मुंबई अंडरवर्ल्ड के पिछले दो लेखों में हमने दो डॉन, करीम लाला, जिसने मुंबई अंडरवर्ल्ड की स्थापना किया और वरदराजन मुदालियर, मुंबई अंडरवर्ल्ड का पहला हिन्दू डॉन, के बारे में पढ़ा. आज हम बात करने वाले है मुंबई के ऐसे डॉन की, जो इन दोनों डॉन से ज्यादा पैसे वाला था, इन दोनों डॉन से ज्यादा पहुँच रखता था. एक ऐसे डॉन की जिसने अपराध को उसूलों के साथ ऐसा मथा कि ये लोगों के बीच एक गैंगस्टर नहीं, बल्कि उनका मसीहा बनकर उभरा. एक ऐसे डॉन की, जिसका कहा ही उस समय का अलिखित कानून माना जाता था. एक ऐसे डॉन की, जिसने खुद वरदराजन मुदालियर को एक डॉन बनाया था और तीनों डॉन के बीच में मुंबई का बँटवारा किया था. एक ऐसे डॉन की, जिसने मुंबई को अपनी माशूका कहा और एक माशूका के जैसा उसका ख्याल भी रखा. कभी मुंबई को गन्दा नहीं किया. एक ऐसे डॉन की, जिसने बॉलीवुड और राजनीति को नए नए नियम दिए. एक ऐसे डॉन की, जिसके जैसा राज और उसका समय वापस लाने की कामना करते हुए खुद पुलिस के बड़े अधिकारी कहते है कि अगर यह तय है कि मुंबई से अंडरवर्ल्ड को खत्म नहीं किया जा सकता, तो हमें हाजी मस्तान जैसा डॉन और उसी का समय वापस चाहिए. एक ऐसे डॉन की, जिसके 20 वर्ष के जुर्म की जिंदगी में उस पर एक भी हत्या का आरोप नहीं लगा. क्योंकि उसने कभी किसी का हत्या किया ही नहीं था. एक ऐसी डॉन की, जिसने कभी भी नशे का व्यापर नहीं किया. वह उन्ही सामानों की तस्करी करता था, जिनकी इजाजत कानून नहीं देता था. उनकी नहीं, जिसकी इजाजत समाज नहीं देता. एक ऐसे डॉन की, जिसने जब जुर्म की दुनिया से रिश्ता तोड़ा, तो ऐसा तोड़ा कि वापस पलट कर नहीं देखा. हम बात कर रहे हैं हैदर मस्तान मिर्जा की, जिसे लोग हाजी मस्तान के नाम से जानते हैं.
प्रारंभिक जीवन
हैदर मस्तान मिर्जा का जन्म मद्रास प्रेसिडेंसी (आज तमिलनाडु) के कुड्डलोर जिले के पनईकुलम नामक गाँव में 1 मार्च 1926 के दिन हुआ था. हैदर मस्तान मिर्जा का परिवार बहुत गरीब था और बॉम्बे (आज मुंबई) जाने से पहले वे कुड्डलोर के समुद्री इलाके में रहते थे. मस्तान मिर्जा 8 वर्ष की आयु में मद्रास से बॉम्बे आया था और वहाँ के क्रॉफोर्ड मार्किट में एक साइकिल रिपेयर की दुकान चलाते थे. करीब 10 वर्षों तक मस्तान मिर्जा वहीं उसी साइकिल की दुकान पर बैठ कर दुनिया को आगे जाते और बदलते देखता रहा. एक तरफ जहाँ मुंबई की चकाचौंध थी, वहीं दूसरी तरफ गरीबी का कला अँधेरा. बचपन से ही मस्तान मिर्जा बड़ी गाड़ियों को देख कर, वैसी गाड़ी लेने के सपने देखता था. परन्तु इस साइकिल रिपेयर की दुकान से कुछ नहीं हो रहा था. मस्तान मिर्जा अपने दोस्तों के कहने पर मुंबई डॉक पर एक कुली का काम करने लगा. उस समय पानी के जहाज चला करते थे. तब जो लोग हज पर जाते थे, वहाँ से सोना और महँगी घडी और रेडियो लेकर आते थे. परन्तु यहाँ पर कस्टम लगने की वजह से मस्तान मिर्जा अपने कपड़ों में छुपा कर, उनका सामान बंदरगाह के बहार निकलने लगा. इस से उसकी कमाई भी बढ़ी. तभी वहाँ के एक अरब तस्कर शेख मोहम्मद अल गालिब की नजर मस्तान मिर्जा पर पड़ी. उसने मस्तान मिर्जा को अपने साथ काम करने की बात कही. मस्तान मिर्जा मान गया और दोनों मिल कर तस्करी करने लगे.
ऐसे ही एक बार शेख मोहम्मद अल गालिब अरब से सोना लेकर मुंबई बंदरगाह पर आया. जैसे ही उसने मस्तान मिर्जा को वो माला सामान दिया, किसी खबरी की खबर की वजह से शेख मोहम्मद अल गालिब को पुलिस ने पकड़ लिया. उसे 3 वर्षों के कैद की सजा मिली. तीन वर्षों बाद जब वह वापस आया, तब वह मस्तान मिर्जा से मिला. मस्तान मिर्जा उसे घर लेकर गया और उसका वो पैकेट दिया, जो शेख मोहम्मद अल गालिब ने मस्तान मिर्जा को दिया था. मस्तान मिर्जा ने उस पैकेट को खोला तक नहीं था. शेख मोहम्मद अल गालिब मस्तान की ईमानदारी से बहुत खुश हुआ और आधा सोना मस्तान मिर्जा को दे दिया. यही से मस्तान की किस्मत पलटी और वह अमीर बन गया. इसके बाद उसने कभी मुड़ कर नहीं और तस्करी की दुनिया में आगे बढ़ता गया.
मुंबई अंडरवर्ल्ड का डॉन
मस्तना मिर्जा अब तक तस्करी के सभी गुण सीख चुका था. शेख अल गालिब मस्तान मिर्जा की ईमानदारी से बहुत ही ज्यादा प्रभावित हो चुका था, तो वह उसके साथ काम कर ही रहा था. उसके बाद गुजरात और गुजरात के नजदीक दमन के कुख्यात तस्कर सुकुर नारायण बखिया के संपर्क में आया. दोनों साथ में मिल कर काम करने लगे. इस तरह से मस्तान मिर्जा समुन्द्र का राजा बन गया, चाहे वह मुंबई का हो या गुजरात का. मस्तान मिर्जा सिर्फ सोना चाँदी फिलिप्स के महँगे रेडियो और महँगी घड़ी की ही तस्करी करता था, वह भी सिर्फ रात में 9 से सुबह 5 के बीच में. क्योंकि उसका मानना था कि सुबह 5 से रात के 9 के बीच में साधारण लोग सड़क पर अपनी रोजी रोटी के लिए सड़क पर रहते हैं. अपने काम के लिए साधारण लोगों को कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए. जब तक कोई साधारण जनता को परेशान न करे, पुलिस उसे परेशान नहीं करेगी. यह बात सच भी था. हाजी मस्तान पुलिस और राजनेताओं को महँगे महँगे तौहफे देकर सभी को अपने साथ मिला कर रखता.
पूरा मुंबई मस्तान मिर्जा को ही पहला डॉन कहते थे. परन्तु मस्तान मिर्जा करीम लाला को पहला डॉन कहता था. परन्तु उसका दबदबा कहे या या उसकी इज्जत, जब बाकि के दोनों डॉन के बीच मुंबई का बँटवारा किया, तब किसी ने उसका विरोध नहीं किया. हाजी मस्तान ने ही यह सुनिश्चित किया कि काम धंधे कि वजह से कभी भी कोई आपस में न टकराएँ. सफेद कपड़े ही पहनने का शौकीन, सफेद मर्सेडीस का शौकीन, 555 सिगरेट पीने का शैकीन मस्तान की पूरी मुंबई में तूती बोलती थी. मुंबई का अंडरवर्ल्ड डॉन होने के बाद भी मस्तान मिर्जा ने कभी खुद बंदुक खुद नहीं पकड़ा था और न ही गोली चलाया था. परन्तु पूरी मुंबई पर उसी का राज चलता था. यह बात अलग हैं कि मस्तान ने अपने ऐसे काम मतलब दूसरों को पिटवाने के लिए, एक शराब के तस्कर को खुद डॉन को खुद बनाया था, जिसका नाम था वरदराजन मुदालियर और करीम लाला तो पहले से ही था ही. जेल जाने से पहले तक मस्तान का कद बहुत ऊँचा हो चुका था.
बेसुमार ताकत और उसका परिचय
मस्तान मिर्जा का मुंबई में पुलिस और राजनेताओं के बीच अच्छी पकड़ थी और समय समय पर वह उसका इस्तेमाल भी करता रहता था. एक बार की बात है. मुंबई कस्टम में एक अधिकारी आया, जो बहुत ही ज्यादा ईमानदार था. मस्तान के बार बार कहने और लगभग हर एक लालच देने के बाद भी, वह मस्तान के सामने झुका नहीं और न ही खुद को बेचा. ऐसे में वह मस्तान के तस्करी के सामानों को पकड़ लिया करता था, जिससे मस्तान को बहुत नुकसान उठाना पड़ रहा था. अब मस्तान ने अपने राजनैतिक संपर्क की मदद से उस कस्टम अफसर का तबादला करवा दिया. जब वह कस्टम अफसर हवाई जहाज में बैठ कर जाने ही वाला था, तब मस्तान मिर्जा वहाँ दाखिल होता है और उस अफसर से हाथ मिला कर और बेस्ट ऑफ लक बोलकर वापस चला आता है. परन्तु उस अफसर को किसी भी तरह का नुसकान नहीं पहुँचता. यह एक संदेश था कि मेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता.
दूसरा किस्सा यह हैं कि मस्तान मिर्जा कभी भी गिरफ्तार नहीं हुआ था. परन्तु एक बार एक नेता दिल्ली में धरने पर बैठ कर गए. मस्तान मिर्जा के गिरफ्तारी की मांग करने लगे. ऐसे में मुंबई पुलिस पर दबाव आया. उसके बाद मस्तान मिर्जा को पुलिस ने गिरफ्तार तो कर लिया, परन्तु उसे जेल नहीं ले जाया गया. बल्कि एक गेस्ट हॉउस में दो दिनों तक रखा गया. साथ ही उसके सभी ऐसो आराम का ख्याल रखा गया. दो पुलिस वाले खुद उसकी ड्यूटी में हमेशा तैनात रहते थे. यह दोनों दृश्य आपको किसी न किसी हिंदी फिल्म में देखने को मिल ही जायेगा. यह था मस्तान मिर्जा की ताकत की एक झलक.
बॉलीवुड से नजदीकी
मस्तान मिर्जा को बॉलीवुड की दुनिया बहुत ही ज्यादा पसंद थी. इसी वजह से जब जुर्म की दुनिया तरफ से दूसरे धंधों की तरफ मुड़ा, तो उसने रियल स्टेट और फिल्मों में पैसे लगाने का काम करने लगा मस्तान मिर्जा मधुबाला की खूबसूरती का दिवाना था और वह मधुबाला से शादी करना चाहता था यह बात मधुबाला तक पहुँच भी गई थी परन्तु यह सिर्फ एक तरफा प्यार ही रह गया मेरा नाम जोकर फिल्म की असलता के बाद जब राज कपूर कर्ज में डूब चुके थे, तब राजकपूर के पास उनकी बॉबी फिल्म के बनाने के लिए पैसे नहीं थे. तब वह मस्तान के पास पैसों की मदद माँगने पहुँचे थे. हालाँकि यह बात फैलने के बाद राजकपूर ने माफी माँगा था. मस्तान मिर्जा के बॉलीवुड स्टार से बहुत अच्छी मित्रता थी. जैसे कि दिलीप कुमार, अमिताभ बच्चन, संजीव कुमार, फिरोज खान, संजय खान, धर्मेंद्र, सुनील दत्त, सलीम जावेद इत्यादि मस्तान के मित्र थे. मस्तान मिर्जा के फिल्मों में पैसे लगाने के बाद से अंडरवर्ल्ड पर आधारित फिल्मे बनने लगी. जिसकी शुरुआत हुई थी, अमिताभ बच्चन के जंजीर फिल्म से, जिसमें प्राण ने किरदार निभाया था शेरखान का जो करीम लाला पर आधारित था. उसके बाद खुद मस्तान मिर्जा के जीवन पर आधारित फिल्म बनी दीवार, जिसमें अमिताभ बच्चन ने मस्तान मिर्जा का किरदार निभाया था. उसके बाद मस्तान मिर्जा को एक लड़की दिखी, जो मधुबाला जैसी ही दिखती थी और फिल्मी दुनिया में पैर जमाने की कोशिश कर रही थी. मस्तान मिर्जा ने उस लड़की से शादी कर लिया था.
वन्स अपॉन टाइम इन मुंबई में अजय देवगन द्वारा अभिनीत सुल्तान मिर्जा का किरदार भी हाजी मस्तान पर आधारित ही था.
आपातकाल और जेल
आपातकाल के लगते ही मुंबई में रह रहे सभी गैंगस्टर्स पर कानून की नजर टेढ़ी हुई और सभी को जेल में डाल दिया गया. तब पहली बार मस्तान मिर्जा को भी जेल में जाना पड़ा. मस्तान मिर्जा की पहुँच और उसके पास पैसे का अंदाजा इसी बात से लगाएँ कि मस्तान मिर्जा ने इंदिरा गाँधी तक यह संदेश पहुँचाया कि जितना कहेंगे उतना पैसा मिल जायेगा, बदले में मस्तान मिर्जा को छोड़ दे. परंतु उसके इस प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया गया. जेल में भी मस्तान मिर्जा का बनाया संबंध काम आया और उसे जेल में वो सभी सुविधाएँ मिली जो बहार उसे मिलती थी.
परंतु यही पर मस्तान के जिंदगी ने एक और करवट लिया. मस्तान जय प्रकाश नारायण के संपर्क में आया. वह जय प्रकाश से काफी प्रभावित हुआ था. जय प्रकाश भी मस्तान के बारे में काफी सुन चुके थे. क्योंकि आपातकाल लगने के बाद मस्तान ने जनता दाल के कई नेताओं को छुपाने में मदद किया था. जय प्रकाश ने मस्तान को कसम खिलाया कि आज के बाद से वह कोई भी ऐसा काम नहीं करेगा जो देश के खिलाफ हो. ऐसे में मस्तान ने जुर्म की दुनिया से दुरी बनाने का मन बना लिया. मस्तान 18 महीने तक जेल में रहा अगले चुनाव में इंदिरा गाँधी हार गई और जनता पार्टी की सरकार आई. तब मस्तान पर लगे आरोप हटा लिए गए और उसे रिहा कर दिया गया. परन्तु अब यह मस्तान बहुत बदल चूका था.
मस्तान हज की यात्रा भी कर आया. तबसे उसे "हाजी मस्तान" के नाम से जानने लगे. हालाँकि ऐसा भी कहा जाता है कि जेल से वापस आने के बाद ही उसने खुद को हाजी कहना शुरू कर दिया था.
राजनीति में प्रवेश
यह वह दौर था जब हाजी मस्तान ने जुर्म की दुनिया से दुरी बना लिया था. तब करीम लाला के पठान गैंग और दाऊद इब्राहिम के गैंग के बीच गैंगवॉर की खबरें अखबार के पहले पन्ने पर दिखती थी. ऐसे में हाजी मस्तान ने दोनों गैंग के बीच सुलह करवाने की कोशिश भी किया. परंतु बाद में हाजी मस्तान ने इस तरफ नहीं देखा और 1984 में महाराष्ट्र के दलित नेता जोगिन्दर कावड़े के साथ मिलकर खुद की पार्टी "दलित-मुस्लिम सुरक्षा महासंघ" बनाया. आगे चलकर 1990 में इसका नाम बदल कर "भारतीय अल्पसंख्यक महासंघ" कर दिया गया था. बॉलीवुड के सुपर स्टॉर दिलीप कुमार ने इस सियासी पार्टी का खूब प्रचार किया. यह बात अलग है कि हाजी मस्तान को राजनीति में सफलता नहीं मिला. परंतु हाजी मस्तान ने ही चुनाव में काले धन का उपयोग करने का चलन बनाया और वही से आज तक चुनाव के दौरान काले धन का उपयोग हो रहा है.
अपने जिंदगी के अंतिम समय के दो से तीन वर्षों में हाजी मस्तान अपने परिवार के साथ ही था. हाजी मस्तान की तीन बेटियाँ थी और हाजी मस्तान ने एक बेटे को गोद लिया था. 25 जून 1994 के दिन हाजी मस्तान की मृत्यु दिल का दौरा पड़ने से हो गई.
हाजी मस्तान के साथ ही मुंबई अंडरवर्ल्ड का वो युग खत्म हो गया जो उसूलों पर चलता था और मानता था. इन डॉन ने कभी मुंबई की सड़कों पर गैंगवॉर की वजह से खून नहीं बहाया था. इसके साथ ही उस युग का भी अंत हो गया, जहाँ पर साधारण जनता इनके पास अपनी समस्याएँ लेकर जाती थी. उसके बाद जो भी डॉन बन कर मुंबई में आए वो ड्रग्स, शराब, हथियार, आतंकवाद लगभग सभी गलत धंधे शुरू कर दिए. बॉलीवुड से हप्ता लेना और बिल्डरों से भी पैसे लेना शुरू कर दिया. दाऊद इब्राहिम उर्फ भाई और दगड़ी चाल और उसके आसपास के इलाके में डैडी के नाम से मशहूर अरुण गवली. उनके बारे में अगले लेख में बात करेंगे.
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जय हिन्द
वंदेमातरम
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