भारत वर्ष में कई ऐसे क्रन्तिकारी हुए हैं, जो खुद साहस और देशभक्ति का पर्याय बन गए हैं. एक छोटी सी उम्र में देश के लिए ऐसा प्रेम जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते और प्रेम भी ऐसा कि देश के लिए अपने प्राण नौछावर भी कर दिया. ऐसे क्रांतिकारियों में भगत सिंह का नाम सबसे ऊपर आता है. मैं किसी के साथ किसी की तुलना नहीं कर रहा, परंतु भगत सिंह का देश की आजादी के प्रति और आजादी के बाद देश की जरूरतों को लेकर जो सपना था, उस तक शायद कोई क्रांतिकरी नहीं पहुँच पाया था. भगत सिंह जैसा बनने के लिए आप को सिर्फ उनके सिद्धांतों पर चलना या उनके बारे में पढ़ने से ही काफी नहीं है. भगत सिंह जैसा बनने के लिए भगत सिंह को जीना पड़ता है. इस कविता में मैंने एक देशभक्त के दिल की इच्छा को दर्शाया है, जो भगत सिंह बनाना चाहता है. कविता का शीर्षक है
मैं भगत सिंह बनाना चाहता हूँ.
मैं युवाओं की तस्वीर बदलना चाहता हूँ.
भ्रष्टाचार, गरीबी, बेरोजगारी, अनपढ़ नेता,
मैं इस देश की तकदीर बदलना चाहता हूँ.
थक चूका हूँ मैं जाति धर्म से लड़ते लड़ते,
मैं अब अपनी शमशीर बदलना चाहता हूँ.
बहुत पूज चूका बापू, चाचा के चरणों को,
मैं क्रांतिकारियों सा नास्तिक बनना चाहता हूँ.
अहिंसा की राह पर न चला जायेगा मुझसे,
अब मैं क्रांति की राह पर चलना चाहता हूँ.
मैं ही बिस्मिल, मैं ही सुभाष, मैं ही आजाद,
मैं सरदार भगत सिंह बनना चाहता हूँ.
- संदीप शर्मा
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