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15 अगस्त: देश का 74वां स्वतंत्रता दिवस

15 अगस्त 2020, यह भारत देश का 74वां स्वतंत्रता दिवस है. आज ही के दिन 1947 में भारत देश को स्वतंत्रता मिला था. शायद ही किसी का ध्यान " मिला" शब्द अपनी तरफ आकर्षित करने में सफल हो पाए. परन्तु ज्यादातर लोग इसे पढ़ने के बाद आगे बढ़ जाएँगे. कोई भी स्वतंत्रता मिला था और स्वतंत्रता लिया था में रहे अंतर को महसूस करने या समझने की कोशिश नहीं करेगा. स्वतंत्रता मिला अर्थात हमें यह भाग्यवश मिल गया है, इसमें हमारा योगदान शुन्य या नहीवत है. स्वतंत्रता लिया अर्थात अपने बाहुबल और बलिदान के दम पर लड़ कर छीन कर लिया. दुर्भाग्यवश हमें स्वतंत्रता मिला ही है, इसी वजह से आज तक जब भी भारत के स्वतंत्रता संग्राम की बात होती है, तो  संग्राम में अपने प्राणों की आहुति देने वाले क्रांतिवीरो की ही बात होती है. परन्तु कभी कोई सही कारण बता कर नहीं लिखा जाता कि इस कारण से हमारे भारत देश के लोगो ने स्वतंत्रता को ले लिया. जैसे अमेरिका के स्वतंत्र होने का, जर्मनी और इटली के एकीकरण का, रूस की क्रांति का चीन की क्रांति इत्यादि का सही कारण और क्रमबद्ध जानकारी मिल जायेगा, किन्तु ऐसा भारत के स्वतंत्रता के बारे में ...

गल्वान घाटी गतिरोध : भारत-चीन विवाद

  भारत और चीन के बीच में बहुत गहरे व्यापारिक रिश्ते होने के बावजूद भी इन दोनो देशों के बीच टकराव होते रहे है. 1962 और 1967 में हम चीन के साथ युद्ध भी कर चुके है. भारत चीन के साथ 3400 KM लम्बे सीमा को साँझा करता है. चीन कभी सिक्किम कभी अरुणाचल प्रदेश को विवादित बताता रहा है और अभी गल्वान घाटी और पैंगॉन्ग त्सो झील में विवाद बढ़ा है. पर फ़िलहाल चीन गल्वान घाटी को लेकर ज्यादा चिंतित है और उसकी चिंता भी बेकार नहीं है. दोनों सेना के उच्च अधिकारियो के बीच हुए, बातचीत में दोनों सेना पहले पीछे लौटने को तो तैयार हो गई. पर बाद में चीन ने गल्वान घाटी में भारत द्वारा किये जा रहे Strategic Road का निर्माण काम का विरोध किया और जब तक इसका निर्माण काम बंद न हो जाये तब तक पीछे हटने से मना कर दिया. भारत सरकार ने भी कड़ा निर्णय लेते हुए पुरे LAC (Line of Actual Control) पर Reserve Formation से अतिरिक्त सैनिको को तैनात कर दिया है. एक आंकड़े की माने तो भारत ने LAC पर 2,25,000 सैनिको को तैनात कर दिया है, जिसमे 

जसवंत सिंह रावत : वीरता की एक अद्भुत कहानी

  1962 के भारत-चीन युद्ध में अकेले सीमा पर चीन की विशाल सेना से लोहा लेने वाले जांबाज भारतीय सैनिक राइफलमैन जसतंव सिंह रावत. देशप्रेम और वीरता की अद्भुत कहानी. एक ऐसी कहानी जो कल्पना के भी परे हो. एक अकेले भारतीय सैनिक ने 72 घंटे भूखा-प्यासा रहकर, सिर्फ अपने साहस, सूझबूझ और देशप्रेम के सहारे, न केवल चीनी सैनिकों को रोके रखा, बल्कि दुश्मन के 300 चीनी सैनिकों को अकेले मार गिराया था. एक ऐसा सैनिक जो इस दुनिया में नहीं है पर उसकी आत्मा आज भी देश सेवा करती है. एक ऐसा सैनिक जिसके लिए सेना ने बदले अपने नियम. एक ऐसा सैनिक जिसके सम्मान में दुश्मन भी अपना सर झुकाता है. आइए जानते हैं. राइफलमैन के पद पर गढ़वाल राइफल्स की चौथी बटालियन में सेवारत जसवंत सिंह रावत की कहानी के बारे में.

1962: रेजांग ला का युद्ध

  1962 रेजांग ला का युद्ध भारतीय सेना के 13वी कुमाऊँ रेजिमेंट के चार्ली कंपनी के शौर्य, वीरता और बलिदान की गाथा है. एक मेजर शैतान सिंह भाटी और उनके साथ 120 जवान, 3000 (कही कही 5000 से 6000 भी बताया है. चीन कभी भी सही आंकड़े नहीं बताता) से ज्यादा चीनियों से सामने लड़े और ऐसे लड़े कि ना सिर्फ चीनियों को रोके रखा, बल्कि रेज़ांग ला में चीनियों को हरा कर वापस लौटने पर मजबूर कर दिया और इसके बाद चीन ने एक तरफ़ा युद्धविराम की घोषणा कर दिया.

1962: नेहरू चीन युद्ध

  भारत और चीन की सेना गलवान घाटी में आमने सामने खड़ी है. स्थिति तनावपूर्ण है और गलवान घाटी के दोनों देश की सेनाओ के बीच में हुए झड़प के बाद यहाँ की स्थिति अत्यंत संवेदलशील हो चुकी है. हालाँकि की बातचीत से इस मुद्दे को सुलझाने का प्रयत्न किया जा रहा है, पर इसका कोई प्रभाव अभी दिखाई नहीं दे रहा. इसी बीच समाचार पर चल रहे बहस में अक्सर ये सुनने को मिल जाता है कि यह 1962 वाला भारत नहीं है. 1962 में भारत और चीन के बीच पहला युद्ध हुआ था, जिसमे चीन ने एक तरफ़ा युद्ध शुरू किया और एक तरफ़ा ही युद्ध विराम भी. तो क्या वाकई में भारत 1962 का युद्ध हार गया था? 1962 युद्ध के क्या कारण थे? जन्म और प्रारंभिक संबंध   भारत 1947 में स्वतंत्रत हुआ था और चीन अपने देश में चल रहे गृहयुद्ध से 1949 में बाहर निकला था. चीन ने कम्युनिस्ट सरकार को मान्यता दिया था इसी वजह से विश्व के अधिकतर देश चीन के खिलाफ थे. ऐसे में जब चीन अलग थलग पड़ चूका था तब अकेले भारत ने ही चीन का साथ दिया था.

1967: भारत चीन प्रथम युद्ध

भारत और चीन के बीच प्रथम युद्ध 1967 में हुआ था. उस से पहले   " 1962: नेहरू चीन युद्ध "   था. यह युद्ध पूरी तरह से नेहरू और चीन के बीच लड़ा गया था और भारतीय सीमा युद्ध मैदान बनी. इस युद्ध में भारतीय सेना को बेवजह अपना बलिदान देना पड़ा था. 1962 में भारतीय सेना के बलिदान को याद करते और उनके महान बलिदान को नमन कर के बढ़ते है अपने आज के मुद्दे की तरफ जो है,   "1967: भारत चीन प्रथम युद्ध." भारत के सिक्किम में "नाथू ला" और "चो ला" नाम के दर्रे है वहाँ ये लड़ाई लड़ी गई थी. हिमालय के दुर्गम पहाड़ियों में हर जगह से जाना मुमकिन नहीं होता. वहाँ ऐसे ही दर्रे होते है जो आवागमन के काम में आते है. नाथू

अगर भारत चीन में युद्ध हुआ तो..?

 आज सुबह की शुरुआत इसी खबर के साथ हुई है कि भारतीय सेना को LAC पर पूरी स्वतंत्रता दे दी गई है. मतलब जरूरत पड़ने पर सेना को गोली चलना है या तोप यह सेना को तय करना है. इसके लिए सेना को नई दिल्ली से आदेश लेना का या आदेश की प्रतीक्षा करने की जरुरत नहीं है. यह सबसे अच्छी खबर है. अगर सेना सीमा पर खड़ी है तो उसे जरुरत के हिसाब से कार्यवाही करने की पूरी स्वतंत्रता होनी ही चाहिए. साथ ही साथ सेना के जवानो की छुटियाँ रद्द कर दी गई है और सेना को वापस बुला लिया गया है. LAC पर सेना और वायुसेना की गतिविधियों में तेजी आई है. ऐसे में मन में प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या दोनों देशो के बीच युद्ध तय है?

क्या चीन का बॉयकॉट संभव है?

गलवान घाटी में भारतीय सेना और चीनी सेना के बीच में 15 16 जून की रात में झड़प हुई थी. इस अचानक हुए हमले के बाद भी बिहार रेजिमेंट के जवानों ने अद्भुत वीरता का प्रदर्शन किया और चीनी सैनिको पर क्रोध के साथ आक्रमण किया कि लगभग 18 चीनी सैनिकों की गर्दन को तोड़ दिया. इस झड़प में भारत के 20 जवान वीरगति को प्राप्त हुए और 40 से ज्यादा चीनी सैनिकों के मरने की खबर है. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने सेना को भी गोली चलाने की छूट दे दिया है. अब सेना को तय करना है कि वो गोली या तोप कब चलाएगी? सेना इतनी सक्षम है कि वो चीन को अच्छे से जवाब दे सकती है. सीमा पर चीन के साथ बिगड़े संबंध के बाद से ही भारत में बॉयकॉट चीन का लहर चल रहा है और 20 जवानों के वीरगति को प्राप्त होने के बाद यह लहर अब सुनामी की तरह पुरे देश में फैल रही है, जिसमे सभी चीनी उत्पादों का विरोध कर रहे है. कुछ लोग चीनी सामानों को तोड़ कर और जला कर चीनी उत्पादों का विरोध कर रहे हैं और साथ ही साथ भारत देश के लोगों से भी चीनी उत्पादों का विरोध करने के लिए कह रहे हैं. चीन अपने व्यापर के दम पर आज ना सिर्फ भारत को बल्कि विश्व के लगभग हर एक देश...

एक जैन वीरांगना: रानी अब्बक्का चौटा

भारतीय तटरक्षक बल ने 2012 में अपने खेमे में एक गश्ती पोत को शामिल किया. भारत में निर्मित इस पोत का निर्माण हिंदुस्तान शिप यार्ड में विशाखापटनम में हुआ था. 50 मीटर  लंबे इस गश्ती पोत में 5 अधिकारियों के साथ 34 नाविक इसमें रह सकते है. इसमें 1x 30mm CRN Naval Gun और 2x12.7mm HMG (High Machine Gan)  लगा हुआ है. इस गश्ती पोत का नाम है रानी अब्बक्का Class Patrol Vessel. अब मन में यह सवाल आया होगा कि कौन है ये रानी अब्बक्का, जिनके नाम पर इस गश्ती पोत का नाम रखा गया है? आइए  देखते है.

चीन किन कारणों की वजह से पीछे हटने को हुआ मजबूर?

  15 जून की रात में गलवान घाटी में हुए चीन के कायराना हमले, जिसमे भारत देश के 20 जवान वीरगति को प्राप्त हुए थे, के बाद से भारत ने चीन के लिए अपना रुख कड़ा और स्पष्ट कर दिया था. भारत ने सबसे पहले तो गलवान घाटी में सेना की अतिरिक्त टुकड़ी को भेजने से लेकर, वायुसेना के लड़ाकू विमानों को भेजने, रक्षा के थल, जल और वायु तीनो विभागों को किसी से स्थिति का सामना करने के लिए तैयार रहने और LAC पर पुराने समझौते को तोड़ कर जरुरत पड़ने पर गोली और तोप चलने तक की इजाजत देने जैसे कदम उठाये है. इस से चीन को सीधा और साफ़ सन्देश देना था कि भारत अपने जमीन का एक इंच हिस्सा भी नहीं देगा और गलवान जैसी घटना को अब बर्दास्त नहीं करेगा. हालाँकि बिहार रेजिमेंट के जवानों ने चीन के कायराना हमले का मुँह तोड़ नहीं गला तोड़ (बिहार रेजिमेंट के जवानो ने काम से काम 18 चीनी सैनिको का गला तोड़ दिया था) कर चीनी सैनिकों को जवाब तो दे दिया था, परन्तु ऐसी घटना भविष्य में न हो इसके लिए कड़ी चेतावनी भी दे दिया है. भारत ने सीमा पर हर एक तरह की स्थिति से निपटने की पूरी तयारी करने के बाद भी शांति बहाल करने का मार्ग नहीं छोड़ा. 22 जून को