिहास में ऐसे दो अकल्पनीय सैनिकों के किस्से मशहूर हैं: पहला जसवंत सिंह रावत और दूसरे हैं बाबा हरभजन सिंह. आज हम बाबा हरभजन सिंह के बारे में ही बात करेंगे.
प्रारंभिक जीवन
हरभजन सिंह का जन्म 30 अगस्त 1946 को पाकिस्तान के गुजरांवाला के सदराना गाँव में हुआ था. जब भारत पाकिस्तान का बँटवारा हुआ था तब उनका परिवार भारत वापस आ गया. हरभजन सिंह में देशप्रेम कूट कूट का भरा था. लगभग 20 वर्ष की आयु में ही हरभजन सिंह भारतीय सेना में भर्ती हो गए और 9 फरवरी 1966 में भारतीय सेना के पंजाब रेजिमेंट का बतौर सिपाही हिस्सा बने. उसके बाद उन्हें सिक्किम में भारत चीन की सीमा पर तैनात कर दिया गया. 2 वर्ष के बाद ही 1968 में ही एक दुर्घटना का शिकार हो गए. दरअसल एक दिन वो खच्चर पर बैठ कर नदी पर कर रहे थे, तो नदी के बहाव में बह गए और उनकी उसी वक्त मृत्यु हो गई. पर नदी के बहाव के साथ उनका शव बह कर 2KM दूर निकल गया. जब तीन दिन तक सिपाही हरभजन सिंह वापस नहीं आए तो भारतीय सेना के ऊपरी अधिकारियों ने उन्हें भगोड़ा घोषित कर दिया. पर उसी रात सिपाही हरभजन सिंह अपने एक साथी के सपने में आए और अपने शव का स्थान बताया. अगले दिन सुबह हरभजन सिंह का शव ठीक उसी जगह मिला जैसा हरभजन सिंह में अपने साथी के सपने में बताया था.
सिपाही हरभजन सिंह से "बाबा हरभजन सिंह"
यह तो हरभजन सिंह के चमत्कारों की शुरुआत भर थी. धीरे धीरे इनके चमत्कार बढ़ते गए. जैसे सीमा पर रात में पहरा देते देखे जाना, चीनी सैनिकों के गतिविधियों के बारे में सपने में भारतीय सैनिकों को आगाह कर देना और अगर रात में सीमा पर पहरा देते कोई सैनिक सो गया तो उसके एक थप्पड़ मार कर जगा देना. इस सब के बाद भारतीय सैनिकों की हरभजन सिंह में श्रद्धा बढ़ती गई और ऐसे सिपाही हरभजन सिंह "बाबा हरभजन सिंह" बन गए. बाद में बाबा हरभजन सिंह ने खुद का मंदिर बनवाने की इच्छा जताई और 1982 में भारतीय सेना ने उनके बंकर को एक मंदिर की शक्ल दे दिया. परंतु बाद में साधारण नागरिकों की बाबा हरभजन सिंह में बढ़ते हुए श्रद्धा को को देखते हुए भारतीय सेना ने एक नए मंदिर का निर्माण करवाया और उसका नाम दिया "बाबा हरभजन सिंह मंदिर". यह मंदिर 13,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित हैं. यह मंदिर गंगटोक में जेलेप ला दर्रे और नाथू ला दर्रे के बीच स्थित हैं. पुराना मंदिर इस से 1000 फीट ऊपर बनाया गया था. बाबा हरभजन सिंह के मंदिर में उनकी एक तस्वीर और उनका सामान रखा गया हैं.
मृत्यु के बाद भी सेवा में
बाबा हरभजन सिंह के मृत्यु के बाद भी देश की सीमा पर उनकी चौकसी को देखते हुए भारतीय सेना ने उन्हें सेना में बरकरार रखा. अन्य सिपाहियों की तरह बाबा हरभजन सिंह को तनख्वाह मिलता, नियमानुसार पदोन्नति होता, दो माह की छुट्टी दी जाती. इतना ही नहीं भारतीय रेलवे में उनके लिए टिकट करवा कर एक सीट बुक कर दिया जाता और 2 सैनिक उनके सामान के साथ उनके गाँव उन्हें छोड़ने जाते. वहाँ से गाँव वाले जुलुस निकाल कर उनके सामान को बड़े आदर और सम्मान से उनके घर तक ले जाते. जब बाबा हरभजन सिंह दो माह ही छुट्टी पर होते उस समय उनकी पोस्ट हाई अलर्ट पर रहता था.
बाबा हरभजन सिंह के छुट्टी पर जाना और वापस आने पर बड़ा धार्मिक आयोजन होता था. इस से कुछ लोग अदालत के दरवाजा पहुँचे और यह तर्क दिया कि "इस से अंधविश्वास को बढ़ावा मिलता है और भारतीय सेना में अंधविश्वास की कोई जगह नहीं है". इसके बाद भारतीय सेना ने बाबा हरभजन सिंह को छुट्टी पर भेजना बंद कर दिया. इस तरह बाबा हरभजन 12 माह सीमा पर ही तैनात रहते. उनकी तनख्वाह का एक चौथाई उनकी माँ को भेज दिया जाता और बाकि नाथू ला में तैनात सैनिकों में बाँट दिया जाता. 1969 में बाबा हरभजन सिंह को महावीर चक्र से समान्नित किया गया. 2006 में बाबा हरभजन सिंह कैप्टेन के पद पर पहुँच कर सेवा निवृत हुए.
बाबा हरभजन सिंह से जुड़ी घटनाएँ
बाबा हरभजन सिंह के जूतों को पॉलिस कर के रख देते थे. जो सैनिक बाबा हरभजन सिंह की जूतों को पॉलिस करते उन सैनिकों का कहना हैं कि बाबा हरभजन सिंह के जूतों में रोज सुबह कीचड़ लगा होता था. बिस्तर पर सिलवटें मिलती मानों उस पर से कोई सोकर उठा हो. बाबा हरभजन सिंह को सिर्फ भारतीय सैनिक ही नहीं चीनी भी मानते हैं. जब भी दोनों सेनाओं के बीच में फ्लैग मीटिंग होती तो चीनी बाबा हरभजन सिंह के लिए एक कुर्सी खाली रखते थे. चीनी सैनिकों ने ऐसा दावा किया हैं कि कई बार बाबा हरभजन सिंह को घोड़े पर सीमा पर पहरा देते देखा हैं.
फिल्मी अभिनेताओं और क्रिकेट खिलाड़ियों को अपना आदर्श मानाने वाले आज के कई नौजवान बाबा हरभजन सिंह और जसवंत सिंह रावत से पूरी तरह से ही अनजान होंगे. बाबा हरभजन सिंह पर आधारित बी बी कि वाइन से मशहूर हुए भुवन बाम ने छोटा सा वीडियो बनाया था "प्लस माइनस" के नाम से. अगर अभी तक नहीं देखा तो जाकर जरूर देखें और कोशिश करे की सोने से पहले एक बार इन भारतीय सैनिकों और उनके परिवार के लिए एक बार भगवान से जरूर प्रार्थना किया करें.
जय हिन्द
वंदेमातरम
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