भारत और 114 लड़ाकू विमान के लिए 130000 करोड़ Skip to main content

भारत और 114 लड़ाकू विमान के लिए 130000 करोड़

भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी  ने एक बार कहा था कि "हम चाह कर अपना पड़ोसी नहीं बदल सकते." बात तो सही है, पंरतु वक्त रहते खुद को पड़ोसी के अनुसार खुद को बदलना बहुत जरूर है. देश की आजादी के बाद से ही भारत ने केवल पाकिस्तान को ही अपना दुश्मन माना और जरुरी भी था. क्योंकि हम पाकिस्तान से अब तक 4 बार युद्ध कर चुके है. इसी वजह से पाकिस्तान को ही ध्यान में रखते हुए हमने अपने रक्षा उपकरणों का विदेशों से निर्यात किया और भारत में निर्माण किया. परंतु पाकिस्तान से दुश्मनी में हम इस कदर उलझे की हम अपने एक और पड़ोसी के बारे में भूल ही गए और यह पड़ोसी एक अजगर की तरह धीरे धीरे खुद को भारत के लिए ही नहीं, बल्कि पुरे विश्व से युद्ध करने के लिए खुद को तैयार करता रहा. हमारा वह पड़ोसी "ड्रैगन" आज हमारे देश की सीमाओं पर दस्तक देने लगा है. ऐसा नहीं है कि उसने अभी ही दस्तक देना शुरू किया है. यह दस्तक वह तिब्बत पर अपना अधिकार करने के बाद से दे रहा है. परन्तु अब उसने और भी आक्रमकता दिखाते हुए एक साथ भारत को लद्दाख, अरुणचल प्रदेश और सिक्किम में घेरने की कोशिश कर रहा है.
चीन को भारत के लिए खतरा और अपना सबसे बड़ा दुश्मन सबसे पहले भारत के पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस ने संसद में कहा था. उनके इस बयान पर भारत में और चीन में इसका काफी विरोध हुआ था. परन्तु उनकी दूरदर्शिता आज सत्य सिद्ध हुई है. जोर्जे फर्नांडिस ने ही DSDBO (डरबुक श्योक दौलत बेग ओल्डी) रोड की नींव को रखा था. आज भारत देश पर पाकिस्तान और चीन दोनों से एक साथ युद्ध का खतरा मंडरा रहा है. ऐसी स्थिति में भारतीय वायु सेना को 42 स्क्वाड्रन की जरुरत है. परन्तु भारत के पास अभी केवल 30 स्क्वाड्रन ही है. ऐसे में भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1 फरवरी के दिन अपना बजट प्रस्तुत किया, जिसमें वित्त मंत्री ने 1,30,000 करोड़ रुपये नए 114 लड़ाकू विमानों के लिए आवंटित किया. इधर भारत ने आजादी के बाद सबसे बड़ा आर्डर किसी भारतीय कंपनी को दिया है, जिसके अंतर्गत HAL से 83 लड़ाकू विमान भारतीय वायु सेना को मिलेगा जिसकी कीमत 46,898 करोड़ है. तेजस हलके श्रेणी और यह चौथी पीढ़ी का लड़ाकू विमान है. यह विमान भारत को 2024 से भारत को मिलना शुरू हो जाएगा. परन्तु आज हम तेजस के बारे में नहीं, बल्कि 114 लड़ाकू विमानों के लिए आवंटित हुए 1,30,000 करोड़ के बारे में बात करेंगे और भारत के लिए इसके महत्त्व के बारे में को समझेंगें.
वित्त मंत्री के इस घोषणा के बाद से ही कई कम्पनियाँ इसमें काफी रूचि दिखा रही है. भारत इन लड़ाकू विमानों के लिए मुख्य 4 देशो की तरफ अपना रुख कर सकता है, जिसमें अमेरिका, रूस, फ्रांस और स्वीडेन शामिल है. यह सभी देश भारत के बेंगलुरु में होने वाले एयर शो में भाग लेंगे और भारत को अपनी तरफ खींचने की कोशिश करेंगे. हम एक एक कर के चर्चा करेंगे कि यह चारों देश भारत को कौन कौन से लड़ाकू विमान ऑफर कर रहे है.

रूस
रूस मुख्य रूप से सुखोई के SU 30SM, SU 30Mki, SU 34 SU 35 और The Mikoyan मिग 35 भारत को देना चाहेगा. यह लड़ाकू विमान काफी अच्छे भी है. परन्तु इन में से ज्यादातर लड़ाकू विमान चीन के पास है. ऐसे में चीन को इन विमानों की कमजोरी और खामियों के बारे में पहले से ही जानकारी होगा और यह भारत यह नहीं चाहेगा. ऐसे में रूस के इन लड़ाकू विमानों की तरफ भारत शायद ही अपना रुख करे.

अमेरिका
F-16, F-18AD, F-18 E-F & F-15
अमेरिका की बोइंग कंपनी के पास भारत के लिए बहुत कुछ है, जिनमें F-18 "सुपर होर्नेट", F-15 EX "स्ट्राइक ईगल" प्रमुख है. इन दोनों में सुपर होर्नेट एयरक्राफ्ट कैरियर पर से उड़ान भरने के लिए ही प्रसिद्ध है. वही स्ट्राइक ईगल अपने विशाल कद और भारी मात्रा में बम गिराने में सक्षम है. इसका विशाल कद स्वीडेन के ग्रिपेन से दुगुना है. यह 13 टन तक के वजन के हथियार को लेकर उड़न भर सकता है. इसके विशाल कद के कारन इसके मनुवर, दुश्मन विमान को चकमा देने की क्षमता कम है. इसके अलावा अमेरिका की ही कंपनी लॉकहीड मार्टिन के F-16 और F-21 भी काफी बेहतर विकल्प है. लॉकहीड मार्टिन तो भारत में टाटा के साथ मिल कर मेक इन इंडिया के तहत इन लड़ाकू विमानों के बनाने का विज्ञापन भी कर रहा है. परन्तु अमेरिका से भी किसी लड़ाकू विमान को लेना भारत के हित में नहीं रहेगा. क्योंकि अमेरिका जरुरत पड़ने पर कोई भी उल्टा सीधा शर्त लगा सकता है या फिर वहाँ सरकार बदलने पर किसी भी तरह के रक्षा सौदा को निरस्त किया जा सकता है. बोइंग से भारत ने चिनूक हेलीकॉप्टर, P8i और C 17 ग्लोबल मास्टर खरीद चूका है. परन्तु कभी कोई लड़ाकू विमान नहीं खरीदा है.

स्वीडेन
भारत स्वीडेन के SAAP निर्मित ग्रिपेन भी एक अच्छा विकल्प है. परन्तु SAAP पाकिस्तान को भी हथियार बेच चूका है. ऐसे में ग्रिपेन के लिए सौदा करना ज्यादा उचित कदम नहीं माना जाएगा.

फ्रांस
भारत के लिए अभी सबसे बेहतर विकल्प है फ्रांस. क्योंकि फ्रांस यह समझ चूका है कि भारत को हथियारों की अभी बहुत ज्यादा जरूरत है और वह भविष्य में भी काफी हथियार खरीदेगा. इस बात को ध्यान में रखते हुए फ्रांस भारत में 70% राफेल विमानों को असेम्बल करने को तैयार है. साथ ही साथ वह पैंथर हेलीकॉप्टर को 100% भारत में ही असेम्बल करने को तैयार है. फ्रांस ने भारत का चीन के खिलाफ साथ देने और पाकिस्तान के साथ किसी भी तरफ का कोई रक्षा सौदा न करने की बात कही है. साथ में यह भी कहा है कि उसने पुराने समय में जो भी हथियार पाकिस्तान को बेच चूका है उसे वह अपग्रेड भी नहीं करेगा और फ्रांस हिन्द महासागर में अपने मिलिट्री बेस को उपयोग करने देगा. बदले में वह भी भारत के मिलिट्री बस का उपयोग करेगा. फ्रांस जितना खुल कर भारत का साथ दे रहा है, ऐसा साथ और कोई नहीं दे रहा. ऐसे में भारत फ्रांस से और राफेल के बारे में सोच सकता है.

भारत किस देश से कौन सा लड़ाकू विमान खरीदता है या देखना दिलचस्प रहेगा. परन्तु भारतीय वायु सेना ने तेजस के इन 123 (83 अभी और 40 पहले) विमानों की खेप मिलाने के बाद तेजस मार्क 2 के 170 और लड़ाकू विमान लेकर भारतीय वायु सेना को मजबूती प्रदान करेंगे. परन्तु यह भविष्य की बात है. गलवान वैली में चीन के साथ हुई झड़प के बाद भारत यह समझ चूका है कि अगर उसे एशिया में शांति से रहना है, तो अपनी सेना को मजबूत बनाना होगा. उसके लिए भारत को अपने वायु सेना, जल सेना और थल सेना को मजबूत करना होगा. भारत की वायुसेना को मजबूत करने के बाद भारत को अपनी जल सेना पर भी ध्यान देना होगा और ज्यादा से ज्यादा ऐसे ड्रोन विकसित करने होंगे जो निगरानी के साथ साथ हमला भी कर सके. क्योंकि भविष्य ड्रोन का ही होगा. फिर भी अभी की तैयारी को देख कर यह कहा जा सकता है कि भारत के वायुसेना का भविष्य उज्जवल है.

जय हिन्द 
जय भारत

Comments

Popular posts from this blog

राजा पुरु और सिकंदर का युद्ध

भारत प्राचीन काल से ही अति समृद्ध देश रहा है. इसके साक्ष्य इतिहास में मिलते है. इसी वजह से भारत को सोने की चिड़ियाँ कहा जाता था. यह भारत की समृद्धि ही थी, जिसके वजह से विदेशी हमेशा से ही भारत की तरफ आकर्षित हुए है और भारत पर आक्रमण कर भारत को विजयी करने की कोशिश करते आए है. भारत पर आक्रमण करने वालों में सिकंदर (Alexander), हूण, तुर्क, मंगोल, मुगल, डच, पुर्तगाली, फ्रांसिसी और ब्रिटिश प्रमुख है. आज से हम भारत पर हुए सभी विदेशी आक्रमणों की चर्चा करेंगे. साथ ही साथ हम ऐसे महान राजा, महाराजा और वीरांगनाओं पर भी चर्चा करेंगे, जिन्होंने इन विदेशी आक्रांताओ के विरुद्ध या तो बहादुरी से युद्ध किया या फिर उन्हें पराजित कर वापस लौटने पर मजबूर कर दिया. यह केवल एक इसी लेख में लिख पाना संभव नहीं है. वजह से इसके मैं कई भागों में लिखूँगा. इस कड़ी के पहले भाग में हम बात करेंगे सिकंदर की, जिसे यूरोपीय और कुछ हमारे इतिहासकार महान की उपाधि देते है. हम इस बात पर भी चर्चा करेंगे कि क्या सिकंदर वास्तव में इतना महान था या फिर यूरोपीय इतिहासकारों ने सिकंदर के बारे में कुछ ज्यादा ही बढ़ा चढ़ा कर लिखा है? इसमें हम बह

वरदराजन मुदालियर: मुंबई अंडरवर्ल्ड का पहला हिन्दू डॉन

मुंबई अंडरवर्ल्ड के पिछले भाग में हमने पढ़ा था,  करीम लाला  के बारे में, जिसने मुंबई अंडरवर्ल्ड को बनाया. आज हम बात करेंगे मुंबई अंडरवर्ल्ड के उस डॉन के बारे में, जिसे शायद सबसे काम आंका गया और इसी वजह से उसके बारे में ज्यादा बात नहीं होता. इसका शायद एक बड़ा कारण यही रहा है कि इस डॉन का दाऊद इब्राहिम से कोई खास लेना देना नहीं था. अंडरवर्ल्ड के उन्ही डॉन के बारे ज्यादा पढ़ा और लिखा जाता है, जिनका दाऊद इब्राहिम से कोई रिश्ता रहा हो. जैसे करीम लाला, जिसके पठान गैंग के साथ दाऊद इब्राहिम की दुश्मनी थी और हाजी मस्तान, जिसके गैंग में रह कर दाऊद ने सभी काम सीखा था. शायद यही कारण रहा है इस डॉन के उपेक्षित रहने का. हम बात कर रहे है मुंबई अंडरवर्ल्ड के पहले हिन्दू डॉन के बारे में, जिसका नाम है वरदराजन मुनिस्वामी मुदालियर. आइए देखते है  इसके बारे में. प्रारंभिक जीवन वरदराजन मुदालियर का जन्म मद्रास प्रेसिडेंसी के तूतीकोरन (आज का थूटुकुडी, तमिलनाडु) में 1 मार्च 1926 में हुआ था. उसका परिवार आर्थिक रूप से संपन्न नहीं था. तूतीकोरन में ही उसकी प्रारम्भिक शिक्षा हुआ. उसके बाद मुदालियर वही पर नौकरी करने लगा

भारत चीन विवाद के कारण

भारत और चीन के बीच का तनाव बढ़ते ही जा रहा है. 5 मई को धक्के मुक्की से शुरू हुआ यह सिलसिला 15 जून को खुनी झड़प तक पहुँच गया. चीन ने कायरता से भारतीय सैनिकों पर हमला कर दिया, जिसमें हमारे 20 वीर सिपाही वीरगति को प्राप्त हुए. उसके बाद जब भारतीय सैनिकों ने कार्यवाही किया तो उसमें चीन के कम से कम 40 से ज्यादा सैनिक मारे गए. हालाँकि चीन ने कभी इस बात को स्वीकार नहीं किया. उसके बाद अब स्थिति यहाँ तक पहुँच चुका है कि सीमा पर गोलीबारी भी शुरू हो चुका है. यह गोलीबारी 45 वर्षों के बाद हुआ है. आज हम यहाँ यह समझने की कोशिश करेंगे कि चीन आखिर बॉर्डर पर ऐसे अटका हुआ क्यों है? चीन भारत से चाहता क्या है? चीन के डर की वजह क्या है? भारत के साथ चीन का सीमा विवाद पुराना है, फिर यह अभी इतना आक्रामक क्यों हो गया है? इन सभी के पीछे कई कारण है. जिसमें से कुछ मुख्य कारण है और आज हम उसी पर चर्चा करेंगे. चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) One Road, One Belt. जिसमें पिले रंग से चिंहित मार्ग चीन का वर्तमान समुद्री मार्ग है . चीन का यह महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट 62 बिलियन डॉलर की लागत से बन रहा है. यह प्रोजेक्ट चीन के

गल्वान घाटी गतिरोध : भारत-चीन विवाद

  भारत और चीन के बीच में बहुत गहरे व्यापारिक रिश्ते होने के बावजूद भी इन दोनो देशों के बीच टकराव होते रहे है. 1962 और 1967 में हम चीन के साथ युद्ध भी कर चुके है. भारत चीन के साथ 3400 KM लम्बे सीमा को साँझा करता है. चीन कभी सिक्किम कभी अरुणाचल प्रदेश को विवादित बताता रहा है और अभी गल्वान घाटी और पैंगॉन्ग त्सो झील में विवाद बढ़ा है. पर फ़िलहाल चीन गल्वान घाटी को लेकर ज्यादा चिंतित है और उसकी चिंता भी बेकार नहीं है. दोनों सेना के उच्च अधिकारियो के बीच हुए, बातचीत में दोनों सेना पहले पीछे लौटने को तो तैयार हो गई. पर बाद में चीन ने गल्वान घाटी में भारत द्वारा किये जा रहे Strategic Road का निर्माण काम का विरोध किया और जब तक इसका निर्माण काम बंद न हो जाये तब तक पीछे हटने से मना कर दिया. भारत सरकार ने भी कड़ा निर्णय लेते हुए पुरे LAC (Line of Actual Control) पर Reserve Formation से अतिरिक्त सैनिको को तैनात कर दिया है. एक आंकड़े की माने तो भारत ने LAC पर 2,25,000 सैनिको को तैनात कर दिया है, जिसमे 

भारत और वैदिक धर्म के रक्षक पुष्यमित्र शुंग

विदेशी आक्रांताओं के प्रथम कड़ी में हमने सिकंदर के भारत पर आक्रमण और राजा पुरु के साथ युद्ध के विषय में चर्चा किया था. विदेशी आक्रांताओं की द्वितीय कड़ी में हम ऐसे एक महान राजा के विषय में चर्चा करेंगे, जिसे एक षड़यंत्र कर इतिहास के पन्नों से मिटाने के लिए हर संभव प्रयत्न किया गया. कभी उसे बौद्ध धर्म का कट्टर विरोधी और बौद्ध भिक्षुकों का संहारक कहा गया, कभी उसे कट्टर वैदिक शासन को पुनः स्थापित करने वाला कहा गया. किन्तु वामपंथी इतिहासकारों ने कभी उस महान राजा को उचित का श्रेय दिया ही नहीं. क्योंकि वह एक ब्राम्हण राजा था. यही कारण है कि आज वह राजा, जिसे "भारत का रक्षक" का उपनाम दिया जाना चाहिए था, भारत के इतिहास के पन्नों से विलुप्त कर दिया गया है. हम बात कर रहे है पुष्यमित्र शुंग की, जिन्होंने भारत की रक्षा यवन (Indo Greek) आक्रमण से किया. सिकंदर (Alexander) के आक्रमण के बाद का भारत (मगध साम्राज्य) सिकंदर के भारत पर आक्रमण और राजा पुरु के साथ युद्ध के बाद आचार्य चाणक्य ने नंदवंश के अंतिम राजा धनानंद को राजगद्दी से पद्चुस्त कर चन्द्रगुप्त को मगध का राजा बनाया. यहीं से मगध में मौर्