भारत देश की स्वतंत्रता के लिए न जाने कितने लोगों ने हँसते हँसते अपने प्राणों की आहुति दे दिया. क्योंकि वो सभी स्वतंत्र भारत में रहना चाहते थे. परंतु उनके मन में स्वतंत्र भारत की कैसी तस्वीर रही होगी? वो क्या सोचते रहे होंगे स्वतंत्र भारत के बारे में? फिर चाहे वह भगत सिंह हो, चंद्रशेखर हो, बिस्मिल हो, असफाक उल्ला खान हो, रोशन सिंह हो, सुखदेव हो, राजगुरु हो या अन्य वो गुमनाम क्रन्तिकारी जिनके हमें नाम तक नहीं पता. उन क्रांतिकारीयों के मन में रही स्वतंत्र भारत की छवि को ध्यान में रखते हुए मैंने एक कविता लिखा है, जिसका शीर्षक वह प्रश्न ही है,
मेरा भारत कैसा हो?
जहाँ जात के नाम पर उत्पात न हो,
जहाँ धर्म के नाम पर मार काट न हो.
जहाँ न कोई हिन्दू हो न मुस्लमान हो,
जहाँ रहने वाला हर कोई हिंदुस्तान हो.
जहाँ धर्म के नाम पर मार काट न हो.
जहाँ न कोई हिन्दू हो न मुस्लमान हो,
जहाँ रहने वाला हर कोई हिंदुस्तान हो.
जहाँ अन्नदाता जब खेत में अनाज बोए,
लाचार बन वह अन्नदाता कभी न रोए.
जहाँ पर कोई गरीब भूखे पेट न सोए,
जहाँ दंगे में कभी कोई अपना न खोए.
जहाँ कभी तिरंगे का अपमान न हो,
जहाँ धर्म के नाम पर कोई हैवान न हो.
जहाँ नारी का दुर्गा सा मान सम्मान हो,
जहाँ देशभक्तों पर सभी को अभिमान हो.
जहाँ भ्रष्टाचार का नामोनिशान न हो,
जहाँ कोई भी गद्दारों पर मेहरबान न हो.
जहाँ पर जात धर्म नहीं सभी इंसान हो,
मेरे दोस्त ऐसा ही मेरा भारत महान हो.
जय हिन्द
वन्देमातरम
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