अपराध की दुनिया को अंडरवर्ल्ड के नाम से जाना जाता है. भारत में अंडरवर्ल्ड का गढ़ मुंबई को कहा जाता है. इसी वजह से अंडरवर्ल्ड को मुंबई अंडरवर्ल्ड के नाम से भी जाना जाता है. मुंबई अंडरवर्ल्ड का नाम सामने आते ही कुछ चेहरे आँखों के सामने तैरने लगते है. जैसे मस्तान मिर्जा उर्फ हाजी मस्तान, वरदराजन मुदालियर उर्फ वर्धा भाई, अरुण गवली उर्फ डैडी, दाऊद इब्राहिम और अब्दुल करीम शेर खान. मुंबई अंडरवर्ल्ड का इतिहास भारत की स्वतंत्रता से पहले यानि करीब 1940 से मौजूद है. मुंबई में अंडरवर्ल्ड का पहले नामोनिशान नहीं था. मुंबई अंडरवर्ल्ड को बनाने का और आर्गनाइज्ड क्राइम की दुनिया को शुरू करने का श्रेय जाता है, अब्दुल करीम शेर खान को, जिसे करीम लाला के नाम से जाना जाता है. वही करीम लाला, जिसने कभी आज के मुंबई अंडरवर्ल्ड के डॉन कहलाने वाले दाऊद इब्राहिम को सड़क पर दौड़ा कर मारा था. वही करीम लाला, जिसे मुंबई अंडरवर्ल्ड का पहला डॉन कहलाने वाला खुद हाजी मस्तान भी करीम लाला को मुंबई का पहला अंडरवर्ल्ड डॉन कहता था. वही करीम लाला, जिसकी 1940 से 1980 यानि 40 वर्षों तक अंडरवर्ल्ड पर उसकी तूती बोलती थी. आइए जानते है अंडरवर्ल्ड के पहले डॉन करीम लाला के बारे में.
प्रारंभिक जीवन
करीम लाला एक पश्तो (हिंदी/अरबी) बोलने वाला पठान था. उसका जन्म अफगानिस्तान के कुनार में 1911 में हुआ था. वह 1920 की शुरुआत में मुंबई के मुस्लिम बहुल्य इलाके भिंडी बाजार में आकर अपने परिवार के साथ बस गया. उसके बाद वह मुंबई की गोदी में एक साधारण से मजदूर की तरह काम करने लगा. बाद में वह वहाँ के स्थानिक पठानों के एक गैंग से जुड़ गया. यह गैंग गुजराती और मारवाड़ी व्यापारियों के लिए अवैध रूप से उनके पैसों की वसूली करते थे. यह व्यापारियों का समूह लम्बे चौड़े पठानों को भाड़े पर रखते, जिस से समय से पैसे नहीं देने वालों से पैसे वसूली करने में आसानी हो. करीम लाला लगभग 7 फुट लम्बा था. आगे चल कर वो इस पठान गैंग का मुखिया बन गया और वही से मुंबई अंडरवर्ल्ड की नीव पड़ी.
अपराध के साम्राज्य का उदय
पठान गैंग का मुखिया बनने के बाद जब उसके पास कुछ पैसे इकठ्ठे हो गए, तब उसने पैसों को व्याज पर देना शुरू किया. यही से वह अब्दुल करीम शेर खान से करीम लाला बन गया. लाला का पश्तों में मतलब होता है, बड़ा भाई. उसके बाद करीम लाला ने अपना साम्राज्य बढ़ाना शुरू किया और करीम लाला ने जुआ खिलाना शुरू किया और धीरे धीरे अपराध की दुनिया में उसका कद बढ़ता गया. उसके बाद उनेक अलग चीजों की तस्करी करना शुरू कर दिया, जिसमें सोने और हीरे की तस्करी शामिल था. उसके बाद वह सट्टा, अवैध शराब, अवैध वसूली, अपहरण, फिरौती, हप्ता वसूली, सुपारी लेना और बेटिंग लगाना इत्यादि धंधे शुरू कर दिए थे. करीम लाला ने कई कैरम क्लब भी बनाये थे, जो उसके सभी गैर कानूनी धंधो का अड्डा था. इन सभी धंधो के साथ ही करीम लाला रेड लाइट एरिया में भी घुस गया. जिस्मफरोशी के धंधे के अलावा अरब देशों में कम उम्र की लड़कियों का अपहरण करके भेजने का काम भी करता था. उसके लिए बोली लगती थी इस तरह से करीम लाला का कद बहुत ज्यादा बढ़ गया था और वह मुंबई अंडरवर्ल्ड पर एक छत्र राज करता था.
काम करने का तरीका
ऐसा नहीं था कि करीम लाला यह सब गैर कानूनी काम करता रहा और उसे रोकने वाला कोई नहीं था. परन्तु करीम लाला के काम करने का तरीका था कि अपने दुश्मन को भी दोस्त बना लो और फिर काम करो. अपने इसी सिद्धांत का उपयोग कर के करीम लाला ने पुलिस खेमे में अपने दोस्त बना रखे थे. थोड़ा बहुत करीम लाला जैसी सोच रखने वाले उस समय के दो अंडरवर्ल्ड डॉन हाजी मस्तान और वरदराजन मुदालियर को भी अपना दोस्त बना कर तीनो ने मुंबई को आपस में बाँट लिया था. इसी वजह से इन तीनों डॉन के बीच कभी भी टकराव नहीं हुआ और करीम लाला का कद बढ़ता चला गया.
करीम लाला की छड़ी
करीम लाला अपने शुरुआती समय में पठानी पहना करता था. परन्तु जब उसने अपना कद बढ़ने के साथ ही अपने कपडे पहनने के तरीके को बदला और सफारी पहनने लगा. करीम लाला के पैरों में कुछ समस्या आ गया था, जिसके वजह से वह चलने के लिए छड़ी का इस्तेमाल करता था और यही छड़ी करीम लाला की पहचान बन गई. उस समय करीम लाला की धाक पूरी मुंबई पर थी. इसी वजह से करीम लाला के गुर्गों ने करीम लाला की उस छड़ी की हजारों नकल बनवाई. जहाँ पर भी उन लोगों को कोई जगह खाली करवाना होता था, वे करीम लाला की छड़ी को वहाँ रख देते थे. उस छड़ी को रखने का मतलब होता था कि यहाँ करीम लाला खुद खड़ा है. इस जगह को खाली कर दो, वरना ये करीम लाला के साथ भिड़ना माना जायेगा और वह जगह मिनटों में खाली हो जाता था. करीम लाला के गुर्गों और करीम लाला के पठान गैंग के लिए तब काम करना और आसान हो गया था. उसकी एक छड़ी वह सारे काम करवा देती थी, जो उसके गुर्गे मिल कर भी नहीं कर पाते थे. इसी बात से आप करीम लाला के वर्चस्व का अंदाजा लगा सकते है.
जनता दरबार
यह वह दौर था जब मुंबई में करीम लाला की तूती बोलती थी. हर तरफ करीम लाला का ही राज था. ऐसे में करीम लाला सप्ताह में एक बार जनता दरबार लगता था, जहाँ पर जनता बिना किसी भेदभाव के उसके पास अपनी फरियाद लेकर आती, करीम लाला उन्हें सुनता और उसका फैसला करता था. ऐसा अक्सर होता था कि करीम लाला के फैसले को बड़े-बड़े अधिकारी तक मानते थे. धीरे धीरे उसके जनता दरबार में पुलिस, जज और बॉलीवुड से जुड़े लोग भी आने लगे. किसी का पैसा किसी के पास फँसा हो और वह नहीं दे रहा हो या देने में आनाकानी कर रहा हो या कोई और बात हो, करीम लाला सबकी फरियाद सुनता और अपना फैसला सुनता. सबसे बड़ी बात तो यह थी कि सभी उसका फैसला मानते थे.
एक ऐसा ही किस्सा हुआ था, जब करीम लाला ने एक लेडी मजिस्ट्रेट का मजाक उड़ा दिया था. हुआ यूँ कि करीम लाला को किसी मुकदमे कि वजह से अदालत में लाया गया. करीम लाला जब कटघरे में आकर खड़ा हुआ तो मजिस्ट्रेट ने पूछा कि "तुम्हारा नाम क्या है?" यह बात सुनकर करीम लाला हॅंस पड़ा और बोला, "काला कोर्ट पहने कौन है ये औरत, जो मुझे नहीं जानती." करीम लाला की बात सुनकर वह कोर्ट में बैठे सभी लोग हॅंस पड़े. अमिताभ बच्चन के जिन्दगी की सबसे पहली कायमाब फिल्म जंजीर, जिसने अमिताभ बच्चन के फिल्मी करियर को बदल कर रख दिया और उन्हें रातोंरात एक बड़ा सितारा बना दिया, में उस समय के सबसे बड़े अभिनेता और बॉलीवुड के सबसे बड़े खलनायक, प्राण द्वारा अभिनीत शेर खान का किरदार करीम लाला पर ही आधारित माना जाता है. और शेर खान का पुलिस स्टेशन का वह मशहूर सीन, जिसमें शेर खान कहता है कि "इस इलाके में नए आए हो साहब, वरना शेर खान को कौन नहीं जानता" यह करीम लाला के उसी किस्से पर आधारित है. सलमान खान की सौतेली माँ हेलेन को जब उनके पहले पति प्रेम नारायण अरोड़ा ने जब घर से निकल दिया था, तब करीम लाला ने ही हेलेन को पनाह दिया था. यह सब करीम लाला का बॉलीवुड से नजदीकियाँ दर्शाता है.
करीम लाला के साम्राज्य का अंत
लगभग 40 वर्षों मुंबई पर राज करने के बाद एक नए गैंग ने करीम लाला के पठान गैंग को चुनैती दिया. वह गैंग था, एक पुलिस कांस्टेबल के दो बेटों सब्बीर इब्राहिम कासकर और दाऊद इब्राहिम कासकर का. यह दोनों भाई अपने गैंग के साथ पठान गैंग से सीधे भीड़ गए थे. 1980 तक वर्धा भाई सब छोड़ कर वापस जा चूका था हाजी मस्तान भी राजनीती और समाज सुधारक के रूप में आगे बढ़ रहा था, ऐसे में उसने भी जुर्म की दुनिया से दुरी सी बना लिया था. इसी वजह से कासकर भाइयों का एक मात्र प्रतिद्वंदी था करीम लाला का पठान गैंग. करीम लाल ने दाऊद के मामले में पहले हस्तक्षेप नहीं किया. क्योंकि ऐसा करने से दाऊद का ही नाम होता. उसने दाऊद से अपने पठान गैंग को ही निपटने दिया. परन्तु एक दिन दाऊद करीम लाला के हाथ लग गया. तब करीम लाला ने दाऊद की भरे बाजार काफी पिटाई कर दिया और इन दोनों गैंगों के बीच में खुनी लड़ाई शुरू हुआ. इसी को पहली बार गैंग वॉर का नाम दिया गया. उस समय पठान गैंग ने दाऊद के भाई सब्बीर इब्राहिम की हत्या करवा दिया. उसके बाद दाऊद भी 5 वर्षों के बाद करीम लाला के भाई की हत्या कर दिया. आपको यह बात ध्यान में रखना होगा की दाऊद के उदय के समय करीम लाला 75 वर्ष का हो चूका था. करीम लाला ने अपनी बढ़ती उम्र की वजह से जुर्म की दुनिया से दुरी बना लिया था और उसके साथ के दोनों डॉन वरदराजन मुदालियर और हाजी मस्तान पहले से ही जुर्म की दुनिया से दूर हो चुके थे. इन तीनों डॉन के हटने के बाद ही दाऊद इब्राहिम कासकर मुंबई अंडरवर्ल्ड का डॉन बन पाया था, जिसमें दाऊद की किस्मत ने उसका साथ दिया.
19 फरवरी 2002 में 91 वर्ष की उम्र में करीम लाला की मृत्यु मुंबई में हो गई, परंतु समय समय पर करीम लाला का नाम सामने आता ही रहा है. जैसे अग्निपथ में ऋषि कपूर का किरदार रऊफ लाला भी करीम लाला के किरदार से प्रेरित था. उसके बाद शिवसेना के नेता संजय राऊत जब यह बयान दिया कि इंदिरा गाँधी करीम लाला से मिलती थी. सबसे अंत में आलिया भट्ट की आगामी फिल्म, जिसमें वो गंगूबाई बनी है, जो करीम लाला की राखी बहन है. इस तरह से मुंबई में अंडरवर्ल्ड को बनाने वाला और आर्गनाइज्ड क्राइम के जन्मदाता करीम लाला का अंत हुआ. इसी के साथ अंत हुआ मुंबई अंडरवर्ल्ड के एक ऐसे युग का, जो उसूलों में मानता था. जल्द मिलेंगे अपने अगले लेख में, जो होगा मुंबई के सबसे पहले हिन्दू डॉन, वरदराजन मुदालियर के बारे में.
जय हिन्द
वंदेमातरम
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