पिछले लेख में हमने मुंबई अंडरवर्ल्ड के सबसे बदनाम और क्रूर डॉन दाऊद इब्राहिम कासकर के उदय के बारे में देखा. आज हम बात करेंगे उस पर हुए कुछ जानलेवा हमलों के बारे में. दाऊद पर तब भी हमले हुए थे, जब दाऊद डी कंपनी का सीईओ नहीं बना था. उसके भाई सबिर इब्राहिम की हत्या करने के बाद, हत्यारे दाऊद को मारने डोंगरी तक पहुँच चुके थे, परंतु दाऊद के बॉडीगॉर्ड ने उसे बचा लिया. उसके बाद दाऊद पर हमला किया था, गुजरात का दाऊद इब्राहिम कहलाने वाले अब्दुल लतीफ ने. दाऊद उस हमले में भी बाल बाल बच गया था. मुंबई अंडरवर्ल्ड का सर्वेसर्वा बनने के बाद भी, समय समय पर दाऊद को मारने की कोशिश की गई है. परंतु उनका दुर्भाग्य कहे या दाऊद की किस्मत, वह हमेशा बच जाता था. आइए देखते है ऐसे ही कुछ मुख्य कोशिशों के बारे में.
अशरफ खान "सपना दीदी"
दाऊद को मारने की सबसे पहली और सबसे ज्यादा कामयाब कोशिश अशरफ खान ने किया था, जिसे सपना दीदी के नाम से भी जाना जाता था. दरअसल अशरफ खान का पति महमूद कालिया दाऊद के लिए ही काम करता था. परंतु दाऊद ने उसे मरवा दिया था. अशरफ अपने पति के मौत की वजह से पूरी तरह से टूट चुकी थी. वह कानून के सहारे दाऊद को सजा दिलवाना चाहती थी. परंतु मुंबई पुलिस के ज्यादातर पुलिस और ऊपरी अधिकारी दाऊद के हाथों बिक चुके थे. ऐसे में अशरफ ने खुद ही दाऊद से बदला लेने का सोचा. इसमें उसकी मदद किया हुसैन उस्तरा नाम के एक गैंगस्टर ने, जो दाऊद से काफी नफरत करता था. हुसैन ने अशरफ को मोटरसाइकिल चलना, मार्टिकल आर्ट और बन्दुक चलना भी सिखाया. दाऊद के धंधे को तोड़ने के लिए अशरफ पुलिस की खबरी तक बन गई थी. वह अपना बदला लेने के लिए मौके के तलाश में थी. तभी उसे पता चला कि दाऊद शारजहां में होने वाले क्रिकेट मैच को देखने जरूर आएगा. क्योंकि दाऊद सट्टा में भी पैसे लगाता था और क्रिकेट सट्टे पर हजारों करोड़ के दांव लगते थे. अशरफ ने शारजहां क्रिकेट स्टेडियम में जाकर के दाऊद को मारने का षड़यंत्र रचा. परंतु किसी ने अशरफ की मुखबिरी कर दिया और दाऊद को इस बारे में पता चल गया. दाऊद ने अपने आदमियों से अशरफ को जान से मार देने को कहा. पुलिस के अनुसार अशरफ की हत्या अपराध के इतिहास में की गई सबसे क्रूर हत्या है. हाल ही में इसी पर आधारित एक वेब सीरीज बनी है, "एक थी बेगम." अशरफ के बारे में ज्यादा जानने के लिए आप उस वेब सीरीज को देख सकते है.
भारत सरकार का खुफिया मिशन
दाऊद इब्राहिम भारत का मोस्ट वांटेड अपराधी है और यह सबसे खुला राज है कि दाऊद इब्राहिम पाकिस्तान में है. परंतु पाकिस्तान इस बात को कभी नहीं मानता. 2005 में दाऊद के बेटी की शादी पाकिस्तानी क्रिकेटर जावेद मियादाद के बेटे से होने वाली थी. इस बात की खबर तो भारत तक आई ही, साथ ही आया शादी का कार्ड भी. इस से भारतीय खुफिया विभाग के कान खड़े हो गए. उन्होंने सोचा कि दाऊद की कोई न कोई तस्वीर मिल ही जाएगी. जिससे भारत अपने दावे को शाबित कर सके कि दाऊद पाकिस्तान में है. परंतु शादी मक्का में हुआ और रिसेप्शन दुबई में. दाऊद चाहता था कि रिसेप्शन करांची में ही हो, परन्तु ISI ने करांची में रिसेप्शन नहीं करने दिया. भारत के खफिया विभाग के पास जानकारी आ चूका था कि दुबई के ग्रैंड हयात में रिसेप्शन रखा है. रॉ ने दुबई में दाऊद को मारने का तय कर लिया और उसके लिए कमांडो को भी तैयार किया जाने लगा. परंतु फिर उन सभी ने IB चीफ के पद से पांच महीने रिटायर हुए, सेवानिवृत और दाऊद के कई मिशन पर काम कर चुके अधिकारी, अजीत डोभाल से सलाह लिया गया. अजीत डोभाल ने यह काम कमांडो से नहीं, बल्कि किसी तीसरे से करवाने का सुझाव दिया. अजीत डोभाल को अनाधिकारिक तौर पर इस मिशन का चीफ बना दिया गया.
अजीत डोभाल ने दाऊद के सबसे बड़े दुश्मन और खुद को देशभक्त डॉन कहने वाले, छोटा राजन से दाऊद को मारने को कहा गया. छोटा राजन भी दाऊद को मारने को तैयार हो गया. क्योंकि दाऊद ने बैंगकॉक में छोटा राजन पर जानलेवा हमला करवाया था. इसके लिए छोटा राजन ने अपने दो शार्प शूटर विक्की मल्होत्रा और फरीद तानशा को भेजा. इन दोनों शार्प शूटर को नेपाल के रस्ते भारत लाया गया. यहाँ इन दोनों को खुफिया तौर पर ट्रेनिंग भी दिया गया. क्योंकि यह दोनों ही अपराधी थे और कई मामलों में पुलिस इन्हे तलाश रही थी. परन्तु यह बात फिर से दाऊद के कानों तक पहुँच गया. कैसे? मुंबई पुलिस के द्वारा और जब एक होटल के कमरे में अजित डोभाल इन दोनों को फाइनल ब्रीफिंग दे रहे थे, तभी मुंबई पुलिस के DCP धनञ्जय कमलेकर पुलिस फाॅर्स के साथ आ धमके और इन दोनों को गिरफ्तार करने को कहा. अजित डोभाल को कमलेकर जानते थे. कमलेकर ने अजित डोभाल को इन दोनों का अरेस्ट वारंट दिखते हुए कहा कि हमे इन्हे गिरागतार करना है. क्योंकि हमें खबर मिला है कि यह दोनों किसी बड़े नेता को मारने भारत आए है. अजित डोभाल ने बहुत समझाने की कोशिश किया, परन्तु कमलेकर नहीं माने. डोभाल IB चीफ के पद से रिटायर हो चुके थे और उसके बाद यह मिशन भी अनाधिकारिक था. तो डोभाल चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते थे. ऐसे यह मिशन शुरू होने से पहले ही फेल हो गया.
मिशन किल दाऊद (Mission Kill Dawood)
मिशन "किल दाऊद" भी एक बहुत बड़ा और खुफिया मिशन था. यह मिशन भी कामयाब हो ही जाता, परंतु एक फोन कॉल और सभी किये धरे पर पानी फिर गया.
दरअसल 9 नवम्बर 2001 में अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर जो हमला हुआ था और जिसका मुख्य अभियुक्त ओसामा बेन लादेन था, उसे अमेरिका ने 10 वर्षों के बाद पाकिस्तान के अब्बोटाबाद में 2011 में मार गिराया था. इसी घटना से प्रेरणा लेकर के दुनिया भर के देशों ने कुछ ऐसे ही मिशन पर काम करना शुरू कर दिया और अपने देश के दुश्मनों को ठिकाने लगाने की योजना बनाने लगा. इन्ही देशों में भारत का रॉ भी शामिल था, जिसने अपने देश के दुश्मनों की एक लिस्ट को बनाया और उन्हें या तो पकड़ कर भारत लाने या उन्हें ठिकाने लगाने की बात पर सोचने लगा. दाऊद पाकिस्तान में था, यह बात जग जाहिर था. परंतु पाकिस्तान कभी इस बात को नहीं माना और कभी मानेगा भी नहीं. ऐसे में रॉ ने दाऊद को पाकिस्तान में ही मारने की योजना पर काम करने लगा. 2011 में ही जब यह बात तय हो गया कि दाऊद को ठिकाने लगा देना है, तब रॉ ने अपने 9 खुफिया एजेंटो को चुना और इजराइल के मोसाद से ट्रेनिंग के लिए भेज दिया. वहाँ से ट्रेनिंग पूरी होने के बाद, उन सभी एजेंट्स को दाऊद के हर तरह के संभावित तस्वीरों को दिखाया गया, ताकि उनसे दाऊद को पहचानने में किसी भी तरह की कोई भूल न हो. उसके बाद सभी को अलग देशों के पासपोर्ट पर पाकिस्तान पहुँचाया गया. भारत के पासपोर्ट पर पाकिस्तान या पाकिस्तान के पासपोर्ट पर भारत आने वाला हमेशा खुफिया विभागों के रडार पर रहता है. पाकिस्तान में पहुंचने के बाद पाकिस्तान में रह रहे भारत के एजेंट और जासूसों को भी अलर्ट कर दिया गया और दाऊद से जुड़ी हर एक खबर लाने को कहा गया. उसके अलावा दाऊद के पाकिस्तान के दुश्मनों की भी मदद लिया.
इतना सब करने के बाद करांची में दाऊद के पते D-13, Block-4, Clifton, Karachi, Pakistan के आसपास रेकी करने लगे. रेकी करने से यह पता चल गया कि दाऊद बहुत ही ज्यादा कड़ी सुरक्षा में रहता है. ISI के द्वारा दी गई सुरक्षा के अलावा दाऊद के पास खुद के भी बॉडीगॉर्ड है. ऐसे में उसके सुरक्षा को भेद माना मुश्किल सा काम लग रहा था. परंतु क्लिफ्टन का यह इलाका डिफेन्स का इलाका है, जहाँ पर डिफेन्स के बड़े बड़े अधिकारी या सेवानिवृत अधिकारी रहते है. कई दिनों की रेकी के बाद दाऊद के बारे में एक पक्की जानकारी मिली, जो दाऊद की नियमतः आदत थी. दाऊद अपने घर से 5 किलोमीटर की दुरी पर एक डिफेन्स हाउंसिंग मेस तक जाने के लिए 4 से 6 के बीच निकलता था और वहाँ जाकर बात करता था. इस समय वह ज्यादा सुरक्षा लेकर नहीं चलता था. तो जो करना है, इसी 5 किलोमीटर के सफर में ही करना है, यह तय हुआ. इसके साथ ही जगह भी तय हो गया, शहब्दुला गाजी दरगाह, जो डिफेन्स हाउसिंग मेस जाने के रास्ते में ही आता था. वहाँ से दाऊद को मार कर भागना आसान था. पकड़े जाने की सम्भावना बहुत ही ज्यादा कम था. योजना बन गई की दाऊद को मार कर भागना ही है. वहाँ बिना एक सेकंड की देरी किए. इसके लिए तारीख भी तय हो गया 13 सितम्बर 2013 का.
13 सितम्बर 2013. योजना के अनुसार सभी एजेंट अपनी अपनी जगह पकड़ चुके थे. दाऊद के आने का इंतज़ार हो रहा था. दाऊद आया भी. उस टीम को जो एजेंट लीड कर रहा था, उसके बस फायर कहने भर की देर भी और दाऊद का काम तमाम हो जाता. परंतु तभी उस टीम लीडर के पास एक फोन आता है और मिशन को अबो्र्ट करने को आदेश दिया जाता है. मिशन अबो्र्ट अर्थात मिशन को रद्द किया जाता है. इस तरह से किल दाऊद मिशन भी फेल हो गया.
इस बात को खुलासा आज तक नहीं हो पाया कि वह फोन किसका था. ये सभी बहुत ही खुफिया मिशन थे, ऐसे में इन से जुड़ी कुछ बाते ही तैरती तैरती बहार आ पाती है. इन्ही कुछ बातों को आधार बना कर एक फिल्म बनाया गया था D Day. पर अफसोस यह केवल एक फिल्म ही था, सच्चाई नहीं.
ऐसा नहीं है कि भारत दाऊद को नहीं मार सकता. भारत जब चाहे तब मार सकता है. परंतु उस से पहले जरुरी है दाऊद के हाथों खुद को बेच चुके पुलिस वालों और उन नेताओं को पकड़ने की, जो दाऊद को ऐसी खबरे दे देते है और दाऊद कुछ न कुछ कर के बच निकलता है. जिस दिन ये सभी गद्दार पकड़े गए, दाऊद उसी दिन मात्र एक इतिहास बन कर रह जायेगा.
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जय हिन्द
वंदेमातरम
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