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Showing posts from August, 2020

9 अगस्त 1925: काकोरी काण्ड

भारत देश की स्वतंत्र की लड़ाई में कई लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दे दिया, परंतु ऐसे लोगों के बारे में बहुत ही कम पढ़ाया जाता है. क्रांतिकारियों के बलिदान को तो जैसे हम और यह देश भुला ही बैठा है. अगर गलती से किसी पाठ्यपुस्तक में पढ़ने को मिल भी गया, तो बस चंद पंक्तियों में उसे खत्म कर दिया जाता है. वहीं कांग्रेस के नेताओं के बारे में बड़े बड़े लेख लिखे जाते है. भले ही उन नेताओं का हर एक आंदोलन निष्फल क्यों न हुआ हो? कई ऐसे भी क्रन्तिकारी है, जिनके बारे में आज भी देश नहीं जनता. क्रांतिकारियों ने देश के लिए अपना सर्वस्व बलिदान  कर दिया, परंतु उन्हें आज भी आतंकवादी कह कर ही बुलाया जाता है. देश की स्वतंत्रता के बाद उन्हें जो सम्मान मिलना चाहिए था, वह सम्मान तक उन्हें नहीं मिला और उनके द्वारा किये कार्यों को खास महत्व नहीं दिया गया. ऐसे ही कई घटनाओं में से एक है, रेल में जा रहे सरकारी खजाने को लूटने का, जिसे हम काकोरी कांड के नाम से जानते है. काकोरी कांड के बाद पूरी अंग्रेज सल्तनत हिल गई थी, क्योंकि यह सीधा अंग्रेजों के साथ टक्कर था. परंतु इसे उतना महत्व नहीं दिया गया जितना देना चाहिए था. आज ह

मिशन किल दाऊद और दाऊद पर हुए जानलेवा हमले

पिछले लेख में हमने मुंबई अंडरवर्ल्ड के सबसे बदनाम और क्रूर डॉन दाऊद इब्राहिम कासकर के उदय के बारे में देखा. आज हम बात करेंगे उस पर हुए कुछ जानलेवा हमलों के बारे में. दाऊद पर तब भी हमले हुए थे, जब दाऊद डी कंपनी का सीईओ नहीं बना था. उसके भाई सबिर इब्राहिम की हत्या करने के बाद, हत्यारे दाऊद को मारने डोंगरी तक पहुँच चुके थे, परंतु दाऊद के बॉडीगॉर्ड ने उसे बचा लिया. उसके बाद दाऊद पर हमला किया था, गुजरात का दाऊद इब्राहिम कहलाने वाले अब्दुल लतीफ ने. दाऊद उस हमले में भी बाल बाल बच गया था. मुंबई अंडरवर्ल्ड का सर्वेसर्वा बनने के बाद भी, समय समय पर दाऊद को मारने की कोशिश की गई है. परंतु उनका दुर्भाग्य कहे या दाऊद की किस्मत, वह हमेशा बच जाता था. आइए देखते है ऐसे ही कुछ मुख्य कोशिशों के बारे में. अशरफ खान "सपना दीदी" दाऊद को मारने की सबसे पहली और सबसे ज्यादा कामयाब कोशिश अशरफ खान ने किया था, जिसे सपना दीदी के नाम से भी जाना जाता था. दरअसल अशरफ खान का पति महमूद कालिया दाऊद के लिए ही काम करता था. परंतु दाऊद ने उसे मरवा दिया था. अशरफ अपने पति के मौत की वजह से पूरी तरह से टूट चुकी थी. वह कानू

दाऊद इब्राहिम: मुंबई अंडरवर्ल्ड का सबसे बदनाम और क्रूर डॉन

इस से पहले के तीन लेखों में हमने मुंबई अंडरवर्ल्ड के जन्मदाता करीम लाला , पहले हिन्दू डॉन वरदराजन मुदालियर और मुंबई अंडरवर्ल्ड के सबसे शरीफ डॉन हाजी मस्तान के उत्थान और उनके पतन के बारे में पढ़ा. आज हम बाद करेंगे, मुंबई अंडरवर्ल्ड के इतिहास सबसे बदनाम और क्रूर डॉन के बारे में, जिसने डॉन शब्द की परिभाषा को ही बदल दिया. जहाँ पहले के तीनों डॉन एक तरह से रॉबिनहुड की अपनी छवि को बनाये हुए थे, वही इस डॉन ने पहले के सभी डॉन के बनाये नियम तोड़ दिए और गरीब साधारण जनता भी इसके नाम से खौफ खाने लगी. इसके आने से मुंबई अंडरवर्ल्ड में गैंगवॉर, पुलिस एनकाउंटर जैसी नई चीजें शुरू हुई. इस खुनी खेल में मुंबई की सड़के लाल होने लगी और इस खुनी खेल का तांडव मुंबई की शरहद लाँघ कर गुजरात के अहमदाबाद तक पहुँच चूका था. हम बात कर रहे हैं एक ईमानदार पुलिस कांस्टेबल के अपराधी बेटे, दाऊद इब्राहिम कासकर के बारे में. इसके उदय और इसके मुंबई छोड़ने के बारे में हम बहुत ही संक्षिप्त में बात करेंगे. प्रारंभिक जीवन दाऊद इब्राहिम का जन्म महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के खेड़ में 26 दिसंबर 1955 के दिन हुआ था. उसके बाद यह मुंबई के

कविता: देशभक्तों के नाम संदेश

भारत देश में आज की परिस्थिति ऐसी है कि कुछ बुद्धिजीवी, सेक्युलर और पता नहीं क्या क्या, किसी कुकुरमुत्ते की तरह हर जगह निकल रहे है. कल तक जो एक पार्टी विशेष के सत्ता में होने पर किसी शुतुरमुर्ग की तरह जमीं में सर घुसाए बैठे थे, वो आज सभी अपने अपने सर बहार निकाल कर लोकतंत्र की दुहाई देकर जहर ही उगल रहे है. सत्ता पक्ष का विरोध करने के लिए यह लोग देश विरोध करने तक उतारू हो चुके है और कर रहे है. इसके पीछे इनका उद्देश्य चाहे जो हो, परंतु यह बहुत खतरनाक है. खतरनाक इस वजह से नहीं है क्योंकि वे विरोध कर रहे है. खतरनाक इस वजह से क्योंकि किसी राजनैतिक दल का विरोध करने के चक्कर वे सभी देश विरोध करने लगे है और उसके लिए तथ्यों को या तो तोड़ मरोड़ कर रख रहे है. या फिर आधे अधूरे तथ्य इस तरह से रख रहे है. जिससे कुछ न होते हुए भी मन में शंका उत्पन्न हो जाए. इसमें नेता से लेकर, बॉलीवुड से जुड़े लोग, गायक, लेखक, झूठे इतिहासकार, खुद को सच्चा पत्रकार कहने वाले और धर्म के जुड़े लोग शामिल है. वो गद्दार है और रहेंगे. उनसे मुझे कुछ लेना देना नहीं है. मैंने यह कविता देशभक्तों के लिए लिखा है. उनसे मुझे जो कहना है, मै

कविता: नेताओं की फितरत

लगभग हर एक राजनैतिक पार्टी के शासन काल के दौरान कुछ अप्रिय घटनाएँ घटित होती रही है, किसी के शासनकाल में ऐसी घटनाएँ कम होती है, तो किसी शासनकाल में ज्यादा. कोई राजनैतिक पार्टी इसके प्रति कुछ ठोस कदम उठती है, तो कुछ उदासीन रहती है. परंतु यह सभी राजनैतिक पार्टियाँ कुछ घटित होने के बाद ही हरकत में आती है. भविष्य में ऐसी कोई घटना हो ही नहीं, इस दिशा में कोई कोई कदम नहीं उठता. आजादी के समय दिया हुआ गरीबी मिटाओ का नारा, आजादी के 74 वर्षों के बाद भी वैसे ही चल रहा है. गरीबी तो मिटी, परंतु सिर्फ गरीबों के नाम पर राजनीती करने वालों की, गरीबों की नहीं. वो बेचारे तो और भी ज्यादा गरीब हो गए. वैसी ही हालत किसानों और सेना के जवानों की है. दोनों ही देश के रीड की हड्डी है. परंतु रोजाना दोनों ही के मरने की खबर आती रहती है. इन्ही सब बातों से मन परेशान हुआ था, तो मैंने यह कविता लिखा था. हालाँकि यह कविता 8 से 9 वर्ष पुरानी है, परंतु आज शेयर कर रहा हूँ. पसंद आए तो Like, Share, Comment और The Puratchi Blog को Subscribe जरूर करें. कविता का शीर्षक है, नेताओं की फितरत सुनो कहानी भारत की हम तुम्हे सुनाते है, फित

भगत सिंह को समर्पित कविता: मैं भगत सिंह बनना चाहता हूँ.

भारत वर्ष में कई ऐसे क्रन्तिकारी हुए हैं, जो खुद साहस और देशभक्ति का पर्याय बन गए हैं. एक छोटी सी उम्र में देश के लिए ऐसा प्रेम जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते और प्रेम भी ऐसा कि देश के लिए अपने प्राण नौछावर भी कर दिया. ऐसे क्रांतिकारियों में भगत सिंह का नाम सबसे ऊपर आता है. मैं किसी के साथ किसी की तुलना नहीं कर रहा, परंतु भगत सिंह का देश की आजादी के प्रति और आजादी के बाद देश की जरूरतों को लेकर जो सपना था, उस तक शायद कोई क्रांतिकरी नहीं पहुँच पाया था. भगत सिंह जैसा बनने के लिए आप को सिर्फ उनके सिद्धांतों पर चलना या उनके बारे में पढ़ने से ही काफी नहीं है. भगत सिंह जैसा बनने के लिए भगत सिंह को जीना पड़ता है. इस कविता में मैंने एक देशभक्त के दिल की इच्छा को दर्शाया है, जो भगत सिंह बनाना चाहता है. कविता का शीर्षक है मैं भगत सिंह बनाना चाहता हूँ. बेरवाह, गैर जिम्मेदार, देश से मतलब नहीं, मैं युवाओं की तस्वीर बदलना चाहता हूँ. भ्रष्टाचार, गरीबी, बेरोजगारी, अनपढ़ नेता, मैं इस देश की तकदीर बदलना चाहता हूँ. थक चूका हूँ मैं जाति धर्म से लड़ते लड़ते, मैं अब अपनी शमशीर बदलना चाहता हूँ. बहुत पूज चूका बापू

गणेश चतुर्थी के पावन अवसर पर एक कविता

गणेश चतुर्थी के पावन मौके पर भगवन गणेश को समर्पित को मेरी कविता. भगवान गणेश आप सब की मनोकामना पूरी करें. हे गणपति हे गणनायक, दीन दुखियों के तुम हो सहायक. हे लम्बोदर हे विघ्नहर्ता, तू संग है तो डर भी है डरता. हे रिद्धि हे सिद्धि के स्वामी, तू सर्वव्यापी अंतर्यामी. हे वक्रतुण्ड हे गजानन, मन करता तेरा ही चिंतन. हे सुखकर्ता हे दुःखहर्ता, इस सृष्टि के कर्ता धर्ता. हे एकदन्त हे पिताम्बर, तू एक सत्य और सब नश्वर. हे नंदना हे गणेश, हर लो सभी के कष्ट क्लेश. हे मंगलमूर्ति हे मृत्युंजय, हम सब करते तेरी जय जय. जय हिन्द वंदेमातरम #GanpatiBappaMorya #GaneshChaturthi #GanpatiBhajan

हाजी मस्तान: मुंबई अंडरवर्ल्ड का सबसे शरीफ डॉन

मुंबई अंडरवर्ल्ड के पिछले दो लेखों में हमने दो डॉन, करीम लाला , जिसने मुंबई अंडरवर्ल्ड की स्थापना किया और वरदराजन मुदालियर , मुंबई अंडरवर्ल्ड का पहला हिन्दू डॉन, के बारे में पढ़ा. आज हम बात करने वाले है मुंबई के ऐसे डॉन की, जो इन दोनों डॉन से ज्यादा पैसे वाला था, इन दोनों डॉन से ज्यादा पहुँच रखता था. एक ऐसे डॉन की जिसने अपराध को उसूलों के साथ ऐसा मथा कि ये लोगों के बीच एक गैंगस्टर नहीं, बल्कि उनका मसीहा बनकर उभरा. एक ऐसे डॉन की, जिसका कहा ही उस समय का अलिखित कानून माना जाता था. एक ऐसे डॉन की, जिसने खुद वरदराजन मुदालियर को एक डॉन बनाया था और तीनों डॉन के बीच में मुंबई का बँटवारा किया था. एक ऐसे डॉन की, जिसने मुंबई को अपनी माशूका कहा और एक माशूका के जैसा उसका ख्याल भी रखा. कभी मुंबई को गन्दा नहीं किया. एक ऐसे डॉन की, जिसने बॉलीवुड और राजनीति को नए नए नियम दिए. एक ऐसे डॉन की, जिसके जैसा राज और उसका समय वापस लाने की कामना करते हुए खुद पुलिस के बड़े अधिकारी कहते है कि अगर यह तय है कि मुंबई से अंडरवर्ल्ड को खत्म नहीं किया जा सकता, तो हमें हाजी मस्तान जैसा डॉन और उसी का समय वापस चाहिए. एक ऐसे ड

वरदराजन मुदालियर: मुंबई अंडरवर्ल्ड का पहला हिन्दू डॉन

मुंबई अंडरवर्ल्ड के पिछले भाग में हमने पढ़ा था,  करीम लाला  के बारे में, जिसने मुंबई अंडरवर्ल्ड को बनाया. आज हम बात करेंगे मुंबई अंडरवर्ल्ड के उस डॉन के बारे में, जिसे शायद सबसे काम आंका गया और इसी वजह से उसके बारे में ज्यादा बात नहीं होता. इसका शायद एक बड़ा कारण यही रहा है कि इस डॉन का दाऊद इब्राहिम से कोई खास लेना देना नहीं था. अंडरवर्ल्ड के उन्ही डॉन के बारे ज्यादा पढ़ा और लिखा जाता है, जिनका दाऊद इब्राहिम से कोई रिश्ता रहा हो. जैसे करीम लाला, जिसके पठान गैंग के साथ दाऊद इब्राहिम की दुश्मनी थी और हाजी मस्तान, जिसके गैंग में रह कर दाऊद ने सभी काम सीखा था. शायद यही कारण रहा है इस डॉन के उपेक्षित रहने का. हम बात कर रहे है मुंबई अंडरवर्ल्ड के पहले हिन्दू डॉन के बारे में, जिसका नाम है वरदराजन मुनिस्वामी मुदालियर. आइए देखते है  इसके बारे में. प्रारंभिक जीवन वरदराजन मुदालियर का जन्म मद्रास प्रेसिडेंसी के तूतीकोरन (आज का थूटुकुडी, तमिलनाडु) में 1 मार्च 1926 में हुआ था. उसका परिवार आर्थिक रूप से संपन्न नहीं था. तूतीकोरन में ही उसकी प्रारम्भिक शिक्षा हुआ. उसके बाद मुदालियर वही पर नौकरी करने लगा

1946: नओखलि नरसंहार

पिछले लेख में हमने डायरेक्ट एक्शन डे के बारे में देखा. डायरेक्ट एक्शन डे के दिन हुए नरसंहार की आग पुरे देश में फैल चुकी थी. सभी जगह से दंगों की और मारे काटे जाने की खबरें आ रही थी. इस डायरेक्ट एक्शन डे का परिणाम सामने चल कर बंगाल के नओखलि (आज बांग्लादेश में ) में देखने को मिला. यहाँ डायरेक्ट एक्शन डे के बाद से ही तनाव अत्याधिक बढ़ चूका था. 29 अगस्त, ईद-उल-फितर के दिन तनाव हिंसा में बदल गया. एक अफवाह फैल गई कि हिंदुओं ने हथियार जमा कर लिए हैं और वो आक्रमण करने वाले है. इसके बाद फेनी नदी में मछली पकड़ने गए हिंदू मछुआरों पर मुसलमानों ने घातक हथियारों से हमला कर दिया, जिसमें से एक की मौत हो गई और दो गंभीर रूप से घायल हो गए. चारुरिया के नौ हिंदू मछुआरों के एक दूसरे समूह पर घातक हथियारों से हमला किया गया. उनमें से सात को अस्पताल में भर्ती कराया गया. रामगंज थाने के अंतर्गत आने वाले बाबूपुर गाँव के एक कांग्रेसी के पुत्र देवी प्रसन्न गुहा की हत्या कर दी गई और उनके भाई और नौकर को बड़ी निर्दयता से मारा. उनके घर के सामने के कांग्रेस कार्यालय में आग लगा दिया. जमालपुर के पास मोनपुरा के चंद्र कुमार कर

16 अगस्त 1946: डायरेक्ट एक्शन डे

भारत देश की स्वतंत्रता कुछ अंतर्राष्टीय घटनाओं की देन है. अन्यथा यह बात तो तय था कि अगर द्वितीय विश्व युद्ध नहीं हुआ होता और द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटेन को आर्थिक और सैन्य क्षति नहीं पहुँचा होता, तो कम से कम भारत 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र नहीं हुआ होता. इसी वजह से मैंने अपने पिछले लेख " 15 अगस्त: देश का 74वां स्वतंत्रता दिवस " में लिखा था कि भारत देश को स्वतंत्रता मिला है, हमने छीन कर नहीं लिया. जब ब्रिटेन द्वितीय विश्व युद्ध में व्यस्त था तभी अगर हम भारत देश में भी विद्रोह कर देते तो स्वतंत्रता की तारीख जरूर बदल जाता. परंतु 1942 में हुए भारत छोड़ो आंदोलन के बाद ऐसा कोई भी आंदोलन नहीं हुआ. बल्कि 1942 से 1947 तक भारत से अलग देश पाकिस्तान बनाने के लिए मुस्लिम लीग ने हिंसा की ऐसी आग भड़काई, जो देश के बँटवारे के समय तक चलती रही. देश के बँटवारे से पहले ऐसे ही दो मुख्य नरसंहार हुए थे जिसमें हजारों लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था. बंगाल में हुए इन दोनों नरसंहार में मृत लोगों के मृत शरीर बंगाल की गलियों में ऐसे ही पड़े थे और गिद्ध उन्हें नोंच नोंच कर खा रहे थे. 1946 में हुए नरस

कविता: अटल बिहारी वाजपेयी

भारत देश के पूर्व प्रधानमंत्री और भारतीय जनता पार्टी के नेता अटल बिहारी वाजपई एक ऐसे नेता थे, जिनके भारत देश के लिए एक अलग ही नजरिया था, जो उनके द्वारा लिखे हर एक कविता में स्पष्ट रूप से झलकता था. वह ऐसे व्यक्तित्व के धनी थे, जिनके लिए विपक्षी नेताओं के दिल में भी सम्मान था और आज भी है. ऐसे राजनेता और कवि अटल जी की पुण्यतिथि पर उन्हें समर्पित कविता जिसका शीर्षक है, मैंने कलम को खिलते देखा है. स्वयं सेवक संघ के बीज से, एक पौधे को निकलते देखा. धूप बारिस आँधी सब झेल, उस पौधे को पलते देखा. उस पौधे के रखवाले को, खून पसीने से सींचते देखा. अपनी भाग्य रेखा को छोड़, उसकी रूप रेखा खींचते देखा. मैंने कमल को खिलते देखा. काँटों से भरी डगर पर भी, उसे मुस्कुरा कर चलते देखा. अपने विरोधियों के दल में भी, निर्भीक सिंह सा टहलते देखा. अटल जी की आँखों को, सपने लिए बूढ़ा होते देखा. भारत के लिए थे जो सपने, उसे धीरे धीरे पूरा होते देखा. मैंने कमल को खिलते देखा. एक ही सोच एक ही गुण, सिर्फ चेहरे को बदलते देखा. छोटे दल से पूर्ण बहुमत तक, लम्बा सफर तय करते देखा. तीन तलाक तो कभी कैब पर, विपक्षियों के भौं को तनते देख

15 अगस्त: हमें स्वतंत्रता की कितनी कद्र है?

15 अगस्त अर्थात स्वतंत्रता दिवस 2020 में हम अपना 74वां स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहे है. वैसे तो हमें यह स्वतंत्रता मिली है, जिसके बारे में मैं अपने इस से पहले के पोस्ट लिख चुका हूँ. आप चाहे तो पढ़ सकते है. अब मुद्दा यह नहीं है कि हमें स्वतंत्रता मिली है या हमने लिया है, अब मुद्दा यह है कि जब हम स्वतंत्र है तो हमें इस स्वतंत्रता की कितनी कद्र है? हम अपने इतने लम्बे समय की गुलामी से क्या सीखे है? क्योंकि स्वतंत्रता के कारण जो भी रहे हो, इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि इस स्वतंत्रता के लिए न जाने कितने लोगों ने अपने प्राणों को भारत माता के चरणों में हँसते हँसते समर्पित कर दिया था. कई तो ऐसी गुमनाम क्रांतिवीर है, जिनके बारे में हम जानते तक नहीं है. भगत सिंह, चंद्रशेखर 'आजाद' 'पंडित जी', सुखदेव, राजगुरु, भगवतीचन्द्र वोहरा, बटुकेश्वर दत्त, खुदीराम बोस, प्रफुल्ल चाकी और ऐसे न जाने कितने क्रांतिवीर थे, जो बहुत ही कम आयु में भारत के स्वतंत्रता संग्राम में न सिर्फ जुड़ गए, बल्कि ऐसे अकल्पनीय काम भी कर के गए कि इस उम्र में आज शायद ही कोई सोच सकता है. खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चा