भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार कहा था कि "हम चाह कर अपना पड़ोसी नहीं बदल सकते." बात तो सही है, पंरतु वक्त रहते खुद को पड़ोसी के अनुसार खुद को बदलना बहुत जरूर है. देश की आजादी के बाद से ही भारत ने केवल पाकिस्तान को ही अपना दुश्मन माना और जरुरी भी था. क्योंकि हम पाकिस्तान से अब तक 4 बार युद्ध कर चुके है. इसी वजह से पाकिस्तान को ही ध्यान में रखते हुए हमने अपने रक्षा उपकरणों का विदेशों से निर्यात किया और भारत में निर्माण किया. परंतु पाकिस्तान से दुश्मनी में हम इस कदर उलझे की हम अपने एक और पड़ोसी के बारे में भूल ही गए और यह पड़ोसी एक अजगर की तरह धीरे धीरे खुद को भारत के लिए ही नहीं, बल्कि पुरे विश्व से युद्ध करने के लिए खुद को तैयार करता रहा. हमारा वह पड़ोसी "ड्रैगन" आज हमारे देश की सीमाओं पर दस्तक देने लगा है. ऐसा नहीं है कि उसने अभी ही दस्तक देना शुरू किया है. यह दस्तक वह तिब्बत पर अपना अधिकार करने के बाद से दे रहा है. परन्तु अब उसने और भी आक्रमकता दिखाते हुए एक साथ भारत को लद्दाख, अरुणचल प्रदेश और सिक्किम में घेरने की कोशिश कर रहा है.
चीन को भारत के लिए खतरा और अपना सबसे बड़ा दुश्मन सबसे पहले भारत के पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस ने संसद में कहा था. उनके इस बयान पर भारत में और चीन में इसका काफी विरोध हुआ था. परन्तु उनकी दूरदर्शिता आज सत्य सिद्ध हुई है. जोर्जे फर्नांडिस ने ही DSDBO (डरबुक श्योक दौलत बेग ओल्डी) रोड की नींव को रखा था. आज भारत देश पर पाकिस्तान और चीन दोनों से एक साथ युद्ध का खतरा मंडरा रहा है. ऐसी स्थिति में भारतीय वायु सेना को 42 स्क्वाड्रन की जरुरत है. परन्तु भारत के पास अभी केवल 30 स्क्वाड्रन ही है. ऐसे में भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1 फरवरी के दिन अपना बजट प्रस्तुत किया, जिसमें वित्त मंत्री ने 1,30,000 करोड़ रुपये नए 114 लड़ाकू विमानों के लिए आवंटित किया. इधर भारत ने आजादी के बाद सबसे बड़ा आर्डर किसी भारतीय कंपनी को दिया है, जिसके अंतर्गत HAL से 83 लड़ाकू विमान भारतीय वायु सेना को मिलेगा जिसकी कीमत 46,898 करोड़ है. तेजस हलके श्रेणी और यह चौथी पीढ़ी का लड़ाकू विमान है. यह विमान भारत को 2024 से भारत को मिलना शुरू हो जाएगा. परन्तु आज हम तेजस के बारे में नहीं, बल्कि 114 लड़ाकू विमानों के लिए आवंटित हुए 1,30,000 करोड़ के बारे में बात करेंगे और भारत के लिए इसके महत्त्व के बारे में को समझेंगें.
वित्त मंत्री के इस घोषणा के बाद से ही कई कम्पनियाँ इसमें काफी रूचि दिखा रही है. भारत इन लड़ाकू विमानों के लिए मुख्य 4 देशो की तरफ अपना रुख कर सकता है, जिसमें अमेरिका, रूस, फ्रांस और स्वीडेन शामिल है. यह सभी देश भारत के बेंगलुरु में होने वाले एयर शो में भाग लेंगे और भारत को अपनी तरफ खींचने की कोशिश करेंगे. हम एक एक कर के चर्चा करेंगे कि यह चारों देश भारत को कौन कौन से लड़ाकू विमान ऑफर कर रहे है.
रूस
रूस मुख्य रूप से सुखोई के SU 30SM, SU 30Mki, SU 34 SU 35 और The Mikoyan मिग 35 भारत को देना चाहेगा. यह लड़ाकू विमान काफी अच्छे भी है. परन्तु इन में से ज्यादातर लड़ाकू विमान चीन के पास है. ऐसे में चीन को इन विमानों की कमजोरी और खामियों के बारे में पहले से ही जानकारी होगा और यह भारत यह नहीं चाहेगा. ऐसे में रूस के इन लड़ाकू विमानों की तरफ भारत शायद ही अपना रुख करे.
अमेरिका
F-16, F-18AD, F-18 E-F & F-15 |
स्वीडेन
भारत स्वीडेन के SAAP निर्मित ग्रिपेन भी एक अच्छा विकल्प है. परन्तु SAAP पाकिस्तान को भी हथियार बेच चूका है. ऐसे में ग्रिपेन के लिए सौदा करना ज्यादा उचित कदम नहीं माना जाएगा.
फ्रांस
भारत के लिए अभी सबसे बेहतर विकल्प है फ्रांस. क्योंकि फ्रांस यह समझ चूका है कि भारत को हथियारों की अभी बहुत ज्यादा जरूरत है और वह भविष्य में भी काफी हथियार खरीदेगा. इस बात को ध्यान में रखते हुए फ्रांस भारत में 70% राफेल विमानों को असेम्बल करने को तैयार है. साथ ही साथ वह पैंथर हेलीकॉप्टर को 100% भारत में ही असेम्बल करने को तैयार है. फ्रांस ने भारत का चीन के खिलाफ साथ देने और पाकिस्तान के साथ किसी भी तरफ का कोई रक्षा सौदा न करने की बात कही है. साथ में यह भी कहा है कि उसने पुराने समय में जो भी हथियार पाकिस्तान को बेच चूका है उसे वह अपग्रेड भी नहीं करेगा और फ्रांस हिन्द महासागर में अपने मिलिट्री बेस को उपयोग करने देगा. बदले में वह भी भारत के मिलिट्री बस का उपयोग करेगा. फ्रांस जितना खुल कर भारत का साथ दे रहा है, ऐसा साथ और कोई नहीं दे रहा. ऐसे में भारत फ्रांस से और राफेल के बारे में सोच सकता है.
भारत किस देश से कौन सा लड़ाकू विमान खरीदता है या देखना दिलचस्प रहेगा. परन्तु भारतीय वायु सेना ने तेजस के इन 123 (83 अभी और 40 पहले) विमानों की खेप मिलाने के बाद तेजस मार्क 2 के 170 और लड़ाकू विमान लेकर भारतीय वायु सेना को मजबूती प्रदान करेंगे. परन्तु यह भविष्य की बात है. गलवान वैली में चीन के साथ हुई झड़प के बाद भारत यह समझ चूका है कि अगर उसे एशिया में शांति से रहना है, तो अपनी सेना को मजबूत बनाना होगा. उसके लिए भारत को अपने वायु सेना, जल सेना और थल सेना को मजबूत करना होगा. भारत की वायुसेना को मजबूत करने के बाद भारत को अपनी जल सेना पर भी ध्यान देना होगा और ज्यादा से ज्यादा ऐसे ड्रोन विकसित करने होंगे जो निगरानी के साथ साथ हमला भी कर सके. क्योंकि भविष्य ड्रोन का ही होगा. फिर भी अभी की तैयारी को देख कर यह कहा जा सकता है कि भारत के वायुसेना का भविष्य उज्जवल है.
जय हिन्द
जय भारत
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