बॉलीवुड और नेपोटिस्म Skip to main content

बॉलीवुड और नेपोटिस्म

नेपोटिस्म यानि वंशवाद. बॉलीवुड पर हमेशा से ही वंशवाद का आरोप लगता रहा है. आरोप लगाने वालो में कभी खुद बॉलीवुड के सितारे रहे है, कभी मीडिया से तो कभी सोशल मीडिया से यह आवाज़ उठती रही है. जहाँ दूसरे सितारे विवाद न हो इसी वजह से किसी भी विषय पर बोलने से बचते है, वहीं कंगना रनौत ऐसी बॉलीवुड सितारों में से एक है जो हमेशा से अपनी बात को बेबाकी से रखती है. वो विवाद की परवाह नहीं करती. सुशांत सिंह राजपुत के आत्महत्या कर लेने के बाद एक बार फिर से वंशवाद चर्चा में है और हर तरफ से वंशवाद का आरोप लग रहा है

धर्मा प्रोडक्शन के करण जौहर पर. करण हमेशा अपनी फिल्मों में फ़िल्मी सितारों के बेटे बेटियों को मौका देते हैं. इस वजह से करण पर यह आरोप हमेशा से लगता आ रहा है. आउटसाइडरस मतलब जो किसी फिल्मी सितारों के रिश्तेदार नहीं है उन कलाकारों के साथ सौतेला व्यव्हार किया जाता है. उनका अक्सर मजाक बनाया जाता है और नीचा दिखाने की कोशिश किया जाता है. कुछ बड़े कलाकार इसका बचाव करते हुए इसे हँसी मजाक का नाम देकर कह देते है कि हम एक परिवार की तरह है तो हँसी मजाक चलता है. परंतु यह तो जिसका मजाक बना रहे है उस से पूछना चाहिए कि उसको यह चलता है या नहीं. खैर, हम वापस आते है अपने आज के मुद्दे पर. नेपोटिस्म यानि वंशवाद. आखिर ये वंशवाद है क्या? और क्या वाकई बॉलीवुड में वंशवाद है?

वंशवाद क्या है?
किसी बड़े मशहूर फिल्मी सितारे के बेटे, बेटी, भाई, बहन संक्षिप्त में रिश्तेदार को मौका देने को ही वंशवाद कहते है. इसमें सभी को समस्या इस बात से है कि वंशवाद की वजह से दूसरे प्रतिभाशाली कलाकारों को मौके नहीं मिल पाते और इस तरह एक प्रतिभाशाली कलाकार कही खो सा जाता है और उसकी जगह ऐसे कलाकारों को मिल जाता है जिनमे कोई खाश प्रतिभा नहीं है फिर भी उन्हें अपने बाप, भाई के नाम की वजह से बार बार मौके मिलते रहते है. आज आप जिस नए चेहरे का समर्थन कर रहे है कल उसी के बच्चे स्टार किड कहलाएगे. ऐसे में जो कलाकार आज वंशवाद का आरोप लगा रहा है कल वही उसके बचाव में उतर आएगा.
पर यह पूर्ण सच्चाई नहीं है. वंशवाद की वजह से किसी फ़िल्मी सितारे के रिश्तेदार को मौका आसानी से मिल जाता है यह बात सच है और यह होता भी रहेगा. पर उसके बाद उन्हें काम मिलता रहेगा या नहीं यह दर्शक यानि देश की जनता की अलावा और किसी के भी हाथ में नहीं है. सिर्फ दर्शक ही यह तय करते है कि किसे आसमान पर बैठना है और किसे खाक में मिला देना है. मैं वंशवाद का समर्थन नहीं करता. तो आपको इसे मान कर ही चलना पड़ेगा कि बॉलीवुड में वंशवाद रहेगा और आपको इसे लेकर ही चलना पड़ेगा. इसका कारण समझिए: बॉलीवुड में सबसे पुराना और जाना माना खानदान है कपूर खानदान अनिल कपूर वाला नहीं रणबीर कपूर वाला. उसके बाद आता है बच्चन परिवार, फिर दत्त. खान मैंने इस वजह से नहीं लिखा क्योंकि इनमे से व्यक्तिगत रूप से यह आगे है.
अब एक छोटा सा उदहारण ले लेते है संजय दत्त के पिता सुनील दत्त का. सुनील दत्त से भी बहुत संघर्ष के बाद खुद को एक सफल अभिनेता के तौर पर स्थापित किया. सुनील दत्त से बहुत से नए चेहरों के साथ साथ कुछ संघर्ष कर रहे कलाकारों को भी मौका दिया. उसमे से एक थे फिरोज खान. सुनील दत्त से इसी एहसान को उतारने के लिए फिरोज खान ने संजय दत्त को अपनी फिल्म यलगार में लिया था. यह सब ऐसे ही चलता है. कभी कोई किसी काका एहसान उतरने के लिए तो कभी प्रेम वश या सम्मान में तो कभी इस लालच में कि यह इतना बड़ा नाम है तो इसका बेटा/बेटी भी इसके नाम की वजह से पहले से ही मशहूर है. तो किसी नए चेहरे को मौके देकर किसी भी तरह का कोई जोखिम उठाने की जगह किसी जाने पहचाने चेहरे को मौका देना ज्यादा सुरक्षित माना जाता है. जब कहानी में कोई दम  न हो तो ऐसा ही होता है. पर वह सिर्फ किसी को मौका दे सकते पर उसकी फिल्म कमाई कर ही लेगी इसकी गांरंटी कोई नहीं दे सकता. अब सबसे बड़ी बात कि अगर मीडिया या देश की जनता बॉलीवुड पर वंशवाद का आरोप लगाती है तो ये बात हमेशा याद रखें कि उसके लिए वह खुद जिम्मेदार है. कैसे? वह भी समझ लेते है. 

मीडिया
यह कभी किसी नए या संघर्ष कर रहे किसी कलाकार के बारे में नहीं छापता या बताता. उनकी जगह फ़िल्मी सितारों के ही बेटे बेटियों भाई बहन के बारे में बताया है. इसी वजह से उनका चेहरा देश की जनता के सामने आ जाता है और वह जाना माना चेहरा बन जाता है. उदहारण के लिए सैफ अली खान और करीना कपूर खान का बेटा तैमूर. अभी वह सही से चलना बोलना नहीं सीखा और वह सेलिब्रिटी बन चुका है. कई बड़े बड़े ब्रांड तैमूर को अपने ब्रांड का चेहरा बनाने के करोड़ो खर्च करने को तैयार है. इसके लिए जिम्मेदार कौन है?
वही किसी नए और प्रतिभाशाली कलाकार को और ज्यादा मेहनत करना पड़ता है कैमरे के सामने आने के लिए और खुद की पहचान बनाने के लिए. कई ऐसे डायरेक्टर है जो नए चेहरो को मौका देते है. पर ऐसे डायरेक्टर के पास सभी नए प्रतिभाशाली कलाकार तक पहुँच ही नहीं होती. इस बात को इस उदहारण से समझिए कि राम गोपाल वर्मा को मनोज वाजपई को काम बैंडिट क्वीन में बहुत पसंद आया था. पर लाख ढूंढने के बाद भी राम गोपाल मनोज तक नहीं पहुंच पाए थे. तीन साल बाद मनोज वाजपई खुद काम की तलाश में राम गोपाल से मिलने गए और उसके बाद सत्या फिल्म आई जिसका भिखू मात्रे आज उस फिल्म के मुख्य पात्र से ज्यादा प्रसिद्ध है. यह कई और उदहारण है. मीडिया ने अगर उसी समय हर एक कलाकार के बारे में पूरी जानकारी छापा होता तो शायद मनोज वाजपई को तीन वर्ष तक इंतज़ार नहीं करना पड़ता.

दर्शक: मैं और आप
मीडिया से भी ज्यादा इसके लिए जिम्मेदार आप और हम है और हमें इसकी जिम्मेदारी लेनी पड़ेगी. मीडिया भी सिर्फ वही खबरें दिखाती है जो हम देखना चाहते है. अगर हमें किसी फिल्मी सितारों के बेटे बेटी, भाई बहन को देखने में बड़े सितारें क्या कहते है क्या पहनते है ये जानने में ज्यादा रूचि है तो कोई भी मीडिया आपको वही क्यों न दिखाए? मान लिए करण जौहर वंशवाद को बढ़ावा देता है. तो देखने तो आप और हम ही जाते है न? अगर हम देखने ही ना जाये तो? हम उनकी फिल्में देखते है उनकी फिल्में पैसे कमाती है इसी वजह से उन्हें फिल्मो में लिया जाता है. अगर उनकी फिल्मे नहीं चलती तब वंशवाद किसी को याद नहीं आता. देखिये करण जौहर सिर्फ किसी को अपनी फिल्म में ले सकते है, उसे हिट या फ्लॉप करवाने का काम दर्शक करते है. अक्षय कुमार एक ऐसे ही अभिनेता है जिन्होंने बिना किसी बड़े बैनर बिना किसी गॉडफादर के नए डायरेक्टर के साथ ही हिट फिल्में दी और आज सुपरस्टार बने है. उनकी कामयाबी के बाद उनके पास बड़ी बैनरें सामने से चल कर आई है. वरना अपने शुरुआती समय उन्हें भी नीचे दिखाया जाता था. दिल तो पागल है में उन्हें पैसे देने तक से मना कर कर दिया गया था. कई बार ऐसा हुआ है जब बेकार सी फिल्म करोड़ो कमा लेती है और अच्छी फिल्म अच्छी कहानी वाली फिल्म सिर्फ मुँह देखते रह जाती है. यही वजह है कि बॉलीवुड में बड़ी मुश्किल से कुछ नया देखने को मिलता है. वहीं तेलुगु तमिल बंगाली कन्नड़ इत्यादि फिल्मों की बात करे तो बॉलीवुड से ज्यादा अच्छी कहानी और अच्छी फिल्मे देखने को मिलती है. हम इस पर ज्यादा बात नहीं करते.

एक सवाल
सुशांत सिंह राजपूत के आत्महत्या कर लेने के बाद मेरे दिमाग में आया कि क्या वाकई वंशवाद और ग्रुपिंग की वजह से सुशांत सिंह राजपूत को फिल्मो से अलग कर दिया गया? क्या सलमान खान वाकई में इतने ताकतवर है और बॉलीवुड में उनकी इतनी इज्जत है कि वो किसी की ज़िंदगी बर्बाद कर दे जैसा विवेक ओबेरॉय के साथ किया था? मुझे इस बात में थोड़ा अतिश्योक्ति लगता है. 2009 में आए वांटेड से पहले जिसका फ़िल्मी करियर खुद गोते खा रहा हो वह किसी और का करियर बर्बाद कर दे ये मुझे थोड़ा अटपटा लग रहा है. पर अगर कोई कहे कि अगर अंडरवर्ल्ड से किसी को या सभी को धमकी मिल जाये तो? तब तो सब कुछ मुमकिन है. 
पर समस्या यह है कि जब तक इंसान जिन्दा होता है उसकी परवाह कोई नहीं करता. पर जैसे ही इंसान दुनिया से चला जाता है सभी के दिल में उसके लिए बहुत सारा प्यार सहानभूति चिंता सब एक साथ जाग जाता है. मरने से पहले शायद थोड़ा सा भी उस इंसान पर ध्यान दिया होता तो वह इंसान आज जिंदा होता.
वंशवाद है और रहेगा. पर यह सिर्फ बॉलीवुड में ही नहीं, हर एक जगह पर है और सबसे ज्यादा वंशवाद तो राजनैतिक पार्टियों में है. इंदिरा गाँधी, राजीव गाँधी, संजय गाँधी, सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी, प्रियंका गाँधी, अखिलेश यादव, डिंपल यादव, तेजस्वी यादव, तेज प्रताप यादव इत्यादि नाम उसी वंशवाद का एक उदाहरण है. 

जय हिन्द
वन्देमातरम

#HajiMastan #DawoodIbrahim #Napotism #KaranJohar #Bollywood #DarkSideofBollywood

Comments

Popular posts from this blog

कविता: नारी शक्ति

नारी को सनातन धर्म में पूजनीय बताया गया है और देवी का स्थान दिया गया है. तभी कहा गया है कि " यत्र नारी पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता." अर्थात जहाँ नारी की पूजा होती है, देवताओं का वहीं वास होता है. यहाँ पूजा का मतलब है सम्मान. परंतु यह समाज धीरे धीरे पुरुष प्रधान बनता गया. नारी और उनके अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता गया. हालाँकि स्थिति पहले से कुछ हद तक सुधरी जरूर है. परंतु यह प्रत्येक जगह नहीं. आज भी कही कही स्थिति दयनीय है. इसे बदलने की जरुरत है. नारी शक्ति पर मैंने यह कविता लिखा है, जिसका शीर्षक ही है नारी शक्ति.  नारी शक्ति नारी तू कमजोर नहीं, जीवन का आधार है. तुझ बिन जीवन तो, क्या असंभव पूरा संसार है. तू माँ है बहन है बेटी है, तू शिव में शक्ति का इकार है. तुझ बिन शिव शव है, ये मनुष्य तो निराधार है. तू काली है तू दुर्गा है, तू शक्ति का श्रोत है. तू भवानी जगदम्बा है, तू ही जीवन ज्योत है. क्षमा में तू गंगा है, ममता में तू धरती है. तू युद्ध में रणचंडी है, जीवनदायनी प्रकृति है. जय हिन्द वंदेमातरम

कविता: भारत देश

भारत में अक्सर बहस होता रहता है कि एक धर्म विशेष पर बहुत जुल्म हो रहे है. उन्हें परेशान किया जा रहा है. परंतु सच यह है कि वह धर्म विशेष भारत देश में जितने आराम से और स्वतंत्रता से रह रहे हैं, उतनी स्वतंत्रता से वह कहीं और नहीं रह सकते. यह वही भारत देश है, जहाँ वोट बैंक की राजनीती के लिए लोगों को उनके जाति और धर्म के नाम पर बाँटा जाता है. जहाँ का युवा "इस देश का कुछ नहीं हो सकता" कह कर हर बात को टाल देता है. जहाँ देश भक्ति सिर्फ क्रिकेट मैच या आतंकवादी हमले पर ही जागती है. जहाँ जुर्म होते देख गाँधी की अहिंसा याद आती है. इन्ही सभी बातों को ध्यान में रख कर कुछ दिन पहले मैंने एक कविता लिखा था, जिसे आप सब के सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ, जिसका शीर्षक है, "भारत देश" भारत देश एक तरफ देश की सीमा पर, सिपाही अपना खून बहता है. वहीं कड़ी सुरक्षा में रहने वाला, खुद को असुरक्षित पाता है. जहाँ कायर शराफत की चादर ओढ़े है, और अपराधी देश को चलता है. जहाँ अपनी गलती कोई नहीं मानता, पर दूसरों को दोषी ठहराता है. वही ए मेरे प्यारे दोस्त, भारत देश कहलाता है. जहाँ इंसान को इंसानियत से नहीं, भाषा...

एक जैन वीरांगना: रानी अब्बक्का चौटा

भारतीय तटरक्षक बल ने 2012 में अपने खेमे में एक गश्ती पोत को शामिल किया. भारत में निर्मित इस पोत का निर्माण हिंदुस्तान शिप यार्ड में विशाखापटनम में हुआ था. 50 मीटर  लंबे इस गश्ती पोत में 5 अधिकारियों के साथ 34 नाविक इसमें रह सकते है. इसमें 1x 30mm CRN Naval Gun और 2x12.7mm HMG (High Machine Gan)  लगा हुआ है. इस गश्ती पोत का नाम है रानी अब्बक्का Class Patrol Vessel. अब मन में यह सवाल आया होगा कि कौन है ये रानी अब्बक्का, जिनके नाम पर इस गश्ती पोत का नाम रखा गया है? आइए  देखते है.

गल्वान घाटी गतिरोध : भारत-चीन विवाद

  भारत और चीन के बीच में बहुत गहरे व्यापारिक रिश्ते होने के बावजूद भी इन दोनो देशों के बीच टकराव होते रहे है. 1962 और 1967 में हम चीन के साथ युद्ध भी कर चुके है. भारत चीन के साथ 3400 KM लम्बे सीमा को साँझा करता है. चीन कभी सिक्किम कभी अरुणाचल प्रदेश को विवादित बताता रहा है और अभी गल्वान घाटी और पैंगॉन्ग त्सो झील में विवाद बढ़ा है. पर फ़िलहाल चीन गल्वान घाटी को लेकर ज्यादा चिंतित है और उसकी चिंता भी बेकार नहीं है. दोनों सेना के उच्च अधिकारियो के बीच हुए, बातचीत में दोनों सेना पहले पीछे लौटने को तो तैयार हो गई. पर बाद में चीन ने गल्वान घाटी में भारत द्वारा किये जा रहे Strategic Road का निर्माण काम का विरोध किया और जब तक इसका निर्माण काम बंद न हो जाये तब तक पीछे हटने से मना कर दिया. भारत सरकार ने भी कड़ा निर्णय लेते हुए पुरे LAC (Line of Actual Control) पर Reserve Formation से अतिरिक्त सैनिको को तैनात कर दिया है. एक आंकड़े की माने तो भारत ने LAC पर 2,25,000 सैनिको को तैनात कर दिया है, जिसमे 

भारत और वैदिक धर्म के रक्षक पुष्यमित्र शुंग

विदेशी आक्रांताओं के प्रथम कड़ी में हमने सिकंदर के भारत पर आक्रमण और राजा पुरु के साथ युद्ध के विषय में चर्चा किया था. विदेशी आक्रांताओं की द्वितीय कड़ी में हम ऐसे एक महान राजा के विषय में चर्चा करेंगे, जिसे एक षड़यंत्र कर इतिहास के पन्नों से मिटाने के लिए हर संभव प्रयत्न किया गया. कभी उसे बौद्ध धर्म का कट्टर विरोधी और बौद्ध भिक्षुकों का संहारक कहा गया, कभी उसे कट्टर वैदिक शासन को पुनः स्थापित करने वाला कहा गया. किन्तु वामपंथी इतिहासकारों ने कभी उस महान राजा को उचित का श्रेय दिया ही नहीं. क्योंकि वह एक ब्राम्हण राजा था. यही कारण है कि आज वह राजा, जिसे "भारत का रक्षक" का उपनाम दिया जाना चाहिए था, भारत के इतिहास के पन्नों से विलुप्त कर दिया गया है. हम बात कर रहे है पुष्यमित्र शुंग की, जिन्होंने भारत की रक्षा यवन (Indo Greek) आक्रमण से किया. सिकंदर (Alexander) के आक्रमण के बाद का भारत (मगध साम्राज्य) सिकंदर के भारत पर आक्रमण और राजा पुरु के साथ युद्ध के बाद आचार्य चाणक्य ने नंदवंश के अंतिम राजा धनानंद को राजगद्दी से पद्चुस्त कर चन्द्रगुप्त को मगध का राजा बनाया. यहीं से मगध में मौर्...