भारतीय वायुसेना और तेजस का भविष्य Skip to main content

भारतीय वायुसेना और तेजस का भविष्य

भारत की सीमा पर दुश्मन के सामने अपना सीना ताने भारतीय सेना खड़ी है और भारत के आन बान और शान के साथ साथ हम देशवासियों की रक्षा करने के लिए कभी धुप का सामना करते है, कभी बारिस का, तो कभी कड़ाके की ठण्ड का. तो कभी हड्डियों को भी पिघला जमा देने वाली सियाचिन की बर्फबारी का, जहाँ का औसतन तापमान -30 डिग्री रहता है. हम काफी भाग्यशाली है कि हमारे पास इतने बहादुर और माँ के सपूत मौजूद है. परन्तु ये माँ के सपूत इतने भाग्यशाली नहीं है. भारत अब तक 5 लड़ाइयाँ लड़ चूका है. चार पाकिस्तान के साथ जो क्रमशः 1948, 1965, 1971 और 1999 कारगिल है और एक बार चीन के साथ 1967 में. अगर आपके मन में 1962 का ख्याल आ रहा है, तो वह भारत चीन का नहीं, बल्कि नहेरु चीन का युद्ध था, जो भारत कि भूमि पर लड़ा गया था. परन्तु हर बार भारतीय सैनिक केवल अपने जोश और जज़्बे के दम पर ही लड़े है और विजयी हुए है. भारत के सैनिकों के पास कभी भी पर्याप्त संसाधन नहीं हुआ है. कारगिल की लड़ाई में तो भारतीय सैनिकों ने अभूतपूर्व पराक्रम का परिचय तब दिया, जब उनके स्वदेशी हथियार इंसास ने धोखा दे दिया था. भारत के जल सेना और भारत के वायुसेना का भी बुरा हाल ही है. जहाँ भारत के पास सबमरीन की सख्या कम है, वहीं उसमें से ज्यादातर सबमरीन काफी पुराने है. वही वायुसेना के पास 42 स्क्वाड्रन होने चाहिए, परन्तु भारत के पास केवल 30 ही स्क्वाड्रन है.
भारतीय वायुसेना के लिए 2021 काफी महत्त्वपूर्ण है. क्योंकि जहाँ भारतीय वायुसेना को 114 नए लड़ाकू विमान विमान खरीदने के लिए 1,30,000 करोड़ रुपये आवंटित हुए, वहीं भारत की आजादी के बाद किसी भी भारतीय कंपनी (HAL) को सबसे बड़ा आर्डर मिला है, जो 46,898 करोड़ का है, जिसमे वह भारतीय वायुसेना को 83 हलके श्रेणी के लड़ाकू विमान तेजस देगा. आज हम बात करेंगें स्वदेशी लड़ाकू विमान तेजस की और वायुसेना के लिए इसके महत्त्व की.

तेजस का इतिहास
Tejas MK1A
तेजस का इतिहास बहुत ही पुराना है. जब भारत ने पहली बार परमाणु परिक्षण किया था, तब भारत पर बहुत ज्यादा प्रतिबंध लगा दिया था, उसमे लड़ाकू विमान के खरीद पर भी प्रतिबंध था. ऐसे में भारत को लड़ाकू विमान की जरुरत को पूरा करने के लिए खुद पर निर्भरता की जरुरत थी और उस जरुरत को पूरा के लिए एक योजना 1980 के दशक में बनाया गया. परंतु अच्छे इंजन और अच्छे राडार की कमी के कारण इस लड़ाकू विमान को बनाने काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. जिससे इस लड़ाकू विमान को बनाने में काफी समय लगा. इस समय को इस बात से समझें कि तेजस का पहला प्रोटोटाइप 2001 में उड़न भर चूका था, परन्तु इसके सभी परीक्षण करने के बाद इसे 2015 में मंजूरी मिला और इसे भारतीय वायु सेना में 1 जुलाई 2016 के दिन तेजस के MK1 (IOC-Initial Operational Clearance) को शामिल किया गया और 27 मई 2020 को इसके FOC Final operational Clearance को शामिल कर लिया गया.

क्यों चाहिए तेजस?
भारतीय वायु सेना को आज चीन और पाकिस्तान दोनों के साथ एक साथ युद्ध की स्थिति में कूल 42 स्क्वाड्रन की जरुरत है. परन्तु उसके पास केवल 30 ही मौजूद है. उसमें से भी मिग 21 विमानों को 2024 में रिटायर करना अत्यंत जरुरी है. क्योंकि यह विमान पायलटों के लिए कॉफिन सिद्ध हो रहे है. क्योंकि यह विमान पुराने और आउट डेटेड हो चुके है. ऐसे में मिग 21 को रिटायर करने के बाद भारतीय वायु सेना के पास लड़ाकू विमानों की और कमी हो जाएगी. इसकी पूर्ति के हमें लड़ाकू विमान चाहिए और उसी कमी की पूर्ति तेजस करेगा. परन्तु यह तेजस मिराज और जगुआर जैसे लड़ाकू विमानों के समकक्ष है. भारतीय वायु सेना के पास अभी 12 स्क्वाड्रन की कमी है. जिसकी पूर्ति विदेशों से लड़ाकू विमानों को खरीद कर करना अत्यंत महँगा है और साथ ही साथ इस से दूसरे देशों पर भारत की निर्भरता कम नहीं होती. ऐसे में भारत के स्वदेशी लड़ाकू विमान के निर्माण से ही भारतीय वायु सेना के इस कमी की पूर्ति संभव है.

तेजस की विशेषता
तेजस हल्के श्रेणी का सिंगल सीट लड़ाकू विमान है और यह आकर में भी छोटा है. यह अपनी श्रेणी में सर्व श्रेष्ट लड़ाकू विमानों में से एक है. तेजस में 50% स्वदेशी और 50% विदेशी उपकरणों का उपयोग किया गया है. इस विमान के लिए भारत में निर्मित कावेरी इंजन उम्मीदों पर खड़ा नहीं उतरा. उसके लिए अमेरिका के जनरल इलेक्ट्रॉनिक्स से इंजन लिया गया है. इसका कूल वजन 6500KG है तथा यह एक बार में 3000 किलोमीटर तक की उड़न भर सकता है. इसके अलग से ड्राप टैंक लगा कर और हवा में ही ईंधन भर कर इसके रेंज को बढ़ाया जा सकता है. यह 52,000 फीट की ऊंचाई तक जा सकता है. तेजस MK1A 1.8 mac की तेजी से उड़ान भर सकता है. इसमें 8 हार्ड पॉइंट है, जिस पर मिसाइल लगाया जाता है. इसकी पेलॉयड की क्षमता 3500 किलो की है. यह लगभग हर तरह के मिसाइल को लेकर उड़ने में सक्षम है, जिसमें BVR Beyond Visual Range की मिसाइल को भी ले जाने में सक्षम है. इसमें रडार इजराइल द्वारा निर्मित ELM2052 AESA रडार लगाया हुआ है, जो राफेल में लगे रडार जितना ही उन्नत है. यह एक एक्टिव स्कैन्ड रडार है और यह 180 से 200 किलोमीटर के किसी भी 2मीटर स्क्वायर तक के किसी भी चीज को पकड़ सकता है. साथ ही साथ यह इंजन की गर्मी को महसूस कर के भी दूसरे विमानों को पकड़ सकता है. ऐसे में किसी भी स्टील्थ लड़ाकू विमानों का भी इसकी पकड़ से बच पाना बहुत ही मुश्किल है. तेजस के नेवल वर्जन को भी बनाया गया है और यह अरेस्टेड लैंडिंग करने में सक्षम है. तेजस MK1A के इन सभी विशेषताओं की वजह से कई देश इसमें रूचि ले रहे है. ऐसे में HAL भारतीय वायु सेना की जरूरतों को पूरा करने के बाद अन्य देशों को यह लड़ाकू विमान निर्यात भी कर सकता है.

Tejas MK2
अभी हाल ही में HAL को अपने इतिहास का सबसे बड़ा आर्डर 48000 करोड़ का मिला है, जिसके तहत HAL 83 तेजस भारतीय वायु सेना को देगा. इसमें 73 तेजस MK1A और 10 ट्रेनर विमान होंगे. इससे पहले भी भारतीय वायु सेना ने 40 (20 IOC, 20 FOC) तेजस लड़ाकू विमानों का आर्डर HAL को दिया था. इस प्रकार HAL को अब तक 123 तेजस विमानों का आर्डर मिल चूका है. 123 विमानों की आपूर्ति के बाद भारतीय वायु सेना और 170 MK2 तेजस HAL से खरीदना चाहती है. यह MK2 विमान माध्यम श्रेणी के लड़ाकू विमान होंगे, जो राफेल विमान की श्रेणी में रहेगा. भारतीय वायु सेना का भविष्य अत्यंत उज्जवल तो है ही, परन्तु इसमें भारत में निर्मित तेजस का भी महत्त्वपूर्ण योगदान रहेगा.

जय हिन्द
वन्दे मातरम

Comments

Popular posts from this blog

राजा पुरु और सिकंदर का युद्ध

भारत प्राचीन काल से ही अति समृद्ध देश रहा है. इसके साक्ष्य इतिहास में मिलते है. इसी वजह से भारत को सोने की चिड़ियाँ कहा जाता था. यह भारत की समृद्धि ही थी, जिसके वजह से विदेशी हमेशा से ही भारत की तरफ आकर्षित हुए है और भारत पर आक्रमण कर भारत को विजयी करने की कोशिश करते आए है. भारत पर आक्रमण करने वालों में सिकंदर (Alexander), हूण, तुर्क, मंगोल, मुगल, डच, पुर्तगाली, फ्रांसिसी और ब्रिटिश प्रमुख है. आज से हम भारत पर हुए सभी विदेशी आक्रमणों की चर्चा करेंगे. साथ ही साथ हम ऐसे महान राजा, महाराजा और वीरांगनाओं पर भी चर्चा करेंगे, जिन्होंने इन विदेशी आक्रांताओ के विरुद्ध या तो बहादुरी से युद्ध किया या फिर उन्हें पराजित कर वापस लौटने पर मजबूर कर दिया. यह केवल एक इसी लेख में लिख पाना संभव नहीं है. वजह से इसके मैं कई भागों में लिखूँगा. इस कड़ी के पहले भाग में हम बात करेंगे सिकंदर की, जिसे यूरोपीय और कुछ हमारे इतिहासकार महान की उपाधि देते है. हम इस बात पर भी चर्चा करेंगे कि क्या सिकंदर वास्तव में इतना महान था या फिर यूरोपीय इतिहासकारों ने सिकंदर के बारे में कुछ ज्यादा ही बढ़ा चढ़ा कर लिखा है? इसमें हम बह

वरदराजन मुदालियर: मुंबई अंडरवर्ल्ड का पहला हिन्दू डॉन

मुंबई अंडरवर्ल्ड के पिछले भाग में हमने पढ़ा था,  करीम लाला  के बारे में, जिसने मुंबई अंडरवर्ल्ड को बनाया. आज हम बात करेंगे मुंबई अंडरवर्ल्ड के उस डॉन के बारे में, जिसे शायद सबसे काम आंका गया और इसी वजह से उसके बारे में ज्यादा बात नहीं होता. इसका शायद एक बड़ा कारण यही रहा है कि इस डॉन का दाऊद इब्राहिम से कोई खास लेना देना नहीं था. अंडरवर्ल्ड के उन्ही डॉन के बारे ज्यादा पढ़ा और लिखा जाता है, जिनका दाऊद इब्राहिम से कोई रिश्ता रहा हो. जैसे करीम लाला, जिसके पठान गैंग के साथ दाऊद इब्राहिम की दुश्मनी थी और हाजी मस्तान, जिसके गैंग में रह कर दाऊद ने सभी काम सीखा था. शायद यही कारण रहा है इस डॉन के उपेक्षित रहने का. हम बात कर रहे है मुंबई अंडरवर्ल्ड के पहले हिन्दू डॉन के बारे में, जिसका नाम है वरदराजन मुनिस्वामी मुदालियर. आइए देखते है  इसके बारे में. प्रारंभिक जीवन वरदराजन मुदालियर का जन्म मद्रास प्रेसिडेंसी के तूतीकोरन (आज का थूटुकुडी, तमिलनाडु) में 1 मार्च 1926 में हुआ था. उसका परिवार आर्थिक रूप से संपन्न नहीं था. तूतीकोरन में ही उसकी प्रारम्भिक शिक्षा हुआ. उसके बाद मुदालियर वही पर नौकरी करने लगा

भारत चीन विवाद के कारण

भारत और चीन के बीच का तनाव बढ़ते ही जा रहा है. 5 मई को धक्के मुक्की से शुरू हुआ यह सिलसिला 15 जून को खुनी झड़प तक पहुँच गया. चीन ने कायरता से भारतीय सैनिकों पर हमला कर दिया, जिसमें हमारे 20 वीर सिपाही वीरगति को प्राप्त हुए. उसके बाद जब भारतीय सैनिकों ने कार्यवाही किया तो उसमें चीन के कम से कम 40 से ज्यादा सैनिक मारे गए. हालाँकि चीन ने कभी इस बात को स्वीकार नहीं किया. उसके बाद अब स्थिति यहाँ तक पहुँच चुका है कि सीमा पर गोलीबारी भी शुरू हो चुका है. यह गोलीबारी 45 वर्षों के बाद हुआ है. आज हम यहाँ यह समझने की कोशिश करेंगे कि चीन आखिर बॉर्डर पर ऐसे अटका हुआ क्यों है? चीन भारत से चाहता क्या है? चीन के डर की वजह क्या है? भारत के साथ चीन का सीमा विवाद पुराना है, फिर यह अभी इतना आक्रामक क्यों हो गया है? इन सभी के पीछे कई कारण है. जिसमें से कुछ मुख्य कारण है और आज हम उसी पर चर्चा करेंगे. चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) One Road, One Belt. जिसमें पिले रंग से चिंहित मार्ग चीन का वर्तमान समुद्री मार्ग है . चीन का यह महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट 62 बिलियन डॉलर की लागत से बन रहा है. यह प्रोजेक्ट चीन के

गल्वान घाटी गतिरोध : भारत-चीन विवाद

  भारत और चीन के बीच में बहुत गहरे व्यापारिक रिश्ते होने के बावजूद भी इन दोनो देशों के बीच टकराव होते रहे है. 1962 और 1967 में हम चीन के साथ युद्ध भी कर चुके है. भारत चीन के साथ 3400 KM लम्बे सीमा को साँझा करता है. चीन कभी सिक्किम कभी अरुणाचल प्रदेश को विवादित बताता रहा है और अभी गल्वान घाटी और पैंगॉन्ग त्सो झील में विवाद बढ़ा है. पर फ़िलहाल चीन गल्वान घाटी को लेकर ज्यादा चिंतित है और उसकी चिंता भी बेकार नहीं है. दोनों सेना के उच्च अधिकारियो के बीच हुए, बातचीत में दोनों सेना पहले पीछे लौटने को तो तैयार हो गई. पर बाद में चीन ने गल्वान घाटी में भारत द्वारा किये जा रहे Strategic Road का निर्माण काम का विरोध किया और जब तक इसका निर्माण काम बंद न हो जाये तब तक पीछे हटने से मना कर दिया. भारत सरकार ने भी कड़ा निर्णय लेते हुए पुरे LAC (Line of Actual Control) पर Reserve Formation से अतिरिक्त सैनिको को तैनात कर दिया है. एक आंकड़े की माने तो भारत ने LAC पर 2,25,000 सैनिको को तैनात कर दिया है, जिसमे 

भारत और वैदिक धर्म के रक्षक पुष्यमित्र शुंग

विदेशी आक्रांताओं के प्रथम कड़ी में हमने सिकंदर के भारत पर आक्रमण और राजा पुरु के साथ युद्ध के विषय में चर्चा किया था. विदेशी आक्रांताओं की द्वितीय कड़ी में हम ऐसे एक महान राजा के विषय में चर्चा करेंगे, जिसे एक षड़यंत्र कर इतिहास के पन्नों से मिटाने के लिए हर संभव प्रयत्न किया गया. कभी उसे बौद्ध धर्म का कट्टर विरोधी और बौद्ध भिक्षुकों का संहारक कहा गया, कभी उसे कट्टर वैदिक शासन को पुनः स्थापित करने वाला कहा गया. किन्तु वामपंथी इतिहासकारों ने कभी उस महान राजा को उचित का श्रेय दिया ही नहीं. क्योंकि वह एक ब्राम्हण राजा था. यही कारण है कि आज वह राजा, जिसे "भारत का रक्षक" का उपनाम दिया जाना चाहिए था, भारत के इतिहास के पन्नों से विलुप्त कर दिया गया है. हम बात कर रहे है पुष्यमित्र शुंग की, जिन्होंने भारत की रक्षा यवन (Indo Greek) आक्रमण से किया. सिकंदर (Alexander) के आक्रमण के बाद का भारत (मगध साम्राज्य) सिकंदर के भारत पर आक्रमण और राजा पुरु के साथ युद्ध के बाद आचार्य चाणक्य ने नंदवंश के अंतिम राजा धनानंद को राजगद्दी से पद्चुस्त कर चन्द्रगुप्त को मगध का राजा बनाया. यहीं से मगध में मौर्