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कविता: अटल बिहारी वाजपेयी

भारत देश के पूर्व प्रधानमंत्री और भारतीय जनता पार्टी के नेता अटल बिहारी वाजपई एक ऐसे नेता थे, जिनके भारत देश के लिए एक अलग ही नजरिया था, जो उनके द्वारा लिखे हर एक कविता में स्पष्ट रूप से झलकता था. वह ऐसे व्यक्तित्व के धनी थे, जिनके लिए विपक्षी नेताओं के दिल में भी सम्मान था और आज भी है. ऐसे राजनेता और कवि अटल जी की पुण्यतिथि पर उन्हें समर्पित कविता जिसका शीर्षक है,



मैंने कलम को खिलते देखा है.

स्वयं सेवक संघ के बीज से,
एक पौधे को निकलते देखा.
धूप बारिस आँधी सब झेल,
उस पौधे को पलते देखा.
उस पौधे के रखवाले को,
खून पसीने से सींचते देखा.
अपनी भाग्य रेखा को छोड़,
उसकी रूप रेखा खींचते देखा.

मैंने कमल को खिलते देखा.

काँटों से भरी डगर पर भी,
उसे मुस्कुरा कर चलते देखा.
अपने विरोधियों के दल में भी,
निर्भीक सिंह सा टहलते देखा.
अटल जी की आँखों को,
सपने लिए बूढ़ा होते देखा.
भारत के लिए थे जो सपने,
उसे धीरे धीरे पूरा होते देखा.

मैंने कमल को खिलते देखा.

एक ही सोच एक ही गुण,
सिर्फ चेहरे को बदलते देखा.
छोटे दल से पूर्ण बहुमत तक,
लम्बा सफर तय करते देखा.
तीन तलाक तो कभी कैब पर,
विपक्षियों के भौं को तनते देखा.
कानूनी प्रकिया को पूरी कर के,
राम मंदिर को भी बनते देखा.

मैंने कमल को खिलते देखा.


जय हिन्द
वंदेमातरम

#ExPrimeminister #AtalBihariVajpayee

 #BhartiyJantaParty #PoemonAtalBihari

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