मुंबई अंडरवर्ल्ड के पिछले भाग में हमने पढ़ा था, करीम लाला के बारे में, जिसने मुंबई अंडरवर्ल्ड को बनाया. आज हम बात करेंगे मुंबई अंडरवर्ल्ड के उस डॉन के बारे में, जिसे शायद सबसे काम आंका गया और इसी वजह से उसके बारे में ज्यादा बात नहीं होता. इसका शायद एक बड़ा कारण यही रहा है कि इस डॉन का दाऊद इब्राहिम से कोई खास लेना देना नहीं था. अंडरवर्ल्ड के उन्ही डॉन के बारे ज्यादा पढ़ा और लिखा जाता है, जिनका दाऊद इब्राहिम से कोई रिश्ता रहा हो. जैसे करीम लाला, जिसके पठान गैंग के साथ दाऊद इब्राहिम की दुश्मनी थी और हाजी मस्तान, जिसके गैंग में रह कर दाऊद ने सभी काम सीखा था. शायद यही कारण रहा है इस डॉन के उपेक्षित रहने का. हम बात कर रहे है मुंबई अंडरवर्ल्ड के पहले हिन्दू डॉन के बारे में, जिसका नाम है वरदराजन मुनिस्वामी मुदालियर. आइए देखते है इसके बारे में.
प्रारंभिक जीवन
वरदराजन मुदालियर का जन्म मद्रास प्रेसिडेंसी के तूतीकोरन (आज का थूटुकुडी, तमिलनाडु) में 1 मार्च 1926 में हुआ था. उसका परिवार आर्थिक रूप से संपन्न नहीं था. तूतीकोरन में ही उसकी प्रारम्भिक शिक्षा हुआ. उसके बाद मुदालियर वही पर नौकरी करने लगा. परन्तु उसका मन नौकरी में नहीं लगा. वह बड़ा पैसे वाला आदमी बनना चाहता था. इसी वजह से उनके किसी बड़े शहर जाकर पैसे कमाने का सोचा और उसके बाद 1960 की शुरुआत में ही वह सपने लिए सपनों के शहर मुंबई में चला गया. वहाँ जाने पर भी अच्छी पढाई नहीं होने के कारण उसे वीटी (विक्टोरिया टर्मिनल, आज छत्रपति शिवाजी टर्मिनल) स्टेशन पर कुली का काम करना पड़ा. कुली का काम करने पर भी वह पास के ही बाबा बिस्मिल्लाह शाह दरगाह के पास गरीबों को खाना भी खिलता था. यही पर उसकी मुलाकात कुछ ऐसे लोगो से हो गई जो अवैध शराब के कारोबार से जुड़े हुए थे और यही से वह भी अपराध की दुनिया की तरफ बढ़ चला.
अपराध की दुनिया में कदम
अवैध शराब के धंधे में वरदराजन एक गुर्गे की तरह ही जुड़ा. उसके बाद उसने खुद इस धंधे में पैसे लगाना शुरू किया और धीरे धीरे खुद शराब बांटने का काम करने लगा. बाद में वो खुद ही अवैध शराब का माफिया बन गया. वह अपने धंधे को और आगे बढ़ने की तयारी कर चूका था, परन्तु वो चाह कर भी इसके आगे कुछ नहीं कर सकता था. क्योंकि उस समय मुंबई पर दो डॉन का राज था, करीम लाला और हाजी मस्तान. हाजी मस्तान भी मद्रास प्रेसीडेंसी (आज तमिलनाडु) से ही था. इसी वजह से वरदराजन को हाजी मस्तान से मदद मिलने की ज्यादा उम्मीद था. वरदराजन ने हाजी मस्तान से मिलने का रास्ता बनाया और हाजी मस्तान से मिला. हाजी मस्तान उस से बहुत प्रभावित हुआ और उसने वरदराजन को अपने साथ मिल कर काम करने को कहा. उस वक्त हाजी मस्तान बोम्बे में तस्करी का बेताज बादशाह था और बॉम्बे पोर्ट पर उसी का राज चलता था. उसने बॉम्बे पोर्ट पर वरदराजन को भी काम करने की इजाजत दे दिया. इसी के साथ आगाज हुआ बॉम्बे पोर्ट पर माल चोरी का और वरदराजन को अब अपने पैर पसारने का भी मौका मिल चूका था. धीरे धीरे उसका काम और कद दोनों बढ़ता गया. इसी बीच हाजी मस्तान ने वरदराजन की मुलाकात करीम लाला से भी करवा दिया. अब वरदराजन को किसी का डर नहीं था और वरदराजन वर्धा भाई के नाम से मशहूर हो गया.
वर्धा भाई ने अपने गैंग में तमिल लोगों को काम देना शुरू किया. इसी वजह से उस समय धारावी फैलना शुरू हुआ और वर्धा भाई का काम ऐसा फैला कि जिस हाजी मस्तान ने उसे काम करने का इजाजत दिया था, और खुद वरदराजन को अंडरवर्ल्ड का डॉन बनाया था, वही हाजी मस्तान अब वर्धा भाई की मदद से अपना काम करवाने और उसे एक तय हिस्सा देने लगा. इसके बाद वर्धा भाई ने भी महँगी घड़ी, रेडियो की तस्करी करना शुरू किया. उसके बाद वह भी सोने चांदी की तस्करी से जुड़ गया. साथ ही साथ वर्धा भाई ने सुपारी लेना, जमीन पर कब्जा करना और जमीन खाली करवाना और नशीले पदार्थ जैसे ड्रग्स के धंधे में भी उतर गया. मतलब अब वर्धा भाई का कद बहुत बढ़ चूका था.
अपराध की दुनिया का सर्वेसर्वा
सत्तर के दसक तक अब मुंबई में तीन अंडरवर्ल्ड डॉन हो चुके थे. भविष्य में कभी भी काम को लेकर आपस में कोई भी विवाद न हो, इसके लिए हाजी मस्तान ने तीनों के बीच मुंबई को बाँट दिया. पूर्व और उत्तरी मध्य मुंबई का हिस्सा मिला वर्धा भाई को. दक्षिणी और मध्य मुंबई का सारा काम मिला करीम लाला को. हाजी मस्तान खुद समुद्री रस्ते और मुंबई में अवैध निर्माण का काम देखने लगा. अब वर्धा भाई एक बहुत बड़ा नाम बन चूका था. धारावी और माटुंगा क्षेत्र में उसकी पैठ बन चुकी थी. इन इलाको में रहने वाले तमिल लोगों का वह भगवान बन चूका था. उसने धारावी के झुग्गी को अपने धंधे का स्वर्ग बनाया. उसने इन तमिल बाहुल्य इलाके में अपना एक समानांतर न्याय प्रणाली चलाया. तमिल लोगों के बीच किसी भी मुद्दे का फैसला और किसी भी झगड़े का निपटारा यही करता था. उसके इलाके में उसकी तूती बोलती थी. इतना ज्यादा की खुद पुलिस भी इसके इलाके में नहीं आती थी, आती भी थी तो वर्धा भाई की इजाजत लेकर के.
80 के दशक में जब हाजी मस्तान जुर्म की दुनिया से दुरी बना चूका था और खुद एक समाज सेवक बन कर काम करने लगा था, उसी वक्त करीम लाला के पठान गैंग और दाऊद इब्राहिम के गैंग के बीच गैंग वॉर चल रहा था. तब वर्धा भाई ही मुंबई के अंडरवर्ल्ड का सर्वेसर्वा बन चूका था. उस समय उसके कद का दूसरा और कोई नहीं था. मुंबई में वर्धा भाई की "पहला हिन्दू अंडरवर्ल्ड डॉन" के रूप में छवि बनी.
वर्धा भाई के साम्राज्य का पतन
एक कहावत है कि अगर पुलिस अपने पर आ जाये, तो उस से बड़ा गुंडा या डॉन और कोई नहीं है. यही हुआ वरदराजन के साथ. भारत देश में आपातकाल के समय ही मुंबई के सभी गैंगस्टर के खिलाफ एक सख्त कानून निकाला गया था, जिसके तहत मुंबई के सभी गैंगस्टर को जेल में डाल देना था. इसी के बाद से वर्धा भाई पर भी पुलिस का शिकंजा कसना शुरू हुआ. मुंबई के बहुत ही तेज तर्रार पुलिस अधिकारी थे, वाई सी पवार. वो वर्धा भाई के पीछे पड़ गए. उन्होंने वर्धा भाई के साम्राज्य को चुनौती दिया, वर्धा भाई के गणपति पूजा को रोक कर के. वर्धा भाई अपने इलाके माटुंगा में बड़े धूम धाम से गणपति पूजा करता था, जो माटुंगा स्टेशन के ठीक बहार होता था. वाई सी पवार ने पवार ने सबसे पहले इस पूजा को रोका और इसे एक विशाल क्षेत्र से सीमित कर दिया.
दरअसल अस्सी का दसक मुंबई का यह वह दौर था, जब मुंबई में करीम लाला के पठान गैंग और दाऊद इब्राहिम गैंग के बीच में गैंग वॉर शुरू हो चूका था. अब तक शांत रहने वाले मुंबई की सड़के खून से लाल हो चुकी थी और रोजाना अखबारों के पन्ने इन्ही गैंगवॉर की सुर्खियों से भरे मिलते थे. तब मुंबई पुलिस ने इन अपराधियों के मुंबई से खात्मे का योजना बनाया. उस समय पठान गैंग और दाऊद इब्राहिम गैंग आपस में लड़ मर रहे थे. इसी वजह से पुलिस ने इन दोनों गैंगो को आपस में लड़ने मरने दिया. कोई न कोई तो लड़ कर मर जायेगा और जो बचेगा उसे यह मार देंगे. हाजी मस्तान पहले ही सब कुछ छोड़ कर समाज सुधारक बन गया था. ऐसे में वाई सी पवार के निशाने पर आया वर्धा भाई. वर्धा भाई ने वाई सी पवार को अपने साथ मिलाने का बहुत कोशिश किया, परन्तु सब बेकार गया. वाई सी पवार ने वर्धा भाई पर किसी भी तरह का दया नहीं दिखाया और उसके गैंग के सभी लोगों का एक एक कर के एनकाउंटर कर दिया और जो बचे उन्हें जेल में डाल दिया. वर्धा भाई सभी अवैध जुए के अड्डे और शराब के अड्डे बंद करवा दिया था. इसका नतीजा यह हुआ कि 1983 के अंत तक वर्धा भाई को मुंबई छोड़ कर जाना पड़ा. उसकी मदद को कोई नहीं आया. क्योंकि पहले के दोनों अंडरवर्ल्ड डॉन में से एक जुर्म की दुनिया से दूर हो चूका था और एक अपने जुर्म के साम्राज्य को बचाने में व्यस्त था.
वर्धा भाई सब कुछ छोड़ कर मुंबई से वापस तमिलनाडु आ गया. अपनी बाकि की जिंदगी इस डॉन ने यही बिताया और 2 जनवरी 1988 के दिन दिल का दौड़ा पड़ने की वजह से उसकी मृत्यु हो गई. वरदराजन की अंतिम ईच्छा यही था कि उसका अंतिम संस्कार मुंबई में ही हो. इसी वजह से हाजी मस्तान ने एक चार्टर प्लेन में वरदराजन के पार्थिव शरीर को मुंबई मंगवाया और उसका अंतिम संस्कार मुंबई में किया. वरदराजन के अंतिम दर्शन करने के लिए माटुंगा और धारावी के हजारों लोग आए और इस तरह से मुंबई अंडरवर्ल्ड के पहले हिन्दू डॉन का अंत हुआ.
अंडरवर्ल्ड के इस पहले हिन्दू डॉन वरदराजन मुदालियर के जीवन पर कई फिल्में भी बनाई गईं. वर्ष 1987 में मनी रत्नम ने उसके जीवन पर आधारित "नायागन" नामक फिल्म बनाई थी, जिसमें मुख्य भूमिका में कमल हसन थे. इसी फिल्म का 1988 में रीमेक बनाया फिरोज खान ने. उस हिंदी फिल्म का नाम था दयावान, जिसमें विनोद खन्ना ने मुख्य भूमिका निभाया था. इसी तरह से 1991 में बनी मलयालम फिल्म "अभिमन्यू" में भी एक किरदार वरदराजन से मिलता जुलता था. अमिताभ बच्चन ने खुद इस बात का खुलासा किया था कि फिल्म अग्निपथ में उन्होंने कुछ डायलॉग वरदराजन की तरह बोले थे. वर्ष 2013 में तमिल फिल्म "थलाईवा" में सत्याराज नामक किरदार भी वरदराजन पर आधारित था. वर्ष 2015 में आई तमिल फिल्म 'यागावाराईनम ना कक्का' में अभिनेता मिथुन चक्रबर्ती ने भी वरदराजन के जीवन पर आधारित किरदार निभाया था. साउथ में भगवान की तरह पूजे जाने वाले साउथ फिल्मों के सुपरस्टार रजनीकांत की फिल्म "काला" भी वरदराजन पर आधारित है. सीधे सीधे तौर पर यह समझ लें कि अगर किसी फिल्म में कोई ऐसा डॉन दिखाए, जो दक्षिण भारत से हो और धारावी में राज करता हो और वहाँ के स्थानीय लोग उसे भगवान की तरह पूजते हो, तो समझ लें वह किरदार वरदराजन मुदालियर से प्रेरित है.
जल्द मिलेंगे अपने अगले लेख में, जो होगा मुंबई के सबसे शरीफ डॉन, हाजी मस्तान मिर्जा के बारे में.
जय हिन्द
वंदेमातरम
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